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Thread: Dada Bastiram ki Juban Se

  1. #1

    Cool Dada Bastiram ki Juban Se

    .
    I had presented my thread "Daada" in Time Pass forum some time back, containing verses of famous poet, Dada Bastiram. Since writing the verses etc. in Roman script does not have the desired effect, I had tried to insert some lines in Hindi also. I have received request from some readers to present the verses in Devanagri, and in response, I am presenting the first one below, in Devanagri.

    WindowsXP contains Hindi font file "Mangal" and hence, those having OP WindowsXP PCs, can easily read the text in Hindi. Those with Windows98 etc. may not be able to read the Hindi text. Readers having no knowledge of Devanagri script, should see the Roman script version in my thread "Daada". However, Devanagri script can be viewed also on PCs with Windows98 etc. by copying the font file 'Mangal' from other PCs. It is a short file (140 KB) and can be copied on a floppy disk, for subsequent transfer to the concerned PC.
    The experiment in Hindi is being done on a trial basis. If there is considerable enthusiasm, the efforts will continue.

    Enjoy the original version below !!


    दादा बस्तीराम की जुबान से

    सोच समझ कर ठहर बटेऊ, जगह नहीं आराम की ॥ टेक ॥

    जिस नगरी में ब्राह्मण * न हो, कर्जदार को जामिन न हो ।
    सूए सोसनी दामन न हो, मंगल गाय के कामन न हो ॥
    चैत सुरंगा सामण न हो, गाय भैंस का ब्यावन न हो ।
    घृत घने का लावन ना हो, गुणी जनों क आवन न हो ॥
    गोविन्द गुण का गावन न हो, वो नगरी किस काम की ॥1॥

    सोच समझ कर ठहर बटेऊ, जगह नहीं आराम की


    जिस नगरी में सरदार न हो, कंवर तुरंगी सवार न हो ।
    शिक्षा सुमरण श्रृंगार न हो, चतु्र चौधरी चमार न हो ॥
    खेती क्रिया व्यापार न हो, सखा स्नेहियों में प्यार न हो ।
    किसी से किसी की तकरार न हो, नहाने को जल की धार न हो ॥
    वेद मंत्रों का उच्चार न हो, वो नगरी किस काम की ॥2॥

    सोच समझ कर ठहर बटेऊ, जगह नहीं आराम की

    जिस नगरी में उपकार न हो, शूर सूअर खर कुम्हार न हो ।
    गोरा भैंसा बिजार न हो, चतुर नार नर दातार न हो ॥
    छोटा–मोटा बाजार न हो, वैद्य पंसारी सुनार न हो ।
    मन्दिर माळी मनिहार न हो, बड़ पीपल श्रेष्ठाचार न हो ॥
    जप तप संयम आधार न हो, वो नगरी किस काम की ॥3॥

    सोच समझ कर ठहर बटेऊ, जगह नहीं आराम की

    जिस नगरी में बौनी न हो, नित्य प्राप्ति दूनी न हो ।
    यज्ञ हवन की धूनी न हो, बुढिया चर्खी पूनी न हो ॥
    चौक चौंतरा कूनी न हो, सुन्दर शाक सलोणी न हो ।
    महन्दी की बिजौनी न हो, शुभ उत्सव की हूनी न हो ॥
    कोई धर्म की थूनी न हो, वो नगरी किस काम की ॥4॥

    सोच समझ कर ठहर बटेऊ, जगह नहीं आराम की

    जिस नगरी में वाणा न हो, कच्चे सूत का ताणा न हो ।
    दुष्ट जनों का वाहना न हो, सन्त महन्त का आना न हो ॥
    खोई चीज का पाना न हो, पाँच पंच का थाना न हो ।
    अतिथि का ठिकाना न हो, घौड़े बुळहद नै दाना न हो ॥
    बस्तीराम का गाना न हो, वो नगरी किस काम की ॥5॥

    सोच समझ कर ठहर बटेऊ, जगह नहीं आराम की


    *Brahmann = means a highly learned person (not ‘Bahmann’ !!)
    Dada Bastiram was himself a Brahmann – he was the one who enthused a sense of pride among Jats.
    .
    Last edited by dndeswal; March 19th, 2006 at 04:36 PM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  2. #2
    DESWAL JI ibb banngi baat si....kai aakhar mere bi samjh na aye the....good effort.
    I AM WHAT I AM....JAT.... 16X2=8

  3. #3
    Thanks Deswal ji.
    "LIFE TEACHES EVERY ONE IN A NATURAL WAY.NO ONE CAN ESCAPE THIS REALITY"

  4. #4
    bahut badiya deswal sir
    Make yourself an honest man, and then you may be sure there is one less rascal in the world
    SUBHASH DHAYAL

  5. #5
    Mei jitani baar Bastiram ji ki kahi batton ko padhhta huun...mera viswaas achhe karm karne mei aur majboot hota hei. There is no substitute for decency.
    "LIFE TEACHES EVERY ONE IN A NATURAL WAY.NO ONE CAN ESCAPE THIS REALITY"

  6. #6

    main bhi bhee........

    Quote Originally Posted by devdahiya
    Mei jitani baar Bastiram ji ki kahi batton ko padhhta huun...mera viswaas achhe karm karne mei aur majboot hota hei. There is no substitute for decency.
    le bhaii jo kaka kii wa e meri bhi bhee.........KATI BHINN KI BHINN........
    Rozz Suraj Ki Tarah Ugg Kar Doobna Nai Chaahtaa..!!
    JAI KILKII TAULL!!!!!!!!

  7. #7

    जगत सून यो कौन कहता है

    .
    Dada Bastiram’s Bhajan No. 2:
    Jagat soon yo koun kahata hai
    “Is this world a hollow dream?” – No !


    जगत सून यो कौन कहता है ।। टेक ॥

    बैठ कुसंगत चाहे कुशल, कीकर में आम कैसे पावै बता ।
    जल से विरोध मृतक से प्यार, कैसे मैल से मैल बहावै बता ॥
    पुरुष संग से हो ग्लानि, कैसे कामिनि कुंवर खिलावै बता ।
    मुख में और पेट में और, कैसे मन कोई मित्र मिलावै बता ॥
    प्राणायाम तज धूणी तपै, कैसे तपकर संत कहावै बता ।
    वस्त्र रंगे मन हो मलिन, कैसे ब्रह्म दृष्टि में आवै बता ॥
    घर छोड़, घरपना रक्खै, फिर कैसे वैराग्य बनावै बता ।
    भोग करे बन चाहे जोगी, कैसे जग में जोग निभावै बता ॥
    वेद वाक्य पर विश्वास ना, कैसे पन्डित जग मन भावै बता ।
    पोप से प्रेम, आर्यों से झगड़ा, सभा में कैसे सुहावै बता ॥
    मुख ना बोलै, नहीं बैठे पास, कैसे कोई चतुर समझावै बता ।
    लाख बातों की एक बात, कैसे उल्लू को दिन में दिखावै बता ॥

    श्रेष्ठ पुरुष की एक प्रशंसा, गुण को गहता है ॥ 1 ॥
    जगत सून यो कौन कहता है

    कष्ट देख नहीं डरे कभी, यहां पारब्रह्म के जो लाल हैं ।
    दर्द देश का आवे उन्हें जिन पर धीरजता की डाल है ॥
    कंगने में नहीं हो आनन्द, नहीं हथकड़ियों में बेहाल हैं ।
    जहां जावे वहां अमृत बरसे, चाहे सर सौ जंजाल हैं ॥
    शूरवीर हों कब अधीर, वह कब देखें आगे काल है ।
    दीवे पर जल जाय पतंग, पर नहीं छोड़े कुल की चाल है ॥
    काग कूड़ी को तजै नहीं, फिर हंस वहां रहे जहां ताल है ।
    नहीं सत्य से खाली कभी हो, सती के तन पर जो बाल है ॥
    सत्पुरुषों को दुख देने के लिए जन्म ले चण्डाल है ।
    सत्पुरुष नहीं रोके तो, खल कर दे देश को पेमाल है ॥
    जिनके मन में दया बसे, वह दुश्मन पर भी दयाल है ।
    नहीं हृदय में जगह क्रोध को, जब देखे जब कृपाल है ॥

    दुष्ट बिराने सुख सम्पत को देख देख दहता है ॥ 2 ॥
    जगत सून यो कौन कहता है

    लाभ नहीं सत्संग बरोबर, कुसंग जैसी हानि ना ।
    इतिहास हैं बड़े बड़े पर हर चर्चा सी कहानी ना ॥
    एक चन्द्रमा अगनित तारे, सूरज जैसी नूरानी ना ।
    नौ सौ नदी नवासी नाले, गंगा केसा पानी ना ॥
    हैं बहुतेरे हुए बहुत से,पर कर्ण सरीखे दानी ना ।
    देखे सुने बड़े डिमधारी, रावण जैसे अभिमानी ना ॥
    प्रजा भूप बिन कभी न रहे, पर राम जैसी राजधानी ना ।
    घर पर बेटी बहू बहुत, पर सिया सरीखी रानी ना ॥
    बिन बोले नहीं कोई रहे, पर सत्य बरोबर बानी ना ।
    रचना सत्यार्थप्रकाश सी, किसी ने और बखानी ना ॥
    ऋषि मुनि तो बहुत हुए, पर दयानन्द से ज्ञानी ना ।जी।

    परहित बसे हृदय जिनके में, सोई नर महता है ॥3॥
    जगत सून यो कौन कहता है

    कहते हैं कई मूर्ख यहाँ, जिनके हृदय हो अज्ञान सदा ।
    किसने देखा है जीव जगत में, जीव का आवत जान सदा ॥
    जन्म लेने में दोनों बरोबर, मरने में समान सदा ।
    कौन पापी और कौन धर्मी, होता यहाँ अनुमान सदा ॥
    कोई पापी सुख भोगे, कोई धर्मात्मा हैरान सदा ।
    फिर क्या नफा धर्मात्मा होकर, तजे मांस मद पान सदा ॥
    तुम कहते हो अणु अणु में, व्यापक है भगवान सदा ।
    मारे कसाई मर जां बकरे, फिर क्यों टूटे तान सदा ॥
    स्वभाव से बनता बिगड़ता, है प्रत्यक्ष जहान सदा ।
    वायु बबूला जल में बुलबुला, जैसे आकाश कमान सदा ॥जी॥

    पाप करने से क्यों नहीं रोके, जो नित्य रहता है ॥4॥
    जगत सून यो कौन कहता है

    हाय देव कैसी हुई मूर्ख, चतुर को मूर्ख बताते हैं ।
    अपने पांव कुल्हाड़ी मारें, बरजें तो धमकाते हैं ॥
    राज रोग में देवें दवा, देने से दवा नहीं खाते हैं ।
    वैद्य बिचारे करें प्रार्थना, रोगी सींग दिखाते हैं ॥
    ताश और चौपड़ खेल खेल, हीरा सी उमर गंवाते हैं ।
    दिन सोवे फिर रात को मिल-मिल कर रद्दी गाना गाते हैं ॥
    कोई भरे जनाना बाना, कोई देखने आते हैं ।
    सती सूरमा अपने बड़ों की, कर कर नकल नचाते हैं ॥
    पर धन हरें तकें पर तिरिया, मांस बिराना खाते हैं ।
    हा हा, ही ही, हूं हूं - यह मद पीकर शोर मचाते हैं ॥
    कन्या बिके पिटे पितु माता, गउवों को मरवाते हैं ।
    साधु सन्त ब्राह्मण को देख, थाने इतला करवाते हैं ॥

    सच्ची जानो किला कुकर्म का जल्दी ढहता है ॥5॥
    जगत सून यो कौन कहता है

    जीव अनेक जगत में जाने, अनजान से भी अनजान है ।
    कोई सुखी और दुखी कोई, कैसा प्रत्यक्ष प्रमाण है ॥
    एक वंश और एक पिता और एक माता गर्भाधान है ।
    एक भिखारी महादु:खी और एक शिरोमणि सुल्तान है ॥
    मूर्ख एक पशु से बढकर, एक नरोत्तम विद्वान है ।
    निर्बल एक पिटे जन जन से, एक भयंकर बलवान है ॥
    एक सड़क पर कंकर गेरे, एक का आकाश विमान है ।
    एक सांड राजा की नजर में, एक इक्के के दर्म्यान है ॥
    पापी एक महादुख भोगे, धर्मी दु:ख में गलतान है ।
    किया कभी का भोगे कभी, यह न्याय प्रभु का प्रधान है ॥
    बोवे सो खावे, करे सो पावे, इसमें किस पर अहसान है ।
    नेत्र रोग सूरज में जर्दी, बस्तीराम बड़ा नादान है । जी ॥

    दुविधा दूर हुई जिस नर की सोई सुख लहता है ||6||
    जगत सून यो कौन कहता है
    ------------------------------------------
    Last edited by dndeswal; March 30th, 2006 at 08:22 AM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  8. #8
    Sachchi baatein....saari ki saari.........Gyan ki baat. Dhanyavaad Deswal ji.
    "LIFE TEACHES EVERY ONE IN A NATURAL WAY.NO ONE CAN ESCAPE THIS REALITY"

  9. #9

    Bhajan No. 3

    .
    Bhajan No. 3 : “What strange things are happening now-a-days?”

    देखो भी लोगो कैसे अचम्भे की बात (टेक)
    काग करे हंसों से झगड़ा, कहे मुझे भी हंस कहो ।
    मेरे जैसा रंग धारण करके, तुम भी मेरे सहवंश रहो ॥
    मेरे जैसी बोलचाल करो, मेरी तरह उडारी लो ।
    मेरे जैसा खान-पान करो, मुझसे अकल उधारी लो ॥
    त्याग करो उस मानसरोवर का, कुरड़ी पर वास करो ।
    यहां चुग्गे की कमी नहीं है, मत मोती की आस करो ।
    बोलो तो बोलो मेरी तरह, नहीं तो बोलन की टाल करो ।
    मूढ की शोभा चुप रहने में, इस प्रसंग पर ख्याल करो ॥

    देख−देख आचरण तुम्हारे चित मेरा चकरात ॥1॥
    देखो भी लोगो कैसे अचम्भे की बात

    चकले से चलकर वेश्या, एक सती से झगड़ा ठाती है ।
    फटी ओढणी सिर पर चुंदड़ी जोधपुरी न सुहाती है ॥
    फटा पुराना लहंगा पहर कर, तू क्यों शर्माती है ।
    मेवा मिठाई सपने में नहीं, बासी-कूसी खाती है ॥
    एक गंवार की सेवा में तू सब दिन रात लगाती है ।
    जितने जवान लड़के हैं, तू नहीं किसी के भी मन को भाती है ॥
    तुझे चूड़ी पहरण खातिर घर में चार टके नहीं पाते हैं ।
    मैं सौ कहूं तो दो हजार जाजम पर पड़े ठुकराते हैं ॥
    तू पीहर जाय जब चलकर, पैरों में छले पड़ जाते हैं ।
    मैं बाग जाऊं तो जाने से पहले ही रथ जुड़ जाते हैं ॥
    तुझे नई घाघरी नई ओढनी मिलती है होली दिवाली को ।
    मैं हफ्ते में ही दे डालती हूं कूड़ा डालने वाली को ॥
    मैं जिस महफिल में जाती हूं, उसी महफिल में हो मेरा नाम ।
    मैं सौ-सौ गाली सुनाऊं जो दुनियां में हो धनवान ॥
    बड़े बड़े लीडर टीचरों के हाथ में हो मेरा यह पानदान ।
    बड़े साहूकार, बड़े सेठ बड़े राजे महाराजे मेहरबान ॥
    बड़े ओहदेदार सरदार मेरी सूरत पर होते कुर्बान ।
    मैं जिधर झुकाऊं उधर झुकें, मेरी मुट्ठी में रहे सब की जान ॥

    पतिव्रता खड़ी−खड़ी काँपे बिचारी ये सर पर चढी जात ॥ 2॥
    देखो भी लोगो कैसे अचम्भे की बात

    बस इसी तरह पाखन्डी पोप पाखन्ड करके इतराते हैं ।
    बस यों ही कर स्नान, ध्यान बगुले की तरह लगाते हैं ॥
    कोई विवाह का इच्छुक हो तो कोई संतान को चित्त चलाते हैं ।
    जब मीन मेख और कर्क मिथुन कर पोप जो बात बताते हैं ॥
    पत्रे में कुन्डली निकाल कर, कुण्डली में अंगुली टिकवाते हैं
    फिर जप करने की, अनुष्टान करने की, तुरत जचाते हैं ॥
    इन मूर्ख मलीनों से धन लेकर मलीन मजे उड़ाते हैं ।
    पत्थर के खिलौने अगाड़ी रखकर टन टन टाल बजाते हैं ॥
    कहीं मनुष्य मरे की सुनें, तुरत उस घर के चक्कर लगाते हैं ।
    कहीं नारायण बलि करने से कहें आवागमन मिट जाते हैं ॥
    एक जल का घड़ा भर छीके में , पीपल के लटकाते हैं ।
    मरने वाले के इधर-उधर गिद्धों की तरह मंडलाते हैं ॥
    कहें यह जो पदार्थ यहां हमारे मुख मार्ग में जाते हैं ।
    वह मृतक जीव को परलोक के मार्ग में सब मिल जाते हैं ॥
    इन पाखंडियों के प्रचार से दिन विपत लहरात ॥3॥
    देखो भी लोगो कैसे अचम्भे की बात

    कृष्ण सुदामा के स्नेह को छोटे बड़े सब जानते हैं ।
    कुन्तीपुत्रों की प्रीति के रस को तान पर धरके तानते हैं ॥
    राम विभीषण की मित्रता को धर्म का मार्ग मानते हैं ।
    आज काल के मित्र भी, क्यों नहीं प्रीति के रस को छानते हैं ॥
    क्या सुनोगे और क्या सुनावें, हम क्य गावें इस गाने में ।
    धरती न फटती अम्बर न लरजे, हुए कैसे मित्र जमाने में ॥
    जो कल दीखैं थे एकचित्त के, एक पीने में एक खाने में ।
    वो आज दीखते सावधान प्यारों का शीश कटवाने में ॥
    जब तक रही स्वार्थसिद्धि तब तक रहे बात बनाने में ।
    फिर वक्त पड़े पर सौ कोस के, खुश होते मित्र मर जाने में ॥
    मुख दिखलाते नहीं शर्माते, करके दगा भिड़ाने में ।
    और कहीं नहीं देखे हों तो, देखिये सुघड़ सिसाणे*** में ॥

    बस्तीराम बस इन बातों को सुन−सुन दिल मेरा दहलात ॥4॥
    देखो भी लोगो कैसे अचम्भे की बात
    --------


    *** सिसाणा Sisaanna = The name of the village where Dada Bastiram was born.

    .
    Last edited by dndeswal; April 12th, 2006 at 10:27 AM.
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  10. #10
    Lakh rappiye ki baat...saari ki saari.......Gyanni-dhyanni aadmi ka koe todd nahin pa sakta.
    "LIFE TEACHES EVERY ONE IN A NATURAL WAY.NO ONE CAN ESCAPE THIS REALITY"

  11. #11
    Lakh rappiye ki baat...saari ki saari.......Gyanni-dhyanni aadmi ka koe todd nahin pa sakta.
    Rozz Suraj Ki Tarah Ugg Kar Doobna Nai Chaahtaa..!!
    JAI KILKII TAULL!!!!!!!!

  12. #12
    Quote Originally Posted by ratheetheraist
    Lakh rappiye ki baat...saari ki saari.......Gyanni-dhyanni aadmi ka koe todd nahin pa sakta.

    Arre reh jya...Sussa sa pachhe-2 aa le sei......?
    "LIFE TEACHES EVERY ONE IN A NATURAL WAY.NO ONE CAN ESCAPE THIS REALITY"

  13. #13

    भजन नंबर 4

    .
    Bhajan No. 4 :
    Daada Bastiram’s song for Mother India : Relevant even today

    ऐरी मेरी भारत भूमि किस पर करे तू गुमान (टेक)

    किस पर करे गुमान तेरी अब सुनने वाला कौन यहां ।
    नीच निर्लज्ज निकृष्टों में दिन काट दे रहकर मौन यहां ॥
    रोती देखकर हंसने वाले क्रूर कुचेष्ट कुपूत रहे ।
    जिनका तुझे गुमान था वो तो कई दिन हो लिये चले गये ॥
    जिनका तुझे घमंड था, जो तेरी रुख में रुख रखते थे ।
    तेरा निरादर करने वाले के तुरंत रक्त को चखते थे ।।
    जिनका तुझ से सोते जागते माता-पुत्र का नाता था ।
    जिनका तन मन धन और जीवन तेरे काम में आता था ॥

    आज यहां उन वीरों का मिलता नहीं निशान ॥1॥
    ऐरी मेरी भारत भूमि किस पर करे तू गुमान

    जिनका तुझे गुमान था वोह जब तेरी गोद से निकल गये ।
    उनके नहीं होने से सब तेरे भी रंग ढंग बदल गये ॥
    उनके लिये यहां दूध दही घृत की नदियां नित्य बहती थीं ।
    उनके लिये फल फूल रतन तू भरी रसों से रहती थी ॥
    लाल मणी हीरे मोती सुवर्ण की खान निकलती थी ।
    प्यारे पुत्रों पे करके प्रेम तू नित्य नये रतन उगलती थी ॥
    अब तू देवी म्लेच्छों से गौ गल पर कटार लेती है ।
    इन त्यौहारों को तू भी अब तेल और कोयले देती है ॥

    बदबूदार सड़ी चीजों की प्रकट करती है खान ॥2॥
    ऐरी मेरी भारत भूमि किस पर करे तू गुमान

    मुख से सत्यवचन नहीं निकले, हृदय दया का वास नहीं ।
    मन में नहीं धर्म का लालच, सन्त दरस की प्यास नहीं ॥
    गल में नहीं यज्ञोपवीत, मुख गायत्री का जाप नहीं ।
    वेद शास्त्रों की कथा नहीं कहीं, धार्मिक राग आलाप नहीं ॥
    हवन सुगंधी नहीं घर में, और दिल में ब्रह्म विचार नहीं ।
    दान, मान और ज्ञान नहीं, कहीं ध्यान पर उपकार नहीं ॥
    वैश्य नहीं कोई शूद्र नहीं कोई ब्राह्मण राजकुमार नहीं ।
    खानपान सन्मान नहीं, नर नार पै कोई श्रंगार नहीं ॥

    सदाचारी ढूंढे नहीं पावें, फिर रहे शठ शैतान ।।3॥
    ऐरी मेरी भारत भूमि किस पर करे तू गुमान

    अपनी करनी पार उतरनी, क्या बनता अब रोने से ।
    ठीक समय पर मेह नहीं बरसे, बीज न जामे बोने से ॥
    गाय और भैंस रही ना उतनी, रहीं तो होती हरी नहीं ।
    भैंसे और बिजार ना मिलते, लिये फिरते हैं कहीं कहीं ॥
    हरी होवें तो ब्यावें नहीं, कैई अधभर में तू जाती हैं ।
    ब्यावे तो नीचे नहीं दूध, बच्चों को नहीं लगाती हैं ॥
    मनुष्यों में भी यही हाल, कई माता रोग वश पाती हैं ।
    पुत्र का मुख देखन के लिये, गंडे ताबीज बंधाती हैं ॥

    घी नहीं मिले जापे में, धर लिया नाम मलखान ॥4॥
    ऐरी मेरी भारत भूमि किस पर करे तू गुमान

    जुल्फ रखावें न कटवावें, कई मूछों को कटवाते हैं ।
    छुपा छुपा मर्दाना बाना, हीजडा़ शक्ल बनाते हैं ॥
    नीत प्रीत कुल रीत छोड़ कर, बेहद अपयश लेते हैं ।
    कई कई तो ऐसे मरद, नारियों का काम भी देते हैं ॥
    सब से ज्यादा मलीन हैं, औरों को मलीन कहते हैं ।
    भैंस और कंबल जैसी कहावत, भ्रम सागर में बहते हैं ॥
    मलीनता से महाप्रेम, शुद्धि से नफ़रत करते हैं ।
    जैसे जुवांसे आखा, बहुत बरखा होने से मरते हैं ॥

    पोते बने भीम भीष्म के, कुतिया देख तजें प्राण ॥5॥
    ऐरी मेरी भारत भूमि किस पर करे तू गुमान

    परशुराम का परशा आवे, आवें राम के बाण यहां ।
    कृषण सुदर्शन चक्र लावे, आवे भीम बलवान यहां ॥
    मुग्दर गदा वज्र तोमर शक्ति जुट जावे हाथों से ।
    जो बातों से नहीं मानते, मनाये जावें लातों से ॥
    बल अभिमानी क्षत्री, धन के अभिमानी साहूकार हों ।
    यज्ञ का धुआं आकाश में हो, शस्त्रों की भरमार हो ॥
    वेदविद्या में निपुण विप्र हों, वेद धर्म का प्रचार हो ।
    ग्राम ग्राम और नगर नगर में ब्रह्मचर्य का विस्तार हो ॥

    पाखंडियों को दंड मिले नित विद्बानों का सन्मान ॥6॥
    ऐरी मेरी भारत भूमि किस पर करे तू गुमान

    तेरे निरादर से हम दीन हुए बेदीन हुए ।
    फन्द बिराने में पड़कर बिन पानी कैसे मीन हुए ॥
    तेरी विमुखता से तेरी सन्तान के उल्टे काम हुये ।
    कर्महीन धनहीन हुए और दुनियां में बदनाम हुए ॥
    दुर्योधन और जयचंद से कौमी नमकहराम हुए ।
    भूमंडल के मालिक आज गुलामों के गुलाम हुए ॥
    अब तू अपने ऊपर से कहीं, खो दे इन बेईमानों को ।
    पहले जैसी कूख बना कर, फिर जन उन बलवानों को ॥

    बस्तीराम बस इसी साल में पैदा कर दे हनुमान ॥7॥
    ऐरी मेरी भारत भूमि किस पर करे तू गुमान

    .
    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  14. #14
    Deswal Sir....ye mere se chhot gaye the kyunki kuch din se mere system mein kuch font problem chal rahi thi....aaj subah-subah fursat se padhey to pata laga ki maine kitni gya-dhya ki baatein nahi padhi thi....inko padh kar ek bhajan ki kuchh liney yaad aa gayi jo mere dada Ji gawaya kartey the....

    Tere dar ko chhodd kar kiss darr jaun main....
    sunta meri kaoun hai kissey sunaun mai....
    I AM WHAT I AM....JAT.... 16X2=8

  15. #15
    Someone tell me whats going on this thread. I dont have Xp so i cant read anything.

    'Kala akshar mhaas barabar' hoon laag rya meri gelya !
    Let your friends underestimate your potential, let your ememies overestimate your weakness

  16. #16
    Yash request Mr.D.N.Deswal...the writer of this thread to send you the Hindi Font File....He is very gentle to help interested people.
    Quote Originally Posted by yashmalik
    Someone tell me whats going on this thread. I dont have Xp so i cant read anything.

    'Kala akshar mhaas barabar' hoon laag rya meri gelya !
    I AM WHAT I AM....JAT.... 16X2=8

  17. #17
    yash download 'mangal' hindi font from internet serach in google u will find install it and see the stuff

  18. #18
    Quote Originally Posted by yashmalik
    Someone tell me whats going on this thread. I dont have Xp so i cant read anything.

    'Kala akshar mhaas barabar' hoon laag rya meri gelya !
    Font 'Mangal' can be copied from any WindowsXP PC on a floppy disk and then copied to any PC in 'Fonts' folder in 'Control Panel'. This has been explained in my thread Tips for use of Hindi on your compute in "Tech Talk" forum.

    It is also available for free download from the following link:

    http://vedantijeevan.com:9700/font.htm

    .



    तमसो मा ज्योतिर्गमय

  19. #19
    Thank you all, now m trying to get this font into my pc
    Let your friends underestimate your potential, let your ememies overestimate your weakness

  20. #20
    Deswal Bhai,

    Great Read and Great effort.

    Do you have any Info on Dada Bastiram.

    Many Thanks,

    Deepak
    "Mine is a peaceful religion, I will kill you if you insult it"

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