Bagara Brahman

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Bagara Brahman is a sect of Brahmans found in Rajasthan and Haryana. They were inhabitants of place called Bagaur and so were known as Bagara. Bagaur (बागौर) was village in Hanumangarh district in Rajasthan. It was capital of Bagaur Jats. They have many Gotras common with Jats. Their life and culture are also very similar with Jats. It is a matter of further research.

बाग़डा ब्राह्मणों की उत्पत्ति

बाग़डा ब्राह्मणों की उत्पत्ति उन 52 ॠषियों से मानी जाती है जिन्हे दिल्ली के राजा अनंङगपाल ने काशीपुरी के गंगातट से बुलाया था। यहां वास करने वाले ब्राह्मण, ब्रह्म पुत्र ॠषि भारद्वाज के वंशज गौड ब्राह्मण ही थे। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इनके गौत्र भी गौड ब्राह्मणों के ही हैं। जिन्ही से बागडा ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई। इसिलिये कहा जा सकता है कि बागडा ब्राह्मण ही है जो बाग़ौर नामक स्थान पर निवास करने के कारण 'बागौर ब्राह्मण' कहलाये। कालांतर में यही बागौर शब्द 'बाग़ौड' फिर 'बागडा' के रूप में प्रचलित हो गया।

इतिहास

भारत की राजधानी दिल्ली में विक्रम सम्वत् 1169 को तँवर वँश के अन्तिम राजा रहे अनङगपाल का राजतिलक हुआ था। कुछ समय पश्चात 'दिल्ली' राजा अनङगपाल के सपने में आयी और उसे छोडकर जाने की बात कही। राजा ने अपने सपने की बात अपने कुल पुरोहित जगदीश ॠषि को बतायी और अपना राज्य स्थिर रहे इसके लिये उपाय पूछा। इस पर जगदीश ॠषि ने काशीपुरी के बागव ॠषि और उनके 51 शिष्यों को बुलाने व अपने राज्य में रखने की बात कही। राजा ने अपने खास दीवान को बागव ॠषि को उनके कुटुम्ब व 51 शिष्यों सहित दिल्ली पधारने एवं राजा अनङगपाल के राज्य को स्थिर रखने का उपाय पूछने के लिये कहा। राजा का खास दीवान काशीपुरी बागव ॠषि के पास पहुँचा एवं उन्हे सारी बात बताई एवं दिल्ली चलकर निवास करने की प्रार्थना की।

राजा के खास दीवान की प्रार्थना पर बागव ॠषि ने कहा कि 21 दिन अखण्ड यज्ञ होगा जिसमे 21 अंगुल की सर्वधातु की कील पृथ्वी में गडी रहेगी तब तक राजा का राज्य अचल रहेगा।

राजा अनङगपाल के निमंत्रण एवं प्रार्थना पर बागव ॠषि अपने कुटुम्ब एवं 51 शिष्यों सहित मार्गशीर्ष (मागसोर) शुक्ला दोज, गुरूवार विक्रम सम्वत् 1199 को रवाना हुए व दो महिने सात दिन बाद दिल्ली पहुँचे। दिल्ली नगर की सीमा के बाहर राजा अनङगपाल व जगदीश ॠषि ने उनका स्वागत किया।

दिल्ली पहुँचकर बागव ॠषि व उनके 51 शिष्यों नें वैशाख शुक्ला त्रयोदशी, गुरूवार, विक्रम सम्वत् 1200 को यज्ञ प्रारम्भ किया एवं ज्येष्ठ शुक्ला तीन, बुधवार को पूर्ण आहुति दी एवं 21 अंगुल की सर्वधातु की कील यज्ञ स्थल पर गाड़ी।

बागव ॠषि नें राजा को कहा कि हे राजन यह कील बासिक नाग के शीश में गाड़ी गयी है। इसे कभी भी मत उखाड़ना। जब तक यह कील रहेगी तेरा राज्य भी अखण्ड रहेगा। तब राजा अनङगपाल ने बागव ॠषि व उनके शिष्यों को अपने वंश का द्वितीय गुरू बनाया.

बागव ॠषि ने राजा से कहा कि हे राजन ये कील बासिक नाग के शीश में गाडी गयी है इसे कभी भी मत उखडना। जब तक यह कील रहेगी तेरा राज्य अखण्ड रहेगा। तब राजा अनंङगपाल ने बागव ॠषि व उनके शिष्यों को अपने वंश का द्वितिय गुरू बनाया व 52 गांव गुरू दक्षिणा मे दिये। आषाढ कृष्णा, नवमी, मंगलवार विक्रम सम्बत् 1200 में बागव ॠषि व उनके 51 शिष्य 'बागौर' नामक क्षेत्र में पहुँचे एवं इसे ही अपना निवास स्थान बनाया। इसके पश्चात इन्होने विचार किया कि ब्राह्मण के षट्कर्मों में से दान लेना और देना ये मुख्य कार्य हैं तो अपने से दान लेने वाले कुल पुरोहित तो काशी में ही रह गये। उस समय बागौर क्षेत्र में चोखचंद नाम के ब्रह्मभाट रहते थे। इनका शासन कटवालिया उपशासनिक कटारिया गौत्र भारद्वाज था जिन्हे अपना कुल पुरोहित बनाया व लाख पसाव का दान दिया।

उधर बासिक नाग के पुत्र तक्षक नाग ने बासिक नाग के शीश में गाड़ी गयी कील उखाडने का निश्चय किया। तक्षक नाग ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा अनंङगपाल के पास दिल्ली पहुँचा। राजा ने ब्राह्मण रूपी तक्षक नाग को प्रणाम किया कपट रूप धारण किये तक्षक नाग ने राजा को आशिर्वाद दिया और अपनी सफ़ेद चादर तानकर उसपर विराजा गया। राजा ने सोचा ये कोई पहुँचे हुये ॠषि हैं। तब ब्राह्मण भेष धरे तक्षक नाग ने पृथ्वी पर कील गाडे जाने का कारण पूछा। राजा ने बताया कि यहाँ 21 दिन का अखण्ड यज्ञ किया गया था इसिलिये यह कील बासिक नाग के शीश में गाडी गयी है।

जब तक यह कील रहेगी तब तक हमारा राज्य रहेगा। इस पर ब्राह्मण रूपी तक्षक नाग ने कहा राजा तुम भी अच्छे पागल हो यह 21 अंगुल की कील बासिक नाग के शीश में गाडी, जब कि कुँआ, बावडी तो इससे अधिक गहरे खोदे जाते हैं उसमे तो बासिक नाग नहीं निकलता। अगर यह बात सच है तो इस कील को उखाडा जाये, जो खून में भरी हुई निकले तो सच अन्यथा झूंठी तो है ही।

जब ब्राह्मण तक्षक नाग ने राजा को यह प्रमाण दिया तो राजा को उस पर और अधिक विश्वास हो गया। 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' राजा को ब्राह्मण रूपी तक्षक नाग की बात सही लगी एवं कील को उखडवा दिया तभी 3 बूंद खून की पडी और उसी समय वह ब्राह्मण रूपी तक्षक नाग गायब हो गया।

तब राजा ने कील वापस गडवा दी एवं भारी पश्चाताप किया। उसने अपने कुल गुरू बागव ॠषि को बुलवाया और सारा वृतांत कह सुनाया। तब ॠषि ने कहा अब तुम्हारा राज्य नहीं रह सकता। 'कील जो ढीली हुई, तँवर हुआ मतिहीन' सत्य है जो गुरू के वचनों को नहीं मानता है उसकी यही दशा होती है। राजा बागव ॠषी के चरणों में गिर पडे तब ॠषि नें कहा हे राजन! अब पश्चाताप करने से क्या जो होनी है सो होकर रहती है। इस पर राजा ने बागव ॠषि से आगे क्या किया जाये यह बात पूछी। ॠषि ने कहा राजन् आपने हमको 52 गाँव गुरू दक्षिणा में दिये हैं आप उन गांवों में जाकर राज्य करो हम काश्त (खेती) करके खायेंगे। जिस दिन आपके वंश का राज्य होगा और हमारे वंश का गुरु होगा तब हम यह दक्षिणा पुन: प्राप्त करेंगे।

तब राजा ने कहा महाराज आपके वंश की पहचान क्या होगी, इस पर राजा के कुल गुरू बागव ॠषि ने कहा कि आज से हमारे वंश का नाम 'बागडा ब्राह्मण' होगा और हम न किसी के गुरू बनेंगे और ना ही किसी को शिष्य बनायेंगे। बागौर गाँव में बाग़ौड ब्राह्मणों ने 11 महिने 5 दिन राज्य किया एवं मिति ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी विक्रम संवत् 1201 को गाँव छोडकर चल दिये। जो आज पूरे भारत में फ़ैलकर अपने वंश एवं समाज की वृद्धि कर समाज एवं देश सेवा में तन, मन, धन से संलग्न है।


उपरोक्त इतिहास शोध का विषय है कि अनंगपाल तोमर की मृत्यु 1081 ईस्वी में हो चुकी थी। जबकि बागड़ा इतिहास में वर्णित 1169 विक्रमी यानी 1112 ईसवी में उनका राजतिलक होना असम्भव है। दूसरी बात अनंगपाल पृथ्वीराज के नाना नही थे.

प्रमाण निम्न हैं -


  • 1 अनंगपाल द्वितीय की मृत्यु 1081 में हो गयी थी
  • 2 जब 1081 ईस्वी में अनंगपाल की मृत्यु हुई उस समय से ठीक 1 साल पहले चन्द्रदेव ने कन्नौज में गहड़वाल वंश स्थापना की थी। उसने 1080 से 1100 ई. तक शासन किया उसके बाद मदनचंद ने 1100 से 1104 तक शासन किया उसके बाद क्रमश गोविन्द चन्द्र (1114 से 1154 ई.), विजय चन्द्र (1155 से 1170 ई.), जयचन्द्र (1170 से 1194 ई.)।

उपरोक्त वंशावली से यह प्रमाणित होता है की जब अनंगपाल की मृत्यु हुई उस समय मे जयचंद के पिता का जन्म तक नहीं हुआ तो उनकी तोमर राजवंश में विवाह की बाते निराधार है चौहान अजमेर वंशावली सिंघराज(944-964) -विग्रहराज द्वितीय (970 -1105) -अजयराज1105-1133 ई. -अणोंराज1133-1153 ई -विग्रहराज/­बिसल देव 1153-1164 ई -जगदेव- पृथ्वीराज द्वितीय-सोमेश्वर1169-1176 -पृथ्वीराज तृतीया (1176-1192 ई)

उपरोक्त दोनों वंशावलियों से यह प्रमाणित होता है की पृथ्वीराज के पिता और जयचंद के पिता का जन्म अनंगपाल तोमर की मृत्यु के बहुत बाद में हुआ तो ऐसे में विवाह होना असंभव है साथ ही

इतिहासकारो रतनलाल वर्मा ,पाक इतिहासकार अली हसन चौहान ,फरिस्ता , तजकाई नसरी , और जैन कवि नयनचन्द सूरी ,कायम रासो (कायमसिंह चौहान जो पृथ्वीराज का वंशज था बाद में वो मुस्लिम बन गया उसके वंशज कायमखानी मुस्लिम है ) के अनुसार पृथ्वीराज चौहान कि माँ और सोमेश्वर कि पत्नी कपूरीदेवी त्रिपुरी (चेदि राजा ) के हैहय (कलचुरी ) राजा तेजलराज (अजलराज ) कि पुत्री थी न कि दिल्ली के राजा अनगपाल तोमर कि बेटी थी अत: अनंगपाल तोमर का चौहानों से कोई भी वैवाहिक सम्बन्ध नहीं थे ना ही वो पृथ्वीराज के नाना थे इतिहासकार बलदेव मिश्र भी इसी बात की पुष्टि करते है उनके अनुसार ना तो पृथ्वीराज अनंगपाल धेवता था अनंगपाल तोमर उसका नाना नहीं था इतिहासकार हेमचंद रे के अनुसार चौहान पृथ्वीराज दिल्ली के राजा अनंगपाल का धेवता नहीं था।

बागडा ब्राह्मणों के कुछ गाँव

बर्तमान समय में बागडा ब्राह्मणों के कुछ गाँव राजस्थान के भरतपुर जिले में अवस्थित हैं . जिनमें 1. रंधीरगढ़ , सैन्धली , बारोली , सिरस, गांगरोली , गुर्धा नदी , बछेना , नावली , खट्नावाली, बिड्यारी , दहगांव ,नगला छीतरिया , पिंगोरा , अंधियारी , हाड़ोली , मुन्ढेरा , पिचूना , भैंसा , बहरावली , मदरियापुरा , बंशी, दाउदपुर , वोकौली , घाटा , दाहिना गाँव I इन गांवों के ब्राहमण अपने आप में सर्व संपन्न है ।

बागड़ा ब्राह्मण और जाटों में समान गोत्र

बागड़ा ब्राह्मण समाज के गोत्र जाटों से काफी मिलते हैं। जाटों में भी भिवानी ,हिसार फतेहाबाद, सिरसा जिले के जाट बांगड़ी/ बागड़ा जाट कहलाते हैं। बागड़ा ब्राह्मण भी खेतिहर समुदाय है। ब्राह्मण समाज के गोत्र की सूची इस प्रकार है:

References