Bhim Sen Beniwal

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (R)
Bhim Sen Beniwal Certificate.jpg

भीम सेन चौधरी (Bhimsen Choudhary, Bhim Sen Beniwal) (1925 - 2000) राजस्थान में बीकानेर क्षेत्र के गांधीवादी लोकप्रिय नेता एवं समाज सुधारक थे. ये लूणकरणसर विधान सभा क्षेत्र से 6 बार कांग्रेस पार्टी से विधायक चुने गए. ये बेनीवाल गोत्र के जाट परिवार में 1925 में पैदा हुए थे. इनके पुत्र वीरेंद्र बेनीवाल भी वर्ष 2003 एवं 2008 में विधायक चुने गए हैं. [1]

सम्मान

जीवन परिचय

5 जनवरी, 1925 को बीकानेर तहसील के बंधा ग्राम के एक साधारण कृषक के घर जन्मे भीमसेन अभी तीन वर्ष के ही हुए थे कि सर से माता का साया उठ गया। मातृत्व के वात्सल्य से दूर भीमसेन जी का बचपन कठिनाइयों में बीता। विपरीत वित्तीय परिस्थितियों के बाजूद कुछ बनने की लगन और गांव से बाहर की दूनिया को जानने की जिज्ञासा ने इनको शिक्षा ग्रहण करने के लिए सदैव प्रेरित रखा। गांव में पर्याप्त सुविधा न होने पर भी घर से दूर रह कर ट्यूशन आदि द्वारा अपनी आजीविका का निर्वहन करते हुए एम.ए.एल.एल.बी. तक की शिक्षा प्राप्त की। तन जरूर गांव से दूर था परन्तु मन सदैव अपने गांव में विचरण करता और इसी लगाव के कारण उन्होंने खेतीहरों के दुःख दर्द को समझा और उनके साथ मिल बैठ कर उनकी समस्याओं का निराकरण करने का भी प्रयास किया। युवा भीमसेन जी की कर्मठता और उनकी मानवीय संवेदना से अभिभुत कृषक-जन उनके समर्थक और अनुयायी बनते गए। भारत की राजनीति के पटल पर उस समय महात्मा गांधी जी का प्रभा मण्डल छाया था। उनसे प्रेरणा और आशीर्वाद प्राप्त कर युवक भीमसेन जी ने ’भारत छोडों आंदोलन‘ में भाग लिया और वे गांधी जी के अनुयायी के रूप में पहचाने जाने लगे। उनके जीवन को अलग-अलग पहलुओं के साथ इस प्रकार देखा जा सकता हैः-

शिक्षक के रूप में

भीमसेन जी को सदा से ही भोले-भाले किसानों की चिंता रहती थी। वे जानते थे कि किसान वर्ग तब तक आगे नहीं बढ पाएगा जब तक कि वह शिक्षित न हो और शिक्षा ग्रहण करने में जिन मुसीबतों का सामना उन्हें करना पडा, वह मुसीबतें उनके किसान भाईयों के बच्चों को न आए इसीलिए उन्होंने सन् 1948 में शिक्षण क्षेत्र को चुनकर किसान छात्रावास बीकानेर में गरीब किसानों के बच्चों को पढाना शुरू किया ।

सच्चा एवं सफल राजनेता

बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ भीमसेन जी कृषकों की समस्याओं को समय-समय पर उठाते हुए रहते थे। किसानों के प्रति उनके लगाव व कृषक परिवारों में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए सन् 1949 में जिला कांग्रेस कमेटी द्वारा उन्हें जिला महासचिव बनाया गया। भीमसेन जी ने एक शिक्षक के साथ-साथ यह भूमिका भी बखूबी निभाई। कृषकों को कानूनी समस्याओं के निवारण के लिए इन्होंने 1954 में वकालत प्रारम्भ की । बच्चों के मध्य रहकर उनकी माली हालत को देख भीमसेन जी को लगा कि किसान वर्ग की समस्याओं का निराकरण तभी हो सकता है जब कि उनका हमदर्द उच्च स्तर तक उनकी समस्याएं पहुंचाने वाला हो, इधर कांग्रेस तक उनकी समस्याएं पहुंचाने वाला हो, इधर कांग्रेस पार्टी भी जन-जन में उनकी लोकप्रियता के चलते उन्हें विधानसभा क्षेत्र लूणकरणसर से अपना उम्मीदवार बनाने का मानस बना चुकी थी और इसी के साथ आपने सन् 1957 में बीकानेर जिले से एक मात्र पार्टी विधायक के रूप में विधानसभा में प्रवेश किया। भीमसेन जी ने जमीदारों के जुल्मों के त्रस्त आमजन को मुक्ति दिलवाते हुए जागीरदारी प्रथा का उन्मूलन करवाया, किसानों को उनके कब्जे की जोत पर मालिकाना हक दिलवा कर जागीरदारों के डर को खत्म किया एवं डाकूओं के भय से त्रस्त जनता को पुलिस का उचित संरक्षण प्रदान करवाया । वे लूणकरण सर विधानसभा क्षेत्र से निम्नानुसार विधायक चुने गए थे:

  • 1957 - कांग्रेस पार्टी
  • 1962 - कांग्रेस पार्टी
  • 1967 - कांग्रेस पार्टी
  • 1972 - कांग्रेस पार्टी
  • 1993 - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी
  • 1998 - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी

विकास के अग्रदूत

अपनी दूरदर्शी सोच का परिचय देते हुए पलाना में कोयले से विद्युत उत्पादन हेतु थर्मल पॉवर प्लांट लगवाने के लिए भारत सरकार से अनुरोध कर सोवियत संघ की तकनीकी टीम से सर्वेक्षण करवाया, जिसके परिणाम स्वरूप पलाना में थर्मल पॉवर प्लांट का कार्य जारी है। कांग्रेस पार्टी द्वारा बीकनेर क्षेत्र को महत्व प्रदान करने हेतु भीमसेन जी को सम्मिलित करते हुए तीन सदस्याई समिति का गठन किया गया। उनके प्रतिनिधित्व में मेडीकल कॉलेज, पॉलटेक्निक कॉलेज, आईटीआई कॉलेज के लिए वॉटर वक्र्स प्रोजेक्ट, नोखा, सुजानगढ हाईवे एवं डूंगर कॉलेज की नई बिल्डिंग स्वीकृत हुई।अपनी कर्म शक्ति के कारण ही चौधरी जी राजस्थान के लूणकरणसर क्षेत्र में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एवं 1958 से 1962 तक नॉर्दन रेलवे जॉनल युजर्स कन्सलटेटीव कमेटी के सदस्य रहे । बीकानेर जिला परिषद की 1958 से 1962 तक प्रथम प्रमुख चुने जाने पर इन्होंने अपनी कार्यशैली और निष्ठा से आमजन के हृदय में स्थान बना लिया और 1962 में पुनः विधायक चुने गए। किसानों के प्रति अपने सहज स्नेह और उनके हितों के लिए कानूनी लडाई लडते श्री भीमसेन को ’भारत कृषक समाज‘ का बीकानेर जिले का प्रभारी बनाया गया।

बीकानेर जिले के ग्रामीण क्षेत्र में पेयजल के गंभीर संकट को दूर करने के लिए इन्होंने अपने भरसक प्रयत्नों द्वारा 1965 में केन्द्र सरकार से विशेष बजट आवंटित करवाकर राजस्थान नहर से कंवर सेन लिफ्ट योजना मंजूर करवाई जिससे अकाल व पेयजल की समस्या का स्थाई समाधान हुआ और क्षेत्र के लोगों को आर्थिक मदद के साथ सर्विस कांट्रेक्ट लेबर यूनीयन द्वारा रोजगार प्राप्त हुआ, इससे किसानों को अकाल की त्रासदी से मुक्ति मिली और उनके लिए सुखद भविष्य के द्वारा खुले । भूमि विकास बैंक की स्थापना कर श्री चौधरी जी ने गरीब और कमजोर वर्ग के किसानों को सुदखोरों से बचाया और भूमिहीन किसानों को सरकारी बंजर पडी भूमि आवंटित करवाकर सरकार के राजस्व को बढाते हुए किसानो को घर बैठे जोत दिलवाई तथा एक वर्षीय और त्रीवर्षीय भूमि आवंटन को ’शुओमोटो‘ द्वारा स्थाई आवंटन में परिवर्तित करवाकर राहत दिलवाई। आप द्वारा उद्योग जगत के सर्वांगिण विकास को प्रोत्साहन देते हुए अनेक योजनाएं बनवाई और नए औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करते हुए खनीज उत्पाद की नई संभावनाओं और तकनीक का शोध परख अध्ययन करवाकर खनन उद्योग को एक नई दिशा प्रदान की। बीकानेर क्षेत्र में सिरेमिक उद्योग की विपुल संभावनाओं को देखते हुए विशेष प्रयास कर सिमिक उद्योग को इंजिनियरिंग पाठयक्रम से जोडा।सन् 1972 से 1977 के मध्य इंदिरा गांधी नहर परियोजना क्षेत्र में काश्तकारों को रिकॉर्ड सिंचित भूमि आवंटित करवाने और लूणकरणसर विधानसभा क्षेत्र के समस्त गांवों को विद्युतीकरण और पेयजल की परियोजनाएं भारत सरकार से स्वीकृत करवाने जैसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए गए।


पशुधन का संरक्षण करते हएु जहां एक ओर चौधरी जी ने 1972 में उरमूल डेयरी ट्रस्ट की स्थापना कर दूग्ध उत्पादकों के माध्यम से घर बैठे किसानों के लिए पशुपालन के धंधे को व्यापार बना दिया। इससे दूरदराज के क्षेत्रों से उचित मूल्य पर दूध खरीद कर इसकी आपूती दिल्ली तक की गई इससे आय के स्त्रोत बढे और दूध की रिकॉर्ड बिक्री हुई वहीं दूसरी ओर भेड पालन को प्रोत्साहन देकर ऊन उद्योग को लाभप्रद एवं लोकप्रिय व्यवसाय बना दिया।


अपने प्रदेश में सडकों कृषि उपज मंडीयों, सहकारी समितियों, भूमि विकास बैंक, ग्रामीण विकास बैंकों की स्थापना करते हुए बिजली, पानी, स्वास्थ्य केन्द्र, पशु चिकित्सा केन्द्र, डाक सेवा, दूर-संचार सेवा तथा यातायात व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम करवाया। भीमसेन जी के अथक प्रयासों से ही क्षेत्र में टेलीफोन एक्सचेंज सेवा को बढावा मिला तथा खाजूवाला ऑप्टीकल फाईबर केवल से जुड पाया।


चक आबादियों को राजस्व ग्राम घोषित करवाकर विकास से जोडा। पूगल अतिरिक्त तहसील को पूगल राजस्व तहसील और खाजूवाला में राजस्व तहसील और उपखण्ड कार्यालय की स्थापना करवाई एवं छत्तरगढ को राजस्व घोषित करवाया। भूमिहीन पाक विस्थापितों को निःशुल्क रिहायशी भूखण्ड आवंटित करवाए।

गांधी के सच्चे अनुयायी

गांधी जी के सच्चे अनुयायी के रूप में चौधरी साहब ने मंदिरों में पशु एवं पक्षी बली समाप्त करवाने के लिए पशु-पक्षी बली विरोधी विधेयक तैयार कर इसे विधानसभा में पारित करवाकर जीवहत्या को रोका। भीमसेन जी ने गांवों में प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षण संस्थाएं स्थापित करवाई तथा अनेक विद्यालयों को क्रमोन्नत करवाकर ग्रामीण शिक्षा के स्तर को बढाया ताकि ग्रामजन शिक्षा प्राप्त कर जहां एक ओर अपने महत्व, अपने अधिकार और अपने कर्त्तव्य पहचान सके वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय विकास की धारा के साथ जुड खेती आदि के उपयोग के लिए सभी प्रकार के विकसीत साधनों को अपना सके। इस हेतु उन्होंने प्रौढ शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा, संस्कृत शिक्षा, लोकजुम्बिश, राजीव पाठशाला एवं शिक्षा विभाग की सहायता से गांव-गांव तक शिक्षा का विस्तार किया और नारी शिक्षा एवं पिछडी जातियों कल्याणार्थ अनेक प्रयास किए। वे बीकानेर में बहुसंकाय विश्वविद्यालय खुलवाने के लिए भी सदैव प्रयासरत रहे ।

सर्वाधिक मत प्राप्त विधायक

विधानसभा चुनाव 1998 में राज्य में सर्वाधिक 84673 रिकॉर्ड मत प्राप्त कर छठी बार विधायक चुने गए। अपने 75 वर्ष जीवन काल में भीमसेन जी लोकप्रिय जननायक और कर्मठ एवं सजग राजनेता के रूप में पहचाने जाते थे। उनमें योजनाबद्ध ढंग से कार्य करने का स्वाभाविक गुण था। वे एक अच्छे मानवतावादी जननायक के साथ-साथ उच्च कोटि के समाज सुधारक, विचारक और विद्वान भी थे। किसानों, दीन दुःखियों व मानवता की सेवा हेतु वे प्रतिपल कटिबद्ध व संघर्षरत रहे। अपने सार्वजनिक जीवन में चौधरी साहब व्यक्तिवाद, परिवारवाद, जातिवाद एवं दलीय राजनीति से ऊपर उठकर सम्पूर्ण निष्ठा से जिले के सर्वांगिण विकास के लिए समर्पित होकर कार्य करते रहे। वे सच्चे कर्मयोगी, कर्मठ, मृदभाशी, किसानों व पिछडे वर्ग के सच्चे हमदर्द थे। इसी कारण इन्हें लोग इस क्षेत्र का ’’गांधी‘‘ कह कर अपना सम्मान व भावना प्रकट करते है ।

मृत्यु

वर्ष 2000 में एक सड़क दुर्घटना में इनकी मृत्यु हुई. [2]

External links

सन्दर्भ


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