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"कांग्रेस-घास"
कई दशक पहले भारत में गेहूं की कमी थी और इसको बाहर से मंगवाना जरूरी हो गया था । देश को आजाद हुए थोड़े ही दिन हुए थे और यह कमी अंग्रेजी राज की खराब नीतियों का नतीजा था, वर्ना 'सोने की चिड़िया' वाले भारत में तो कभी अनाज की कमी रही ही नहीं । बाद में तो खैर हरित क्रान्ति हुई और गांवों के मेहनती लोगों ने देश को इस मामले में आत्मनिर्भर बनाया ।
बात उसी समय की है जब अमरीका से PL-480 गेहूं मंगाया गया । इस गेहूं के साथ एक खास खरपतवार भी देश में आ गई और इसने आज इस कद्र जड़ें जमा ली हैं कि हमारी खेती के लिये ही खतरा बनती जा रही है । आपने दिल्ली और दूसरे शहरों में खाली जगह या नालों के किनारे कई फुट लम्बे एक पौधे को देखा होगा जिसका अंग्रेजी नाम 'Porthennium' है, जो गाजर के पौधे से मिलता-जुलता है और जिसको शहरी लोग 'गाजर घास' कहते हैं । पर गांवों के लोग इसको 'कांग्रेस-घास' कहते हैं क्योंकि नेहरू के जमाने में कांग्रेस सरकार द्वारा अमरीका से मंगाये गए गेहूं के साथ ही यह खरपतवार हमारे यहां आ घुसी और अब जाने का नाम ही नहीं ले रही ।
बड़े गजब की है यह कांग्रेस-घास की खरपतवार - इसकी जड़ कभी नहीं जाती, जितना काटो, उतनी तेजी से फिर बढ़ जाता है । किसी काम का नहीं - न पशु इसको खा सकते हैं, न कोई पक्षी इसके पास फटकता, बदबू से भरा हुआ पौधा है यह। जिस जगह पर यह हो जाये, उसके आस-पास दूसरे पौधे या घास नहीं उग पाते, जिस पार्क या ग्राउंड में यह फैल जाये उसका तो समझो हो गया कबाड़ा । न इस पर कोई बीज लगता है, फिर भी बहुत तेजी से फैलता है इसकी टहनियां भी इतनी मजबूत नहीं कि सुखा कर ईंधन के तौर पर इस्तेमाल की जा सकें । इसको काटने या छूने से मर्दों की चमड़ी में एक खास खुजली या 'अलर्जी' हो जाती है पर औरतों को कुछ नहीं होता । ऐसा क्यूं है, इसका जवाब वैज्ञानिकों या डाक्टरों के पास भी नहीं ।
वैसे जब भी कांग्रेस आती है, खेती की चीजों का आयात शुरू हो जाता है, बेशक हमारे यहां इन चीजों की कमी न हो - खाने के तेल, चीनी, दालें, यहां तक कि फलों जैसी चीजें भी धड़ल्ले से बाहर से मंगाई जा रही हैं। हाल में ही अमरीका से मंगाये गए सेब में सौ से भी ज्यादा कीट और बीमारियां पाई गई हैं । अमरीकन सेबों में पाये जाने वाले 184 कीटों में से 94 तो भारत में दाखिल हो चुके हैं जो आने वाले समय में हमारी सेब की फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं और इनसे बचने के लिये हमें करोड़ों रुपये खरचने पड़ेंगे । दो साल पहले 2006 में आस्ट्रेलिया से बेहद दूषित गेहूं मंगवाया गया जिनमें 14 खरपतवार पाई गई, जिसका पता उस खेप के यहां पहुंचने पर ही पता चला । काफी बवाल मचा, पर उसके बाद फायदा यह हुआ कि कुछ गेहूं का आर्डर जो अमरीका को दिया हुआ था, उसको रद्द कर दिया गया ।
अमरीकन गेहूं के साथ एक लाइलाज अमरीकन बीमारी भी आई थी। आजकल गेहूं की बुवाई हो चुकी है । गांवों के ताऊ कहते हैं अमरीकन बीज ने तो हमारे देसी बीज खो दिये और इसके साथ आई कांग्रेस-घास हमारी देसी दूब घास की दुश्मन है - अब असली देसी गेहूं तो दिखना ही बंद हो गया, जिसके खाने का स्वाद ही कुछ और था । वे कहने लगे कि भाई, हमारे न चाहने पर भी कांग्रेस का राज हमें भुगतना पड़ रहा है, जैसे 'कांग्रेस घास' का कोई इलाज नहीं, इसका भी नहीं । हमारे हरयाणे में तो यही हो रहा है - हम एक इलेक्शन में इसको हटाते हैं, अगली बार फिर आ जाती है ! कहने लगे कि भला हो गुजरातियों का कि उन्होंने इस कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस-घास की खरपतवार पर काबू पा लिया है ।
इस "कांग्रेस-घास" के पौधे से मर्दों को अलर्जी हो जाती है । कहीं इस बात से भी कुछों को अलर्जी न हो जाये और कहीं मेरा यह धागा कोई 'political' या 'controversial' न बन जाये, इसलिये इस बात को यहीं खत्म करता हूं ।
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