स्यावड़ माता

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

स्यावड़ माता (Syawad Mata) अन्न पैदा करने वाली देवी है। राजस्थान में किसान खेती शुरू करने से लेकर खळा निकालने तक स्यावड़ माता को धोकते हैं। खेती का शुभारंभ (हळसोतिया) करते समय बैल के हल जोड़कर खेत के दक्षिण किनारे पर जाकर उत्तर की तरफ मुंह कर हळसोतिया कर प्रथम बीज डालने के साथ ही स्यावड़ माता को याद किया जाता है। खळा निकलते समय 'डाभ' नामक घास की स्यावड़ बनाई जाती है। जब इस अनाज को घर ले जाते हैं तो पहले इस स्यावड़ माता को लेजाकर ओबरी (अन्न भंडारण कक्ष) में रखते हैं। ऐसा मानते हैं कि शाकम्भरी देवी का ही राजस्थानी रूप स्यावड़ माता है। कई लोग 'स्यावड़ी माता' भी कहते है।

खेती का शुभारंभ: हळसोतिया

स्यावड़ माता को राजस्थान के जाट किसान याद करने के पश्चात ही बाजरा बीजना प्रारंभ करते हैं। बैल के हल जोड़कर खेत के दक्षिण किनारे पर जाकर उत्तर की तरफ मुंह कर हळसोतिया कर प्रथम बीज डालने के साथ ही स्यावड़ माता को इस प्रकार याद किया जाता है:-

स्यावड़ माता सत करी

दाणा फाको भोत करी

बहण सुहासणी कॅ भाग को देई

चीड़ी कमेड़ी कॅ राग को देई

राही भाई को देई

ध्याणी जवाई को देई

घर आयो साधु भूखो नी जा

बामण दादो धाप कॅ खा

सूना डांगर खा धापै

चोर चकार लेज्या आपै

कारुं आगै साथ नॅ देई

मंगतां कॅ हाथ नॅ देई

कीड़ी मकोड़ी कै भेलै नॅ देई

राजाजी कै सहेलै नॅ देई

सुणजै माता शूरी

छतीस कौमां पूरी

फेर तेरी बखारी मैं उबरै

तो मेरै टाबरां नॅ भी देई

स्यावड़ माता गी दाता

अर्थात सभी संबंधियों, जानवरों, साधु, देवी-देवताओं, राहगीरों, ब्रामण, राजा, चोर-चकार, भिखारी आदि सभी 36 कोमों के लिये अनाज मांगता है और बचे अनाज से घरवाले काम चलाते हैं।

खळा निकालते समय

खळा निकालते समय स्यावड़ माता को याद किया जाता है। 'काँस' या 'डाभ' नामक घास की स्यावड़ बनाई जाती है। इसको कपड़े नहीं पहनाते हैं परंतु डाभ से बनी स्यावड़ माता के लोह की बसत बांधते हैं। इसको बाजरे के ढेर में रखते हैं। बरसाये हुये बाजरे की ढ़ेरी को 'रास' बोलते हैं। अन्न के ढेर को कपड़े से ढ़क देते हैं जिसका मूंह दक्षिण की तरफ रखते हैं। अन्न निकालने वाला उत्तर की तरफ मुँह रखता है। जब धान बोरों में भरते हैं तो जब तक पूरा धान नहीं भरा जाता सब मौन रहते हैं। एक जणा लगातार अन्न की ढ़ेरी को देखता रहता है। खळा सळटने के बाद स्यावड़ माता के नाम से अन्नदान किया जाता है। जब इस अनाज को घर ले जाते हैं तो पहले इस स्यावड़ माता को लेजाकर ओबरी में रखते हैं.

स्यावड़ माता परिचय

स्यावड़ माता कौन थी? ऐसा मानते हैं कि शाकम्भरी देवी का ही राजस्थानी रूप स्यावड़ी या स्यावड़ माता है। ऐसा मानते हैं कि स्यावड़ माता किसानों के खळै की ढेरी में वास करती है। खेत में जब बाजरे सिट्टे दिखने लगते हैं तो स्यावड़ माता के पधारणे का संकेत माना जाता है। हळोतियै के समय स्यावड़ माता और गणेशजी धोके जाते हैं। हळ की पहली हलाई के समय इनको गु़ड, लापसी और सीरा चढ़ाते हैं। खळै के पास स्यावड़ थरपी जाती है। गोबर का थान बनाते हैं। चार सिट्टे इस पर चढ़ाते हैं। गुड़-घूघरी चढाते हैं। बाजरे की ढ़ेरी को कपड़े से ढक कर रखते हैं। इस ढ़ेरी के चारों तरफ लक्ष्मी के नाम से राख़ की कार देते हैं।

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

यह भी देखें


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