आर्य समाजीयों की ब्राह्मण भक्ति

वैसे तो भक्तिमय प्राणीयों के बारे में इस फोरम पर बात करना शोभा नहीं देता पर सोशल मीडिया पर बढ़ता अंधविश्वास सभी को प्रभावित करता है। कुछ दिन पूर्व एक इंडो केनेडियन रवि हूडा भी भक्तिरूपी जहर के ऐसे शिकार हुए की अपनी जॉब से हाथ धोना पड़ा।
सोशल मीडिया का भक्तिरूपी जहर अब जाटो के भी सिर चढ़ के बोलने लगा है। जाट के नाम से ऐसे fb पेज बन रहे हैं जो केवल मोदी और उनके नागपुरी डेरे की भक्ति में लीन है।
अभी एक दो वर्ष पहले एक सम्मानित जाट सांसद सत्यपाल सिंह ने डार्विन के विकासवाद का खंडन किया। ऐसे वैज्ञानिक चेतना के हत्यारे अक्सर समर्पित आर्य समाजी ही पाए जाते हैं जिनकी भावनाएं सदा विज्ञान द्वारा आहत होती रहती है। जो व्यक्ति या संगठन विकासवाद के खिलाफ हो वह जाटो को का पथप्रदर्शक कैसे हो सकता है ?
आर्य समाज नागपुरी डेरे के सरंक्षण में कभी वेदों में कोरोना की दवाई ढूंढता है तो कभी ऐसे आधारहीन दावे करता है कि वेदों के सामने विज्ञान बोना है।
गौरव आर्य नामक युट्यूबर जिसके करीब 14 लाख सब्सक्राइबर्स हैं वह नागपुरी डेरे द्वारा दिशा निर्देशित प्रोपेगैंडा में काफ़ी लिप्त रहता है। दुर्भाग्य से यह व्यक्ति स्वयं जाट है और बहुत सारे जाट इसके झांसे में भी आते जा रहे हैं। हमें किसी के निजी विचारों से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए पर इसके एक दो वीडियो में यह जाट समाज को काफ़ी ज्ञान पेल रहा है। इसके एक वीडियो में यह कह रहा है की वह कृषक के घर में पैदा हुआ अतः जन्म से वैश्य है, दूसरे ही पल कहता है कि चूँकि वह अभी शुद्र है लेकिन समस्त शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद उसका वर्ण निर्धारित होगा और केवल तभी वह ब्राह्मण कहलवाने का अधिकारी होगा। इस तरह वह अनेक बार बड़ी चालाकी के साथ अप्रत्यक्ष रूप से जाटों को शुद्र बताने की कोशिश करता है।

बहुत से आर्यसमाजी अब मनुस्मृति व पुराणों का खूब बचाव करते हैं और उनमें बहुत से बदलाव कर उनको प्रकाशित कर रहे हैं, चूँकि अब आर्य समाज पर पूर्ण अधिकार कोंकण तटीय ब्राह्मणों का हो रहा है। अब वे मनुवाद और ब्राह्मणवाद की नई पैकेजिंग कर उसे पुनर्जीवित कर रहे हैं व आर्य समाज उनकी नई दुकाने हैं।
कोई भी राष्ट्र या समुदाय कभी भी धर्म के बल पर उन्नति नहीं कर सकता, अतः जाटों का धर्म सिर्फ तर्कशीलता और वैज्ञानिक चेतना होना चाहिए।