Keu

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Location of Dungargarh in Bikaner district

Keu (केऊ) is a village in tahsil Dungargarh district Bikaner in Rajasthan. It is near Riri village.

Founder

Jat Gotras

History

जाखड़ जाटों का ठिकाना बिग्गा, तहसील डूंगरगढ़ में था. इनका गोत्र पड़िहार बतलाया गया है. कहते हैं कि कोलियोजी पड़िहार पहले पहल मंडोर से आकर ग्राम केऊ तहसील डूंगरगढ़़ में बसा था. इसका बेटा जक्खा हुआ जिसने अपने नाम पर जाखासर बसाया. कहते हैं उसने अपने परिवार के रिश्ते वहां बसे जाटों में करने आरंभ कर दिए थे तथा 'नए जाट गोत्र' जाखड़ का जनक कहलाया. उसकी एक लड़की का नाम रिड़ी था, जिसके नाम पर रिड़ी गाँव बसाया. जक्खा का बेटा मैहन था, जिसका बेटा बिग्गा बड़ा शूरवीर हुआ. कहते हैं की बिग्गा ने गायों की रक्षा के लिए राठ मुसलमानों से युद्ध किया जिसमें गैरक्षार्थ वह संवत 1393 (1336) में काम आया. पाऊलेट ने बीकानेर गजेटियर में बिग्गा की म्रत्यु का समय 1315 दिया है. बिग्गाजी का जन्म विक्रम संवत 1358 (1301) में रिड़ी में हुआ रहा. बिग्गा और उसके आसपास के एरिया में बिग्गा गोरक्षक लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं.[2] गाँव बिग्गारिड़ी में जाखड़ जाटों का भोमिचारा था और लंबे समय तक जखड़ों का इन पर अधिकार बना रहा.[3]

ठाकुर देशराज के अनुसार 'नेन' शाखा अनंगपाल के एक वंशज नैनसी के नाम पर चली. कालांतर में ये लोग डूंगरगढ़ तथा रतनगढ़ तहसील में आकर आबाद हुए. इनमें श्रीपाल नामक व्यक्ति का जन्म संवत 1398 (1341) में हुआ, जिनके 12 लड़के हुए, जिनमें राजू ने लद्धोसर, दूला ने बछरारा , कालू ने मालपुर, हुक्मा ने केऊ, लल्ला ने बीन्झासर और चुहड़ ने चुरू आबाद किया. [4] नैन गोत्र जाट यहाँ के प्राचीन निवासी हैं. [5]

इतिहास

इंद्रप्रस्थ से प्रस्थान: ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है ....नैण गोत्र के कुछ लोगों ने इंद्रप्रस्थ से चलकर सरवरपुर बसाया और फिर भिराणी को आबाद किया। सरवरपुर जिसे अब सरूरपुर कहते बागपत तहसील में भिराणी बीकानेर की तहसील भादरा में है। कुछ समय पश्चात उन्हें भिराणी छोडकर जाना पड़ा।

भिराणी छोडकर जाना: ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है ....भिराणी छोडकर जाने का कारण इस प्रकार बयान किया जाता है कि एक नैण युवक बालासर (बीकानेर इलाका) में ब्याहा गया था। वह अपने ससुराल गया। कुछ तरुण युवतियों ने मज़ाक में उसको सौते हुये चारपाई से बांध दिया। पाँवों में रस्सी डालकर रस्सी एक भैंसे की पूंछ में बांध दी और कांटेदार छड़ी से भैंसे को बिदका दिया। भैंसा भाग खड़ा हुआ। युवक घिसटता हुआ मर गया। बहुत दिनों के बाद भिराणी का एक नैण उसी गाँव होकर कहीं जा रहा था। तो उस युवक की विधवा ने ताना दिया कि नैण तो सब मुर्दा हैं वरना अपने लड़के का बदला क्यों छोड़ते। वह नैण वापस लौट गया और नैण लोगों को लाकर बालासर पर चढ़ाई करदी। उन्होने बालासर में खूब मार-काट की। जब वे लौट गए तो बालासर के बचे-खुचे लोग पड़ौसियों को लेकर भिराणी पर चढ़ाई करदी। उन्होने भिराणी को तहस-नहस कर दिया। तभी की यह लोकोक्ति मशहूर है – “छिम-छिम मेहा बरसा, छीलर-छीलर पाणी, नैण-नैण उडी गए, खाली रहगई भिराणी”।

इसी भांति बालासर पर एक लोकोक्ति है – “माहियाँ आवे रिड़कदी, लस्सी हो गई खट्टी। शीश न गूंथावदी, बालासर की जट्टी।:

अर्थात बालासर की जाटनियों ने मांग निकालना बंद कर दिया। तात्पर्य यह है कि वे सब विधवा हो गई।

यह घटना 14वीं शताब्दी की है। बचे-खुचे नैण भिराणी को छोडकर अनेक स्थानों पर जा बसे। चौधरी हरिश्चंद्र जी का कहना है कि उनके पूर्वजों में से राजू लधासर, दूला बछरारा, कालू मालूपुरा, हुकमा केऊ, और लालू बींझासर में आबाद हुये। इन गांवों मे केऊ तहसील डूंगरगढ़ (बीकानेर डिवीजन) और बाकी तीनों गाँव रतनगढ़ तहसील (बीकानेर डिवीजन) में हैं।


ठाकुर देशराज [8] ने लिखा है कि....नैणसी के चुहड़ हुआ, चुहड़ के चोखा और लालू दो पुत्र हुये, चोखा के फत्ता और मूला दो लड़के हुये। इनमें फत्ता ने ही सरवरपुर (अब सरूरपुर) की नींव डाली। इस वंश में किशनपाल से 5वीं पीढ़ी में श्रीपाल नाम के एक प्रसिद्ध व्यक्ति हुये उसने संवत 1310 अर्थात 1253 ई. में भिराणी गाँव बसाया। यह गाँव बीकानेर डिवीजन की भादरा तहसील में अवस्थित है।

किशनपाल के दो पुत्र हूला और काहना हुये। हूला के कालू और धन्ना दो पुत्र हुये। कालू के मूंधड़ और मूंधड़ का पुत्र श्रीपाल था। श्रीपाल के दो स्त्रियाँ थी मान और पुनियानी। मान के 6 पुत्र हुये – 1.दल्ला, 2.पेमा, 3.खीवा, 4.चेतन, 5.रतना और 6. पूसा। पुनियानी स्त्री से 5 पुत्र हुये – रामू, काहना, अमरा, गणेश, और हुक्मा।


[p.337]: इनमें से मान स्त्री से उत्पन्न खीवा को बालासर तहसील नोहर में मार दिया। इस घटना का विवरण पिछले पृष्ठों में कहीं आ चुका है। मान स्त्री के ज्येष्ठ पुत्र दूला से 1.आंभल, 2.मोती और 3.हनुमंता नाम के 3 पुत्र हुये। इनमें आंभल के भी 3 पुत्र हुये – 1.दल्ला, 2. काहन और 3. वीरू। वीरू के जो पूत्र हुआ उसका नाम प्रसिद्ध पुरुष श्रीपाल के नाम पर श्रीपाल ही रखा। इस श्रीपाल द्वितीय का जन्म संवत 1398 अर्थात सन 1341 ई. में हुआ। श्रीपाल द्वितीय के 12 पुत्र हुये – 1. राजू, 2. दूला, 3. मूला, 4. कालू, 5. रामा, 6. हुक्मा, 7. चुहड़, 8. हूला, 9. लल्ला, 10. चतरा, 11. फत्ता और 12. नन्दा।

इनमें से राजू ने संवत 1417 (1360 ई.) में लद्धासर, दूला ने बछरारा, कालू ने मालपुर, हुक्मा ने केऊ, लल्ला ने बींझासर बसाया। और चुहड़ ने चुरू आबाद किया।

इन 12 में से दूला के 3 पुत्रों का हमें पता चलता है – 1.राजू, 2.नंदा और 3. जीवन उनके नाम थे। राजू के 1. बुधा और 2. पेमा 2 पुत्र हुये। बुधा के 1. हरीराम और 2. सेवा दो पुत्र हुये। हरीराम ने संवत 1525 (1468 ई.) में बछरारा को फिर से आबाद किया क्योंकि बीच में झगड़ों के कारण बछरारा बर्बाद हो गया था। हरीराम के दो पुत्र 1.पूला और 2. तुलछा नामक हुये।


[p.338]: पूला के 1.सादा और 2.मुगला दो पुत्र हुये। मुगला ने संवत 1610 (1553 ई.) ने बछरारा में एक जोहड़ खुदवाया। जिसका वर्णन ठाकुर सकत सिंह ने सन 1939 ई. को अपनी उस गवाही में किया था जो उन्होने चौधरी हरीश चंद्र के क़दीम बिकानेरी होने के संबंध में तहसील रतनगढ़ में दी थी। सादा के दो पुत्र 1.आसा और 2.चतरा नामी हुये। आसा के 1.दासा और 2.लक्ष्मण हुये। दासा के 1.गोपाल, 2.भूरा और 3.पूरन तीन पूत्र हुये। गोपाल के 2 पुत्र 1.भारू और 2.रामकरण हुये।

External links

References

  1. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p.337
  2. पाऊलेट, बीकानेर गजेटियर, p. 90
  3. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 206
  4. ठाकुर देशराज, बिकानेरीय जागृति के अग्रदूत चौधरी हरिश्चंद्र नैन, पेज 335-337
  5. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 206
  6. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p. 9
  7. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p. 9-10
  8. Thakur Deshraj: Bikaneriy Jagriti Ke Agradoot – Chaudhari Harish Chandra Nain, 1964, p.336-338

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