अक्सर अति धार्मिक व अल्प विकसित देशों में इतिहास का महिमा मण्डन किया जाता है। ऐसे देशों के नागरिकों को लगता है कि प्राचीन काल में ज्ञान विज्ञान उच्चतम अवस्था में था और अब हम पाषाण युग मे आ गए हैं। राज्य खुद ही जब पाठ्य पुस्तकों और मीडिया के माध्यम से दिन रात झूठ परोसता है तो आमजन कभी भी छद्म धर्म रूपी राजनैतिक षड्यंत्र से बाहर नहीं निकल पाता। कुछ अँग्रेजी जानने वाले और विदेशों की यात्रा कर चुके नागरिक भी अपने भावनाशील व्यक्तित्व के चलते इन षड्यन्त्रकारी सिद्धान्तों से बाहर नहीं निकल पाते।

पृथ्वी पर जीवन के अवशेष करोड़ों साल पुराने मिलते हैं। मानव निर्मित पत्थर के औज़ार कुछ लाख साल पहले, धातु निर्मित प्राचीनतम औज़ार मुश्किल से 6 हजार साल पहले के लौह के प्रचीनतम अवशेष तीन साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व के हैं। इसी के आधार पर प्रागेतिहासिक काल खंड पाषाण युग, ताम्र युग व लौह युग माने गए है। गौर करने वाली बात यह है कि आज जब लाखों वर्ष पूर्व के डायनासोर के कंकाल व अंडे तक मिल चुके हैं लेकिन सोने की लंका जो कि नहीं मिल पा रही है उस पर अटल विश्वास आज भी कायम है। इंटरनेट से लेकर एटम बम और विमान का भी अविष्कार भारतीयों ने कर लिया था ऐसा ज्ञान हाथों हाथ ग्रहण किया जाता है जबकि बहुत से धात्विक अधात्विक रासायनिक तत्वों की खोज आधुनिक काल में हुई है पर अंधभक्ति का जादू इस क़दर हावी है कि लोहे के बिना प्रस्तर युग मे विज्ञान चरमोत्कर्ष पर था ये मानने में भक्त मण्डली को संदेह नहीं। आज जाट समाज के स्वंयम्भू सनातनी जाट क्षत्रिय युवा राजीव दीक्षित, रामदेव, गोलवलकर, हेडगेवार के ब्राह्मणकारी धर्म रूपी राजनैतिक षडयन्त्रों के शिकार है।

लोकतंत्र आधुनिक अवधारणा है, संसदीय शासन प्रणाली ब्रिटिश साम्राज्य की देन है, यह कटु सत्य है जो बदला नहीं जा सकता भले ही प्रधानमंत्री मोदी विश्व भर में भारत को लोकतंत्र की माँ कहते फिरते हों। क़रीब 70 हज़ार वर्ष होमो सेपियन्स में हुई संज्ञानात्मक क्रांति ने मानव को दो पैरो वाले पशु से खोजरत प्राणी में बदल दिया। 10 हजार वर्ष पूर्व की कृषि क्रांति ने ग्रामीण बस्तियों, नगरों व साम्राज्यों को जन्म दिया। 15 वीं सदी में हुई वैज्ञानिक क्रांति ने मानव के इतिहास को बदल के रख दिया।

धर्म के नाम पर धंधा करने वाले भी उतरोतर विकसित होते गए, हर बार नए रूप में, विशेषकर भारतीय समाज ने मेहनतकश लोगों को समाज के निचले दर्जे पर धकेल के रख दिया।


जो जाट इतिहास का अनावश्यक महिमा मंडन करते हैं उनको भी सीख लेने की जरूरत है। किसी भी ब्राह्मण ग्रन्थ में जाटों का कहीं कोई उल्लेख नहीं है सिवाय देव सहिंता के श्लोक को छोड़कर जो 19 वीं सदी में एक साजिश के तौर पर लिखा गया था सिर्फ़ पाश्चात्य इतिहासकारों द्वारा जाटों को सीथियन बताये जाने के तर्क को दबाने के लिए।

इस्लामिक स्त्रोत ब्राह्मण गपोड़लीलाओं से कुछ ठीक रहे जिन की वजह से हम अपना वजूद 8 वीं सदी की शरुआत से तलाश सकते हैं। बिना इस्लामिक हमलावरों के तो हमारा इतिहास ही अंधेरे में विलुप्त हो जाता। खानाबदोश चरवाहों से लेकर जंगी लड़ाकों व किसानी तक के सफर में हम सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक ताकत को प्राप्त करने में नाकाम रहें। यह ताकत हमें केवल लोकतंत्र ने दी है और कट्टरवादियों को यह सच एक ना एक दिन गटकना पड़ेगा कि लोकतंत्र पश्चिम से आया है।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब जाट मजबूत वोट बैंक बनकर उभरे तो धार्मिक आकाओं ने हमे क्षत्रिय भी घोषित कर दिया और हमारे समाज के गोबर भक्तो ने भी ब्राह्मण धर्म मे उच्चता प्राप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज वो लोग सनातनी क्षत्रिय बने घूम रहे हैं जिनके पुरखों ने कभी शुद्र होने का अपमान सहन किया था।
"शुद्र कौन थे" इसी नाम से डॉ अम्बेडकर की पुस्तक है। शूद्रों और अंत्यजों में वही फर्क है जो आज के पिछड़े समाज व अनुसूचित समाज में है।

आज कुछ भक्त पिछली सत्तर साल की लोकतांत्रिक यात्रा को विनाश के रूप में देखते हैं और अतीत को स्वर्णकाल की तरह। पर उन्हें समझना होगा हमारा और राष्ट्र का स्वर्ण काल अभी आया नहीं है, वो आना शेष है और आप जैसे लोग जो युवाओं की तर्कशीलता में रोड़े बने हुए हैं वो स्वर्णकाल की यात्रा में सबसे बड़े बाधक हैं।