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Thread: Sir Chhoturam

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  1. #1

    Sir Chhoturam

    (चौधरी मुहम्मद हुसैन शादीवाल , गुजराल ,पंजाब की कलम से चौधरी सर छोटूराम को श्रद्धांजली )

    “ तेरी मौत कौम की मौत है ”
    “ इक हूक सी दिल में उठती है इक दर्द सा दिल से होता है ,
    मैं रात को उठ कर रोता हूँ , जब सारा आलम सोता है ”

    मेरे जीवन की पूंजी , गरीब जाट कौम के सच्चे संरक्षक , मजबूर लोगों के दुःख हरने वाले , प्रताड़ित लोगों के हमदर्द एवं अभिभावक चौधरी सर छोटूराम स्वर्गवासी हो गए | तेरी मौत की अचानक खबर ने कमर तोड़ दी , प्रत्येक जाट घर में शोक की लहर दौड़ गयी | तेरी मौत सचमुच कौम की मौत है | तुझ-सा इरादों का पक्का , तुझ-सा अपनी कौम-अपनी कौम का दर्द समझने वाला सभवतः कोई पैदा नहीं हुआ होगा | मेरी जीवन-पूंजी इस समय मेरी भावनाएं और हार्दिक अवस्थाएँ हैं – उन्हें किन दर्द भरे शब्दों में व्यक्त करें , ताकि वह मेरे आंसू रुलाने वाले अर्थ की सच्ची तर्जुमानी कर सकें ? तमाम गरीब जाट कौम के लोगों को तेरे दामन से सच्ची श्रद्धा और आस्था थी लेकिन जो आकृष्टि और प्रेम मुझ से था , वह मेरा दिल ही जानता है | तूने कौम की डूबती नाव सुरक्षित किनारे लगाई | तू न होता तो आज तक खुदा मालूम तेरी प्यारी कौम के गरीब वर्ग की क्या से क्या हालत हो जाती | तूने इसे दुनिया में दोबारा जिन्दा कर के पेट भर कर खाने और इज्जत के साथ जिन्दगी गुजारने के योग्य बना दिया | यह तेरी कूटनीति थी कि धर्म एवं कौम से परे सम्पूर्ण जाट कौम को एक प्लेटफोर्म पर एक कर दिखाया | ईसाई , मुस्लिम , सिख , हिन्दू जाटों में संगठन तेरे ही दम से हुआ | मंत्रिमंडल के महल की बुनियाद तू ही था | तेरे सिद्धांतवादी और नेक-नियत का दुश्मन से दुश्मन को भी विश्वास है | तेरा आज कोई दुश्मन नहीं | सबको तेरे दुनिया से जाने का अफ़सोस है , इसलिए कि तू न किसी का दुश्मन था | दुनिया में धंधे-बखेड़े , खींचतान करा दिया करते हैं | ऐसा तेरा ही व्यक्तित्व था , जो साम्प्रदायिक एकता का जबरदस्त समर्थक था | तेरे मंत्रित्व का भार सँभालने वाले बहुत , लेकिन तेरे दिलों दिमाग का इन्सान चिराग लेकर ढूढने से नहीं मिलेगा | तेरा प्रताप और दबदबा बला का था | जो लाजवाब और ठोस भाषण और लेखन सुनने और पढने से कौम हमेशा के लिए वंचित हो गई है | जितना तू गरीब कौम का , जाट कौम का प्रिय था , मेरी आँखों ने आजतक किसी को नहीं देखा | तेरी जयंती दृश्य की लाजवाब अवस्था मेरी आँखों के सामने है | मैं चाहता हूँ हरियाणा भूमि के नैतिकतापूर्ण दिलों दिमाग उसी भव्यता से तेरी मौत का दिन भी मनायें | जीतें जी एक बार फिर कौम का लाजवाब ... इन आँखों से देख लूँ | लेकिन समय की कमी न हो | कम से कम दो-तीन दिन हो | तेरा परवाना दिल खोल कर बोले | मेरे और तेरे बीच एक वादा था , जिसकी तूने अपनी जिन्दगी में मुझे व्यक्त करने की इजाजत न दी हुई थी | अब मैं उसे कौम के सामने वाले और वर्णन करने से नहीं भाग सकता | किसी दुसरे समय के लिए रखता हूँ | रात को सारी दुनिया आराम से सोयी | खुदा जानता है न नींद है न आराम | आराम दिलाने वाला आराम साथ ही ले गया | अतः मैं हूँ पर मेरा दुखित मन , मेरी आंखे और आसूं | जाट का बच्चा-बच्चा तेरी मौत से रो रहा है | तेरी वह नेकियाँ जो इस कौम में कर गया है , भूलने वाली नहीं और नहीं भूलेंगी | तुझे मालूम है , मैं एक गरीब जाट हूँ | तूने इस प्रकार ठोक-बजा कर फैसला किया हुआ था कि मैं कौम का सच्चा सेवक और नौकर हूँ | जिस विषय पर कलम उठाया , सम्पूर्ण लिखा | आज न कुछ लिखना आता है , न बोलना | तेरे मातम में शादिवाला क़स्बा में याद रहने वाला जलसा कहाँ है ? इससे तेरे आरंभिक जीवन से लेकर जयंती के समय तक हालात बताएँगे | तेरे बचपन के कारनामे , कौमी हमदर्दी के जोश सुन-सुन कर उपस्थितगण भौंचक रह गए कि कुदरत ने यह गुण .... ने हर घर में रोने-धोने का माहौल बना दिया है , - तेरी पैदाईश के समय ही रख दिए थे |

    “जुनुने शौक ऐ काश ! इतना आलमगीर हो जाये ,
    कि जिस शै पर नजर डालूं , तेरी तस्वीर हो जाये ”

    ( जुनुने शौक - अभिलाषा का उन्माद , आलमगीर - विश्व व्यापी , शै - वस्तु)

    ( जाट गजट , 24 जनवरी 1945 , पृ-6 )

    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  2. #2
    चौधरी छोटूराम का एक ख़त
    8 जुलाई , 1936 को चौधरी छोटूराम ने देहात के तमाम अफसरों को एक ख़त लिखा था –
    प्रिय ,
    आपको यह ख़त मैं सरकारी हैसियत से लिख रहा हूँ | यदि आप में ये दोष न हों , जिनका जिक्र इस ख़त में हैं , तो बुरा न मानना |

    किसान कौम को मैं दिल से प्यार करता हूँ , लेकिन मुझे अफ़सोस है कि इस समाचार को सुनने के कि देहात के लोग जो उच्च पदों पर हैं उनमें से कुछ शराब पीने , रिश्वत लेने आदि जैसे दुर्गुणों में फंसते जा रहें हैं | उनके इन गलत कामों से सारी कौम बदनाम हो जाएगी | मैं यह तो चाहता हूँ कि आप लोग अच्छा खायें , अच्छा पहनें , किन्तु यह कतई नहीं चाहता कि फैशन और चाट में पैसे बरबाद करें | मैं आपको यह याद दिलाना चाहता हूँ कि हम उन लोगों की संतान हैं , जो बेझड़ ज्वार-बाजरे की रोटी दही व प्याज से खाते थे और हमसे अधिक तंदुरुस्त थे | मनोरंजन भी कोई बुरी चीज नहीं है | किन्तु जिस मनोरंजन से चरित्र बिगड़ता है उसे मैं पसंद नहीं करता हूँ |
    शराब पीना एक ऐसा दुर्व्यसन है जिसने बड़ी-बड़ी सल्तनतों व मालिकों को नष्ट कर दिया |कोई भी धर्म शराब पीने के पक्ष में नहीं है , न कोई नीतिशास्त्र ही शराब पीने को अच्छा मानता है | साधारण समझ के लोग भी इसकी निंदा करते हैं | अनुभवी लोगों ने इसके दुष्परिणामों से हमेशा सचेत किया |
    चरित्र में जरा सी ढिलाई से जीवन पतन की ओर ढलने लगता है | दुर्व्यसनों में एक बार फंसने पर उनसे निकलना कठिन हो जाता है | भोगो को भोगने से कभी भी तृप्ति नहीं होती है | स्वयं ही उच्च चरित्र को कायम रखता है |
    रिश्वत के सम्बन्ध में क्या हमें यह नहीं दिखता है कि जिनसे रिश्वत ले रहें हैं , उनकी सामर्थ्य तो इतनी भी नहीं है कि भली प्रकार से बाल-बच्चों का पोषण कर सकें | प्रायः ऐसे ही लोगों से रिश्वत ली जाती है | क्या हम बेदिल है कि यह तथ्य हमारी आँखों से ओझल हो जाता है ?
    ख़ास शख्शियतों एवं अधिकारियों की गोष्ठियों में मैं जब सुनता हूँ कि जाट मुलाजिम भी इन दुर्गुणों की ओर बहने लगे हैं तो मेरा सिर शर्म से झुक जाता है | किसी आदमी के चरित्र से पूरी कौम के चरित्र की जांच होती है \ उच्च जाति में ये गुण होने आवश्यक है –
    सादा जीवन , उच्च विचार अच्छा चरित्र , ईमानदारी और पारस्परिक एकता |

    आपका
    छोटूराम

    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  3. #3
    सर छोटूराम की जयंती बसंत पंचमी को क्यों मनाई जाती है ?
    मेरी जयंती बसंत पंचमी के दिन ही मनाई जाए
    सर छोटूराम की यह ख़्वाहिश थी कि उन्हें बसंत पंचमी पर ही याद किया जाए। इसी दिन उनकी जयंती मनाई जाए। दरअसल, इसके पीछे भी एक कहानी है।

    बात 1942 की है। जब देश में सांप्रदायिक दंगे फैलने लगे और बेचैनी बढ़ने लगी तो बसंत पंचमी को बेगम शाहनवाज ने इसे सद्भावना दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। उस समय पंजाब के प्रीमियर सर सिकंदर हयात खां मिस्र के फ्रंट पर सैनिकों का हौसला बढ़ाने गए हुए थे और उनकी गैरहाजिरी में वजीरे आजम (प्रधानमंत्री) की जिम्मेदारी छोटूराम निभा रहे थे। तब बसंत पंचमी पर पहले सद्भावना दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में सर छोटूराम को आमंत्रित किया गया। तब सर छोटूराम ने लाहौर की पंजाब यूनिवर्सिटी के हॉल में हुए समारोह में भावुक होते हुए कहा था कि बसंत पंचमी बहुत ही प्यारा दिन है। यह ऋतुओं की रानी का दिन है। मेरी इच्छा है बसंत पंचमी को ही मेरी जयंती मानी जाए।
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  4. #4
    जब सन 1927 मे पंजाब गवर्नर व हिंदू महासभाइयों की साजिश से सर छोटूराम को मंत्रिमंडल मे शामिल नहीं किया गया सर फैजले हुसैन को बड़ा दुःख हुआ | पार्टी के मुसलमानों को भी दुख हुआ किन्तु जब फिरोज खान नून को गवर्नर ने मिनिस्टर बना दिया तो मेम्बर शांत हो गए |
    कौंसिल के प्रथम अधिवेशन में उनके विरोधी और मित्र उन्हें देखते ही चकित रह गए जब स्वाभाविक रूप में मुस्कराते हुए और प्रसन्न मुख चौधरी छोटूराम को सदस्य की कुर्सी पर बैठते देखा | वे सोचते थे कि छोटूराम का चेहरा मुरझा गया होगा | कल का मंत्री आज साधारण सदस्य की चाल कैसे चलेगा ?
    सरदार बहादुर जोगेन्द्र सिंह अपने पर संयम न रख सके और चौधरी साहब के पास जाकर बोले , भाई मैंने तुम्हारे जैसा व्यक्ति नहीं देखा जिसे मंत्रित्व जाने का तनिक भर भी अफसोस नहीं है और ऐसा दिखता है कि मानो कोई रंज-गम करने लायक घटना ही नहीं हुई है | मैं तुम्हें तुम्हारी हिम्मत पर बधाई देता हूँ |

    चौधरी साहब ने उसी धीर-गंभीर वाणी में कहा , सरदार जी मिनिस्ट्री अपनी जाति अथवा गोत तो नहीं है जिससे वंचित होने पर दुःखी हों |
    सरदार जोगेन्द्र सिंह जब चौधरी साहब से बातें कर रहे थे तभी टपके सरदार लाल सिंह , ये खत्री थे | हिंदूमहासभाई दल मे येँ तोड़-फोड़ करने वालों में चतुर व्यक्ति माने जाते थे | इन्होंने देखा कि चौधरी छोटूराम से बातें करने का यह उपयुक्त अवसर है | मंत्रिपद न मिलने से उन्हें दुःख भी होगा | इस समय की सहानुभूति कुछ कीमत रखती है | नमस्ते करके वे चौधरी साहब के पास बैठ गए |
    शहरी नेता अपने इस पूर्व नियोजित षड्यंत्र में तो सफल हो गए कि चौधरी छोटूराम को उन्होने मिनिस्टर नहीं बनने दिया | किन्तु इतने से वे निश्चित नहीं थे , वे चाहते थे कि चौधरी साहब हमारे साथ आ जाएँ तो हमारी शक्ति बढ़ जाएगी | इसलिए उन्होने सरदार लाल सिंह को उनके पास भेजा | संदेश यह था कि चौधरी साहब हमारे साथ आ जाएँ और कौंसिल की अध्यक्षता के लिए खड़ें हो जाएँ , हम पूरी शक्ति उन्हें सफल बना देने मे लगा देंगे |
    जब सरदार लाल सिंह ने कहा कि चौधरी साहब ! हम लोगों को आपके मिनिस्टर न होने का बड़ा दुःख है , तो चौधरी साहब ने हँसते हुए कहा , मैं इस सद्भावना के लिए अतीव कृतज्ञ हूँ , क्या इस दुःख को प्रसन्नता में बदलने के लिए आप लाला मनोहर लाल से मंत्रित्व का त्यागपत्र दिला रहें हैं ? मैं आपके प्रयोजन को भली-भांति समझता हूँ |
    सरदार लाल सिंह इस उत्तर से सकपका गए और बोले , अभी तो हम आपको कौंसिल का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं | चौधरी साहब बोले , किन्तु मैं अध्यक्षपद का उम्मीदवार नहीं , उसके उम्मीदवार तो मेरे भाई शहाबुद्दीन (मुस्लिम जाट ) हैं | सरदार लाल सिंह ने कहा , चौधरी साहब आप तो इनके हितों का इतना ख्याल रखते हैं , यह भी कुछ ख्याल आपका रखते हैं ? हम तो समझते जब फिरोज खान नून यह कह देते कि मेरी जगह चौधरी छोटूराम को मिनिस्टर बना दो | चौधरी साहब ने हँसकर जवाब दिया , सरदार साहब ! एक यूनियनिस्ट की हैसियत से तो वह ऐसा कह सकते थे किन्तु एक मुसलमान की हैसियत से ऐसा वे नहीं कह सकते थे , क्योंकि वह सीट एक मुसलमान थी | आपकी पार्टी तो एक हिन्दू की सीट पर भी मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकी | मैं जानता हूँ यूनियनिस्ट पार्टी में भी अभी लोग विशुद्ध यूनियनिस्ट नहीं हैं , किन्तु मैं अबके मंत्री नहीं बना तो न सही | मेरे जो सिद्धान्त हैं उनके प्रचार के लिए मुझे अब और अधिक वक़्त मिलेगा |
    चौधरी साहब के इस स्पष्ट उत्तर को सुनकर सरदार साहब खाली हाथ वापिस हो गए | कहते है कि इसके बाद पंजाब के हिन्दू लीडरों ने सर सेठ छाज्जूराम को पत्र लिखा था कि आप छोटूराम को समझाकर हमारे साथ मिला दें | सेठ छाज्जूराम को चौधरी छोटूराम अपना धर्म पिता कहा करते थे , क्योंकि पढ़ने के समय से लेकर सेठ जी ने सदा ही चौधरी छोटूराम कि भरपूर मदद की और अपना वरदस्त उनके ऊपर रखा | इसी कारण प्रायः यह समझा जाता था कि सेठ जी की बात को चौधरी छोटूराम कभी इंकार नहीं कर सकेंगे | किन्तु हिन्दू नेताओं की उनके दरबार मे भी सुनवाई नहीं हुई | यह पत्र लेकर रायबहादुर बलवीर सिंह सेठ जी के पास गए | सेठ जी ने स्पष्ट कह दिया कि मैं राजनैतिक मामलों में कुछ अनुभव या ज्ञान नहीं रखता , जो चौधरी छोटूराम करते हैं , मैं उसी को ठीक मानता हूँ |
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  5. #5
    सर छोटूराम ने देखा कि किसानों की पैदावार के भाव काफ़ी गिर गए हैं और उनकी ख़ूब लुटाई हो रही है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफ़ी कमज़ोर हो गई है तथा वे बहुत दुर्गति का जीवन व्यतीत कर रहें हैं । तब उन्होंने किसानों की इस बिगड़ी स्थिति को सुधारने के कार्य आरम्भ किए । इसके लिए उन्होंने जाट गजट तथा ज़मींदार लीग का उपयोग किया । चौधरी छोटूराम के इस कार्य के विषय में रोहतक के डी॰सी॰ जमाँ मेहंदीखान मलिक ( 1929-31) ने एक पत्र लिखा -
    " मैं आपको वास्तविक स्थिति की सूचना देता हूँ । जैसे कि आप सचेत होंगे , चौधरी छोटूराम की ज़मींदार लीग और कांग्रेस में अब थोड़ा ही अंतर है । उनका 'जाट गजट’ अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध ऐसा ही प्रचार कर रहा है जैसा की कांग्रेस । “

    (Confidential Files from the Deputy Commissioner’s Office Rohtak 11/29 , See letter 21 Sept. 1931).
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  6. #6
    पाकिस्तान पूंजीवादी मुसलमानों की मांग है |
    जब जिन्ना ने पंजाब में ' इस्लाम खतरे में है ' के नारे का जोर शोर से प्रचार शुरू कर आम मुस्लमान को बहकाना शुरू किया तो उसके इस प्रोपगंडा के काट में कोई आगे नहीं आया , न कांग्रेस और न हिन्दू महासभा (संघ की पोलिटिकल विंग) | कांग्रेस मुस्लिम लीग के आगे आत्मसमर्पण कर चुकी थी तो संघ ने पंजाब के शहरी इलाके में हिन्दुओं को भड़काना शुरू कर दिया | सिर्फ सर छोटूराम एक अकेला ऐसा राष्ट्रवादी था जो जिन्नाह को टक्कर देने के लिए पंजाब के गाँव गाँव घूम रहा था | पंजाब के आम देहाती मुस्लमान को जिन्नाह के प्रोपगंडा के बारे में समझा रहा था | उन्होंने गाँव गाँव और कस्बे-कस्बे में जाकर मुसलमानों को पाकिस्तान की हानियाँ बताना आरंभ कर दिया | उन्हें बताया कि आज गुलामी की हालत में और हिन्दुओं के साथ रहते हुए भी जब तास्सुबी मुल्ला यह कहते हैं कि शिया सच्चे मुस्लमान नहीं , कादियानी काफ़िर हैं , आगाखानी गुमराह हैं ; तब हिन्दू विहीन पाकिस्तान में और सिर-फुटौवल आरंभ हो जाएगी और पाकिस्तान पूंजीवादी मुसलमानों की मांग है |
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  7. #7
    Aapke pass bdi bhetar jankari h sir choturam ki,
    Jaat ko us vichardhara ko dobara jgane ki jarurt h
    Siddharth dalal

  8. #8
    (Sir Chhoturam : Writing & Speeches (जाट गजट) , Vol.IV , पृ. 156)
    हंटर कमेटी की रिपोर्ट
    (जाट गजट , 23 जून , 1920 , पृ.3)

    हंटर कमेटी की रिपोर्ट कुछ ऐसे अशुभ लग्न में कायम हुई कि उसको लेकर के पहले ही दिन से नाराजगी का प्रदर्शन होता रहा है | हिंदुस्तान की जनता की मांग थी कि पंजाब के बवाल के कारण मार्शल लॉ के जारी करने और इतने समय तक उसको कायम रखने के उचित या अनुचित मार्शल लॉ के ज़माने में कुछ अधिकारियों के आतंक और पंजाब सरकार की जिम्मेदारी के मामले में छानबीन करने और इस छानबीन के बाद ना कबीले क्षमा गुनाहों के बदले में मुजरिम दोषी अधिकारियों के लिए उचित सजा देने के लिए एक आजाद और खुले दिल के लोगों की एक रायल कमीशन बनाया जाए और वह कमीशन ब्रिटेन सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपें और हिंदुस्तान की सरकार इस रिपोर्ट पर उचित कार्यवाई का अनुरोध सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट की सेवा में करे | हिन्दुस्तानियों का माथा तो उस समय ठनका था कि हिंदुस्तान की सरकार की पालिसी और जिम्मेदारी के प्रश्न पर छानबीन की जरुरत थी |
    हन्टर कमेटी की नियुक्ति से जनता में नाराजगी
    इस कमेटी को वियुक्त करे और यह कमेटी की रिपोर्ट हिंदुस्तान की सरकार की सेवा में पेश हो | हिंदुस्तान की जनता इस बात से बहुत नाराज थी कि हिंदुस्तान की सरकार को जिसकी हैसियत एक गुनाहगार की थी यह अधिकार प्राप्त हो कि वह कमेटी को नियुक्त करे | फिर उसके जो अंग्रेज सदस्य नियुक्त हुए उनमें लार्ड हंटर के सिवाए कोई आदमी ऐसा नहीं था जो मकामी असर और मकामी पक्षपात से खाली हो , हिन्दुस्तानी सदस्य जो नियुक्त किये गए उनमें दो की आज़ादी को लेकर चर्चा होने की सम्भावना थी मगर यह सब कुछ तो हो गया | उसके बाद गैर सरकारी और सरकारी गवाही लेने के सम्बन्ध में जो व्यव्हार कमेटी की तरफ से अपनाया गया वह निंदनीय था | जहाँ एक पार्टी यानी सरकारी पक्ष को हर तरह की सुविधाएँ हासिल थी और दूसरी तरफ गैर सरकारी लोगों को जिनकी गवाही बहुत जरुरी थी थोड़े समय के लिए भी जेल से नहीं छोड़ा गया | इस कारण से कांग्रेस सब कमेटी ने आत्मसम्मान के लिए पंजाब के मामले में कोई गैर सरकारी गवाही पेश नहीं की | रिपोर्ट एक ज़माने बाद छापी गई और जब छापी गई तो ऐसी सूरत में छापी गई कि हिन्दुस्तानी जनता को बहुत हैरानी और अफ़सोस हुआ | हमारी राय में शायद ही कोई हिन्दुस्तानी ऐसा होगा जो केवल चापलूसी का टट्टू न हो और यह एहसास न करता ही कि हंटर कमेतीं पर क्यों इतना रुपया खर्चा किया गया ? इससे तो हजार बार अच्छा यह था कि कोई कमेटी ही न नियुक्त की गई होती | इसमें संदेह नहीं कि हिन्दुस्तानी जनता ने जो रिपोर्ट राय की कमी की लिखी है वह आमतौर पर हिन्दुस्तानी जनता को पसंद है और हिन्दुस्तानी सदस्यों की बहादुरी और आज़ादी पर जिसके बारे में आरंभ में ही कुछ संदेह था दलालत करती है | मगर राय की अधिकता की जो रिपोर्ट है वह हमारे उस भरोसे को जो सैंकड़ों असहज निराशियों के बावजूद जो ब्रिटेन के न्याय पसंदी पर था एक धक्का लगाती है और उस भरोसे को दोबारा कायम होने के लिए एक ज़माने की आवश्यकता होगी | अंग्रेजी अख़बारों जैसे पायनियर और सिविल मिलट्री गजट हिन्दुस्तानियों से यह निवेदन करते हैं कि हंटर कमेटी पर फतवा देने से पहले हमें उन खतरनाक और गैर मामूली समय पर विचार करना चाहिए जिनके अंदर पंजाब सरकार अंग्रेजी अधिकारी और हिन्दुतान सरकार ने काम किया | अमृतसर में कई अंग्रेज मारे जा चुके थे | सरकारी भवनों और अंग्रेजों के घरों और इबारत की जगहों तक को जला दिया गया था | कहीं रेल की पटरी उखाड़े जाने की खबर आ रही थी और कहीं डाकखाने और तार जलाए जा रहे थे , कहीं पुल तोड़े जा रहे थे . फौज की संख्या ना काफी थी बागी सोच का जंगी आबादी में फ़ैल जाने का डर था | उधर उत्तर-पश्चिमी सीमा के वहशियों और काबुल के अमीर की शरारतों का डर लगा हुआ था | ऐसी परिस्थिति में शांति और सुकून के पैमाने पर अधिकारियों के कामों को जांचना न्याय नहीं है यह मिसाले काफी है और मामूली गलतियों और मामूली सख्तियों की भरपाई करने के लिए काफी है मगर हमें तस्वीर के दुसरे भाग को अनदेखा नहीं करना चाहिए | अमृतसर के वाकये से पहले कहीं ऐसे हालात नहीं दिखे जिनसे डर पैदा हो अमृतसर में फायर होने से पहले अंग्रेजों की तरफ आम लोगों आम लोगों का बर्ताव बिलकुल ठीक था हिन्दुस्तानियों के पास कोई ऐसे साधन नहीं थे जिससे फ़ौज को कोई डर हो | 11-12 अप्रैल को शहर अमृतसर की हालत हर तरह से ठीक थी जहाँ कुछ जगहों पर गैर जिम्मेदार भीड़ों से गड़बड़ी हुई थी | हाँ उसके मुकाबले में पुरे पंजाब में हर तरह से शांति और सुकून था और किसी तरह की अमली खराबी न होती थी सीमा के वहशियों और काबुल के अमीर की शरारतों की जानकारी उस समय लोगों को नहीं थी | इन तमाम बातों के बावजूद एक निहत्थी भीड़ पर , जिसके अंदर हर उम्र और हर तरह के लोग शामिल थे और जिसमें एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी , जिनकों कोई जानकारी जनरल डायर के आदेश की नहीं थी | इस बेदर्दी के साथ फायर करना एक ऐसा काम था , जिस पर हर तरह से लानत भेजना जरुरी था | जनरल डायर की ... अपनी शहादत चिल्ला चिल्ला कर कह रही है कि उसने कैसी बेदर्दी और बेरहमी के साथ काम किया | जानवरों की तरह उसने देश की जनता पर गोलियों की बौछार कर दी |

    कमेटी ने जनरल डायर के कारनामों पर लीपापोती का काम किया
    जनरल डायर जैसे जिम्मेदार आदमी का एक निहत्थी भीड़ पर फायर करना , भगदड़ आरंभ होने के बाद भी फायर जारी रखना , भागते हुए लोगों को मौत का निशाना बनाना , रुक-रुक कर उन जगहों पर खासतौर पर फायर का रुख फेरना , जहाँ भीड़ सबसे ज्यादा थी , बारूद के समाप्त होने तक बराबर फायर जाती रखना | जब सैंकड़ों को मार डाला और हजारों को जख्मी हालत में बिना पानी के सिसकते हुए जख्मियों को छोड़कर चला आना , यह कार्य ऐसे कठोर दिल होने की गवाही देते हैं , जिस पर इंसानियत का कलेजा फटता है और सभ्यता का दिल काँप उठता है | ऐसे इन्सान को निर्दोष कहना हिन्दुस्तानियों के घायल दिल पर नमक छिडकना है | अफ़सोस की बात है कि हंटर कमेटी के अंग्रेज सदस्यों ने एक सामूहिक राय से जनरल डायर के काले कारनामों पर सफेदी पौतने का प्रयास किया है | एक ऐसी गली थी जिसमें हिन्दुस्तानियों को गुजरने की बिलकुल मनाही थी सिवाए इसके कि पूरी गली को कोई आदमी पेट के बल चलकर पार करे | पेट के बल चलने के आदेश पर कई आदमियों से अमल कराया गया | हिन्दुस्तानी कैदियों की कुछ संख्या इस रास्ते से गुजरी उसको भी पेट के बल चलाया गया | इस आदेश के सिवाए इसके कुछ मतलब नहीं हो सकता कि हिन्दुस्तानियों की बेज्जती हो और उनकी बेबसी का एक खतरनाक दृश्य उनकी आँखों के सामने खिंचा जाए |
    अमृतसर के अलावा भी और जगहों पर भी ज्यादती और अन्याय देखने में आए हैं जो अमृतसर के रंगों से कम मगर काफी वहशियाना रंग में रंगें हुए थे | सर माईकल जनरल डायर के काम को पसंद किया | गैर जरुरी तौर पर मार्शल ला का एलान कर दिया , बिना जरुरत एक जमाना तक मार्शल लॉ को जारी रखा | उसकी पालिसी और उसके मंशा के अनुसार ख़ास अदालतें कायम हुई , जिसमें इंसाफ का खून हुआ | ऐसी आदमी को हंटर कमेटी के सदस्यों की तरफ से अच्छाई का प्रमाण पत्र दिया गया | जिस ज़माने में अमृतसर की ज़मीन बेगुनाहों के खून से रंगी जा रही थी और मार्शल लॉ के द्वारा इज्जतदारों की इज्जत बिगाड़ी जा रही थी और बेगुनाहों को उनकी आज़ादी से वंचित किया जा रहा था और बेगुनाहों को उनके अपनों से अलग करके जेलों में भरा जा रहा था | हिन्दुस्तानियों को जानवरों की तरह लोहे की जंजीरों से बाँधा जाता था और सैंकड़ों तरह की परेशानियाँ सबसे वफादार राज्य की प्रजा को दी जा रही थी | तब लार्ड चेम्सफोर्ड शिमला की ठंडी हवा खा रहे थे | उनके दिल में कभी यह ख्याल न आया कि मैं पहाड़ से उतर कर पंजाब की जनता की दर्द भरी कहानी सुनूँ और जब कौंसिल के अंदर दर्द भरी कहानी पंडित मदन मोहन मालवीय ने सुनाई तो हमारे बादशाह के उत्तराधिकारी ने बहुत ही बेइज्जत कर देने वाला तरीका अपनाया | ऐसे वायसराय को तमाम जिम्मेदारी से बरी करना हंटर कमेटी की राय की बहुलता का ही काम है | ऐसी रिपोर्ट के लिए हिन्दुस्तानियों से अच्छाई कि आशा रखना उनके दिल , दिमाग और आत्मसम्मान को बेइज्जत करना है |
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
    |"

    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

  9. #9
    सन 1942 में गांधी जी ने अंग्रेज़ो को बिना कोई देरी किये भारत छोड़ चले जाने के लिए कह दिया था | सर छोटूराम ने गांधीवादी निष्क्रिय प्रतिरोध की योजना के विकल्प के रूप में अपनी ही सक्रिय प्रतिरोध की योजना बना ली थी और इस को गंभीर स्वरूप प्रदान करने तथा अर्थपूर्ण बनाने , महत्व देने के लिए 29 नवंबर 1942 को तीस हजारी (दिल्ली) के मैदान पर अखिल भारत जाट महासभा के तत्वावधान में भरतपुर राज्य के महाराजा सवाई बृजेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में एक विशाल जाट-सम्मेलन का आयोजन किया गया था | इस सम्मेलन में एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित एवं स्वीकृत किया गया , जिसकी मुख्य बाते ये थी :-
    1. जाट चाहते हैं कि भारत को जल्द से जल्द आज़ाद कर दिया जाए | प्रस्ताव में कहा गया कि देश के दूसरे लोगो की ही तरह जाट का विश्वास भी ब्रिटिश वायदों पर से उठ गया हैं | प्रस्ताव में ब्रिटिश सरकार से कहा गया कि वह अपनी नियत स्पष्ट करे | आगे ज़ोर देकर कहा गया कि जाट अंग्रेजों की ' फूट डालो राज करो ' की नीति के पूरी तरह विरोधी हैं , जिसका मकसद विभिन्न जातियों , वर्गों एवं धर्मों के लोगो के बीच सांप्रदायिकता की भावना को भड़काना हैं ताकि भारत में अंग्रेज़ो का शासन चलता रहे | प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रेसीडैंट से मध्यस्ता करने की प्रार्थना की जाए ताकि आज़ाद भारत के लिए संविधान निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया जा सके और युद्ध -समाप्ति के फौरन बाद भारत आज़ाद हो सके |
    2. यह मान लेना पक्के तौर पर गलत हैं कि सारे मुसलमान मुस्लिम लीग के साथ हैं , या कि सारे हिन्दू कांग्रेस के साथ हैं , या सारे सिख अकाली दल के साथ जुड़े हुए हैं | उदाहरण के लिए पंजाब में जमींदार लीग में हिन्दू मुसलमान और सिख तीनों हैं | जाट एक संप्रदाए निरपेक्ष कौम हैं और इस लिए उसकी आवाज़ जाति अथवा धर्म कि संकीर्णताओं से परे , यानि सभी तरह के धार्मिक और जातीय बंधनो से ऊपर हैं |
    3. युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद का अंत हो जाएगा , और भारत एक आज़ाद राष्ट्र होगा | ब्रिटिश शासकों को चाहिए कि वे अलगाववादी प्रवृति को प्रोत्साहन न दें और इसकी जगह सरकार की बागडोर राष्ट्रवादी तत्वों के हाथों मे सौंप दें जो स्वस्थ आर्थिक और धर्म निरपेक्ष विचारधारा के आधार पर देश की आर्थिक समस्याओं को हल करने की कोशिश करेंगे तथा सभी धर्मों को सम्मान और समानता का दर्जा प्रदान करेंगे |
    मुख्य प्रस्ताव लाहौर के एक मुसलमान जाट बैरिस्टर सर हबीबुल्ला ने पेश किया और अजमेर के ईसाई जाट मिस्टर श्री नाथ ने इस का अनुमोदन किया |
    विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए सर छोटूराम ने कहा था " जाट अपनी मातृ - भूमि के लिए बड़े से बड़ा बलिदान देने में कभी पीछे नहीं रहे हैं और जब भी भारत माता की सेवा के लिए उनकी आवश्यकता पड़ेगी वे ऐसा करने में बिलकुल नहीं झिझकेंगे | मुझे जाट होने का गर्व हैं और इस कौम में जन्म लेने के कारण मुझ पर आई जिम्मेवारियों को मैं अच्छी तरह समझता हूँ | हम सांप्रदायिकता के विरुद्ध लड़ेंगे और अपने देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर देंगे | हम भारत में किसान-मजदूर राज की स्थापना के लिए कार्य करेंगे | युद्ध में अपने प्राणों की आहुती देकर जो बलिदान हम दे रहे हैं वह व्यर्थ नहीं जाएगा | हम कभी अंग्रेजों के समर्थक नहीं रहे और हमने उन्हे हमारे साथ मनमाना व्यवहार करने की इजाजत भी कभी नहीं दी | जाट कौम के भिन्न भिन्न नाम , धर्म , वर्ग हो सकते हैं | बहुतों ने धर्म परिवर्तन कर लिया होगा परंतु उन सबों की नसों में एक ही खून बह रहा हैं | "
    सर छोटूराम ने पुनः कहा , " धर्म में परिवर्तन का अर्थ खून में परिवर्तन हो जाना नहीं हैं | समय की जरूरत हैं कि जाट कौम के विभिन्न रूप संगठित हो जाएँ - एक हो जाएँ | जाट चाहे हिन्दू , मुसलमान , सिख या ईसाई , जो भी हों , उनके मन में किसी के प्रति विरोध अथवा द्वेष कभी नहीं रहा , अपने शत्रुओं के प्रति भी नहीं | इसलिए ये ही देश की एकता और अखंडता को सुनिश्चित बनाने को पर्याप्त सक्षम हैं | वे बहादुर हैं , निष्ठावान हैं , और सबसे बड़ी बात यह हैं कि वे हृदय से धर्म निरपेक्ष हैं | जब अंग्रेजों को यह विश्वास हो जाएगा कि जाटों और दूसरी क्षत्रिय जातियों ने उनके विरुद्ध सिर जोड़ लिया हैं और अपनी आज़ादी , जो इस धरती पर जन्मे सब मनुष्यों का जन्म सिद्ध अधिकार हैं , के लिए लड़ने को बाहर निकल आए हैं , तो उन्हे भारत छोड़ कर जाना ही पड़ेगा | अंग्रेजों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जाटों ने यदि एक बार लट्ठ उठा लिए तो उन्हे अपना काम करने से कोई नहीं रोक सकता | इसलिए अंग्रेजों को शीघ्र ही अपना मन बना लेना चाहिए और प्रशासन की डोर राष्ट्रवादी शक्तियों को सौंप देनी चाहिए | रक्त-पात , मार-काट और विनाश के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए | "
    अपने एक घंटे की अवधि के भाषण के अंत में सर छोटूराम ने दूसरी क्षत्रिय जातियों - राजपूत , अहीर , गुज्जर को जाट कौम के साथ सहयोग करने और आज़ादी की लड़ाई में बराबर के भागीदार बनने के लिए आह्वान किया | " वस्तुतः अपने देश की आज़ादी के लिए लड़ना व्यक्ति का न केवल फर्ज हैं बल्कि पुण्य का कार्य हैं | किसी भी मात्रा में और किसी भी तरह से यह पुण्य कमाने का सही समय हैं " | इसके साथ ही सर छोटूराम ने अपना भाषण समाप्त किया , जिसका अथाह जन-समूह ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ अनुमोदन एवं अभिवादन किया |
    " जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से ,
    जाट तो हारा हैं , गद्दारों से दरबारों से
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    " इस कौम का ईलाही दुखड़ा किसे सुनाऊ ?
    डर हैं के इसके गम में घुल घुल के न मर जाऊँ || "
    ...........................चौ.छोटूराम ओहल्याण

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