Anantnag

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Anantnag district map
Jhelum River at Khanabal-Anantnag
Anantnag in Jammu and Kashmir

Anantnag (अनन्तनाग) is a city and district in Jammu and Kashmir.

Location

Srinagar is 53 km from Anantnag. The distances of some other towns from Anantnag are: Achabal 10 km, Kokarnag 23 km, Verinag 27 km and Pahalgam 39 km.

Variants

Origin of name

City gets name from Anantanaga, first among all the Naga kings.

Tahsils

The district consists of following tehsils,

1. Anantnag, 2. Bijbehara, 3. Dooru, 4. Kokernag, 5. Pahalgam, 6. Shangus

The old city of Anantnag comprises Nagbal, Maliknag, Kadipora, Cheeni Chowk, Doni Pawa, Pehroo, Sarnal Bala, Janglatmandi, Old Port Khanabal, Downtown Martand, & Dangarpora areas and few villages like Haji Danter, Mir Danter etc

Rivers

Rivers: Near Anantnag exists the confluence of three streams, Arapath, Brengi and Sandran, and the resulting river is named Veth or Jhelum. There are several larger streams such as Brengi. Another stream Lidar joins the river a little downstream and from that point the river becomes navigable. In olden times river Jhelum was the main source of transportation between Anantnag and other towns downstream.

Etymology

According to ancient mythological stories, the name Anant (infinite or never-ending) Nag (snake) is given to the place because Lord Shiva during his journey to Amarnath cave left all his valuables on the way and Anantnag was the place where he left countless number of serpents residing on his body. The city finds its place in the Bhagavadgita that says "I am Ananta Naga" It is also well mentioned in ancient Naga and Pichash chronicles of ancient aboriginals of the valley. It was also known as Kashyapteshwara in ancient times linking it to the mythology of Rishi Kashyapa. Regarding this second name, no mention is to be found in the old chronicles of Kashmir.


Nag also means water spring in the Kashmiri language. Thus Anantnag is believed to mean numerous springs, because there are many springs, including Nag Bal, Salak Nag and Malik Nag in the town. According to a well known archaeologist, Sir A. Stein, the name of the city comes from the great spring Ananta Nag issuing at the centre of the city.


This is also corroborated by almost all local historians including Kalhana according to whom the city has taken the name of this great spring of Shesha or Ananta Nag, land of countless springs. The spring is mentioned in the Neelmat Purana as a sacred place for the Hindus and Koshur Encyclopedia testifies it.

History

Anantnag is an ancient city that came into existence as a market town around 5000 BCE making it one of the oldest urban human settlements in the world.

Before the advent of Muslim rule in 1320 CE, Kashmir was divided into three divisions, viz., Maraz in the south, Yamraj in the centre and Kamraj in the north of the Valley. Old chronicles reveal that the division was the culmination of the rift Marhan and Kaman, the two brothers, over the crown of their father. The part of the valley which lies between Pir Panjal and Srinagar, and called the Anantnag, was given to Marhan and named after him as Maraj. While Srinagar is no longer known as Yamraj, the area to its north and south are still called Kamraz and Maraz respectively. Lawrence in his book "The Valley of Kashmir" states that these divisions were later on divided into thirty four sub-divisions which after 1871 were again reduced to five Zilas or districts. According to old map of British India (1836), Anantnag was called Islamabad by some.

Villages in Anantnag tahsil

Towns 1 Anantnag, 2 Achhabal, 3 Mattan, 4 Seer Hamdan,

Villages

1 Akura, 2 Anz Walla, 3 Areh Bugh, 4 Ari Gohal, 5 Arsoo, 6 Bat Pora, 7 Bomthan, 8 Bona Gund, 9 Bona Nambal, 10 Brar Ani Gandan, 11 Brenti Bat Pora, 12 Chera Hama, 13 Chichiri Pora , 14 Chithi Manzhama, 15 Devi Pora, 16 Fateh Pora, 17 Fohar, 18 Forah, 19 Ganai Gund, 20 Ganoora , 21 Gopal Pora Kalan, 22 Gopal Pora Khurad, 23 Hardu Akar, 24 Hardu Shichan, 25 Hardu Toru, 26 Hugam, 27 Hutmarah, 28 Imoh, 29 Isoo, 30 Kadeh Pora, 31 Kamar , 32 Kangan Hal, 33 Kanji Gund, 34 Karewa Chithi Singh Pora, 35 Karewa Kangan Hal, 36 Kawari Gam , 37 Kharman Ganish, 38 Kherah Bugh, 39 Krewa Rampur, 40 Lali Pora Mala Pora, 41 Lallan, 42 Laram Jangi Pora, 43 Magri Pora, 44 Manigam, 45 Mati Pora, 46 Momin Hall, 47 Moni Ward, 48 Mulsoo, 49 Mush Khasa Rasool Khandi, 50 Nanilang, 51 Naw Wathu, 52 Nipor, 53 Now Bugh, 54 Now Pora Khover Para, 55 Nun Wani , 56 Pai Bugh, 57 Pal Pora, 58 Panz Mulla, 59 Peth Bugh, 60 Peth Dial Gam , 61 Push Kriri, 62 Rakhi Tail Wani, 63 Ram Pora , 64 Ranbir Pora, 65 Rohu , 66 Salia Ponchal Pora, 67 Sar Suna Anantnag , 68 Shalwan Pora , 69 Shamsi Pora, 70 Sifan, 71 Sofi Gund Bago Gund, 72 Srundoo, 73 Tail Wani, 74 Tang Marg, 75 Thaji Wara, 76 Turka Thachloo, 77 Ugjan, 78 Vail Nag Bal, 79 Wani Hama , 80 Watari Gam , 81 Woran Hall , 82 Zodar,

Source - https://www.census2011.co.in/data/subdistrict/55-anantnag-anantnag-jammu-and-kashmir.html

अनंतनाग

मार्तंड मंदिर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...[p.19]: अनंतनाग कश्मीर की प्राचीन राजधानी थी. नगर से 3 मील पूर्व की ओर मार्तंड मंदिर स्थित है. यह मंदिर 725-760 ई. में बना था. इसका प्रांगण 220 फीट x 142 फुट है. इसका चतुर्दिक लगभग 80 प्रकोष्ठों के अवशेष वर्तमान हैं. पूर्वी किनारे पर मुख्य प्रवेश द्वार का मंडप है. मंदिर 60 फुट लंबा और 38 फुट चौड़ा था. इसके द्वारों पर त्रिपार्श्वित चाप (महराब) थे जो इस मंदिर की वास्तुकला की विशेषता हैं. यह वैचित्र्य संभवत: बौद्ध चैत्यों की कला का अनुकरण के कारण हैं किंतु मार्तंड मंदिर में यह विशिष्ट मेहराब संरचना का भाग न होकर केवल अलंकरण मात्र है. द्वारमंडप तथा मंदिर के स्तंभों की वास्तु-शैली रोम की डोरिक शैली से कुछ अंशों में मिलती-जुलती है. स्तंभों के शीर्ष तथा आधार अनेक भागों को जोड़ कर बनाए गए हैं. इन पर [p.20]: अधिकतर सोलह नालियाँ उत्कीर्ण हैं. दरवाजों के ऊपर त्रिकोण संरचनाएं हैं और उनके बाहर निकले हुए भागों पर दुहेरी ढलवा छतों की बनावट प्रदर्शित की गई है जो कश्मीर की आधुनिक लकड़ी की छतों के अनुरूप ही जान पड़ती है. नेपाल के अनेक मंदिरों की भी लगभग इसी संरचना का अतिविकसित रूप हैं. मार्तंड मंदिर पर बहुत समय से छत नहीं है किंतु ऐसा समझा जाता है कि प्रारंभ से इस पर ढलवा लकड़ी की छत अवश्य रही होगी. मंदिर के प्रांगण के छोटे प्रकोष्ठ पत्थर के चोकों से पटे हुए थे. मार्तंड-मंदिर सूर्य की उपासना का मंदिर था. उत्तर पश्चिम भारत में सूर्यदेव की उपासना प्राय: 11वीं शती तक प्रचलित थी. मुसलमानी शासन के समय यहां के शासकों ने अनंतनाग के मंदिर को नष्ट करके नगर को इस्लामाबाद नाम दिया था किंतु अभी तक प्राचीन नाम ही प्रचलित है.

अनंतनाग परिचय

अनंतनाग जम्मू-कश्मीर राज्य में श्रीनगर से 50 किमी दक्षिण-पूर्व में झेलम नदी के किनारे स्थित है। अनन्तनाग जम्मू कश्मीर प्रान्त का एक शहर है। यह कश्मीर घाटी का एक बड़ा व्यापारिक केंद्र है। अमरनाथ मंदिर अनंतनाग में स्थित है। अनंतनाग कश्मीर की प्राचीन राजधानी था। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह जगह काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। सरोवरों के लिए प्रसिद्ध अनंतनाग जम्मू-कश्मीर का एक महत्त्वपूर्ण नगर है। सरोवर के अतिरिक्त यह जगह मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों आदि के लिए भी जानी जाती है।

मुस्लिम शासन के समय यहाँ के शासकों ने अनंतनाग के मंदिर को नष्ट करके नगर को 'इस्लामाबाद' नाम दिया था, किंतु अभी तक प्राचीन नाम ही प्रचलित है। अनंतनाग सूफी, संत और ऋषि-मुनियों की भूमि है। यहाँ से 3 मील पूर्व की ओर प्रसिद्ध मार्तण्ड सूर्य मंदिर है। उत्तर-पश्चिमी भारत में सूर्य देव की उपासना प्रायः 11वीं शतीं ई. तक प्रचलित थी। [2]

अनंतनाग नामकरण: अनंतनाग का नाम एक महत्वपूर्ण नागवंशी राजा अनंतनाग के नाम पर पड़ा है। एक पौराणिक किंवदंती के अनुसार कहा जाता है कि अमरनाथ की यात्रा के दौरान भगवान शिव ने असंख्य नागों को अपने पीछे छोड़ दिया था और इसी कारण इस स्थान का नाम अनंतनाग के नाम से जाना जाने लगा। दिलचस्प बात यह है कि कहीं न कहीं 5,000 ईसा पूर्व अनंतनाग भी बाजार हुआ करता था।

अनंतनाग का इतिहास

Nagaraja

श्रीनगर से 50 किमी दक्षिण-पूर्व में, झेलम नदी के किनारे पर स्थित अनंतनाग जिस प्रकार से प्राचीनकाल में कश्मीर की राजधानी के तौर पर प्रसिद्ध हुआ करता था, उसी तरह, आज भी यह अपने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों और विश्व प्रसिद्ध मार्तण्ड सूर्य मंदिर के अवशेषों सही अन्य ऐतिहासिक संरचनाओं के लिए राज्य का एक प्रमुख और पवित्र नगर है।

कश्मीर का नामकरण: पौराणिक युग में जहां कश्मीर को नागों का देश कहा गया है वहीं कश्मीर में स्थित अनंतनाग को नागवंशियों की राजधानी बताया गया है। जबकि इस विषय पर श्रीनरसिंह पुराण में विस्तार से वर्णन मिलता है कि आखिर कैसे और क्यों कश्मीर अस्तित्व में आया और इसको इसका यह नाम कश्मीर कैसे मिला।

कश्मीर/काश्मीर (AS, p.152) का प्राचीन नाम कश्यपमेरु या कश्यपमीर (कश्यप का झील) था। किंवदंती है कि महर्षि कश्यप श्रीनगर से तीन मील दूर हरि-पर्वत पर रहते थे। जहाँ आजकल कश्मीर की घाटी है, वहाँ अति प्राचीन प्रागैतिहासिक काल में एक बहुत बड़ी झील थी जिसके पानी को निकाल कर महर्षि कश्यप ने इस स्थान को मनुष्यों के बसने योग्य बनाया था।

श्रीनरसिंह पुराण के अनुसार मरीचि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। उन्हीं मरीचि ऋषि तथा उनकी पत्नी सम्भूति ने एक बालक को जन्म दिया, जिसको कश्यप नाम दिया गया। कश्यप नामक यही बालक बड़ा होकर ना सिर्फ महर्षि कश्यप बना बल्कि उसकी पहचान सदैव के लिए सप्तऋषियों में भी होने लगी। महर्षि कश्यप इसीलिए युगों-युगों से जाने जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपने श्रेष्ठ गुणों, तप बल एवं प्रताप के बल पर देवों के समान ही इस सृष्टि के रहस्यों को समझ लिया था। महर्षि कश्यप द्वारा इस सृष्टि के लिए दिए गए अपने महायोगदानों से संबंधित सनातन साहित्य के वेद, पुराण, स्मृतियां, उपनिषद और ऐसे अन्य अनेकों धार्मिक साहित्य भरे पड़े हैं, जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि उन्हें ‘सृष्टि का सृजक’ क्यों माना जाता है।

महर्षि कश्यप एक अत्यंत तेजवान ऋषि थे, इसीलिए ऋषि-मुनियों में वे सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे। सुर हो या असुर दोनों ही के लिए वे मूल पुरूष माने जाते थे। इसी कारण देवताओं ने उन्हें ‘महर्षि’ जैसी श्रेष्ठतम उपाधि दी थी।

देश-विदेश के अनेकों इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं, पौराणिक तथा वैदिक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि कस्पियन सागर एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप के नाम पर ही हुआ था। और उस समय महर्षि कश्यप ने ही सर्वप्रथम कश्मीर को बसाया और उस पर शासन किया था।

दक्ष प्रजापति ने अपनी 13 पुत्रियों की शादी कश्यप से की। उन्हीं पत्नियों से देवों और मानस पुत्रों का जन्म हुआ, और उसी के बाद से इस सृष्टि का सृजन आरंभ हुआ। उसी के परिणामस्वरूप महर्षि कश्यप ‘सृष्टि के सृजक’ या सृजनकर्ता’ कहलाए। महर्षि कश्यप की इन सभी पत्नियों ने अपने-अपने गुण, स्वभाव, आचरण के अनुसार संतानों को जन्म दिया, जिसके बाद से ही इस सृष्टि का आरंभ हुआ। जैसे कि उनमें से अदिति नामक पत्नी के गर्भ से 12 आदित्य पैदा हुए थे। उनसे सूर्यवंश प्रारंभ हुआ।

कश्यप की पत्नी दिति से हिरण्यकश्यप और हिरण्‍याक्ष पुत्र प्राप्त हुये और उनके वंशज दैत्य कहलाए।

कश्यप की पत्नी विनत से पुत्र गरुड़ और अरुण प्राप्त हुये।

कश्यप की कद्रू नामक पत्नी नागवंशी थी और उनके गर्भ से नागवशं की उत्पत्ति हुई। कद्रू के पुत्रों की संख्या 8 बताई जाती है। उन 8 नागों के नाम थे अनंत नाग यानी शेष नाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। आगे चलकर इन्हीं 8 नागों से नागवंश की स्थापना हुई थी।

महाभारत में कद्रू से उत्पन्न नागों के 5 प्रमुख कुल बताये हैं जिनमें शेष अथवा अनंत, वासुकि, तक्षक, कूर्म, और कुलि हैं। (शेषॊ ऽनन्तॊ वासुकिश च तक्षकश च भुजंगमः, कूर्मश च कुलिकश चैव काद्रवेया महाबलाः (महाभारत:I.59.40)

वहीं कुछ पुराणों ने नागों के 5 प्रमुख कुल बताये हैं जिनमें अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला का नाम सामने आता है। इसके अलावा अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन भी मिलता है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म जैसे कुछ प्रसिद्ध नाम हैं।

आज भी मुख्य रूप से कश्मीर में और देश के अन्य भागों में उन सभी नागों के नाम पर स्थानों के नाम मौजूद हैं- जिनमें अनंतनाग, कमरूनाग, कोकरनाग, वेरीनाग, नारानाग, कौसरनाग आदि हैं।


अनंत नाग यानी शेष नाग की शय्या पर भगवान विष्णु

कश्मीर का अनंतनाग, नागवंशियों की राजधानी हुआ करती थी। पुराणों के अनुसार यह वही अनंत नाग यानी शेष नाग हैं जिनकी शय्या पर भगवान विष्णु आसीन होते हैं।

शेषनाग झील

शेषनाग झील - पहलगाम से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शेषनाग झील नागवंशी राजा शेषनाग के नामपर है। यह झील अमरनाथ यात्रा के रस्ते में पड़ती है। शेषनाग झील जम्मू और कश्मीर में अमरनाथ गुफ़ा के पास स्थित एक धार्मिक झील है। यह पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की एक ख़ूबसूरत झील है। अमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ़ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इस स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। यह झील क़रीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। यह झील चन्दनवाडी से लगभग 16 किमी और पहलगाम से लगभग 23 किमी की दूर पर है।

इसके अलावा दूसरा नाम है कमरुनाग, जो हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से करीब 60 किलोमीटर दूर है। यहां कमरुनाग का एक प्रसिद्ध मंदिर भी है और एक झील भी।

नागवंश में जो तीसरा नाम आता है वह है कोकरनाग का। कोकरनाग वर्तमान में जम्मू-कश्मीर राज्य के अनंतनाग में स्थित एक पर्यटन स्थल के रुप में पहचाना जाता है। कोकरनाग का दूसरा नाम ‘बिन्दू जलांगम’ भी है और यह नाम रिकाॅर्ड में भी दर्ज है। यह स्थान अनंतनाग जिला मुख्यालय से लगभग 17 किमी दूर है।

नागवंश में जो चौथा नाम आता है वह है वेरीनाग का। वर्तमान में वेरीनाग कश्मीर घाटी के मुगल उद्यानों का सबसे पुराना और प्रसिद्ध स्थान है। वेरीनाग अनंतनाग से लगभग 26 कि.मी. की दूरी पर है।

नागवंश में जो पाँचवाँ नाम आता है वह है नारानाग। नारानाग जम्मू-कश्मीर राज्य के गान्दरबल जिले का एक पर्वतीय पर्यटक स्थल है। यहां लगभग 200 मीटर की दूरी पर 8वीं सदी में निर्मित मंदिरों का एक समूह है। इतिहासकारों के अनुसार शिव को समर्पित इन मंदिरों को नागवंशी सम्राट ललितादित्य ने ही बनवाया था।

नागवंश में जो छटवाँ नाम आता है वह है कौसरनागकौसरनाग नाम से जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले के पीर पंजाल पर्वतश्रेणी में ऊंचाई पर स्थित एक झील है। यह झील लगभग 3 किमी लम्बी है। इसकी अधिकतम चैड़ाई लगभग 1 किमी है।

भारत का प्राचीन इतिहास भी यही बताता है कि आज से लगभग 3,000 ईसा पूर्व यानी आर्य काल में भी भारत में ऐसे अनेकों नागवंशियों के शासक और कबीले थे जो सर्प की पूजा करते थे। इसके अलावा इस बात के भी स्पष्ट प्रमाण मौजूद है कि आज भी भारत के कई नगरों के नाम उन प्रमुख नाग वंशों के नाम पर ही पाये जाते हैं। इसमें ललितादित्य नामक नागवंशी क्षत्रिय सम्राट का स्पष्ट और विशेष उदाहरण भी दिया जा सकता है। कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि सम्राट ललितादित्य का शासनकाल 724 से 761 ई. तक कश्मीर के कर्कोट में रहा। कर्कोट भी एक नागवंशी क्षत्रिय का ही नाम था, जिसके नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा।

ललितादित्य नामक नागवंशी क्षत्रिय सम्राट के शाशनकाल में अनंतनाग में बने मंदिर के अवशेष।

ललितादित्य के शासन काल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया और बंगाल तक पहुंच गया था। उन्होंने अरब के मुसलमान आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा तिब्बती सेनाओं को भी पीछे धकेला। उनका राज्‍य पूर्व में बंगाल तक और दक्षिण में कावेरी तक पहुंच चुका था। जबकि पश्चिम में तुर्किस्‍तान और उत्तर-पूर्व में तिब्‍बत तक उसने अपना शासन स्थापित किया था।

प्रसिद्ध इतिहासकार आर. सी. मजुमदार के अनुसार ललितादित्य ने दक्षिण में कुछ महत्वपूर्ण युद्ध जितने के बाद अपना ध्यान उत्तर की तरफ लगाया जिससे उनका साम्राज्य काराकोरम पर्वत शृंखला के सूदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा था। इस दौरान नागवंशी क्षत्रिय सम्राट ललितादित्य ने अनेकों भव्‍य मंदिरों और भवनों का निर्माण भी करवाया था, जिसमें अनंतनाग के मार्तण्ड सूर्य मंदिर के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।

साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति नागवंशी क्षत्रिय सम्राट ललितादित्य का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। 37 वर्ष का उनका शासनकाल, उनके सफल सैनिक अभियानों, अद्भुत कला-कौशल, प्रेम और विश्व विजेता बनने की चाह से पहचाना जाता है।

नाग वंश और अनंतनाग को लेकर हमारे पौराणिक साक्ष्यों के अलावा ऐसे अन्य कई प्रमाण भी मौजूद हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि भारतवर्ष में नागवंश का शासन हुआ करता था। उन साक्ष्यों और प्रमाणों के तौर पर हमें यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि प्राचीन काल से ही भारत में ना सिर्फ नागों की पूजा की परंपरा रही है बल्कि नाग वंश का एक कुशल शासन भी किया है।

लेकिन, देश के कई हिस्सों से भाषा और संस्कृति में आये बदलावों के चलते, ऐसे कई स्थानों के नाम और अस्तित्व धीरे-धीरे इतिहास में खोते गये। लेकिन, यदि गहनता से अनुसंधान किया जाये तो ऐसे सैकड़ों स्थानों के नाम व उनकी पहचान आज भी जस का तस देखने और पढ़ने को मिल जाता है।

संदर्भअनंतनाग का इतिहास लेखक अजय सिंह चौहान

Jat Gotras

Jat History

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Unit - 9 Rashtriya Rifles/4 Mechanized Infantry

Notable persons

External Links

References


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