Pema Ram

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Dr Pema Ram

Dr Pema Ram (डॉ पेमाराम) is a Historian from Jaipur in Rajasthan. He has written several books in Hindi and English languages on history and culture of Rajasthan. He was Professor and Head of History Department in Banasthali Vidyapith, a deemed University for Girls' Education in Rajasthan, for very long period. He retired on 28 February 2005 and now settled at Jaipur. He has authored many books and edited number of books. He is an authority on History and Culture of Rajasthan as well as the Agrarian Movements in Rajasthan.

Birth

He was born on 1st March, 1945 in the family of Shri Raju Ram Chaudhary of Bidiyasar gotra Hindu Jat family of village Jasnagar in Merta tahsil of Nagaur district in Rajasthan.

Education

He did M.A. and Ph. D. from University of Rajasthan and joined Banasthali Vidyapith in 1971. He served there as Lecturer from 1971 - 1986. He was promoted as Reader and served in that capacity continued from 1986 - 2002. He was Professor from 2002 till his superannuation on 28 February 2005.

Membership of Academic Bodies

He is member of following Academic Bodies:

  • Rajasthan History Congress
  • Indian History Congress
  • Board of Studies, Faculty of Social Sciences and Academic Council of various Universities

National Seminars

He was convener of following National Seminars:

  • "Rajasthan History and Culture": 15-17 March 2001, Organized by History Department
  • "Religion in Rajasthan - Ancient to Modern": 13-15 February 2003, Organized by History Department
  • "Cultural Heritage of Rajasthan": 22-24 January 2005, Organized by History Department

Research Projects Completed by Him

  • Ph. D. Thesis: "Madhyakalin Rajasthan mein Dharmik Andolan"
  • U G C supported short term research project: "Agriculture and Land Revenue System in Rajasthan 1818 - 1947 AD."
  • I C H R supported short term research project: "Agrarian System of Rajasthan 1818 - 1947 AD."
  • U G C supported major research project: " Freedom Movement in Rajasthan 1857 - 1949 AD."
  • I C H R supported major research project: "Agrarian movement in Rajasthan 1913 - 1947 AD."
  • U G C supported major research project: "Peasant Movement in Western Rajasthan with Special Reference to Jodhpur and Bikaner State 1920-1055 AD." [1]

Books Authored

He has published several research books, text books, edited number of books and research papers. Some of his published books are:

  • Madhyakalin Rajasthan mein Dharmik Andolan, 1977, Archana Prakashan Ajmer
  • Agrarian Movements in Rajasthan, 1985, By Dr Pema Ram, Publisher - Panchsheel Prakashan, Chaura Rasta Jaipur
  • Madhyakalin Bharat, 1991, Classic Publishing House Jaipur
  • Bharatiya Sabhyata avam Sanskrati ka Itihas, 1980, Vandana Prakashan, Alwar, Rajasthan.
  • Rajasthan mein Swatantrata Sangram Ke Amar Purodha - Kumbha Ram Arya, 2004, Government of Rajasthan Publication
  • उत्तरी राजस्थान में कृषक आंदोलन By Dr Pema Ram, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, First Edition 2007, Price Rs. 300/-
  • राजस्थान में भक्ति आंदोलन By Dr Pema Ram, Publisher - Rajasthani Hindi Granth Academy, Jaipur,First Edition 2014, Price Rs. 170/-

Books edited

The important books edited By Dr Pema Ram are:

  • Some Aspects on Rajasthan History and Culture, 2002, Classic Publishing House Jaipur

Distinctions and Awards

  • 2001 - He was awarded Rs. 175000/- by U G C, New Delhi, on his major research project entitled "Peasant movement in western Rajasthan."
  • 1998 - He was awarded financial assistance on the research project "History of Peasant movement in Marwar 1920 - 1955 AD"
  • 1989 - He was awarded Rs. 8000/- by Govt of Rajasthan on his research book - "Agrarian Movements in Rajasthan"
  • 1987 - He was awarded financial assistance from U G C, New Delhi, on the research project "Freedom Movement in Rajasthan 1857 - 1947 AD"
  • 1986 - He was awarded financial support from Indian Council of Historical research, New Delhi, on the research project "Agrarian System of Rajasthan 1818 to 1949 AD".
  • 1983 - He was awarded financial assistance from U G C, New Delhi, on the research project "Agrarian Movement in Rajasthan."
  • 1979 - 1982 - He was awarded Post-Doctoral fellowship from Indian Council of Historical Research, New Delhi, on the project "Agrarian Movement in Rajasthan."
  • 1972 - He was awarded financial assistance from U G C, New Delhi, on the research project "The religious Movement in Medieval Rajasthan."
  • 1970 - 1971 - He was awarded Departmental Research Scholarship from University of Rajasthan for Ph. D. work

His contact details

  • Address - 67, Mahaveer Nagar - II, Maharani Farm, Durgapura, Jaipur - 302018
  • Phone - 0141-2761192, Mob- 9414316002

डॉ. पेमाराम का जीवन परिचय

जन्म : शिक्षाविद् एवं प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. पेमा राम का जन्म ग्राम जसनगर, तहसील मेड़ता सिटी जिला नागौर, राजस्थान, में एक साधारण किसान परिवार में चौधरी राजूराम बड़ियासर के घर दिनांक 1 मार्च 1945 वार बुधवार को सुबह 5 बजे हुआ।

प्रारम्भिक शिक्षा - उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा गाँव जसनगर में प्राप्त करने के बाद हाई स्कूल की शिक्षा के लिए इन्होने श्री सांईनाथ विद्यामन्दिर बड़ायाली में प्रवेश लिया। गरीबी के कारण आप रोज जसनगर से बड़ायाली में पढ़ाई के लिए 20 कि.मी. (आना-जाना) पैदल चलकर जाते थे। 1964 ई. में वहाँ से हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में (71 प्रतिशत) अंकों के साथ उत्तीर्ण करने व गणित विषय में शत प्रतिशत अंक होने के कारण इन्हें श्री सांईनाथ विद्यामन्दिर बड़ायाली में ही गणित विषय के अध्यापक के पद पर नियुक्ति मिल गई।

उच्च शिक्षा: बड़ायाली में अध्यापन कार्य करते समय आपका विवाह प्रतापराम बेड़ा निवासी सताणी तहसील मेड़ता सिटी की पुत्री सिंजारदेवी से 23 अप्रेल 1966 ई. (अक्षय तृतीया) शनिवार को सम्पन्न हुआ। उसी वर्ष 1966 ई. में ही आपने इंटरमिडिएट की परीक्षा मध्यप्रदेश शिक्षा बोर्ड, भोपाल से पास की। 1968 ई. में आपने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से बी. ए. पास किया। 1969 ई. में इतिहास में एम. ए. पूर्वार्ध (प्रायवेट) किया और उसमें अच्छे अंक आने पर आपने एम. ए. फाइनल करने के लिए राजस्थान विश्व विद्यालय जयपुर इतिहास विभाग में नियमित विद्यार्थी के रूप में प्रवेश लिया और 1970 ई. में एम. ए. (मध्यकालीन भारत) प्रथम श्रेणी से पास किया। उसी वर्ष आपको इतिहास विभाग की विभागीय शोध छात्रवृति प्राप्त हो गई और राजस्थान के ख्यातिप्राप्त इतिहासविद् प्रोफेसर गोपीनाथ शर्मा के निर्देशन में 'मध्यकालीन राजस्थान में धार्मिक आंदोलन' नामक शीर्षक पर शोध प्राप्त करने का अवसर मिला। शोधछात्र के रूप में आपने एक वर्ष ही कार्य किया था कि अगस्त 1971 ई. में आपकी नियुक्ति लेक्चरार इतिहास के पद पर भारत प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान वनस्थली विद्यापीठ में हो गई। यह इनके जीवन का परिवर्तनीय मोड़ था।

शिक्षाविद् के रूप में कार्य

वनस्थली विद्यापीठ के इतिहास विभाग में लेक्चरार नियुक्त होने के बाद आपने वहाँ 35 वर्षों तक बी. ए. , एम. ए., एम. फिल. की कक्षाओं को पढ़ाने का कार्य किया और इतिहास के अनेक शोध-छात्राओं को शोधकार्य में मार्गदर्शन दिया।

  • 1975 ई. में आपने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की।
  • 1977 में आपका पी.एच.डी. का 'मध्यकालीन राजस्थान में धार्मिक आंदोलन' नामक शोध-ग्रंथ प्रकाशित हुआ।
  • 1978 में आपको भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की ओर से 3 वर्ष के लिए पोस्ट डॉक्टरल फैलोशिप प्राप्त हुई। इस दौरान आपने 'एग्रेरियन मूवमेंट इन राजस्थान 1913 से 1947 ई' विषय पर शोधकार्य पूरा किया
  • 1986 में आपने आपका दूसरा प्रसिद्ध ग्रंथ 'एग्रेरियन मूवमेंट इन राजस्थान' (Agrarian Movement in Rajasthan) अङ्ग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित हुआ। इस ग्रंथ में आपने देश की आजादी के आंदोलन के दौरान राजस्थान में जागीरदारों के खिलाफ किसानों ने अपनी हालत को सुधारने के लिए जो आंदोलन किया, उसका शोधपूर्ण विवरण लिखा है।
  • 1986 में आप लेक्चरार से एसोशिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुये।
  • 1990 में आपका 'शेखावाटी किसान आंदोलन का इतिहास' नामक तीसरा शोध ग्रंथ प्रकाशित हुआ।
  • 1997 में आप वनस्थली विद्यापीठ के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष नियुक्त हुये और अगले 8 वर्षों तक इस पद पर कार्यरत रहे।
  • 2002 में आप प्रोफेसर के पद पर चयनित हुये। इसी वर्ष आपको विश्वविद्यालय अनुदान आयोग , नई दिल्ली से एक मेजर प्रोजेक्ट मिला और उसी के अंतर्गत 2005 में आपका 'उत्तरी राजस्थान में कृषक आंदोलन' नामक चौथा ग्रंथ प्रकाशित हुआ।

वनस्थली विद्यापीठ के इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष

वनस्थली विद्यापीठ के इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद पर रहते हुये आपने राजस्थान इतिहास के विभिन्न पक्षों पर तीन राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियाँ आयोजित करवाई और उनके संयोजक के रूप में कार्य किया। इन संगोष्ठियों में पढे गए शोधपत्रों के आधार पर आपने 'सम एस्पेक्ट्स ऑफ राजस्थान हिस्ट्री एंड कल्चर' (Some Aspects of Rajasthan History and Culture) तथा 'राजस्थान में धर्म, संप्रदाय एवं आस्थाएं' नामक पुस्तकों का सम्पादन किया। इस दौरान आपने 'मध्यकानीन भारत' और 'भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास' नामक पाठ्य पुस्तकों की रचना की। आप राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस व इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस के अलावा कई विश्वविद्यालयों की 'बोर्ड ऑफ स्टडीज़' के सदस्य रहे। महाराजा सूरजमल मेमोरियल एजुकेशन सोसाईटी, नई दिल्ली की अकेडमिक अडवाईजरी कमेटी के आप कई वर्षों तक सदस्य रहे। आपने विनहीन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली इतिहास विषय की विभिन्न परीक्षाओं के पेपर बनाने व कपयान जाँचने का कार्य किया। कई वर्षों तक एम. फिल. के विद्यार्थियों को पढ़ने व उनके शोधकार्य में मार्ग दर्शन का कार्य किया। इसके अलावा आपने अनेक वर्षों तक नेट (राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालयों व कालेजों में लेक्चरार की पात्रता परीक्षा) की कापियाँ जाँचने, पेपर बनाने तथा नेट परीक्षा आयोजित कराने में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पर्यवेक्षक के रूप में निरीक्षण का कार्य किया। 28 फरवरी 2005 को आपने 35 वर्षों तक सेवाएँ देने के बाद वनस्थली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत हुये।

शोध कार्य में योगदान

डॉ. पेमा राम ने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली की आर्थिक मदद से अनेक शोध परियोजनाओं पर कार्य किया और अनेक शोधग्रंथ लिखे। आपने भारत के विभिन्न भागों में आयोजित इतिहास की अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भाग लिया और उनके शोधपत्र प्रस्तुत कर राजस्थान इतिहास एवं संस्कृति के अनेक पक्षों को उजागार किया। बाद में उन शोधपत्रों के आधार पर 'संस्कृतिक राजस्थान-इतिहास के विविध आयाम' नाम से आपकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई। आपके निर्देशन में अनेक शोध विद्यार्थियों ने पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की और अनेक छत्रों को मार्गदर्शन दिया। शोध कार्य करवाने में आपने महिलाओं को विशेष प्रोत्साहन दिया। इनके निर्देशन में जिन महिलाओं ने शोध कार्य किया उनमें डॉ. मंजू गुप्ता, डॉ. चित्रा सिसोदिया, डॉ. उषा लामरोड़ , डॉ. शिल्पा गुप्ता, डॉ. शिखा, डॉ अनुकृति उज्जैनिया आदि प्रमुख हैं। आपने भारत भर के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों यथा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली, जामिया मिलिया इसलामिया विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़, दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर, मोहनलाल सुखड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, कोटा आदि में अनेक शोध छात्रों के पी. एच. डी. शोध ग्रन्थों को जांच कर उन पर परीक्षक रिपोर्ट भेजकर उन्हें पी. एच. डी. की उपाधि देने की अनुशंसाएं की हैं। आपने अनेक विश्वविद्यालयों में जाकर भी वहाँ शोध छात्रों की पी. एच. डी. ग्रन्थों पर मौखिक परीक्षाएँ लेकर उन्हें उपाधि देने की अनुशंसा की है। आपकी राजस्थान के सामाजिक व संस्कृतिक इतिहास पर शोध कार्य करवाने में विशेष रुचि रही है। आपने जिन छत्रों को शोध करयाया, उनमें अनेक राजकीय महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में लेक्चरार के पद पर कार्यरत हैं।

प्रसिद्ध इतिहासकर

आप राजस्थान इतिहास के एक प्रतिष्ठित जाने-माने इतिहासकार हैं। आपने राजस्थान के इतिहास के विभिन्न पक्षों पर अनेक शोधग्रंथ लिखे हैं। आपके प्रसिद्ध ग्रन्थों में सम्मिलित हैं:

  • मध्यकालीन राजस्थान में धार्मिक आंदोलन
  • एग्रेरियन मूवमेंट इन राजस्थान
  • शेखावटी किसान आंदोलन का इतिहास
  • उत्तरी राजस्थान में कृषक आंदोलन
  • जाटों की गौरव गाथा
  • राजस्थान में कृषक आंदोलन
  • राजस्थान में स्वतन्त्रता संग्राम के अमर पुरोधा - कुंभाराम आर्य
  • राजस्थान के जाटों का इतिहास
  • राजस्थान में भक्ति आंदोलन
  • राजस्थान में जाटों का उत्थान
  • नागौर जिले की महान विभूतियाँ आदि
  • 'मध्यकालीन भारत' और 'भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास' नामक पाठ्य पुस्तकों की रचना
  • 'राजस्थान में धर्म, संप्रदाय व आस्थाएं' तथा 'सम अस्पेक्ट्स ऑफ राजस्थान हिस्ट्री एंड कल्चर' नामक शोध ग्रन्थों का सम्पादन
  • 30 से अधिक शोध-पत्र राष्ट्रीय व राज्यस्तरीय प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं का प्रकाशन
  • 'सांस्कृतिक राजस्थान-इतिहास के विविध आयाम' - उपरोक्त शोधपत्रों का पुस्तक आकार में प्रकाशन

डॉ. पेमाराम वह प्रसिद्ध इतिहासकर हैं जिन्होने राजस्थान के इतिहास लेखन को एक नई दिशा प्रदान की है। प्रोफेसर पेमाराम के पूर्व राजस्थान के इतिहास पर जितने भी ग्रंथ लिखे गए थे वे अधिकांशतः राजा-महाराजाओं के कार्यकलापों पर ही आधारित थे और राजनैतिक इतिहास से संबन्धित थे। डॉ. पेमाराम ने सर्वप्रथम राजस्थान के विभिन्न साधारण वर्गों पर लेखन कार्य किया है। इन्होने अपने प्रसिद्ध शोध-ग्रंथ 'मध्यकालीन राजस्थान में धार्मिक आंदोलन' जो बाद में कुछ संसोधन के साथ राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी जयपुर से 'राजस्थान में भक्ति आंदोलन' नामक शीर्षक से फिर दुबारा प्रकाशित हुआ, में राजस्थान के साधु-संतों व भक्तों द्वारा समाज को सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित करने का जो कार्य किया गया था, उस पर लेखनी चलाई है। इसके बाद आपने अपने दूसरे प्रसिद्ध ग्रंथ अङ्ग्रेज़ी में 'एग्रेरियन मूवमेंट इन राजस्थान' और कुछ संसोधन के साथ हिन्दी में 'राजस्थान में कृषक आंदोलन' जिसे राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर ने प्रकाशित किया, में राजस्थान की विभिन्न रियासतों में किसानों द्वारा अपने शासन के खिलाफ व जागीरदारी प्रथा को समाप्त करने हेतु जो आंदोलन किए थे, उनका वर्णन है। इसी तरह शेखावाटी के किसानों ने अपने जागीरदारों के खिलाफ अपनी दशा को सुधारने के लिए जो संघर्ष किया, उसका वर्णन अपने तीसरे ग्रंथ 'शेखावाटी किसान आंदोलन का इतिहास' में किया है। इसी तरह बीकानेर रियासत में किसानों के कृत्यों का वर्णन आपके एक अन्य ग्रंथ 'उत्तरी राजस्थान में कृषक आंदोलन' में हुआ है। इस तरह आपने तीन-चार ग्रन्थों में किसान कौम के कृत्यों का वर्णन किया है, जिस पर उससे पहले बहुत कम लिखा गया था। आपने राजस्थान सरकार के आग्रह पर 'राजस्थान में स्वतन्त्रता संग्राम के अमर पुरोधा - कुंभाराम आर्य' पर भी एक पुस्तिका लिखी है।

जाट इतिहास के लेखक

प्रोफेसर पेमाराम ने राजस्थान की जाट कौम के बारे में तीन ग्रंथ लिखे हैं।

1. जाटों की गौरवगाथा: प्रोफेसर पेमाराम का जाट कौम के बारे में पहला ग्रंथ 'जाटों की गौरवगाथा' नाम से प्रकाशित हुआ है। इसमें जाट कौम के उन महान चरित्र नायकों का वर्णन किया है जिन्होने अज्ञानता और अंधकार में सोई हुई जाट कौम को जगाने के लिए अनेक कष्ट सहे और अपने जीवन के अमूल्य समय को इस दिशा में लगाकर जाटों के जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास किया। जाट कौम के ऐसे अनेक महान व्यक्तियों में जिनका लेख किया गया है वे हैं :

जाट कौम के ऐसे महान चरित्र नायकों के कृत्यों को लिखकर समाज में डॉ. पेमाराम ने जाट कौम के गौरव को बढ़ाने का कार्य किया है। इन चरित्र नायकों के बारे में पढ़कर भावी पीढ़ी को उत्साह और प्रेरणा मिलेगी। जाट कौम ने इस ग्रंथ को बहुत पसंद किया और यही कारण था कि थोड़े ही समय में इसके चार संस्करण निकाले गए।

2. राजस्थान के जाटों का इतिहास: प्रोफेसर पेमाराम ने जाट कौम पर दूसरा ग्रंथ लिखा - राजस्थान के जाटों का इतिहास। इसमें सम्मिलित किए गए विषय हैं:

  • प्राक्कथन....पृ.5
  • जाटों का निवासस्थान और उनका राजस्थान की ओर आगमन...पृ.11
  • राजस्थान में जाट गणराज्य और उनका पतन...पृ.19
  • जाटों की महान विभूतियां...पृ.45
  • मारवाड़ की राजनीति में जाट महिलाओं का योगदान...पृ.155
  • भरतपुर में जाट राज्य की स्थापना और उसका विस्तार...पृ.162
  • धौलपुर का जाट राज्य....पृ.215
  • जाटों में पट्टीदार व्यवस्था......पृ.228
  • जाटों में जागृति...पृ.252
  • उपसंहार-मूल्यांकन....पृ.291
  • जाट गोत्र लिस्ट ....पृ.295

इस ग्रंथ में प्राचीन काल से लेकर देश की आजादी तक का जाटों का प्रामाणिक इतिहास लिखा है। साथ ही जाट गोत्रों की सूची दी गई है।

3. राजस्थान में जाटों का उत्थान: प्रोफेसर पेमाराम ने जाट कौम पर तीसरा ग्रंथ लिखा - राजस्थान में जाटों का उत्थान। इसमें सम्मिलित किए गए विषय हैं:

  • 1 जाटों का निवास स्थान और उनका राजस्थान की ओर आगमन ....पृ.11-18
  • 2 राजस्थान में जाटों के गणराजय और उन्हें राजपूतों द्वारा नष्ट कर अपनी सत्ता स्थापित करना तथा भरतपुर और धोलपुर के जाट राज्य ....पृ.19-44
  • 3 राजपूत शासकों द्वारा जाटों का शोषण व जाटों की दयनीय स्थिति ... पृ.45-68
  • 4 राजस्थान की जाट कौम में जागृति का सुप्रभात (1907 ई.- 1925 ई. तक)....पृ.69-84
  • 5 1925 ई. में पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का महोत्सव व राजस्थान के जाटों में व्यापक जागृति (1925 ई.- 1934 ई.).... पृ.85-111
  • 6 जाट कौम में जागृति का उफान-जागीरदारों द्वारा उनपर अत्याचार तथा जाटों द्वारा उनका प्रतिरोध (1934 ई-1941 ई).... पृ.112-220
  • 7 जाट कौम में जागृति का भूचाल व शासक वर्ग से संघर्ष (1941 ई. - 1949 ई.).... 221-347
  • 8 आर्थिक आजादी के संघर्ष में सफलता - भूमि का स्वयं मालिक बनना व राजस्थान में जाट कौम का एक शक्तिशाली वर्ग के रूप में उदय (1949 ई.-1956 ई.).... 348-364
  • 9 उपसंहार-मूल्यांकन....365-370
  • परिशिष्ठ-
  • 1 अजमेर-मेरवाड़ा में जाट जागृति.... 371-372
  • 2 अलवर राज्य के जाटों में जागृति.... 373-374
  • 3 राजस्थान में जाटों के उत्थान की इस यात्रा में जिन जाट किसानों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया, उन शहीदों की सूची.... 375-377

इस ग्रंथ में राजस्थान में जाटों के आगमन से लेकर उनके यहाँ बसने व अपनी प्रजातांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने से लेकर जागीरदारों के साथ संघर्ष और उत्थान का विवरण दिया गया है। पुस्तक के अंत में जिन जाट किसानों ने जागीरदारों से संघर्ष में अपने प्राणों का उत्सर्ग किया, उन शहीदों की सूची भी दी गई है। इस तरह इस ग्रंथ में डॉ. पेमाराम ने जाटों के उत्थान का ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत किया है।

राजस्थान के जाटों के इतिहास पर लिखे ये सारे ग्रंथ राजस्थानी ग्रंथागार, सोजती गेट, जोधपुर से प्रकाशित हुये हैं। राजस्थान के जाटों के इतिहास पर तीन प्रामाणिक ग्रंथ लिखकर जाट कौम की बड़ी सेवा की है। इस कारण ठाकुर देशराज के बाद राजस्थान की जाट कौम सदा डॉ. पेमाराम को याद रखेगी।

इस तरह प्रोफेसर पेमाराम ने सर्वसाधारण वर्ग यथा साधू-संत, भक्त, किसान वर्ग व जाट कौम का इतिहास लिखकर इतिहास लेखन की धारा को बदला है। पूर्व के राजा-महाराजाओं के इतिहास के स्थान पर समाज के सर्वसाधारण वर्गों को महत्व देकर व उनके कृत्यों का इतिहास लेखन करके एक नई मिशाल कायम की है। इस कारण आगे आने वाली पीढ़ियाँ भी डॉ. पेमाराम को एक अलग इतिहासकर के रूप में सदा स्मरण करेंगी।

समाज सेवा

  • शैक्षणिक संस्थाओं को बनाने व आगे बढ़ाने में आपकी विशेष रुचि रही है। श्री सांईनाथ विद्यामन्दिर बड़ायाली में स्कूल को हायर सेकंडरी तक क्रमोन्नत कराने में तथा वहाँ बी. एड. कालेज खोलने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। आप वहाँ कई वर्षों तक जनरल सेक्रेटरी रहे।
  • आपके गाँव जसनगर में श्रीगणेश सेवा समिति जसनगर नामक संस्था का गठन किया और वहाँ श्री गणेशचन्द्र विद्या आश्रम नामक हायर सेकंडरी विद्यालय बनाने में आपकी भूमिका रही।
  • 2008 में आपने जसनगर में बी. एड. कालेज खोला ताकि आस-पास के इलाकों के विद्यार्थियों को बी. एड. की डिग्री प्राप्त करने में सुविधा हो सके।
  • वनस्थली में निवास के दौरान निकटस्थ कस्बे निवाई में 'श्रीराम पब्लिक स्कूल' के खुलवाने में विशेष रुचि ली।
  • आप अपने गाँव जसनगर में अनेक सामाजिक और संस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। अनेक बार पर्यावरण के और आँखों के लिए कैंप लगवाए हैं।
  • ग्रामीण प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए जसनगर और उसके आस-पास के 20-25 स्कूलों के बच्चों को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में अच्छे अंक लाने के लिए प्रेरित करने हेतु 'प्रतिभाशाली सम्मान समारोह' आयोजित करते हैं। इस तरह के आयोजन आपके द्वारा टोंक और जयपुर जिलों में भी किए गए हैं। इसके लिए आपके द्वारा 'डॉ. पेमाराम चेरिटेबल ट्रस्ट' कायम किया है।

सम्मान

  • राजस्थान सरकार ने आपकी पुस्तक 'एग्रेरियन मूवमेंट इन राजस्थान' के लिए 30 अगस्त 1989 को मुख्यमंत्री राजस्थान के निवास पर आयोजित समारोह में रु. 8000/- का नकद पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया।
  • महाराजा सूरजमल मेमोरियल एजुकेशन सोसाइटी, नई दिल्ली ने 2001 में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में आपको श्रीफल व शाल ओढ़कर तथा पुस्तकों का सेट भेंट कर माननीय श्री रामनिवास मिर्धा ने सम्मानित किया।
  • वर्ष 2005 में इंडिया इंटरनेशनल फ्रेंड्शिप सोसाइटी, न्यू दिल्ली, द्वारा आपको 'विजयश्री' अवार्ड से सम्मानित किया तथा 'सर्टिफिकेट ऑफ एक्ष्सेलेंस' प्रदान किया।
  • राजस्थान के इतिहास लेखन में आपके योगदान को देखते हुये राजस्थान के सारे इतिहासकारों की संस्था 'राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस' ने अपने 24 वें अधिवेशन के लिए सर्वसम्मति से डॉ. पेमाराम को अध्यक्ष चुना जो 14-15 दिसंबर, 2008 ई. को सोनदेवी सेठिया पी. जी. महाविद्यालय सुजानगढ़, चुरू में आयोजित हुई। इसमें आपने अध्यक्षीय भाषण दिया।
  • चौधरी बहादुरसिंह भोबिया समाज जागृति परमार्थ ट्रस्ट संगरिया, हनुमानगढ़ ने 8 मार्च 2008 को जयपुर में आयोजित बौद्धिक सम्मेलन में आपकी पुस्तक 'जाटों की गौरवगाथा' पर 10000/- रुपये की राशि भेंट करने के साथ ही अभिनंदन पत्र व शाल ओढ़कर सम्मानित किया तथा जाट इतिहास के लेखन के लिए आपको अध्यक्ष चुना।
  • अखिल भारतीय जाट समिति पुष्कर ने 20 अक्तूबर 2009 को आयोजित 89 वें अखिल भारतीय जाट महासम्मेलन पुष्कर 2009 में आपको 'जाट गौरव' के अलंकरण से विभूषित किया।
  • कोयंबटूर , तमिलनाडू की संस्था रिव्यू प्रोजेक्टर इंडिया ने आपको बोर्ड ऑफ एमिनेंट स्कालर में एक्ष्पर्ट मेम्बर के लिए चुना।
  • 2009 में अमेरिका की संस्था 'American Biographical Institute' ने आपकी शैक्षणिक उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुये 'Man of the year representing India 2009' के साथ 'American Order of Merit' से सम्मानित किया।
  • 2009 में जोधपुर में आयोजित राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के 25 वें अधिवेशन में आपको श्रीफल मोमेंटों व साफा पहनकर दो बार सम्मानित किया है।
  • 2010 में आपको ग्रामीण चेतना समिति, जयपुर ने देहात व ग्रामीण हितों को बढ़ावा देने में अपने लेखन कार्य से विशिष्ट योगदान देने के लिए 'ग्रामबजट सम्मान (द्वितीय) वर्ष 2010' प्रदान कर सम्मानित किया।
  • 4 अक्तूबर 2011 को पर्यटन विकास समिति मेड़ता सिटी ने मीराबाई पर शोधकारी के लिए भक्त शिरोमणि मीराबाई स्मारक संस्था मेड़ता सिटी ने आपको 'मीरांरत्न सम्मान' से सम्मानित किया।

संदर्भ - डॉ. पेमाराम का उपरोक्त जीवन परिचय 'जाट परिवेश' नवंबर-2015 (पृ. 6-11) से साभार लिया गया है।

Gallery

References


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