Beri Jhajjar

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Note - Please click → Beri for details of similarly named villages at other places.


Location of Beri in Jhajjar district

Beri (बेरी) village and tahsil, which previously fell under district Rohtak Haryana, is now part of newly-created Jhajjar district. It is a large village and is also one of the seats of Haryana Vidhan Sabha constituency. On the creation of Haryana on 1st November 1966, Pundit Bhagwat Dayal Sharma became the first Chief Minister of the State. He belonged to this village.

Villages in Beri tahsil

Achhej, Baghpur, Bakra, Barhaana, Beri (MC), Beri Khas, Bhambhewa, Bishan, Chhochhi, Chiman Pura, Cheemni, Dewana, Dhandhlaan, Dhaur, Dharana, Dighal, Dujana, Dubaldhan, Dubaldhan Ghikan, Dubaldhan Kirmian, Gangtan, Gochhi, Godhri (गोधरी), Jahazgarh, Lakria, Madana Kalan, Madana Khurd, Mohammadpur Mazra, Dubaldhan Majra, Malikpur (मलीकपुर), Paharipur, Palra, Seria, Safipur (सफीपुर), Siwana, Wazirpur,

History

भीमेश्वरी देवी मंदिर, बेरी

It is a historical village, in existence from pre-Mahabharata period. The famous Bheemeshwari (भीमेश्वरी) Temple is situated on the outskirts of this village, connected to many folk tales relating to one of the Pandavas, Bheemsen. The temple attracts large crowds from many surrounding villages. Many traders or Banias of this village have now shifted to far flung places like Calcutta. They still own their traditional houses in the village and pay regular visits to the temple. Beri also used to host the largest cattle fair of India, which has now shifted to neighbouring Jehazgarh village.

Jat gotra

  • Kadian - Jat gotra is Kadian. Beri is actually the heart of Kadian Khap. For reading pleasure, please see Jatland Forums thread "Kissa-e Kadyan-Khap" [[1]]. [1]

Beri Pal

Beri Pal khap has 36 villages. Jat Gotras in are – Kadiyan and Ahlawat. Notable persons of the khap are – Prof. Sher Singh, Brig. Ran Singh Maan and Suresh Pahalwan.[2]

Beri Jat Gotra

Beri Jat gotra is found in Punjab and population is 2,010 in Patiala district.[3]

Notable persons

  • Bale Ram Kadian - Great Freedom Fighter Jem. Bale Ram Kadian VPO Beri, Distt Jhajjar, Haryana.
  • Ch. Kedar Singh Kadian - पंचतत्त्व में विलीन हुए कादियान खाप के प्रधान केदार सिंह कादियान (दैनिक जागरण, हिसार दिनांक 13 मई 2022) - बेरी: 1943 में बेरी गांव के प्रसिद्ध किसान चौधरी राम सिंह के घर जन्मे केदार सिंह कादयान सर्वखाप के जाने-माने मुखर पंचायती और कादियान खाप के कर्मठ प्रधान रहे। 12 मई को प्रातः 8 बजे लम्बी बीमारी के चलते 78 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया। चौधरी केदार सिंह कादियान पिछले 20 दिनों से रोहतक के एक निजी अस्पताल में दिल और किडनी की समस्या के चलते उपचाराधीन थे। 12 मई दोपहर उनके पैतृक गांव बेरी में उनका अन्तिम संस्कार हुआ जिनकी अन्तिम यात्रा में बेरी के विधायक डा. रघुवीर कादियान, कई खापों के प्रधान और प्रतिनिधियों सहित सैकड़ों गणमान्य व्यक्ति शामिल रहे। सर्वखाप पंचायत ने गहरा शोक प्रकट किया है। (संसू)
  • Om Prakash Kadyan - An author, a painter, a photographer, a nature lover and explorer.
भजनोपदेशक व लेखक भगवान सिंह काद्यान - गाँव – बेरी (झज्जर) के गाने
कथा – राजा अजीतसिंह (सत्यवती - कर्णसिंह)
दोहा
सखियां पास बुला लई, रानी लागी कहन ।
हरिद्वार का मेला देखन चालो प्यारी बहन ।।
भजन - 1
चालो सखियो चालो सखियो, मतना लावो बार ।
कुंभ का मेला देखण चालां, चालो हरिद्वार ।।
बड़े-बड़े साधु संतों के वहां दर्शन होंगे ।
वेदों के उपदेश सुनोगी मन प्रसन्न होंगे ।
पाप सभी मर्दन होंगे मन के मिटें विकार ।। 1 ।।
कौन बरजने वाला हे, आज बाहर गए महाराज ।
मेला देखां हे गंगा नहावां, एक पंथ दो काज ।
आज रात को चलना चाहिए, मिलके सब हों तैयार ।। 2 ।।
पश्चिम में हुआ भान अस्त, छाई रात काली ।
सखी सहेली नई नवेली, रानी संग चाली ।
गोद में लड़की उठा ली, हो गई रथ अंदर सवार ।। 3 ।।
सच्चे मोती जड़े हुए, रेशम वस्त्र पहने ।
शीश चीर कोमल शरीर सै कैसे कैसे गहने ।
सुनहरे गहने पहने सबने, रतन जड़ाऊ हार ।। 4 ।।
नकली गहने दुख देवें, न्यू ऋषियों ने बतलाई ।
मिथिलापुरी की महारानी, जंगल में भूलगी राही ।
भगवान सिंह सिर करड़ाई नहीं बसावे पार ।। 5 ।।
भजन – 2
चला था करणवीर, धार के प्रण वीर ।
बहन की तलाश में ।। टेक ।।
सुना हाल, हुए नेत्र लाल, ज्यों जलते हुए अंगारे ।
शेर ज्यों कड़के तड़के, ज्यों बिजली के सरारे ।
बहन की खोज करूँ, रात दिन रोज करूं ।
फिरूँ बारह मास मैं ।। 1 ।।
रूद्रदत्त बेईमान तनै, मैं जिंदा नहीं छोडूंगा ।
गिण गिण के तेरी मैं हड्डी पसली तोडूंगा ।
राक्षस सै जूण तेरा, मैं भी करके खून तेरा ।
बुझाऊंगा प्यास मैं ।। 2 ।।
चाहे कहीं भी मिले बहन, मैं टोहके लाऊंगा ।
बहन नहीं पाई तो वापिस मुंह नहीं दिखाऊंगा ।
शहर और उजाड़ छाणु समुद्र और पहाड़ छाणु ।
धरती और आकाश में ।। 3 ।।
टोहते टोहते वर्ष बीतगे, लड़के ने दस बारा ।
राजधानी चंपागढ़ में, यो पहुंचा राजकुंवारा ।
भगवान सिंह काद्यान वहां पर, सिंगार के सामान वहां पर ।
होते थे रणवास में ।। 4 ।।
भजन – 3
इंद्रसेन का इंद्रभवन में, लगा हुआ दरबार ।
राजा मंत्री बैठे दोनों, बड़े-बड़े सरदार ।। टेक ।।
इंद्रसेन महाराजा की, इंदिरा शहजादी सै ।
आज शाम को होनी जिसकी स्वयंवर शादी सै ।
स्वयंवर की करी मनादी सै, बांट बांट इश्तहार ।। 1 ।।
पढ़ी-लिखी विद्वान, राजा इंद्रसेन की पुत्री सै ।
वा रूप दीवानी गुण खाणी, जाणु स्वर्ग तै उतरी सै ।
शान शकल की सुथरी सै, चंद्रमा की ऊणीहार ।। 2 ।।
हाथ में फुलमाला ले, चली राजकुमारी जी ।
किसके माला डालेगी, यह इंतजारी जी ।
ईश्वर लीला न्यारी लोगो, नहीं बसावै पार ।। 3 ।।
उसी वक्त दरबार के अंदर, साधु पहुंचा आण ।
दोनों हाथ उठाके बोला, कल्याण हो कल्याण ।
भगवान सिंह काद्यान वहां पर, दिखे ना ननिहार ।। 4 ।।
भजन – 4
तर्ज : अ दिल यह बता तू किस पै आ गया .......
के बूझेगी हाल मेरा, कुछ जाती नहीं बताई।
तू लागै सै बहन मेरी और मैं लागू तेरा भाई।। टेक ।।
मिथिलापुरी में राज करै, अजीतसिंह महीपाल।
तू भी उसकी बेटी सै और मैं भी उसका लाल।
सारा हाल बताऊँ किस विध, चम्पागढ़ में आई।
किस कारण तेरे भाई ने, तन में खाक रमाई ।। 1 ।।
गये पिताजी डाकू पकड़न, ले के सेना साथ।
पीछे से हरिद्वार का मेला, देखण चाली मात।
राह में हो गई रात, सिर पर छाई करड़ाई ।
वन के अंदर फिरी भटकती, माँ भूल गई राही ।। 2 ।।
मौका पाकर रुद्रदत्त ने फिर, गेर दिया डाका।
जेवर कपड़े तार लिये, नहीं जोर चला माँ का।
तेरे डाका याद न आवे , थी उमर साल ढ़ाई ।
संग में तनैं ले गये, उठाके वो डाकू अन्याई ।। 3 ।।
माताजी ने रो रो के, डाके का हाल सुनाया।
ठंडा हो गया खून मेरा, एकदम सन्नाटा छाया।
काया चक्कर खा गई एकदम तबियत घबराई।
आग बदन में लाग गई, मनैं रोटी भी ना खाई ।। 4 ।।
सत्यवती सै नाम तेरा, और मेरा नाम करण हे।
ढूँढ बहन को लाऊँगा, मैंने दिल में किया प्रण हे।
छान लिये आकाश धरण, तू कहीं भी नहीं पाई।
मारा-मारा फिरा बनों में, विपदा घणी उठाई ।। 5 ।।
सत्यवती के पक्की जचगी, यो भाई माँ जाया।
लिपट गई थी कर्ण सिंह के, दिल दरिया उझलाया।
बहन को भाई पाया था, न्यू खुशी गात में छाई ।
भगवान सिंह कहे जिसी खुशी, उसी टेढी़ कविताई ।। 6 ।।

References

  1. Dndeswal 13:17, 14 January 2007 (EST)
  2. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, Agra, 2004, p. 19
  3. History and study of the Jats. By Professor B.S Dhillon. ISBN-10: 1895603021 or ISBN-13: 978-1895603026. p.126

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