कभी जाति बचाओ तो कभी धर्म !
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1990 से पहले धर्म को कोई ख़तरा नहीं था , तब ख़तरा जाति को था । उस वक़्त अक्सर सुनता था कि हम आबादी कोंट्रोल करने में लगे हैं पर इन दलितों के निरी ख़िदवा है , इनके सात-आठ बच्चे होते हैं , सरकर इनको राशन फ़्री दे रही है ऊपर से इनको आरक्षण अलग से । मतलब ये कि उस वक़्त सबके मन में दलितों की आबादी और आरक्षण का भय बैठाया जाता था ।
1990-91 के बाद ये नज़ारा बदली हो जाता है , दलितों की आबादी और आरक्षण से ख़तरा टल कर ये ख़तरा मुस्लिम आबादी पर आ जाता है । इस ख़तरे के टलने का कारण मेरी समझ में ओबीसी आरक्षण लागु होना रहा होगा । क्योंकि इसके लागु होने के बाद 74% आबादी आरक्षण के दायरे में आ गई तो ये आरक्षण के भ्रम वाला भय मिट गया । इस कारण से फिर शातिर लोगों ने जाति को छोड़ धर्म वाले ख़तरे को जनता में पेश किया ।
अब दस साल के ,2001-2011 , जनगणना आकांडों को देखते हैं । इन दस सालों में हिंदू आबादी -0.65% घटी तो वहीं मुस्लिम आबादी - 0.83% बढ़ी , ईसाई आबादी - 0.30% बढ़ी , सिक्ख आबादी -0.15% घटी , इस में -.09% अन्य धर्मों या पथ को मानने वाले भी हैं , और -0.24% ऐसी आबादी भी है जो किसी भी धर्म को नहीं मानते इन्हें नास्तिक कहा जाता है । अब कुछ बुद्धिजीवी इस घटती हिंदू आबादी 80% (यानी 97 करोड़ ) हिंदुओं के दिल दिमाग़ में 14.50% (17.5 करोड़) मुस्लिमों का भय बैठाएँगे , इनकी बढ़ती आबादी पर चिंतन करेंगे और घटती हिंदू आबादी पर परिवार नियोजन को दोषी ठहराएँगे । ये लोग ये असली बात ना कभी बताएँगे और ना चर्चा करेंगे कि सिर्फ़ परिवार नियोजन ही नहीं , इस घटती आबादी के कुछ और भी कारण हैं , वो इस बात को छुपाएँगे कि ये -0.9% और -0.24% लोग कौन हैं और किस धर्म से अलग हुए और क्यों हुए ? दरअसल इसमें हमारे जैसे बहुत से लोगों की आबादी है जिन्होंने हिंदू की बजाए अपना धर्म कुछ और लिखवाया होगा , जैसे हमने ‘ जाट धर्म ‘ लिखवाया था ।
इस जनगणना में जातीय गणना भी करवाई गई थी , जिसके आँकड़े सरकार अब तक दबाए बैठी हैं । सितम्बर 2015 , में केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने इस आँकडें प्रकाशित ना कर पाने का कोई बहाना बताया था और फिर शायद इसके लिए अलग से कोई कमिशन बैठाया था ! अगर बैठाया था तो क्या वो कमिशन अबतक सरकारी ख़ज़ाने पर पल रहा है ? और सबसे हैरानी की बात तो ये है कि इस गणना के लिए सबसे ज़्यादा आवाज़ उठाने वाले लालू प्रसाद यादव , मुलायम सिंह यादव और शरद यादव भी ख़ामोश हो गए ? जाट राजनेता तो इस मुद्दे पर आवाज़ ही क्या उठाएँगे वो तो अभी सदन में बोलना सीख रहें हैं ।
ख़ैर , जिस दिन ये आँकड़े प्रकाशित हुए उस दिन उन शातिर लोगों की जो जाति-धर्म के भय के नाम से सत्ता पाते हैं उनकी चिंता और ज़्यादा बढ़ जाएगी । क्योंकि अब तो सोशल मीडिया की पहुँच देहात तक हो चुकी है तो 2021 की जनगणना में ये धर्म वाले आँकड़े और भी चौकाने वाले हो सकते हैं , जो लोग धर्म वाले कोलम पर ख़ामोश हो जाते और जनगणना वाला फिर अपने हिसाब से हिंदू लिख देता सोशल मीडिया की जागरुकता के चलते अब आगे शायद ऐसा नहीं हो पाएगा । देखते हैं 2021 के बाद आम जनता में ये लोग कौन सा नया भय पेश करते हैं !
-यूनियनिस्ट राकेश सांगवान