हाल ही में दिल्ली में विज्ञान भवन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जाट संसद के अलग-अलग विडियो सुनने और देखने को मिल रहे हैं. इसमें भाग लेने वले अधिसंख्य लोग केंद्र सरकार में सत्ता पक्ष से जुड़े हुये हैं. इस तरह के आयोजनों में निश्चय ही समाज और खास तौर से जाट समाज के विकास की कोई ठोस योजना बनानी चाहिए थी. किसानों का सबसे ज्यादा हित जमीन से जुड़ा है और भूमि अधिग्रहण कानून -2013 ने किसानों के हित की चिंता की थी और उनके हित संरक्षण का काम किया था परन्तु हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच के निर्णय से इस अधिनियम की धाराओं को लचर करके किसानों के हित पर कुठाराघात किया है. उसकी चिंता करता हुआ कोई नजर नहीं आ रहा है. यह सर्वमान्य तथ्य है कि इस निर्णय से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली कौम जाट ही है. जो इस समय उच्च पदों पर हैं उनको चाहिए कि किसानों के हित पर इस तरह से कुठाराघात देश हित के लिए उचित प्रतीत नहीं होता है. किसान पहले से ही बहुत परेशान है. अब किसान की जमीन अधिग्रहण का रास्ता सरल हो गया है. किसानों की सहमति की जरूरत नहीं होगी. 20 साल पुरानी दर से किसानों को मुआवजा भुगतान होगा. सरकारों की मर्जी महत्वपूर्ण हो गई है. जमीन अधिग्रहण की प्रक्रियाएँ 20-20 साल या ऊपर समय की प्रारंभ की हुई पड़ी हैं इसका अर्थ है कि सरकारों को इन ज़मीनों की आवश्यकता नहीं है परन्तु कंपनियों या धनी वर्ग की नजर किसानों की जमीन पर है इसलिये समय रहते किसान हित पर चर्चा और उपाय बहुत जरूरी हैं.