Ami Lal Poonia

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Amilal Poonia

Ami Lal Poonia (born:1914-2.9.1994) was a social worker from Suratpura village in Rajgarh Churu tahsil in Churu district of Rajasthan. He was a retired Army person, freedom fighter, an Educationist, social worker and worker of Rajgarh Kisan Sabha.[1]

जीवन परिचय

अमीलाल पूनिया विद्यार्थी आश्रम राजगढ़ की स्थापना और विस्तार के लिए जाने जाते हैं। चौधरी जीवनराम जी पूनिया और उनके पुत्र कामरेड मोहर सिंह ने राजगढ़ में विद्यार्थी आश्रम की स्थापना की। और इसका पलान-पौषण अमीलाल जी पूनिया सूरतपुरा ने किया। उन्होंने स्वामी केशवानंद जी की प्रेरणा से इसे अपना जीवन अर्पण कर दिया। राज्य शासन ने इन पर मुक़दमा चलाया जिसका तीन वर्ष तक सामना किया। आज यह आश्रम विशाल रूप ले चुका है।[2]

जन्म, शिक्षा और फौज में सेवा

अमीलाल पूनिया का जन्म गाँव सूरतपुरा, राजगढ़ तहसील जिला चुरू, राजस्थान में एक साधारण किसान परिवार में वर्ष 1914 में हुआ। उनके पिता का नाम दुर्जनाराम पूनिया था। उस समय जागीरदारों का प्रभाव था और इस क्षेत्र में शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी। अमीलाल के मन में पढ़ाई की बड़ी इच्छा थी इसलिए वे अपने रिश्तेदार के यहाँ जिला रोहतक के गाँव चिमनी चले गए। वहाँ प्राथमिक स्तर की पढ़ाई पूरी की। 18 वर्ष की आयु में वर्ष 1932 में वे फौज में भर्ती हो गए। 14 वर्ष तक फौज में देश की सेवा कर वर्ष 1946 में सेना से पेन्शन आ गए।

स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग

प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा प्रदान किया गया ताम्र-पत्र

सेवा के दौरान ही उन्होने ब्रह्मचारी रहने का निर्णय ले लिया था। जब पेन्शन पर गाँव लौटे तो यहाँ आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। अंग्रेज़ सरकार ने उनको गिरफ्तार कर लिया और 3 माह तक जेल में रहे। इस कारण इनको स्वतन्त्रता सेनानी घोषित किया और 15 अगस्त 1972 को स्वतन्त्रता की 25 वीं वर्षगांठ पर स्वतन्त्रता संग्राम में इनके स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा ताम्र-पत्र व स्वतन्त्रता सेनानी पेन्शन प्रदान की।

मुख्यमंत्री राजस्थान द्वारा रदान किया गया सम्मान पत्र

2 अक्टूबर 1987 को उन्हें राष्ट्र के स्वतन्त्रता संग्राम और राजस्थान के जागीरदारों के खिलाफ सामंती उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने के आंदोलन में सक्रिय योगदान, त्याग और बलिदान के लिए मुख्यमंत्री राजस्थान द्वारा सम्मान पत्र प्रदान किया गया।

शिक्षा प्रेमी

वे शिक्षा के महत्व को बखुबी समझते थे। उन्होने देखा कि गांवों के बालक प्राथमिक शिक्षा के बाद राजगढ़ आते थे जिनके यहाँ रुकने कोई व्यवस्था नहीं होती थी। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होने 1947 में 9 छात्रों से होली-टिब्बा नामक स्थान पर राजगढ़ में एक छात्रावास शुरू किया। वर्ष 1948 में उन्होने इन 9 विद्यार्थियों के साथ रेलवे के पास पड़ी 10 बीघा जमीन पर कब्जा कर विद्यार्थी आश्रम (बोर्डिंग) की स्थापना की। जमीन के लिए रेलवे से विवाद चला परंतु वे डटे रहे। 1950 में रेलवे से यह विवाद निबटा।

विद्यार्थी आश्रम राजगढ़

विद्यार्थी आश्रम राजगढ़

अमीलाल जी के प्रयासों से वर्ष 1848 में ही विद्यार्थी आश्रम में छात्रों की संख्या 21 हो गई थी जो निरंतर बढ़ती गई। प्रारम्भ में विद्यार्थी आश्रम में खुड्डी और शेड बनाकर काम चलाया गया। अमीलाल जी विद्यार्थियों के साथ ही छात्रावास में रहते थे। यहाँ खाने के लिए मैश चलता था जिसमें अमीलाल जी अपने खाने का भुगतान स्वयं करते थे। वे पेंशन में से बची राशि भी विद्यार्थियों पर ही खर्च कर देते थे। सन 1949 में चंदा करके निर्माण कार्य शुरू किया। पीने के पानी के लिए कुंड बनाए गए। आज जाट बोर्डिंग में 44 कमरे, 4 कुंड, भोजनशाला, पानी की टंकी, सौचालय, स्नानागार और एक हाल है। हाल का निर्माण डॉ. ज्ञान प्रकाश पिलानिया ने सांसद रहते करवाया था।

छात्रावास का प्रांगण हरा-भरा है और इसमें अनेकानेक पेड़ हैं। अमीलाल जी वर्ष 1980 तक, जबतक उनके स्वास्थ्य ने साथ दिया, विद्यार्थी आश्रम में अपना अवैतनिक योगदान देते रहे। ऐसे त्यागी और तपस्वी पुरुष कम ही पैदा होते हैं। इन्होने अपना पूरा जीवन, समाज और देश की सेवा तथा शिक्षा के विस्तार को समर्पित कर दिया।

संदर्भ – अमीलाल जी के बारे में उपरोक्त जानकारी रामकुमार पूनिया (Mob:9461326090), पूर्व व्याख्याता ग्वालिसर, राजगढ़ ने उपलब्ध करवाई है।

References

  1. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.167
  2. उद्देश्य:जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, स्मारिका जून 2013,p.117

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