(चौधरी मुहम्मद हुसैन शादीवाल , गुजराल ,पंजाब की कलम से चौधरी सर छोटूराम को श्रद्धांजली )

“ तेरी मौत कौम की मौत है ”
“ इक हूक सी दिल में उठती है इक दर्द सा दिल से होता है ,
मैं रात को उठ कर रोता हूँ , जब सारा आलम सोता है ”

मेरे जीवन की पूंजी , गरीब जाट कौम के सच्चे संरक्षक , मजबूर लोगों के दुःख हरने वाले , प्रताड़ित लोगों के हमदर्द एवं अभिभावक चौधरी सर छोटूराम स्वर्गवासी हो गए | तेरी मौत की अचानक खबर ने कमर तोड़ दी , प्रत्येक जाट घर में शोक की लहर दौड़ गयी | तेरी मौत सचमुच कौम की मौत है | तुझ-सा इरादों का पक्का , तुझ-सा अपनी कौम-अपनी कौम का दर्द समझने वाला सभवतः कोई पैदा नहीं हुआ होगा | मेरी जीवन-पूंजी इस समय मेरी भावनाएं और हार्दिक अवस्थाएँ हैं – उन्हें किन दर्द भरे शब्दों में व्यक्त करें , ताकि वह मेरे आंसू रुलाने वाले अर्थ की सच्ची तर्जुमानी कर सकें ? तमाम गरीब जाट कौम के लोगों को तेरे दामन से सच्ची श्रद्धा और आस्था थी लेकिन जो आकृष्टि और प्रेम मुझ से था , वह मेरा दिल ही जानता है | तूने कौम की डूबती नाव सुरक्षित किनारे लगाई | तू न होता तो आज तक खुदा मालूम तेरी प्यारी कौम के गरीब वर्ग की क्या से क्या हालत हो जाती | तूने इसे दुनिया में दोबारा जिन्दा कर के पेट भर कर खाने और इज्जत के साथ जिन्दगी गुजारने के योग्य बना दिया | यह तेरी कूटनीति थी कि धर्म एवं कौम से परे सम्पूर्ण जाट कौम को एक प्लेटफोर्म पर एक कर दिखाया | ईसाई , मुस्लिम , सिख , हिन्दू जाटों में संगठन तेरे ही दम से हुआ | मंत्रिमंडल के महल की बुनियाद तू ही था | तेरे सिद्धांतवादी और नेक-नियत का दुश्मन से दुश्मन को भी विश्वास है | तेरा आज कोई दुश्मन नहीं | सबको तेरे दुनिया से जाने का अफ़सोस है , इसलिए कि तू न किसी का दुश्मन था | दुनिया में धंधे-बखेड़े , खींचतान करा दिया करते हैं | ऐसा तेरा ही व्यक्तित्व था , जो साम्प्रदायिक एकता का जबरदस्त समर्थक था | तेरे मंत्रित्व का भार सँभालने वाले बहुत , लेकिन तेरे दिलों दिमाग का इन्सान चिराग लेकर ढूढने से नहीं मिलेगा | तेरा प्रताप और दबदबा बला का था | जो लाजवाब और ठोस भाषण और लेखन सुनने और पढने से कौम हमेशा के लिए वंचित हो गई है | जितना तू गरीब कौम का , जाट कौम का प्रिय था , मेरी आँखों ने आजतक किसी को नहीं देखा | तेरी जयंती दृश्य की लाजवाब अवस्था मेरी आँखों के सामने है | मैं चाहता हूँ हरियाणा भूमि के नैतिकतापूर्ण दिलों दिमाग उसी भव्यता से तेरी मौत का दिन भी मनायें | जीतें जी एक बार फिर कौम का लाजवाब ... इन आँखों से देख लूँ | लेकिन समय की कमी न हो | कम से कम दो-तीन दिन हो | तेरा परवाना दिल खोल कर बोले | मेरे और तेरे बीच एक वादा था , जिसकी तूने अपनी जिन्दगी में मुझे व्यक्त करने की इजाजत न दी हुई थी | अब मैं उसे कौम के सामने वाले और वर्णन करने से नहीं भाग सकता | किसी दुसरे समय के लिए रखता हूँ | रात को सारी दुनिया आराम से सोयी | खुदा जानता है न नींद है न आराम | आराम दिलाने वाला आराम साथ ही ले गया | अतः मैं हूँ पर मेरा दुखित मन , मेरी आंखे और आसूं | जाट का बच्चा-बच्चा तेरी मौत से रो रहा है | तेरी वह नेकियाँ जो इस कौम में कर गया है , भूलने वाली नहीं और नहीं भूलेंगी | तुझे मालूम है , मैं एक गरीब जाट हूँ | तूने इस प्रकार ठोक-बजा कर फैसला किया हुआ था कि मैं कौम का सच्चा सेवक और नौकर हूँ | जिस विषय पर कलम उठाया , सम्पूर्ण लिखा | आज न कुछ लिखना आता है , न बोलना | तेरे मातम में शादिवाला क़स्बा में याद रहने वाला जलसा कहाँ है ? इससे तेरे आरंभिक जीवन से लेकर जयंती के समय तक हालात बताएँगे | तेरे बचपन के कारनामे , कौमी हमदर्दी के जोश सुन-सुन कर उपस्थितगण भौंचक रह गए कि कुदरत ने यह गुण .... ने हर घर में रोने-धोने का माहौल बना दिया है , - तेरी पैदाईश के समय ही रख दिए थे |

“जुनुने शौक ऐ काश ! इतना आलमगीर हो जाये ,
कि जिस शै पर नजर डालूं , तेरी तस्वीर हो जाये ”

( जुनुने शौक - अभिलाषा का उन्माद , आलमगीर - विश्व व्यापी , शै - वस्तु)

( जाट गजट , 24 जनवरी 1945 , पृ-6 )