ये छद्दम राष्ट्रवाद और मज़हबपरस्ती के भ्रामक नारे शहरियों की तरफ़ से ही क्यों लगाए जाते हैं ?
चौधरी छोटूराम ने किसान बिरादरी को उस समय , शहरियों द्वारा दिए जाने वाले राष्ट्रवाद और मज़हबपरस्ती के लुभावने व आकर्षक नारों से सावधान रहने के लिए आगाह करते हुए कहा था कि - “ जब सरकारी सेवाओं में शहरी लोगों के पुराने एकाधिकार को चुनौती दी जा रही हो अथवा उसे समाप्त करने के प्रयास हो रहें हों । ये लोग अपने वर्चस्व और नियंत्रण को बनाए रखने के लिए प्रायः ही राष्ट्रवाद एवं साम्प्रदायिक शांति एवं सद्भाव के आदर्श के प्रचार का सहारा लिया करते हैं ।
एक बार उन्होंने सदन में कहा था : ... मेरे मित्र ने पंजाब में समृद्धि को प्राप्त राष्ट्रवाद और शांति-सद्भाव के वातावरण की ओर इशारा किया है , जिस को , उनके कथानुसार , संप्रदयवाद के आगमन से ख़तरा पैदा हो गया है , और संप्रदयवाद से उन का तात्पर्य , जैसा कि मैं समझ पाया हूँ , सरकारी नौकरियों में कुछ हिस्सा उन वर्गों और जातियों को , जो अब तक इस से वंचित रखे गए हैं , उन लोगों के साथ-साथ दिए जाने से है जिनका अब तक इन नौकरियों / सेवाओं पर पूर्ण एकाधिकार रहा है । यदि राष्ट्रवाद से मेरे मित्र का तात्पर्य एक वर्ग विशेष द्वारा सरकारी सेवाओं पर एकाधिकार एवं आधिपत्य बनाए रखने से है , तो मुझे भय है , ऐसे राष्ट्रवाद की अंत्येष्टि करनी ही पड़ेगी । यह राष्ट्रवाद नहीं है , यह एकाधिकारवाद है .... । “
चौधरी छोटूराम ने ये बात आज से कोई अस्सी साल पहले पंजाब अस्सेंबलि में कही थी पर उनकी कही ये बात आज भी कितनी सार्थक है । आज भी राष्ट्रवाद और मज़हबपरस्ती के लुभावने नारे शहरियों की तरफ़ से ही लगाए जा रहें हैं , और देहाती उनके इन नारों में बहक रहें हैं । चलो मान लेते हैं उस वक़्त शासक गोरे थे इसलिए ये लोग राष्ट्रवाद का नारा लगाते थे पर अब तो देश में ग़ैर-शासक नहीं फिर ये राष्ट्रवाद का नारा बार बार क्यों ? हमें इनका यही खेल समझना होगा , अपने रहबर की बताई बात पर ग़ौर करना होगा । हम दिल से राष्ट्रवादी हैं जिसकी नुमाइश की हमें ज़रूरत नहीं , हम देश के लिए अनाज भी पैदा करते हैं तो देश के लिए जवान भी देते हैं , ना हमने कोई ग़द्दारी की ना देहात का कोई व्यक्ति देश में ठगी करके देश छोड़ कर भागा तो फिर बार-बार हमें ही राष्ट्रवाद के नारे क्यों बताए जा रहें हैं ? इनके राष्ट्रवाद और मज़हबपरस्ती के लोक-लुभावने भ्रामक नारों को समझो और देश को बचाओ ।
-यूनियनिस्ट राकेश सांगवान
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