Bhadaula

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Bhadaula (भदौला) village is in tahsil Modinagar in District Ghaziabad of Uttar Pradesh.

History

Location

It is located next to Village Kilhora and is 1 km north to Hapur-Modinagar road.

Origin

History

चौधरी चरणसिंह का भदौला से संबंध

पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरणसिंह का पैतृक गाँव भदौला का बोर्ड

डॉ. किरणपाल सिंह[1] लिखते हैं कि....बल्लभगढ़ के राजा राजा नाहरसिंह (21.4.1823 – 9.1.1858) तेवतिया वंश में नरेश हुआ। सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध, जो अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ा गया, के समय राजा नाहरसिंह की शक्तिशाली सेना ने दिल्ली के दक्षिण तथा पूर्व की ओर से अंग्रेजी सेना को दिल्ली में प्रवेश नहीं होने दिया। अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये. इस पर अंग्रेज सेनापति ने भी कहा “दिल्ली के दक्षिण पूर्वी भाग में राजा नाहरसिंह की जाट सेना के मोर्चे लोहगढ़ हैं, जिनको तोड़ना असम्भव है।” अंग्रेजों ने इस वीर योद्धा राजा नाहरसिंह को धोखे से पकड़ लिया और चांदनी चौक में 9.1.1858 को फांसी पर लटका दिया.[2]

बल्लभगढ़ से भटौना आगमन: अंग्रेजों के अत्याचारों से पीड़ित राज परिवार तथा अन्य देशभक्त तेवतिया जाटों ने एक विशेष रणनीति और समय के अनुसार वहां से हटना ही उचित समझा. यह परिवार काफी बड़ा था इन्हीं में चौधरी चरणसिंह के पितामह बादामसिंह भी थे, जिन्होंने बुलंदशहर जनपद में तेवतिया जाटों द्वारा बसाये गए गांव भटौना में आकर शरण ली. भटौना में जमीन कम थी और शरणार्थी ज्यादा आ गए. धीरे-धीरे वे आसपास के कई गाँवों में फैल गए. भटोना से निकलने के कारण वे भटोनिया कहलाते हैं अर्थात तेवतिया का एक पर्याय भटोनिया भी हो गया.

भटौना-सियामी-नूरपुर आगमन - चौधरी बादामसिंह भी अपने परिवार के साथ हापुड़ के पास सियामी गांव में आकर बसे. उन की पांच संताने थी आयुक्रम के अनुसार सर्वश्री 1. लखपत सिंह, 2. बूटा सिंह, 3. गोपाल सिंह, 4. रघुवीर सिंह तथा 5. मीर सिंह.

परिवार बड़ा था और आजीविका के साधन कम. अतः नए सिरे से फिर कृषि भूमि तलाशने का कार्य शुरू हुआ. इसी क्रम में यह परिवार सियामी से कुछ हटकर हापुड़-बाबूगढ़ के पास नूरपुर गांव आ गया. यहां दलाल बंसी जाटों की रियासत कुचेसर की कुछ जमीन बटाई पर ले ली और वहीं छप्पर की झोंपड़ी डालकर बस गए जो बाद में नूरपुर की मड़ैया नाम से जानी गई. चौधरी मीरसिंह कठिनाइयों तथा अभाव में ही सही पर अपनी आयु के 18 बसंत देख चुके थे. चौधरी बादाम सिंह के पुत्रों ने अपने अथक परिश्रम से असिंचित जमीन को उपजाऊ बनाया. नूरपुर की मढैया में उस समय खुशी की लहर दौड़ गई जब यहां पहली बार ढोलक बजी और गीत गाए गए. यह शुभ दिन था जब चौधरी लखपतसिंह के सबसे छोटे भाई मीर सिंह ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया और बुलंदशहर जनपद के चितसोना अलीपुर गांव की सुशील समझदार कन्या नेत्रकौर को पत्नी के रूप में वरण कर बैलगाड़ी में बिठाकर घर लाये. घर की छोटी तथा दुलारी बहू नेत्रकोर को प्यार से सभी नेतो के नाम से बुलाते थे. चौधरी मीरसिंह सीधे-साधे छल कपट से दूर एक मेहनती व्यक्ति थे.

चौधरी मीरसिंह और नेत्रकौर की कड़ी मेहनत खेती में रंग लाई और परिवार संपन्नता और स्मृद्धि की ओर अग्रसर होने लगा. यही वह समय था जब नेत्रकौर की कोख से 23 दिसम्बर 1902 को बालक चरण सिंह ने नूरपुर की मड़ैया में जन्म लिया, जो आगे चलकर भारत के प्रधानमंत्री बने.


[पृ.166]: नूरपुर की मढैया को भारत के प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह की जन्मस्थली होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. यह गांव पहले मेरठ जनपद में था, बाद में गाजियाबाद जनपद में आया और अब हापुड़ जिले में है. यह हापुड़ से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हापुड़ से 5 किमी दूरी पर मुरादाबाद मार्ग पर बाबूगढ़ स्थित है जो एक पुरानी छावनी है. बाबूगढ़ से चलकर दाहिनी तरफ आगे बछलौता गाँव है और फिर काकोडी गाँव. 16 किमी लंबा यह सड़क का टुकड़ा बाबूगढ़ कस्बे और भौंबहादुर नगर (बुलंदशहर जनपद) को जोड़ता है.


[पृ.167]: यह स्मरणीय है कि मुख्य नूरपुर गांव से हटकर तेवतिया जाटों द्वारा 5 घर बसाये गए थे फूसकी झोपड़ी डालकर. आज यहां 20 घर हैं, सभी पक्के और आधुनिक सुविधाओं युक्त. जनसंख्या इस गांव की 120 है.

नूरपुर की मड़ैया में चौधरी चरणसिंह की एक संगमरमर की आदमक़द मूर्ति स्थापित की गई है. इस प्रतिमा का अनावरण 24 दिसंबर 1990 को पूर्व केंद्रीय मंत्री जारह फर्नांडीजे ने किया था, जिस समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में चौधरी साहब के आत्मज पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजीतसिंह भी विद्यमान थे. इसी परिसर में तत्कालीन विधायक चौधरी जगतसिंह की विधायक निधि से निर्मित दो कमरे का स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह पुस्तकालय, नूरपुर मढैया - जनपद - गाजियाबाद भी जनसामान्य के ज्ञान को बढ़ा रहा है. उन्हें प्राचीन तथा अर्वाचीन भारतीय इतिहास से परिचित करा रहा है. इस पुस्तकालय के उद्घाटन हेतु श्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश, चौधरी साहब की जयंती के अवसर पर 23 दिसंबर 2000 को नूरपुर पधारे थे.

नूरपुर से जानी खुर्द :चौधरी मीरसिंह अच्छे कदके, मजबूत-हृष्ट-पुष्ट शरीर और मेहनतकश किसान थे. उनके श्रम से यहां फसल भी अच्छी होने लगी थी. परंतु जमीन थोड़ी थी वह भी अपनी नहीं बटाई की, मालिक कभी भी वापस ले सकता था. इसलिए चौधरी मीर सिंह और उनके भाइयों को कृषि भूमि की नई खोज में लगा दिया. जिसमें वह सफल भी हो गए. इन्हीं दिनों कुछ तेवतिया परिवारों ने मिलकर मेरठ जिले के अंतर्गत जानीखुर्द नामक गांव में जमीन खरीद ली. यह जमीन उन्होंने मेरठ के पत्थर वाले जमीदार सेठ से खरीदी थी. चौधरी मीर सिंह का परिवार भी वहां 10 एकड़ जमीन खरीदने में सफल हो गया. वस्तुतः चरण सिंह के जन्म के 6 महीने के अंदर ही अन्य परिवारों के साथ उनका परिवार भी अपने नए खरीदे हुए भूखंड का स्वामी बनकर नूरपुर से 40 किलोमीटर दूर जानी खुर्द आ गया और वही अपनी भूमि पर छप्पर डालकर बस गए.


[पृ.168]: यहां पहुंचे सभी तेवतिया लोग एक ही स्थान पर छप्पर बनाये और एक नई मड़ैया बसाई और उसका नाम रखा गया भूपगढ़ी. यह नाम तत्कालीन वयोवृद्ध चौधरी भूपसिंह के नाम पर रखा गया. भूप गढ़ी में जमीन कम थी और परिवार बड़ा, सो गाजियाबाद तहसील के अंतर्गत भदौला गांव में और जमीन खरीदी गई. जमीन के पारिवारिक बटवारे में चौधरी मीरसिंह को भूपगढ़ी तथा अन्य बड़े भाइयों को भदौला की जमीन मिली. अतः चौधरी लखपत सिंह और अन्य बड़े भाई भदौला जाकर बस गए.

जानी खुर्द से भूपगढ़ी केवल पौन किलोमीटर की दूरी पर वसा है. भूपगढ़ी लगभग 100 घर व 1600 जनसंख्या वाला स्मृद्धशाली गाँव है. इस गांव को 1904 ई. के आसपास बसाया गया और बसाने वाले थे अलग-अलग स्थानों से विस्थापित हुए तेवतिया जाटों के 5-6 परिवार. इनमें से चौधरी मीर सिंह, चौधरी चंपत सिंह, चौधरी खड़ेचू व चौधरी बीरबल सिंह आदि, जो सभी नूरपुर की मढैया से यहां आए थे. कृषि कार्य के लिए जमीन ली और फूस की झोंपड़ी डालकर बस गए. उस समय चरण सिंह लगभग 6 माह के अबोध बालक रहे होंगे.


[पृ.169]: चरण सिंह का स्कूल में प्रवेश: चौधरी मीर सिंह पढ़े लिखे न थे पर वे अपने पुत्र को पढ़ाना चाहते थे. उन्होने जानी खुर्द की प्राथमिक पाठशाला में नाम लिखा कर पंडित जी के हवाले कर दिया. चरण सिंह कुशाग्र बुद्धि थे. उनकी स्मरण शक्ति भी तेज थी. पंडित जी जो पढ़ाते उसे तुरंत ग्रहण कर लेते थे और जो प्रश्न पूछते उनका तुरंत उत्तर देते. गुरुजी ने सलाह दी की चरण सिंह की उन्नति के लिए पास के गांव पढ़ने हेतु सिवाल गाँव के विद्यालय भेजा जावे. भूपगढ़ी से सिवाल के बीच की दूरी ढाई किमी थी और रास्ता ऊबड़-खाबड़ और टेढ़ा-मेधा. बीच में उत्तर भारत की सबसे बड़ी नहर गंग-नहर भी पड़ती थी. 9-10 वर्ष का बालक चरण सिंह अकेला आने-जाने लगा. मीर सिंह ने उसके लिए एक घोड़े का प्रबंध किया जिस पर सवार होकर लगभग तीन महीने में अपनी वह विशेष उत्तीर्ण की. चरण सिंह ने जानी खुर्द प्राइमरी स्कूल की अंतिम कक्षा सर्वोत्तम अंक प्राप्त कर की.

Jat Gotras

Though Ch. Charan Singh, Ex-Prime Minister of India was not born here, but his family later on settled in this village and as such the village is now known as Ch. Charan Singh's village.

Population

Notable Persons

External Links

References

  1. संस्तवन: एक आलोक पुरुष का - चौधरी चरण सिंह स्मृति-ग्रंथ, संपादक डॉ. किरणपाल सिंह, प्रकाशक: भारतीय राजभाषा विकास संस्थान देहरादून, ISBN 978-81-906127-5-3, प्रथम संस्करण 2010, पृ.165-169
  2. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter X,p.940

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