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Thread: जाट की महानता, कृज्ञता और दयालुता किसी को ज

  1. #1

    जाट की महानता, कृज्ञता और दयालुता किसी को ज

    जाट की महानता, कृज्ञता और दयालुता किसी को जाननी है तो ऋषि दयानंद की आत्मा से पूछो:

    आज और आज से पांच-दस साल पहले वाले "सत्यार्थ प्रकाश" की कॉपियां/प्रतियां सम्भाल के रखना; क्योंकि अब बदले हुए हालातों में और जिस तरीके से "जाट बनाम नॉन-जाट" का जहर पुरजोर तरीके से बोया जा रहा है, ऐसे में हो सकता है कि इसके मद्देनजर "सत्यार्थ प्रकाश" के जो भी नए वर्जन निकलें, उसमें से "जाट जी" और "जाट-देवता" के जिक्र व् अध्याय खत्म कर दिए जाएँ।
    खत्म कर दिए जाएँ ताकि अगर ओबीसी व् दलित में कोई इसको पढता होगा तो वो ना जान पाए कि जाट समाज को ब्राह्मण समाज ने "देवता" क्यों कहा है, "जी" लगा के क्यों सम्बोधित किया है; और फिर इससे जाट बनाम नॉन-जाट फैलाने वालों की राह और आसान हो जाए। इसकी बहुत जल्द जाट समाज को जरूरत पड़ने वाली है, बहुत ही नजदीक है वह समय जब जाट को इसकी जरूरत पड़ेगी।
    कोई माने ना या माने "सत्यार्थ-प्रकाश" एक ऐसा सबूत है जो ब्राह्मण तक को इस बात की शिक्षा देता है कि अगर आप ऋषि दयानंद की भांति जाट को "जाट जी" व् "जाट देवता" कहकर उसकी स्तुति करेंगे और उचित आदर-मान देंगे तो जाट आपको उन ऊँचाइयों पर बैठा देंगे कि आप उत्तरी भारत में सबसे मशहूर ब्राह्मण कहलायेंगे।
    जब जाट ब्राह्मण से उचित आदर पाता है तो उसको ऋषि दयानंद की भांति आदर-मान का सर्वोच्च स्थान दिलवा देता है अन्यथा फंड-पाखंड करने वालों की ऐसी खिल्ली उड़ाएगा कि सीधा अंदर-तक हिला दे। लेकिन आज दिक्कत यह आ गई है कि जाट अपने इस मूल प्रवृति को छोड़ने के खुद पर ही एक्सपेरिमेंट कर रहा है। इसीलिए पशोपेश में है। नादाँ है जो अपने ही डीएनए को चुनौती दे रहा है।
    जाट जाति अपने इस गौरव व् देवताई स्थान को ना भूले। ब्राह्मण ने किसी भी अन्य सांसारिक जाति को ना कभी "जी" लगा के बोला है और ना ही "देवता" कहा है। परन्तु जाट को कहा है। जाट को यह आदर-मान दिया तो आज तक भी उत्तरी भारत में ऋषि दयानंद से बड़ा ब्राह्मण कोई नहीं जाना जाता; और यह इसलिए है कि जाट श्रद्धा और प्रेम को सूद-समेत लौटाना जानता है।
    अत: इन जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े खड़े करने वालों को ब्राह्मण वर्ग भी आगे आ के समझाए और इनको कहे कि जाट को आँख दिखा कर या धमका कर विश्व की कोई ताकत नहीं जीत सकती। अगर भारत को विश्वशक्ति बनाना है तो इन जाट बनाम नॉन-जाट के चासडू नादानों को समझाया जाए (चाहे वो जिस किसी भी जाति के हों) कि जाट से मित्रता से रहोगे तो आधे से भी कम समय में विश्वशक्ति हो जाओगे। वर्ना तो भारत को सिर्फ बुद्ध का देश कह के ही काम चलाना पड़ेगा।
    और यह विचार मेरा अहम/घमण्ड या बहम नहीं कह रहा, इतिहास के पन्ने भी यही बोलते हैं। जाट-ब्राह्मण के इतिहास के रिश्ते भी यही बोलते हैं।
    जय यौद्धेय! - फूल मलिक
    One who doesn't know own roots and culture, their social identity is like a letter without address and they are culturally slave to philosophies of others.

    Reunion of Haryana state of pre-1857 is the best way possible to get Jats united.

    Phool Kumar Malik - Gathwala Khap - Nidana Heights

  2. The Following User Says Thank You to phoolkumar For This Useful Post:

    op1955 (January 12th, 2019)

  3. #2
    जातिप्रथा के आधुनिक रूप का विरोध करने वाले स्वामी दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में किसी जाति का विशेष उल्लेख नहीं किया, परन्तु उन्होंने जाटों का उल्लेख कई जगह किया है, वह भी बहुत सम्मानपूर्वक। कई विद्वानों का मत है कि स्वामीजी के पूर्वज हरयाणा के निवासी थे जो बाद में गुजरात में जाकर बस गए थे। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय स्वामी दयानन्द ने इसी हरयाणा क्षेत्र में गांव-गांव घूम-घूम कर जनता को इस क्रांति के लिए तैयार किया था, क्योंकि उन्हें हरयाणवी भाषा की भी अच्छी जानकारी थी।


    जाटजी और पोपजी का किस्सा सत्यार्थप्रकाश में समाहित है। यह जाटलैंड के इस पेज पर पढ़ा जा सकता है -


    https://www.jatland.com/home/Jatji_and_Popeji


    .
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

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