Genealogy Record Keepers

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Genealogical Record Keepers (वंशावली लेखक) maintain the genealogical records of Jat Kshatriyas. Badwa, Bhat and Jaga are also known as Rao. These people are mainly inhabitants of Rajasthan, Madhya Pradesh, Gujarat, Chhattisgarh states.

Variants of name

They are known by various names such as

  • Badwas (बड़वा) - बड़वा, जागा और भाट इन तीनों जातियों को 'राव जी' और 'बड़वा जी' भी कहते हैं और मुख्य रूप से राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में निवास करती हैं ये लोग जाटों के विभिन्न गोत्रों के वंशावली लेखन का कार्य लगभग एक हजार वर्ष से करते रहे हैं। वर्तमान पीढ़ी में वंशावली लेखन कार्य में रुचि कम हो रही है।
  • Bard (बार्ड़),
  • Bardai (बरदाई),
  • Bhats (भाट) (traditional Poet) - In India, the bards are generically known as Bhats. Jeffrey G. Snodgrass (professor of anthropology at the Colorado State University[1]) states that "'Bhat' is a generic term for 'bard', applied to a range of mythographers including those employed by village nobles."[2]
  • Bisaundhi (बिसौंधी),
  • Charan (चारण),
  • Dhadhi (ढाढ़ी)
  • Jagas (जागा) (awakener),
  • Jogi (जोगी)
  • Mirāsi (मिरासी)
  • Rao (राव)
  • Mythographer
  • Vanshawali Lekhak (वंशावली लेखक)

How it started

This system was started with the creation of New Agnikula Kshatriyas at Mount Abu. Though these Jat clans existed earlier but the newly created system of recording their ancestry started from the point of creation of Agnikula Kshatriyas. Later on they credited the origin of these Jat clans from the respective Agnikula Kshatriya which is wrong and distorted fact. Infact large number of Jat clans joined one or other Agnikula Kshatriya group as per conditions at that time. The clans who joined Agnikula Kshatriya during Mount Abu mahayagya called them selves as Rajputs and those remained out of it were Jats and Gujars.


The role of a Bard

Dr. K. Jamanadas[3] writes that ....The importance of bards in Rajput period can not be under estimated. The bard, the Bhat or Charan was an important feature of the court life of the Rajputs. He recited the heroic deeds of the ancestors of the Rajputs. He was an important and favoured person, He was the repository of the unwritten history of the clan. He was the undisputed authority on all genealogical matters. He was the registrar of the family's births, deaths and marriages. His verdict was final in setting disputes about the division of ancestral property or of caste and consaguinity in the case of wedlock. The person of the bard was sacrosanct. He acted as a herald in war, and as a pledge for the fulfilment of contracts. If those contracts were broken the bard would commit "Traga" or religious suicide, and thereby bring the most terrible of curses upon the head of the offender.

List of Genealogy Record Keepers

Here is the partial List of Record Keepers of some clans. You may add more.
  • Bijarnia: The Bahi of the bard (Raoji Bajrang Singh, Dalania, Phagi, Jaipur) of Bijarnia.
  • Burdak: Badwa - Bhawani Singh Rao of village Maheswas, tahsil Phulera, district Jaipur, Rajasthan, Mob:07742353459, 09785459386 पंडा - पंडित हंसराज हरीराम और सुरेन्द्रकुमार, मोबा: 09927715627, 09837132092. पता: अतिथि निवास, मनसादेवी फुटपाथ के सामने, रामप्रसाद गली, पंजाबी बेड़ा हरिद्वार. आपके द्वारा बुरड़क वंश के व्यक्तियों की मृत्यु का अभिलेख रखा जाता है और हरिद्वार में अस्थि विसर्जन किया जाकर अंतिम धार्मिक क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं.
  • Chahar: जागा सुरेन्द्र सिंह, ग्राम दादिया, तहसील - किशनगढ़, अजमेर,
  • Dhaka: Bhat, Balu Singh of village Lordi tahsil Dudu of Jaipur district in Rajasthan.
  • Dhaulya : Bhat, Bharu Ram Bhat, From Degana, Nagaur keeps records of Dhaulya clan. Meghraj Hansraj, Naresh Kumar Govind Raj Haridwar (Record from VS 1806) Earlier Record at Sauron Ghat.
  • Dudi : Badwa, Rao Chhotu Singh, From Village Dadia, Tahsil - Kishangarh, District - Ajmer, Rajasthan, Phone: 01463-230349, Mob: 09001329120
  • Hudda: गरीबाबाद जिला दिल्ली का रहने वाला भोलाराम भाट, सांघी गाँव के डालाण पाने के भाट पँ. ओमप्रकाश
  • Thalor: थालोड़ गोत्र के रेकोर्ड उनके बडवा गोपालराव (मोबा - 09828173479) गाँव श्रीनगर, तहसील राजगढ़, जिला अलवर द्वारा रखे जाते हैं.

अखिल भारतीय वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान का राष्ट्रीय सम्मेलन 27.10.2014

अखिल भारतीय वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान का राष्ट्रीय सम्मेलन अक्तूबर 27, 2014

संदर्भ - वंशावली से जुड़ा है हम सभी का अंश – मुख्यमंत्री राजस्थान, अक्तूबर 28, 2014 वंशावली से जुड़ा है हम सभी का अंश – मुख्यमंत्री राजस्थान

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने कहा है कि वंशावली से कहीं न कहीं हम सभी का अंश जुड़ा हुआ है। वंशावली लेखन की परम्परा से जुडऩे पर समाज में आपसी झगड़ों और अलगाव की स्थिति पैदा नहीं होगी। इस पुनीत कार्य से लोगों के बीच प्रेम को बढ़ावा देकर सुदृढ़ भारत की नींव रखी जा सकती है।

श्रीमती राजे यहां अक्तूबर 27, 2014 को बिड़ला ऑडिटोरियमजयपुर के सभागार में अखिल भारतीय वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान के राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित कर रही थी। उन्होंने वंशावली लेखन एवं इससे जुड़े लोगों के संरक्षण के क्षेत्र में कार्य के लिए संस्थान के प्रयासों की सराहना की।

मुख्यमंत्री ने कहा कि जब हम तीर्थ स्थलों पर मंदिरों के दर्शन के लिए जाते हैं तो वहां पर वंशावली लेखन से जुड़े लोग इस परम्परा के माध्यम से हमें अपने वंशजों एवं इतिहास की याद दिलाते हैं। उन्होंने कहा कि वंशावली भगवान का रूप है और हम सब यह समझें की इसमें अपना स्वरूप है।

श्रीमती राजे ने अपने उद्बोधन में स्वराज संकल्प के तहत प्रदेश में वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन अकादमी के गठन का उल्लेख करते हुए इस संबंध में शीघ्र कार्रवाई का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि वंशावली संरक्षण से जुड़े कार्याें में जिस प्रकार भी मदद की आवश्यकता होगी, उसे पूरा किया जायेगा।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए साधवी ऋतम्बरा ने कहा कि वंशावली लेखक बहुत बड़े समाज को जड़ों से जोड़ रहे हैं, उनके योगदान को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता। उन्होंने कहा कि मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए जिस प्रकार वृक्ष लगाना जरूरी है, उसी प्रकार अपने पुरखों से जुड़कर हम स्वयं के क्षरण को रोक सकते है।

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे, साधवी ऋतम्बरा व अन्य अतिथियों ने वंशावली दिग्दर्शिका का भी विमोचन किया।

इस अवसर पर अखिल भारतीय वंशावली संरक्षण संस्थान के संरक्षक श्री राम प्रसाद, श्री मुकन्द राव जी पणशिकर सहित देश भर से आए वंशावली लेखक, शिक्षाविद्, विद्वान और गणमान्य लोग मौजूद थे।

वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन अकादमी की स्थापना

राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2017 में महेंद्र सिंह राव की अध्यक्षता में वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन अकादमी गठित की गई है। इस अकादमी की स्थापना संस्कृत महाविद्यालय परिसर जयपुर में की गई है। अकादमी अध्यक्ष को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है।[4]

वंशावली का क्या महत्व है?: वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान के राष्ट्रीय सचिव रामप्रसाद ने कहा कि वंशावली से सबसे अधिक लाभ यह होता है कि लोगों को यह पता लग सकता है कि उसके पूर्वज किस जाति और किस गोत्र के थे और किस धर्म के अनुयायी थे और किस देवी देवता की पूजा करा करते थे।

कंप्यूटराइज्ड होगा एक हजार साल पुराना वंशावली लेखन

वंशावली-लेखन: वंशावली-लेखन देखना तो दूर सुनने में भी नहीं आती वहीं नई पीढ़ी के युवा तो इस कला से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। रानीवाड़ा में वंशावली लेखन में पीढ़ी दर पीढ़ी एक परिवार यह कार्य अब भी कर रहा है। वहीं बहियों में अमिट काली स्याही से हाथ से लिखी जाने वाली वंशावली लेखन कला की पांडुलिपियां जल्द ही कंप्यूटराइज्ड होगी। मारवाड़ में राजपूताना काल से ही विभिन्न जातियों की वंशावली लेखन का कार्य किया जा रहा है, मारवाड़ परगने में एक समुदाय विशेष यह कार्य करता था। वंशावली लेखन के लिए क्षेत्रानुसार एक जाति समुदाय की ओर से यह कार्य किया जाता रहा हैं। जिसमें जागा, याज्ञिक, बरोठ, राव, भार, पुरोहित तथा पंडो के नामों से इन्हें जाना जाता रहा हैं।

वंशावली लेखन में किसी परिवार तथा कुल या समाज समुदाय के साथ साथ उस देश के उत्थान पतन से जुड़ी परिस्थितियों तथा इतिहास संस्कृति का भी परिचय मिलता है। इसके महत्व को देखते हुए वंशावली संरक्षण की गौरवपूर्ण परंपरा विकसित हुई। इतिहास को बदलने या जाति विशेष का परिचय नष्ट करने के लिहाज से इनका लेखन करने वालों पर हमले भी हुए,जिससे यह विधा धीरे धीरे लुप्त होने के साथ इसका दायरा भी सिमटता गया।

पिंगल डिंगल भाषा में लिखी है पुरानी वंशावली: वंशावली डिंगल तथा पिंगल भाषा में लिखा जाता था, पिंगल तथा डिंगल भाषा को प्रचलन पूर्व में किया जाता था।

क्यों लिखी जाती हैं जातिगत वंशावली: हरसमाज में वंशावलियों के लेखन संरक्षण की परंपरा रही है। समाज को संगठित रखने के उद्देश्य से जातिगत रूप से वंशावली लिखवानें की शुरूआत की थी। जो आज भी जारी है। वंशावली संरक्षण की परंपरा गौत्र एवं वंश की रचना के साथ शुरू हुई है।

पहले बालू रेत पर लिखी जाती थी वंशावली: पूर्वमें वंशावली लिखने वाले राव, भाट तथा पंडित की ओर से कागज का आविष्कार नहीं होने से बालू रेत के लेप को गीला कर उसे सुखाया जाता था। उसके बाद बालू रेत पर अक्षर खोद कर वंशावली लिखी जाती थी।

सार संभाल को लेकर हुए प्रयास: पिछलेएक दशक में वंशावली संरक्षण की दिशा को लेकर बुद्धिजीवियों की ओर से रचनात्मक प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें गुजरात के भावनगर विश्वविद्यालय मार्च 2008 में जोधपुर विश्वविद्यालय में वंशावली परंपरा के महत्त्व तथा प्रासंगिक विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करने के साथ राष्ट्रीय स्तर पर संस्थान की स्थापना करने का निर्णय लिया गया। इसके बाद अगस्त 2009 में अजमेर के पुष्कर में राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। जिसमें तीर्थराज पुष्कर घोषणा पत्र के जरिए संस्थान का संविधान बनाने तथा इसके पंजीकरण सहित वंशावली लेखकों को जिला एवं तहसील स्तर पर संगठित करने के साथ रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से इस परंपरा को पुनर्जीवित करने नई टेक्नोलॉजी से जोड़ने का निर्णय लिया गया। देश के अन्य राज्यों में भी संस्थान की गतिविधियों का विस्तार करने की योजना बनाई गई।

रानीवाड़ा. पुरोहित तथा रावों के घरों में रखी एक हजार वर्ष से पूर्व की वंशावली।

पीढियों से किया जा रहा है वंशावली लेखन का कार्य - हमारेपूर्वजों की ओर से वंशावली लेखन का कार्य पीढ़ी दर पीढ़ी किया जा रहा हैं। मेरे पास अजमेर दरबार से लेकर राजा पृथ्वीराज चौहान के वंश की हमारी ओर से लिखी वंशावली मौजूद है। देवीसिंहराव, वंशावली लेखक, रानीवाड़ा

Source - https://www.bhaskar.com/news/RAJ-OTH-MAT-latest-raniwara-news-060054-2825059-NOR.html

अतीत का इतिहास है वंशावली

कासगंज, वंशावली संरक्षण संवर्धन संस्थान की अखिल भारतीय बैठक सोरों के रेलवे रोड स्थित सुदर्शनाचार्य धर्मशाला में हुई। बैठक में वंशावलियों के संरक्षण एवं संवर्धन पर चर्चा की गई एवं इसके महत्व पर प्रकाश डाला गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि धर्म जागरण समिति के राष्ट्रीय प्रमुख मुकुन्द राव वंशीधर ने कहा कि संस्कृति की जीवंतता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी परंपराओं को न भूलें।

वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश सिंह गौराज ने कहा कि वंशावली देशज इतिहास है और जो पूर्णत: प्रमाणिक है।

वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान के राष्ट्रीय सचिव रामप्रसाद ने कहा कि वंशावली से सबसे अधिक लाभ यह होता है कि लोगों को यह पता लग सकता है कि उसके पूर्वज किस जाति और किस गोत्र के थे और किस धर्म के अनुयायी थे और किस देवी देवता की पूजा करा करते थे। इस दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गौराज ने सोरों निवासी कोठीवाल आढ़तिया महाविद्यालय के प्रवक्ता डा. राधाकृष्ण दीक्षित को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य नियुक्त किया।

बैठक को कोटा के बाबूराम, जयपुर के रामप्रसाद एवं गुजरात प्रदेश से आए शरद राज ढोले ने अपने विचार व्यक्त करते हुए वंशावली लेखन के महत्व को बताया। इस दौरान राजेश्वर सिंह सहित उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, जम्मू आदि प्रदेशों के वंशावली लेखक मौजूद थे।

Source - https://www.jagran.com/uttar-pradesh/etah-9142274.html

External links

See also

Gallery

References

  1. Horton, Katie (3 August 2015). "Dr. Snodgrass editor of new blog series: Bioculturalism". Colorado State University.
  2. Snodgrass, Jeffrey G. (2004). "Hail to the Chief?: The Politics and Poetics of a Rajasthani 'Child Sacrifice'". Culture and Religion. 5 (1): 71–104. doi:10.1080/0143830042000200364. ISSN 1475-5629. OCLC 54683133.
  3. Rajput Period Was Dark Age Of India
  4. http://www.univarta.com/news/states/story/1027191.html

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