कवि नरसिंह के भजन

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Kavi Narsingh – Haryana’s Folk Poet of Yesteryears

About the author

The land of Haryana has produced many local poets whose Raagnis/ Bhajans still touch the hearts of rural people. Unfortunately, many of these valuable hymns have not been published in printed form and hence, the new generation is being deprived of these rare pieces of poetry. The Arya Samaj preacher, Narsingh, of Bhaproda (भापड़ौदा) village, also in Jhajjar district, used to be so famous in the entire Haryana belt between 1940-1970. He was popularly known as “Narsingh Bhajni’. Jawaharlal Nehru, along with Punjab Chief Minister Pratap Singh Kairon (– Haryana came into existence in 1966) had visited Jhajjar in 1962 to lay the foundation stone of a degree college which is now the Post-Graduate Institute. In the public ceremony, Narsingh sung his famous Raagni घर देख्या जिब हाळी का. Though Nehru could not follow the local dialect, he was reportedly highly impressed by the Raagni which is reproduced below.

कवि नरसिंह के दो भजन

भजन नं 1 - हालत एक गरीब किसान की

कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का -
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ।
कितै बणैं थी खीर, कितै हलवे की खुशबू ऊठ रही -
हाळी की बहू एक कूण मैं खड़ी बाजरा कूट रही ।
हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैत्यां कानी तैं टूट रही -
भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळे तैं फूट रही ॥
चाकी धोरै जर लाग्या डंडूक पड़्या एक फाहळी का -
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥
सारे पड़ौसी बाळकां खातिर खील-खेलणे ल्यावैं थे -
दो बाळक बैठे हाळी के उनकी ओड़ लखावैं थे ।
बची रात की जळी खीचड़ी घोळ सीत मैं खावैं थे -
मगन हुए दो कुत्ते बैठे साहमी कान हलावैं थे ॥
एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का -
आंख्यां कै म्हां आंसू आ-गे घर देख्या जिब हाळी का ॥
दोनूं बाळक खील-खेलणां का करकै विश्वास गये -
मां धोरै बिल पेश करया, वे ले-कै पूरी आस गये ।
मां बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गए -
फिर माता की बाणी सुण वे झट बाबू कै पास गए ।
तुरत ऊठ-कै बाहर लिकड़ ग्या पति गौहाने आळी का -
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥
ऊठ उड़े तैं बणिये कै गया, बिन दामां सौदा ना थ्याया -
भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक बी ना प्याया !
देख चढी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया -
छोड गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया ।
कहै नरसिंह थारा बाग उजड़-ग्या भेद चल्या ना माळी का ।
आंख्यां कै मांह आंसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

इस रागनी को यू-ट्यूब के इस लिंक पर आजाद सिंह खांडा की आवाज में सुना जा सकता है - https://www.youtube.com/watch?v=alc60ciXfkQ

भजन नं 2 - आजादी और मजदूर-किसान

बस देख ली आजादी हामनै म्हारे हिन्दुस्तान की ।

सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ।।


न्यूं कहो थे हाळियां नै सब आराम हो ज्यांगे -

खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।

घणी कमाई होवैगी, थोड़े काम हो ज्यांगे -

जितनी चीज मोल की, सस्ते दाम हो ज्यांगे ।


आज हार हो-गी थारी कही उलट जुबान की ।

सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥


जमींदार कै पैदा हो-ज्यां, दुख विपदा में पड़-ज्यां सैं -

उस्सै दिन तैं कई तरहां का रास्सा छिड़-ज्या सै ।

लगते ही साल पन्द्रहवां, हाळी बणना पड़-ज्या सै -

घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।


तीस साल में बूढ़ी हो-ज्या आज उमर जवान की ।

सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥


पौह-माह के महीने में जाडा फूक दे छाती -

पाणी देती हाणां मारां चादर की गात्ती ।

चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती -

हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।


फिर भी भूखा मरता, देखो रै माया भगवान की ।

सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥


बेईमानी तै भाई आज धार ली म्हारे लीडर सारों नै -

रिश्वत ले कै जगहां बतावैं आपणे मिन्तर प्यारों नै ।

कर दिया देश का नाश अरै इन सारे गद्दारों नै -

आज कुछ अकल छोडी ना हाळी लोग बिचारों मैं ।


आज तो कुछ भी कद्र नहीं है एक मामूली इंसान की ।

सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥


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