सभी बन्धुओं को प्रणाम, नमस्कार ... 🙏🙏
आज समाज मे आटा-साठा प्रथा का प्रचलन बहुत अधिक बढ़ गया है। समाज मे लड़कियों की इतनी भी कमी नही हुई है, जितनी कि प्रचारित की जा रही है।वातावरण ही ऐसा बना दिया गया है कि व्यक्ति सोचता है कि आटा साठा के बगैर शादी नही होगी। लोंगो की मानसिकता ही ऐसी बन गयी हैं, जबकि वास्तव में इतनी लड़कियों की कमी नही हुईं हैं।
इस प्रथा के कारण एक वयक्ति जिसकी बड़ी लडक़ी 20 की है और पुत्र 10 वर्ष का है, तो वह व्यक्ति लड़की की योग्य लड़के के साथ सम्बंध देखने के बजाय अपने 10 वर्ष के पुत्र के लिए अधिक चिन्तित नजर आता है। इस प्रथा के कारण एक रिश्ता टुटने पर चार लड़कियों, के जीवन के साथ खिलवाड होता है, ओर कई जाट घरो का सौहार्द्र खराब होता है। समाज की गुणवत्ता में गिरावट आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रथा आज चरम सीमा पर है। बहुत अच्छी पढ़ी लिखी लड़कियों को भी अपने भाई या अन्य परिवार के किसी सदस्य की शादी हेतु अपने जीवन को दांव पर लगाना पड़ता हैं। भाई की कमजोरी और अयोग्यता बहनो पर भारी पड़ती जा रही हैं। गांवो में आज यह बहुत ही गंभीर समस्या बनती जा रही है। बच्चों के वैवाहिक संबंध नही होकर एक समझौते के सम्बंध बनने लगे हैं, इन सम्बन्धों की कोई की कोई विश्वशनियता नही रहती हैं। शादी के 5-7 वर्षो के बाद में भी एक सम्बंध में अनबन होने पर अन्य सम्बन्धित 3-4 रिश्तो में भी सम्बंध बिगड़ जाते है। आप गांवो में जाकर जाट समाज की इस कुप्रथा के बारे में एक बार अवश्य जानने की कोशिश करें। अपने समाज की बेटियों के अच्छे वैवाहिक जीवन हेतु इस विषय पर अवश्य विचार होना चाहिए।हम लोग अभी इसे अनदेखा करेंगें तो भविष्य में इसके बहुत ही नकारात्मक परिणाम समाज को देखने पड़ सकते हैं।
इस विषय पर बहुत कुछ है कहने ऒर लिखनें के लियें......
समाज सभी का हैं अतः इस विषय पर सुझाव ओर सहयोग हेतु आप आमंत्रित हैं।
धन्यवाद....
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