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I have just finished writing a short play “Kissa-e Meham Chaubissi”. It is based on a gossip which our elders do, sitting in a Chaupal or a Paulli. I am deliberately putting it in “General Talk” forum, rather than ‘Mauj Masti’ because of the content. It is ‘General Talk” by Taus of Jatland in a Paulli, where they discuss all matters – local and social issues, State politics and even world scenario. Believe me, I cannot present a better picture of our village culture than contained in this short play. Those who have patience and can read and understand Haryanavi language, may read it at leisure. If some of you have difficulty in watching Devanagri script on your computers, please see my thread Tips for use of Hindi on your computer .
किस्सा-ए महम-चौबीसी (लघु नाटिका)
लेखक - दयानन्द देसवाल
स्थान : हरयाणा का केंद्र-बिंदु : महम-चौबीसी का गाँव मोखरा / मदीना ।
उस गाँव में ताऊ मनफूल की पौळी, दोपहर में हुक्का-पार्टी का पसंदीदा स्थान ।
समय : मई 1991
पात्र :
ताऊ मनफूल : गाँव का प्रतिष्ठित व्यक्ति - अनपढ और ग्राम-पंचायत का मेम्बर
ताऊ रतीराम : पढा-लिखा, प्राइमरी स्कूल का अध्यापक (रिटायर्ड)
ताऊ धीरे : निरा अनपढ, सादा-भोला, ताऊ मनफूल का पड़ौसी । कंजूस, मुफ्त हुक्का पीने वाला (अपना तंबाकू कभी इस्तेमाल नहीं करता)
विकास (विक्की), रूपेन्द्र (रूपी), जितेन्द्र (जीतू) : गाँव के लड़के, रोहतक में कालेज के विद्यार्थी
(सभी पात्र और घटनायें काल्पनिक हैं - यदि किसी का नाम मिलता-जुलता हो तो लेखक इसका जिम्मेवार नहीं होगा)
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मनफूल : (हुक्का गुड़गुड़ा कर) हां भई रतीराम, तू तै अखबार पढता रहै सै, के हो रहया सै दुनियां मैं ?
रतीराम : होणा के, बस न्यूं समझ ले नास होण लाग रहया सै । दो महीने पहल्यां वा ईराक की लड़ाई तै खतम हो-गी, कुवैत आजाद हो-ग्या । पर सद्दाम हुसैन तै आंडी लिकड़्या - कुवैत तै खाली कर दिया पर साळे सऊदी अरब आर अमरीका नै बेरा पाट-ग्या । घर तै जळ ग्या पर मूस्यां कै बी आंख हो-गी !
मनफूल : भाई, यो सद्दाम तै डाक्की सै जाट ऐ ! रस्सी जळ गी पर बळ ना गया । एक ये म्हारे लीडर सैं सुसरे - बीस साल पहल्यां म्हारे फौजी भाइयां नै लाहौर पै कब्जा कर लिया था, पर म्हारे लीडर तै जीत कै-बी सब कुछ हार-गे शिमला मैं !
रतीराम : हां भाई, याह बात तै सै । हाम तै सारै-ए पिट्टां सां । ईब-बी देख ले - म्हारे घणे सारे आदमी कुवैत आर ईराक मैं काम करया करते - उन्हैं उल्टे भाज-कै आणा पड़्या । म्हारे रुपैये की कीमत गिर-गी । मन्नैं तै कितै न्यूं बी पढ्या सै आक सोना गिरवी रख कै इज्जत बचाणी पड़ी देश की ।
मनफूल : न्यूं ऐं तै मैं कहूं था - मरैं म्हारे फौजी जवान, आर हकूमत करै कोए और । ये होलदार, रिसलदार, नायब-सूबेदार आर सूबेदार तै सारे अहीर आर जाट भाई, आर ये कर्नल साहब, ब्रिगेडियर साहब आर जरनल साहब सारे के सारे पंजाबी आर मद्रासी !
(धीरे का पौळी में प्रवेश)
मनफूल : आ भाई धीरे, बैठ । होक्का तै सीळा हो-ग्या, दूसरी चिलम भरांगे ।
धीरे : कोए बात ना, मैं तै ईबै आया सूं - ईंख नळा कै ।
रतीराम : अरै शिखर दोफाहरी मैं मरैगा घाम मैं ? तड़कैहें एक जोट्टा मार-कै आ जाया कर ।
(धीरे चिलम निकालता है)
धीरे : थौड़ा तमाखू तै दे चिलम भरण ताहीं ।
मनफूल : रै धीरे, मैं के घौड़ा छाप तमाखू आळ्यां कै ब्याह राख्या सूं ? कदे तू बी ले आया कर !
(धीरे अपनी जेब से तमाखू निकालता है)
धीरे : इस हारे मैं तै आग खतम सी होगी लागै सै, दूसरी कौर लाणी पड़ैगी ।
रूपेन्द्र : ल्या ताऊ, मैं भर ल्याऊं चिलम नैं आपणे घर तैं ।
मनफूल : अरै रूपी, तू होक्का बी भर ले सै ? भाई मन्नैं तै सुण्या था कि ये कोलेज के छोहरे होक्का-वोक्का भरण तैं काल्ली मान्नैं सैं ।
रूपेन्द्र : ना ताऊ, मैं कोन्यां काल्ली मानता ।
मनफूल : शाबाश बेटा, तू पढ-लिख कै खूब तरक्की करैगा ।
(रूपेन्द्र चिलम ले कर जाता है)
मनफूल : हां भाई रतीराम, हाम कुण-सा किस्सा छेड़ रहे थे?
रतीराम : वो कुवैत की लड़ाई आळा ।
मनफूल : हां भाई, उस सद्दाम का तै किस्सै नै साथ-ऐ ना दिया - एक वो रूस का लीडर बी - के नाम सै उसका ?
रतीराम : गोर्बाचोव ।
मनफूल : अरै कित का ? सुसरा गोबर-चौथ लिकड़्या । वो थौड़ी सी बी हिम्मत दिखाता तै अमरीका की मजाल थी आक वो कुवैत मैं घुस जाता ?
रतीराम : वोह तै अमरीका के बहकाए मैं आ रहया सै ।
मनफूल : तै भाईयो देख लियो, उसका देश बी घणे दिन नां बच्चै - वोह बी टूट ज्यागा । और भाई, जो चीज ऊपर ऊठै सै, वा पड़ै बी सै - यो अमरीका बी नास की राही पै चाल रहया सै - इसका नाश बी घणी दूर नां सै ।
(रूपेन्द्र का चिलम के साथ प्रवेश)
रूपेन्द्र : ले ताऊ, भर ल्याया चिलम ।
मनफूल : शाबाश बेटा, जा उस खाट पै लोट ज्या । न्यूं कहया करैं बड्डे-बूढ्यां की सेवा करण तैं आपणी उम्र बढ ज्या सै ।
रतीराम : अरै मनफूल, बाहर की दुनियां की छोड़, म्हारै के कम कुकर्म हो रहया सै? पाछले दिनां इस महम-चौबिसी मैं काटकड़ उतर रहया था - बी-बी-सी ताहीं मैं बी खबर आ-गी थी । उस इलैक्सन मैं तै अमीर सिंह बी आपणी जान तैं हाथ धो बैठ्या ।
धीरे: आर वो अब्भे तै लोगां नै घेर लिया था - एक घर मैं लुक-ग्या था ।
मनफूल : अरै हां भाई, वो तै पुलिस आळे बचा ले-गे उसनैं - नां तै लोग उसनै जेळियां तैं खोद गिरैं हें !
रतीराम : यो म्हारा चौधरी देवीलाल तै इस हरयाणे नै छोड़ कै दिल्ली जा बैठ्या आर आड़ै छोड़ै-ग्या इन गुंड्यां की फौज नै ।
मनफूल : हां भाई, धखे हाम महम-चौबीसी आळां नै तै उस ताहीं पगड़ी भेंट करी थी । इस तैं घणी इज्जत तै हामनैं चौधरी छोटूराम के सिवाय किस्सै ताहीं बी नां दी । पर इसनै ऊड़ै दिल्ली जा-कै के करया - आपणे सिर का ताज उस वी.पी. सिंह के सिर पै धर दिया ।
धीरे : इस तैं तै आछ्या खुद-ऐ ना बण ज्याता ! म्हारे इलाके का कुछ तै भला होता ।
मनफूल : और के मेरे यार, देख लियो, आगले महीने के इलैक्सन मैं ये सारे हारैंगे - हो सकै सै दिल्ली मैं कांग्रेस का राज फेर आ ज्या । एक बै मिल्या औड़ मौका खोए पाछै दुबारा के आया करै ?
रतीराम : अरै धीरे, भाई तूं बी कुछ सुणा, कित था दो-तीन दिन ?
धीरे : एक आपणे जाणन आळे धौरै चला गया था - लाखण माजरा । ऊड़ै बी ये सुसरे सरदार रोज काटकड़ तारीं-जां सैं ।
मनफूल : हां भाई, ये सुसरे खाम-खां बड़ण दिये इस इलाके मैं । शुरु-शुरु मैं हांडैं थे गुरुद्वारे ताहीं जमीन देखते । वे चिड़ी गाम की बणी मैं पहुंच कै बोल्ले - म्हारा गुरु गोविंद सिंह आड़ै एक रात रुक्या था, इस जगह गुरुद्वारा बणावांगे । वे चिड़ी गाम आळे स्याणे थे, बोल्ले - आड़ै नहीं, वोह तै साथ आळे गाम की सीम मैं एक जंगल था पहल्यां - ऊड़ै रुक्या था । फेर वे लाखण माजरा आ-गे आर याह सरड़क के साथ आळी जमीन खरीद ली ।
धीरे : हां रै, इन सुसरां तैं डर और लागै सै ! ऊड़ै लाखण माजरे में म्हारे यार की
रिश्तेदारी मांह तैं एक बीरबानी आ-री थी । वा बाहर सड़क पै जावै थी, उसकी साथ उसका 3-4 साल का बाळक था । वो बाळक ऊड़ै एक सरदार नैं देख-कै भूंडा डर-ग्या । उसकी मा बोल्ली, क्यूं डरै सै, तन्नैं आदमी नां देखे सैं ? छोहरा बोल्या - पर वो आदमी तै जड़-सुधां पाट कै चाल्या आवै सै ।
(सब हंसते हैं)
मनफूल : वाह भाई धीरे, खूब सुणाई, ये छोटे-छोटे बाळक बी सरदारां के चुटकले सुणावण लाग-गे ।
.....continued
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