Barbarika

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Barbarika (बर्बरीक) was an ancient sea port situated near Karachi in Pakistan. 2. Barbarika of Mahabharata was the son of Ghatotkacha, son of Bhima. Barbarika was considered to be the greatest archer in Mahabharata.

Variants

Jat clans

Mention by Panini

V. S. Agrawala[1] writes that Gaṇa-pāṭha of Panini refers to janapada Barbara (बर्बर) (IV.3.93), on the sea cost near the mouth of Indus where the port of Barbarika was situated. (p.62)

History

Barbarika of Mahabharata

Barbarika was the son of Ghatotkacha and the grandson of Hidimba and Bhima. From the childhood itself, Barbarika was a very courageous warrior. His mother Mata Ahilyavati (daughter of Vasuki Naga) taught him the art of warfare.[2]


In the Skanda Purana, Barbarika was the son of Ghatotkacha and Maurvi, daughter of Daitya Mura, a Yadava king,[3] though other references state he is a warrior from the south. Barbareeka was originally a Yaksha. He was bound by his principle of always fighting on the losing side, which led him to stand witness to the battle of Mahabharata without taking part in it. In Nepali culture, Kirata King Yalamber of Nepal, is portrayed as Barbarika while Native of Kathmandu Valley portray him as Akash Bhairava.[4]


In Hinduism, Khatushyam is considered as the manifestation of Barbarika.[5]

बर्बरीक (बंदरगाह) कराची

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है .....बर्बरीक (AS, p.612) नामक प्राचीन बंदरगाह कराची, पाकिस्तान के निकट स्थित था। इस बंदरगाह से गुप्त और गुप्त पूर्व काल में पश्चिम के देशों के साथ सक्रिय व्यापार होता था। इस स्थान के नाम का सम्बन्ध सम्भवत: बर्बर लोगों से जान पड़ता है।

बर्बरीक (महाभारत)

जब भी महाभारत की बात होती है तो पांडव और कौरवों मे अनेक योद्धाओं के पराक्रम और शौर्य की गाथाओं की चर्चा होती है जैसे भीम, कर्ण, अर्जुन और दुर्योधन की, लेकिन शायद आप नहीं जानते कि इन सभी महा बलशालियों के अलावा एक और योद्धा था जो इन सभी से ज्यादा शक्तिशाली और साहसी था। इतना ही नहीं उसने पूरा महाभारत के युद्ध को अपने कटे हुए सिर से देखा था। इस योद्धा का नाम था बर्बरीक, जिसके पास एक ऐसा बाण था जिससे वह तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता थी।

बर्बरीक महान् पाण्डव भीम के पुत्र घटोत्कच और नाग कन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है।

दरअसल बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर शिव ने तीन अमोघ तीर दिए थे। बर्बरीक भी महाभारत के युद्ध में भाग लेना चाहता था,लेकिन उसकी मां ने एक शर्त रखी थी कि कौरव और पांडवों में से जो भी हार रहा होगा बर्बरीक उसकी तरफ से लड़ेगा।बर्बरीक ने अपनी माता से युद्ध की सारी कलाएं सीखी थी।

भगवान कृष्ण यह बात जान चुके थे कि बर्बरीक बहुत शक्तिशाली है और अपने सिर्फ एक बाण से महाभारत के युद्ध की कायापलट कर सकता हैं क्योंकि उस समय कौरवों की सेना पांडवों की सेना से हार रही थी।

कृष्ण ने ब्राह्राण का वेश धारण करके बर्बरीक से युद्ध में जाने से पहले उसका सिर मांगा तब बर्बरीक भगवान कृष्ण को पहचानते हुए अपना सिर काटने को तैयार हो गया। बर्बरीक अपना सिर काटने को तैयार तो गया लेकिन उसने एक शर्त भी रखी कि वह पूरा महाभारत का युद्ध अपने आंखो से देखना चाहता है और भगवान के विराट रूप के दर्शन भी करना है। कृष्ण ने बर्बरीक की शर्त मान ली और उसके कटे सिर को ऐसी पहाड़ी पर रख दिया जहां से वह महाभारत का पूरा युद्ध देख सकता था।

संदर्भ: www.amarujala.com

External links

See also

References