Pula Saran

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (Retd.),

Pula Saran (पूलाजी सारण) (1487) was a Jat ruler of Jangladesh region in Rajasthan prior to its annexation by Rathors.

Founder of Pulasar Village

Pulasar (पूलासर) is a village in Sardarshahar tahsil in Churu district in Rajasthan. It is situated in southeast direction of Sardarshahar at a distance of few kms. Pulasar was founded by its ruler Pula Saran in 1441AD.

Introduction

According to James Todd the republic of Saran Jats in Jangladesh, whose chief was Pula Saran was having 300 villages in his state with capital at Bharang. The districts included in his state were Bhadang, Khejra, Phog, Buchawas, Sui, Bandhnau, Sirsala [1]

पूलासर व राजा पूला सहारण

उदाराम सहारण[2] ने भाट अभिलेखों के आधार पर सहारण जाति का इतिहास निम्नानुसार बताया है:

पूलासर व राजा पूला सहारण - संवत 1400 (सन 1343 ई.) (तुगलक वंश 1320-1414)

सहारण वंश में संवत 1400 (सन 1343 ई.) में राजा पूला सहारण पूलासर के राजा हुये. पूलासर सरदारशहर से करीब 20 किमी दक्षिण पूर्व में चुरु की तरफ़ एक बड़ा गांव है जहां बोहरा व पांडिया ब्राहमण हैं. पूलासर व राजा पूला के दिल्ली बादशाह की बेगम को जमुना में डूबने से बचाने के बदले दिल्ली का शासन 3-1/2 दिन पूला राजा को देने की कहानी पूलासर के पांडिया ब्राहमण प्रमुख श्री बदरीप्रसाद पांडिया ने लेखक (उदाराम सहारण) को बड़े गर्व के साथ सुनाई. बादशाह ने 2 दिन के पूला के दिल्ली का राज करने के बाद शेष 1 दिन का राज्य चतुराई से बेगम के माध्यम से वापस ले लिया. तब पूला राजा के मंत्री पांडिया ने पूला राजा को कहा कि मुझे क्या दोगे. पूला राजा ने पूलासर ठिकाना इस पर पांडिया ब्राहमणों को दान दे दिया और कहा कि आज के बाद पूलासर में कोई भी सहारण नहीं रहेगा और न ही यहां का पानी पियेगा. इस परम्परा का पालन आज भी जारी है. पूलासर में कोई भी सहारण परिवार नहीं है.

राव भौमसिंह द्वारा भी कहानी तो लगभग यही बताई कि इक्षुराजा के नाम 2-1/2 दिन दिल्ली का शसन किया. 1 दिन वापस दान कर दिया.

पांडिया ब्राहमण आज भी पूलासर व पूला राजा के नाम पर फ़क्र करते हैं व बताते हैं कि पूलासर के पास पूलाना तालाब पर आज भी पूला राजा की समाधी के अवशेष हैं.

पूलाजी सारण का इतिहास

चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[3] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।

क्र.सं. जनपद क्षेत्रफल राजधानी मुखिया प्रमुख ठिकाने
2. सारण (सारणौटी) 360 गाँव भाडंग पूलाजी सारण खेजड़ा , फोगां , धीरवास , भाडंग , सिरसला , बुच्चावास , सवाई, पूलासर, हरदेसर, कालूसर, बन्धनाऊ , गाजूसर, सारायण, उदासर


भाड़ंग चुरू जिले की तारानगर तहसील में चुरू से लगभग 40 मील उत्तर में बसा था. पृथ्वीराज चौहान के बाद अर्थार्त चौहान शक्ति के पतन के बाद भाड़ंग पर किसी समय जाटों का आधिपत्य स्थापित हो गया था. जो 16 वीं शताब्दी में राठोडों के इस भू-भाग में आने तक बना रहा. पहले यहाँ सोहुआ जाटों का अधिकार था और बाद में सारण जाटों ने छीन लिया. जब 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में राठोड इस एरिया में आए, उस समय पूला सारण यहाँ का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे. इसी ने अपने नाम पर पूलासर (तहसील सरदारशहर) बसाया था जिसे बाद में सारण जाटों के पुरोहित पारीक ब्राह्मणों को दे दिया गया. पूला की पत्नी का नाम मलकी था, जिसको लेकर बाद में गोदारा व सारणों के बीच युद्ध हुआ. [4] मलकी के नाम पर ही बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील में मलकीसर गाँव बसाया गया था. [5]

मलकी और लाघड़िया युद्ध

उस समय पूला सारण भाड़ंग का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे. पूला की पत्नी का नाम मलकी था जो बेनीवाल जाट सरदार रायसल की पुत्री थी. उधर लाघड़िया में पांडू गोदारा राज करता था. वह बड़ा दातार था. एक बार विक्रम संवत 1544 (वर्ष 1487) के लगभग लाघड़िया के सरदार पांडू गोदारा के यहाँ एक ढाढी गया, जिसकी पांडू ने अच्छी आवभगत की तथा खूब दान दिया. उसके बाद जब वही ढाढी भाड़ंग के सरदार पूला सारण के दरबार में गया तो पूला ने भी अच्छा दान दिया. लेकिन जब पूला अपने महल गया तो उसकी स्त्री मलकी ने व्यंग्य में कहा "चौधरी ढाढी को ऐसा दान देना था जिससे गोदारा सरदार पांडू से भी अधिक तुम्हारा यश होता. [6]इस सम्बन्ध में एक लोक प्रचलित दोहा है -

धजा बाँध बरसे गोदारा, छत भाड़ंग की भीजै ।

ज्यूं-ज्यूं पांडू गोदारा बगसे, पूलो मन में छीज ।।[7]

सरदार पूला सारण मद में छका हुआ था. उसने छड़ी से अपनी पत्नी को पीटते हुए कहा यदि तू पांडू पर रीझी है तो उसी के पास चली जा. पति की इस हरकत से मलकी मन में बड़ी नाराज हुई और उसने चौधरी से बोलना बंद कर दिया. मलकी ने अपने अनुचर के मध्यम से पांडू गोदारा को सारी हकीकत कहलवाई और आग्रह किया कि वह आकर उसे ले जाए. इस प्रकार छः माह बीत गए. एक दिन सब सारण जाट चौधरी और चौधराईन के बीच मेल-मिलाप कराने के लिए इकट्ठे हुए जिस पर गोठ हुई. इधर तो गोठ हो रही थी और उधर पांडू गोदारे का पुत्र नकोदर 150 ऊँट सवारों के साथ भाड़ंग आया और मलकी को गुप्त रूप से ले गया. [8] पांडू वृद्ध हो गया था फ़िर भी उसने मलकी को अपने घर रख लिया. परन्तु नकोदर की माँ, पांडू की पहली पत्नी, से उसकी खटपट हो गयी इसलिए वह गाँव गोपलाणा में जाकर रहने लगी. बाद में उसने अपने नाम पर मलकीसर बसाया. [9]

पूला सारण ने सलाह व सहायता करने के लिए अन्य जाट सरदारों को इकठ्ठा किया. इसमें सीधमुख का कुंवरपाल कसवां, घाणसिया का अमरा सोहुआ, सूई का चोखा सियाग, लूद्दी का कान्हा पूनिया और पूला सारण स्वयं उपस्थित हुए. गोदारा जाटों के राठोड़ों के सहायक हो जाने के कारण उनकी हिम्मत उन पर चढाई करने की नहीं हुई. ऐसी स्थिति में वे सब मिलकर सिवानी के तंवर सरदार नरसिंह जाट के पास गए [10] और नजर भेंट करने का लालच देकर उसे अपनी सहायता के लिए चढा लाए. [11]

तंवर नरसिंह जाट बड़ा वीर था. वह अपनी सेना सहित आया और उसने पांडू के ठिकाने लाघड़िया पर आक्रमण किया. उसके साथ सारण, पूनिया, बेनीवाल, कसवां, सोहुआ और सिहाग सरदार थे. उन्होंने लाघड़िया को जलाकर नष्ट कर दिया. लाघड़िया राजधानी जलने के बाद गोदारों ने अपनी नई राजधानी लूणकरणसर के गाँव शेखसर में बना ली. [12] युद्ध में अनेक गोदारा चौधरी व सैनिक मारे गए, परन्तु पांडू तथा उसका पुत्र नकोदर किसी प्रकार बच निकले. नरसिंह जाट विजय प्राप्त कर वापिस रवाना हो गया. [13]

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज[14] लिखते हैं कि भाट-ग्रन्थों में राव सारन नाम के भाटी और औलाद में हुए लोगों का नाम सारन है। भाट लोग कहते हैं कि सारन ने जाटनी से शादी कर ली थी। इससे उनके वंशज सार कहलाए, यह कथा नितान्त झूठी गढन्त है, जिनका हमने पिछले पृष्ठों में काफी खंडन कर दिया है। सारन वंशीय जाट-क्षत्रिय हैं। सारन व उनके पूर्वज जाट थे। वे उस समय से जाट थे, जिस समय कि लोग यह भी नहीं जानते थे कि राजपूत भी कोई जाति है। जांगल-प्रदेश में उनके अधिकार में 300 से ऊपर नगर और गांव थे। रामरत्न चारण ने उनके अधिकृत गांवों की संख्या 460 बताई है। उनकी राजधानी भाडंग में थी। खेजड़ा, फोगा, बूचावास, सूई, बदनु और सिरसला उनके अधिकृत प्रदेश के प्रसिद्ध नगर थे। राठौरों से उनके जिस राजा का युद्ध हुआ था, उसका नाम पूलाजी था। प्रजा इनकी धन-धान्य से पूरित थी। राज्य में पैदा होने वाली किसी चीज पर टैक्स न था। वहां जो चीजें आती थीं, उन पर भी कोई महसूल न था। कहा जाता है कि जांगल-देश के ब्राह्मण घी, ऊन का व्यापार किया करते थे। राज्य में जितनी भी जातियों के प्रजा-जन थे, सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाता था। सारन शांति-प्रिय थे। उनकी प्रवृत्ति थी, ‘स्वंय जियो और दूसरों को जीने दो’। रामरत्न चारण ने अपने लिखे इतिहास में बताया है कि गोदारों जाटों का सरदार पांडु सारणों के अधीश्वर की स्त्री को भगा ले गया, इस कारण जांगल-प्रदेश के सभी जाट-राज्य गोदारों के विरुद्ध हो गए। कहना होगा कि जाटों के लगभग तीन हजार गांवों की सल्तनत को कुल्हाड़ी के


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-619


बेंट गोदारा पांडु ने नष्ट करा दिया। पांडु यदि राठौरों के हाथ अपनी स्वाधीनता को न बेच देता, तो राठौरों पर इतनी आपत्ति आती कि फिर बेचारे जांगल-प्रदेश की ओर आने की हिम्मत तक न करते। गोदारों की शक्ति अन्य समस्त जाट-राज्यों की शक्ति के बराबर थी। यह नहीं कहा जा सकता कि जांगल-प्रदेश के जाटों को राठौरों ने जीता। जाटों के सर्वनाश का कारण उनकी पारस्पारिक फूट थी। उसी फूट का शिकार सारन जाट हो गए। उनका प्रदेश युद्धों के समय उजाड़ दिया गया और वे पराजित कर दिए गये, किन्तु शांति-प्रिय सारनों ने जो वीरता अपने राज्य की रक्षा के लिए दिखाई थी, वृद्ध सारन जाट उसे बड़े गर्व के साथ अपनी सन्तान को सुनाता है।

सारणों की राजधानी भाड़ंगाबाद

चूरू जनपद की तारानगर तहसील के उत्तर में साहाबा कस्बे से 9 किलोमीटर दक्षिण में वर्तमान में आबाद भाड़ंग गांव कभी पूला सारण की राजधानी भाड़ंगाबाद के नाम से आबाद थी। मौजूदा भाड़ंग गांव के उत्तरी-पूर्वी कोने में 2-3 किलोमीटर दूर यह पुराना भाड़ंगाबाद पूला सारण की राजधानी आज खंडहर के रूप में अवस्थित अपनी करुण कथा सुना रही है। यहां पूरी तरह से खंडहर हो चुके गढ़ के अवशेष तथा आबादी बसी हुई होने के अवशेष के साथ साथ पीने के पानी के लिए बनाए गए पुराने कुए, कुंड तथा तालाब के चिन्ह भी अपनी उपस्थिति बताते हुए दूर-दूर तक मलबे के ढेर बिखरे पड़े हैं जो कभी विशाल आबादी होने का एहसास दिला रहे हैं। भाड़ंगाबाद का यह गढ़ बहुत बड़ी लंबाई-चौड़ाई में बनाया हुआ था जिसमें 12 गांव आबाद थे। इसके साक्ष्य दूर-दूर खेतों में बिखरे पड़े पुराने मकानों के मलबे के ढेर के ढेर दिखाई देते हैं। यह भी साक्ष्य दिखाई देते हैं कि यहां कभी बहुत बड़ी आबादी गढ़ के परकोटे में दुश्मनों के हमलों से बचाव के साथ आबाद थी। इसी गढ़ के पुराने मलबे के ढेर पर विस्थापित भोमिया जी का छोटा सा मंदिर (थान) बना हुआ है। यह है भोमिया जी वही सारण था जो सहूओं का भांजा था, जिसे सहूओं ने गढ़ की नींव में जीते जी दे दिया था। जिसका नाम पीथा सारण बताया जाता है। यह भूमि अब श्री मालसिंह सुपुत्र विशाल सिंह राजवी (राजपूत) के कब्जे में है।

पीथा सारण: अमर शहीद पीथा की करुण गाथा इस प्रकार किंवदंती के रूप में बताई जाती है। कहते हैं कि सहूओं की एक लड़की सारणों के ब्याही थी जिसका पीहर भाड़ंगाबाद तथा ससुराल सहारनपुर था। वह विधवा हो गई तथा उसके एक लड़का था जो दिव्यांग था। विधवा अवस्था में वह पीहर भाड़ंगाबाद में ही अपने परिवारजनों के साथ रहकर अपना समय व्यतीत करती थी। इधर सहू लोगों ने गढ़ बनाना शुरू किया तो जितना गढ़ वे दिन में चिनते उतना ही वापस ढह जाता। सहू बड़े चिंतित हुए। उन्होंने उस समय के तथाकथित जानकार साधु महात्मा आदि से पूछा कि क्या उपाय किया जाए जिससे यह गढ़ पूर्ण हो सके। किसी ने जानकारी दी कि यह गढ़ एक व्यक्ति का बलिदान मांगता है। एक व्यक्ति को जीते जी इसके नींव में चुना जावे तो यह गढ़ निर्विघ्न पूर्ण हो जाएगा। सब लोगों से पूछा गया, कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं हुआ। तब यह तय हुआ कि अपना भांजा पीथाराम दिव्यांग व्यक्ति है उसको ही क्यों न नींव में दे दिया जावे। मां के लिए बेटा बहुत ही प्यारा होता है। पीथा राम की मां अबला थी, उसका कोई जोर नहीं चला। उसके कलेजे के कोर, अपने रहे सहे जीवन के सहारे को अपने आंखों के सामने जीते जी गढ़ की नींव में चिन दिया गया। पीथाराम की मां मजबूरी में अपने दिन काटती रही।

एक दिन पीथाजी की मां जोहड़ पर पानी लाने गई। वहां पर एक प्यासा सारण जाट पानी पीने के लिए आ गया। उसने पिथा की माता से पानी मांगा। तब पिथा की मां ने राहगीर का परिचय पूछा तो उसने बताया कि मैं सारण गोत्र का जाट हूँ। पीथा की मां ने कहा कि अभी सारण धरती पर जिंदा भी हैं? सारण ने पूछा ऐसी क्या बात हो गई। तब पिथा की मां ने सारी कहानी बताई। सारण वहां से बिना पानी पिए सीधा सहारनपुर पिथा के परिवार वालों को यह खबर देने चला गया। इधर सहू जाटों ने गढ़ की चिणाई कर निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया।

सारणों और सहू जाटों का युद्ध: सारणों का निकास सहारनपुर से होना बताया जाता है। मंगलाखेजड़ा दो भाई थे। जो पिथाराम की मां के देवर के लड़के थे। अतः पिथा की मां उनकी काकी (चाची) लगती थी। वे कोलायत स्नान का बहाना बनाकर लंबी-चौड़ी फौज लेकर आए और भाड़ंगाबाद में ठहर गए। मंगला-खेजड़ा ने अपनी चाची से सलाह-मशविरा करके सहू जाटों को निमंत्रण दिया कि आपने नया गढ़ बनाया है तो इस खुशी में हम आपको भेज देंगे। भोज की तैयारी के समय नगाड़ा बजेगा तब गढ़ का गेट बंद हो जाएगा। बाहर वाले बाहर वह अंदर वालों को भोजन कराने के बाद बाहर वालों का नंबर आएगा। नगाड़े इस खुशी में जोर जोर से बजते रहेंगे। इधर मंगला-खेजड़ के साथियों ने हथियारों से लैस हो गढ़ में भोजन कराने वाले व्यक्तियों के रूप में घुसेड़ दिया। जब सारे सहू अंदर आ गए तो गढ़ का गेट बंद कर नगाड़े बजाने शुरू कर दिए। अंदर मारकाट शुरु हो गई। रोने-चीखने-चिल्लाने की आवाजें नगाड़ों के स्वर में सुनाई नहीं दी। बचे हुए सहू गढ़ छोड़कर धानसिया गांव में भाग गए जो अब नोहर-सरदारशहर सीमा पर स्थित है। वहां अपनी राजधानी बनाई। इस प्रकार भाड़ंगाबाद के इस सहूओं के गढ़ पर कब्जा कर अमर शहीद पिथा के बलिदान का बदला सारणों ने ले लिया। आगे चलकर यह भाड़ंगाबाद पूला सारण की राजधानी बनी जिसमें 360 गांव आबाद थे।

सारण लोग गढ़ पर कब्जा होने के पश्चात भाड़ंगाबाद में नहीं बसे। नोहर तहसील के जोजासर गांव के पास बैर नाम की गैर आबाद रेख है, उस में बसे थे जो बाद में गैर आबाद हो गई। खेजड़ ने सहूओं को शरण दी थी तब उसे श्राप मिला था कि तेरे नाम से कोई खेड़ा नहीं बसेगा। खेजड़ ने खेजड़ा गांव तहसील सरदारशहर में एक ही बसाया था।

पूला सारण: पूला सारण के बारे में बताते हैं कि यह दो ऐल के थे। पहला पूला सारण ने पूलासर गांव बसाया था, जो बाद में पारीक (पांडिया) ब्राह्मणों को दान में दे दिया था। किंवदंती है कि पूला बड़े लुटेरों के गिरोह में शामिल हो गया था। बादशाह को टैक्स आदि नहीं देता था। बादशाह की बेगम को लूट लिया था। बादशाह ने पकड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। उधर पूला ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अपना डेरा दिल्ली में डाल लिया। तीन व्यक्ति उसके साथ ही थे। वह भी साथ ही रहते थे। चमड़े की मसक (भकाल)से यमुना नदी से पानी भरकर लोगों के घरों में डालते थे और अपना पेट पालते थे।

एक दिन घटना ऐसी घटी की पूला के दिनमान ही बदल गए। बादशाह की वही बेगम, जिसे पूला ने लूटा था, वह यमुना में स्नान करने आई थी। वहां उसका पैर फिसल गया और वह पानी में डूब गई। वहां पूला अपने साथियों के साथ पानी भरने आए हुए थे। पूला ने तत्काल नदी में छलांग लगाई और बेगम को नदी से बाहर निकाल लाया। बेगम ने बादशाह को कहा मुझे बचाने वाले को मुंह मांगा इनाम दिया जाए। पूला ने कहा इस बेगम को लूटने वाला भी मैं था और बचाने वाला भी मैं ही हूँ। तब बेगम ने कहा लूटने वाला कसूर माफ कर दिया जाए और मेरी जान बचाने वाले को इनाम दिया जाए। बादशाह ने लूटने का कसूर माफ कर दिया तथा बचाने के लिए मुंह मांगा इनाम देने के लिए कहा। इस पर पूला ने 7 दिन का दिल्ली का राज मांग लिया। बादशाह ने 7 दिन के लिए पूला को दिल्ली का बादशाह बना दिया। पूला ने सात दिन के राज में चमड़े के सिक्के चलाये जिसके बीच में सोने की एक मेख लगाई। चमड़े के सिक्के इसलिए चलाए क्योंकि चांदी व अन्य धातु के सिक्के ढालने में बहुत समय लगता। पूला के पास केवल 7 दिन ही थे।

पूलासर: इधर पूलासर के पारीकों को पता चला तो वे दिल्ली पहुंच गए तथा पूलासर गांव दान में मांग लिया। पूला ने गांव पारीक ब्राह्मणों को दान में दे दिया। 'पूला दादा' के नाम से पूलासर में पूला का मंदिर बना हुआ है। पूला भाड़ंग नहीं आया था।

दूसरा पूला जिसने भाड़ंगाबाद राजधानी बनाई वह कई पीढ़ी बीत जाने पर राजा बना था। पहले पूला ने अपना गाँव दान में देकर अपना नाम अमर कर दिया।

मौजूदा भाड़ंग गांव सुरजाराम जोशी एवं गुणपाल चमार ने बसाया था। सुरजा राम जोशी ने एक जोड़ी खुदवाई जो आज भी सुरजानी जोड़ी कहलाती है।

राव बीका कांधल के राज्य में कांधल राजपूतों ने राज किया। यह पूला सारण राज्य पतन के बाद फिर यह राजवियों के हिस्से में आ गया। 288 बीघा भूमि दे दी गई। 2 बीघा भूमि पर घर बसाने के लिए व एक कुई एवं खेत जाने का रास्ता बीकानेर शासक ने पट्टे पर दे दिया। 1260 बीघा 6000 बीघा भूमि मंडेरणा घोटडा में दी जो भादरा तहसील में पड़ती है। यह गैर आबाद है जो घोटड़ा पट्टा- धीरवास के बीच में पड़ता है।

नोट:- यह संकलन दिनांक 19 दिसंबर 2014 को श्री गणेशराम सारण से भाड़ंग में उनके निवास स्थान पर जाकर किया। श्री गणेश राम ने यह जानकारी अपने भाट एवं पुराने बुजुर्गों से सुनी हुई बताई। गोविंद अग्रवाल द्वारा चूरू का शोधपूर्ण इतिहास में अलग ही विवरण है। चूरू का शोधपूर्ण इतिहास में जाटों के पतन के कारण में मलकी को पूला सारण की पत्नी बताया जाकर उस के अपहरण की कहानी सत्य नहीं है। मलकी पूला सारण की पत्नी न होकर चोखा साहू की पत्नी थी जिसका अपहरण धानसिया गांव में गणगौर के दिन गणगौर के मेले में हुआ था। अतः इस विषय पर सत्य खोज व शोध की आवश्यकता है। भादरा सारणों के बही भाट श्री जसवंत सिंह राव गांव मंडोवरी पोस्ट बड़सिया तहसील परबतसर (नागौर) मोब 9660216254 से जानकारी ली जा सकती है।

संकलनकर्ता - लक्ष्मण राम महला, जाट कीर्ति संस्थान चुरू

See also

References

  1. James Todd, Annals of Bikaner, p. 139
  2. Kisan Chhatrawas Bikaner Smarika 1994,pp.92-95
  3. 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
  4. दयालदास ख्यात, देशदर्पण, पेज 20
  5. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  6. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 208
  7. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 208
  8. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 202
  9. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  10. दयालदास री ख्यात , पेज 9
  11. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  12. डॉ दशरथ शर्मा री ख्यात, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर, संवत 2005, पेज 7
  13. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  14. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृ.618-619

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