Bidar Karnataka

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Bidar District Map
Map of Karnataka

Bidar (बीदर) is a city and district in the northernmost part of the Karnataka state in India.

Variants

Location

Geographically, it resembles the "Crown of the State", occupying its northeastern end. It is bounded by Kamareddy and Sangareddy districts of Telangana state on the eastern side, Latur and Osmanabad districts of Maharashtra state on the western side, Nanded district of Maharashtra state on the northern side and Gulbarga district on the southern side. It is connected with NH9 and NH218.

Divisions

The Bidar district is constituted by five talukas, Aurad, Basavakalyan, Bhalki, Bidar and Humnabad with Bidar being the headquarters of the district. New Three Talukas Hulsoor, Chitgoppa, Kamalnagar.In the Bidar district

Jat clans

History

The traditional tales refer to this as Viduranagara of Mahabharata times and also as the place where Nala and Damayanti met.[1]

Historically, the district had a glorious past. It was ruled by the Mauryas, Satavahanas, Rashtrakutas, Chalukyas, Kalachuris, Kakatiyas, Khaljis, Bahamanis, Baridshahis, Mughals and the Hyderabad Nizam.

The treasure of culture, fine arts and architecture nurtured by successive rulers has contributed to its richness. As such, there are more Hindus and Muslims in Bidar district with their rich culture. Similarly, social and religious reformers such as Basaveshwara and Guru Nanak also played significant role in social reformation based on equality.[2] The great revolution by Shivasharanas in the 12th century, encompassing social, literacy and religious fields emerged on this land.

Early and medieval history: The first Rashtrakuta capital was Mayurkhandi (Morkhandi) in the present day Bidar district. The regal capital was later moved to Manyakheta (Malkhed) in the present day Kalaburagi district by Amoghavarsha I.[3]

Kalyani (today called Basavakalyan, after Basaveshwara) in Bidar district was the capital of Western Chalukyas, who were also called Kalyani Chalukyas after their capital. The Kalachuris continued with Kalyani as their capital.

Later, Bidar was ruled in succession by the vassals to Sevuna Yadavas of Devagiri, Kakatiyas of Warangal, Alauddin Khalji and Muhammad bin Tughluq.

The generals of Muhammad Bin Tughlaq who were nominated as viceroys of the newly conquered Deccan region broke up and formed the Bahmani Sultanate under Allauddin Hasan Gangu Bahman Shah.

The Bahmani capital was shifted from Kalburgi or Kalubaruge (pronounced as Gulbarga and subsequently renamed Ahsanabad by the Muslim newcomers) to Bidar (renamed Muhammadabad by the Bahmanis) in 1425. Bidar remained the capital until the Sultanate's breakup after 1518. It then became the center of the Barid Shahis, one of the five independent sultanates known as the Deccan sultanates. These were the successor states to the Bahmani kingdom.

The Bidar Sultanate was absorbed by the Bijapur Sultanate to the west in 1619, which was in turn included into their Deccan province by the Mughal Emperor Aurangzeb during his viceroyship of Deccan in 1656. After the death of Aurangazeb, Asaf Jah I, the Mughal Subehdar of the Deccan province, became independent and assumed the title Nizam-ul-mulk, with the whole of the province under the Nizam's sovereign control.

बीदर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है .....बीदर शहर (AS, p.636), पूर्वोत्तर कर्नाटक (भूतपूर्व मैसूर) राज्य, दक्षिण भारत में स्थित है।

भूतपूर्व हैदराबाद रियासत का प्रसिद्ध नगर जिसका नाम विदर्भ का महाभारत तथा प्राचीन संस्कृत साहित्य के अन्य ग्रंथों में विदर्भ का अनेक बार वर्णन आया है. बीदर में आधुनिक बरार तथा खानदेश (महाराष्ट्र) सम्मिलित थे किंतु विदर्भ का नाम अब बीदर नामक नगर के नाम में ही अवशिष्ट रह गया है. (देखें विदर्भ)

दक्षिण के उत्तर कालीन चालुक्यों (शासनकल 974-1190 ई.) की राजधानी जिला बीदर में स्थित कल्याणी नामकी नगरी थी.

विक्रमादित्य चालुक्य के राजकवि विल्हण ने अपने 'विक्रमांक देवचरित' में कल्याणी की प्रशंसा के गीत गाए हैं और उसे संसार की सर्वश्रेष्ठ नगरी बताया है।

12वीं शती में चालुक्य राज्य छिन्न-भिन्न हो गया और

[p.637]: उसके पश्चात् बीदर के इलाक़े में यादवों तथा ककातीय राजाओं का शासन स्थापित हो गया। इसी शती के अंतिम भाग में विज्जल ने जो कलचुरी वंश का एक सैनिक था, अपनी शक्ति बढ़ाकर चालुक्यों की राजधानी कल्याणी में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।

1322 में मुहम्मद तुगलक ने जो अभी तक जूना के नाम से प्रसिद्ध था, बीदर पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में कर लिया. 1387 ई. में मुहम्मद तुग़लक का दक्षिण का राज्य छिन्न-भिन्न हो जाने पर 'हसन गंगू' (अलाउद्दीन बहमन शाह प्रथम) नामक सरदार ने दौलताबाद और बीदर पर अधिकार करके 'बहमनी राजवंश' की नींव डाली। 1423 ई. में बहमनी राज्य की राजधानी बीदर में बनाई गई, जिसका कारण इसकी सुरक्षित स्थिति तथा स्वास्थ्यकारी जलवायु थी।

बीदर नगर दक्षिण भारत के तीन मुख्य भागों- अर्थात् कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना से समान रूप से निकट था तथा इसकी स्थिति 200 फुट ऊँचे पठार पर होने से प्रतिरक्षा का प्रबंध भी सरलतापूर्वक हो सकता था। इसके अतिरिक्त नगर में स्वच्छ पानी के श्रोते थे तथा फलों के उद्यान भी.

1492 ई. में बहमनी राज्य के विघटन के पश्चात बीदर में बरीद शाही वंश के कासिम बरीद ने स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली. यहां का पहला शाह अली बरीद हुआ (1549 ई.). 1619 ई. में इब्राहिम आदिल शाह ने बीदर को बीजापुर में मिला लिया किंतु 1656 ई. में औरंगजेब ने आदिलशाही सुल्तान का ही अंत कर दिया और बीदर को 27 दिन के घेरे के पश्चात सर कर लिया. बीदर पर मुगलों का आधिपत्य 18 वीं सदी के मध्य तक रहा जब इसका विलयन निजाम की नई रियासत हैदराबाद में हो गया.

बरीदशाही सुल्तानों द्वारा निर्मित कुछ उल्लेखनीय इमारतों के अवशेष बीदर में आज भी मौजूद हैं.(मिडोज टेलर-मैन्युअल ऑफ इण्डियन हिस्ट्री) बरीदशाही वंश का संस्थापक कासिम बरीद जार्जिया का तुर्क था। यह सुंदर हस्तलेख लिखता था तथा कुशल संगीतज्ञ था। अली बरीद जो बीदर का तीसरा शासक था, अपने चातुर्य के कारण रूव-ए-दकन (दक्षिण की लोमड़ी) कहलाता था। बीदर के इतिहास में अनेक किवदंतियाँ तथा पीर, जिनों तथा परियों की कहानियों का मिश्रण है। यहाँ सुल्तानों के मक़बरों के अतिरिक्त मुसलमान संतों की अनेक समाधियाँ भी हैं।

बीदर नगर मंजीरा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ के ऐतिहासिक स्मारकों में सबसे अधिक सुंदर अहमदशाह बली का मक़बरा है। इसमें दीवारों और छतों पर सुंदर फ़ारसी शैली की नक़्क़ाशी की हुई है तथा नीली और सिंदूरी रंग की पार्श्वभूमि पर सूफ़ी दर्शन के अनेक लेख अंकित हैं। इन लेखों पर तत्कालीन हिन्दू भक्ति तथा वेदांत की भी छाप है। इसी मकबरे के दक्षिण की ओर की भित्ती पर "मुहम्मद" और "अहमद" ये दो नाम हिन्दू स्वस्तिक चिह्न के रूप में लिखे हुए हैं। बीदर के दो

[p.638]: पुराने मक़बरे, जो मुग़ल बादशाह हुमायूँ और मुहम्मदशाह तृतीय के स्मारक थे, बिजली गिरने से भूमिसात हो गए थे। बीदर के क़िले का निर्माण अहमदशाह वली ने 1429-1432 ई. में करवाया था। पहले इसके स्थान पर हिन्दू कालीन दुर्ग था। मालवा के सुल्तान महमूद ख़िलजी के आक्रमण के पश्चात् इस क़िले का जीर्णोंद्वार निज़ामशाह बहमनी ने 1461-1463 करवाया था। क़िले के दक्षिण में तीन, उत्तर में दो और शेष दिशाओं में केवल एक खाई है। दीवारों में सात फाटक हैं। क़िले के अन्दर कई भवन हैं।

(1). रंगीन महल - इसमें ईंट, पत्थर और लकड़ी का सुंदर काम दिखाई देता है। गढ़े हुए चिकने पत्थरों में सीपियाँ जड़ी हुईं हैं। वास्तुकर्म बहमनी और बरीदी काल का है।

(2). तुर्काशमहल - किसी बहमनी सुल्तान की बेग़म के लिए बनवाया गया था। इसमें भी बरीदकला की छाप है।

(3). गगन महल - इसे बहमनी सुल्तानों ने बनवाया और बरीदी शासकों ने विस्तृत करवाया था।

(4). जाली महल - यह सभागृह था। इसमें पत्थर की सुंदर जाली लगी है।

(5). तख्त महल - इसका निर्माता अहमदशाह वली था। यह महल अपने भव्य सौदर्य के लिए प्रसिद्ध था।

(6). हज़ार कोठरी - यह तहख़ानों के रूप में बनी है।

(7). सोलहखंभा मसजिद - यह मसजिद सोलह खंभों पर टिकी है। 1656 ई. में दक्षिण के सूबेदार शाहज़ादा औरंगज़ेब ने इसी मसजिद में शाहजहाँ के नाम ख़ुतबा पढ़ा था। यह भारत की विशाल मसजिदों में से एक है। एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि इसे कुबली सुल्तानों ने सुल्तान मुहम्मद बहमनी के शासन काल में बनवाया था।

(8). वीर संगैया का प्राचीन शिवमंदिर - यह क़िले के अंदर 'हिन्दू कालीन स्मारक' है।

किंवदंती के अनुसार विजयनगर की लूट में लाई हुई अपार धन राशि इस क़िले में कहीं छिपा दी गई थी किंतु इसका रहस्य अभी तक प्रकट न हो सका है। बीदर के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मारक निम्नलिखित ये हैं-

चौबारा - यह किसी प्राचीन मंदिर का दीपस्तम्भ है। किंतु इसकी कला मुस्लिम कालीन मालूम पड़ती है।

महमूद गवाँ का मदरसा - यह बहमनी काल की सबसे अधिक प्रभावशाली इमारत है और वास्तव में स्थापत्य तथा नक्शे की सुंदरता की दृष्टि से भारत की ऐतिहासिक इमारतों में अद्वितीय है। इस मदरसे को बनाने वाला स्वयं महमूद गवाँ था, जो बहमनी राज्य का परम बुद्धिमान मंत्री था। यह विद्यानुरागी तथा कलाप्रेमी था। यह मदरसा तत्कालीन समरकंद के उलुग बेग के मदरसे की अनुकृति में बनवाया गया था। इस भवन की मीनारें गोल तथा बहुत भव्य जान पड़ती हैं। प्रवेशद्वार भी बहुत विशाल तथा शानदार थे, किंतु अब नष्ट हो गए हैं।

महमूद गवाँ का मक़बरा - यह बीदर से ढाई मील दूर नीम के पेड़ों की छाया में स्थित है। प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण यह

[p.639]: मक़बरा महमूद गवाँ के प्रभावशाली व्यक्तित्व के अनुरूप न बन सका था। पर मध्य युग के इस महापुरुष की स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए क़ाफी है। गवाँ के मदरसे के कुछ दूर एक प्रवेशद्वार है, जिसके अंदर एक भवन दिखाई देता है। इसको 'तख्त-ए-किरमानी' कहा जाता है, क्योंकि इसका संम्बन्ध संत ख़लीलुल्लाह से बताया जाता है। इसके स्तंभ हिन्दू मंदिरों के स्तंभों की शैली में बने हैं।

बीदर से 2 मील दूर अष्टूर नामक स्थान के निकट बहमनीकालीन 8 मकबरे हैं. इनमें अल्लाउद्दीनशाह (मृत्यु 1436 ई.) का मकबरा असली हालत में बहुत शानदार रहा होगा. बीदर के बरीदी सुल्तानों के मकबरे बीदर के 10 फर्लांग की दूरी पर हैं. इनमें अली बरीद (1542-1580 ई.) का स्मारक अपने समानुपातिक सौंदर्य और सम्मिति के लिए बेजोड़ कहा जाता है. कुछ विद्वानों का विचार है की बहमनीकाल के मकबरों की भारी-भरकम शैली इस मकबरे की कला में परिवर्तित रूप में आई है किंतु अन्य लोगों का मत है कि इस स्मारक का भारी गुंबद और संकीर्ण आधार दोष रहित नहीं हैं मकबरे की दीवारों पर फारसी कवि अतर के शेर खुदे हैं.

काली मस्जिद - 1604 ई. में औरंगज़ेब के शासलकाल में अब्दुल रहमान रहीम की बनाई हुई काली मसजिद काले पत्थर की बनी शानदार इमारत है। यहाँ फ़ख़रुल मुल्क़ ज़िलानी का मक़बरा एक विशाल, ऊँचे चबूतरे पर बना है।

नाई का मक़बरा - यह मक़बरा दिल्ली के सुल्तानों के मक़बरों की शैली पर बना है।

कुत्ते का मक़बरा - उदगीर मार्ग पर स्थित 'कुत्ते का मक़बरा' उसी से सम्बन्धित है, जिसका उल्लेख इतिहास लेखक फ़रिश्ता ने अहमदशाह वली के साथ किया है।

स्तंभ: उदगीर जाने वाली प्राचीन सड़क पर चार स्तंभ हैं जिन्हें रन खंभ कहा जाता है। दो खंभे एक स्थान पर और दो 591 गज़ की दूरी पर स्थित हैं। कहा जाता है कि ये स्तंभ बरीदी सुल्तानों के मक़बरोंं की पूर्वी ओर पश्चिमी सीमाएँ निर्धारित करते थे।

बीदर परिचय

बीदर हैदराबाद के पश्चिमोत्तर में 109 कि.मी. की दूरी पर समुद्र तल से 700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ दक्कन की मुस्लिम स्थापत्य कला के कुछ शानदार नमूने उपस्थित हैं।

इतिहास: अलग-अलग मध्यकालीन हिन्दू राजवंशों के समय बीदर का काफ़ी महत्त्व रहा। बाद में, 1531 में बीदर बरीदशाही राजवंश के अंतर्गत एक स्वतंत्र सल्तनत बन गया। 1565 ई. में विजय नगर के विरुद्ध बीजापुर, अहमदनगर और गोलकुंडा के सम्मिलित अभियान में यह भी शामिल था और तालीकोट की लड़ाई में इन सब ने सम्मिलित रूप से विजय प्राप्त की। 1619-1620 में इस नगर पर बीजापुर कि सल्तनत का क़ब्ज़ा हो गया, लेकिन 1657 में इसे मुग़ल सूबेदार औरंगज़ेब ने इसे छीन लिया और 1686 में औपचारिक रूप से इसे मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।

मुग़ल साम्राज्य के विघटन के समय, बीदर 1724 में हैदराबाद के निज़ाम के हाथ आ गया। 1956 में जब हैदराबाद प्रांत का विभाजन हुआ, उस समय बीदर शहर और मैसूर ज़िले (वर्तमान कर्नाटक) को स्थानांतरित कर दिए गए।

बीदर के 68 कि.मी. पश्चिम में स्थित कल्याणी द्वितीय चालुक्य राजवंश (10वीं से 12वीं शाताब्दी) की राजधानी थी।

बीदर के महल की तारीफ़ में दो क़सीदे लिखने के लिए ख़ुरासान से नवें बहमनी सुल्तान अहमद ने अज़ारी शेख नामक शायर को बहुत-सा धन दिया था।

एक अन्य प्रमुख बहमनी इमारत वहाँ का मदरसा है, जिसका निर्माण 1472-1481 में किया गया था, इसके अब विशाल भग्नावशेष ही बचे हैं। शहर के पूर्वी हिस्से में, जहाँ एक तरफ़ आठ बहमनी शासकों के गुंबदनुमा मक़बरे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ पश्चिम में बरार के सुल्तानों की शाही क़ब्रगाह है। 14वीं शाताब्दी से ही बीदर को, बीदरी पात्रों, धातु की दमिश्की वस्तुओं ( जड़ाऊ और लहरदार), जिन पर चाँदी के तारों से फूल-पत्तों की और ज्यामितीय आकृतियाँ बनी होती हैं, के लिए जाना जाता है।

बीदर क़िला: मालवा के सुल्तान महमूद ख़िलजी के आक्रमण के पश्चात् इस क़िले का जीर्णोंद्वार निज़ाम शाह बहमनी ने करवाया था (1461-1463)। क़िले के दक्षिण में तीन, उत्तर में दो और शेष दिशाओं में केवल एक खाई है। दीवारों में सात फाटक हैं। क़िले के अन्दर कई भवन हैं.

विदर्भ

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है .....Vidarbha विदर्भ (AS, p.854): विंध्याचल के दक्षिण में अवस्थित प्रदेश जिसकी स्थिति वर्तमान बरार के परिवर्ती क्षेत्र में मानी गई है। विदर्भ अतिप्राचीन समय से दक्षिण के जनपदों में प्रसिद्ध रहा है। वृहदारण्यकोपनिषत में विदर्भी-कौडिन्य नामक ॠषि का उल्लेख है जो विदर्भ के निवासी रहे होंगे। पौराणिक अनुश्रुति में कहा गया है कि किसी ॠषि के श्राप से इस देश में घास या दर्भ उगनी बंद हो गई थी [p.855]: जिसके कारण यह विदर्भ कहलाया। महाभारत में विदर्भ देश के राजा भीम का उल्लेख है जिसकी राजधानी कुण्डिनपुर में थी। इसकी पुत्री दमयंती निषध नरेश की महारानी थी। 'ततो विदर्भान् संप्राप्तं सायाह्ने सत्यविक्रमम्, ॠतुपर्णं जना राज्ञेभीमाय प्रत्यवेदयन्'--वनपर्व 73,1.

विदर्भ नरेश भोज की कन्या रुक्मिणी के हरण तथा कृष्ण के साथ उसके विवाह का वर्णन भी श्रीमद्भावगत में है। श्री कृष्ण रुक्मिणी की प्रणय याचाना के फलस्वरूप आनर्त देश से विदर्भ पहुँचे थे। आनर्तादेकरात्रेण विदर्भानगमध्दयै (श्रीमद्भागवत 10,53,6). महाभारत में भीष्मक को, जो रुक्मिणी का पिता था, विदर्भ देश का राजा कहा गया है। भोजकट में उसकी राजधानी थी। हरिवंश पुराण (विष्णुपर्व 60,32) में भी विदर्भ की राजधानी भोजकट में बतायी गयी है।

कालिदास के समय में विदर्भ का विस्तार नर्मदा के दक्षिण से लेकर (रघुवंश सर्ग 5 के वर्णन के अनुसार अज ने जिसकी राजधानी अयोध्या में थी। विदर्भराज भोज की बहिन इंदुमती के स्वयंवर में जाते समय नर्मदा को पार किया था) कृष्णा के उत्तरी तट तक था। रघुवंश 5,41 में अज का इंदुमती स्वयंवर के लिए विदर्भदेश की राजधानी जाने का उल्लेख है-- 'प्रस्थापयामास ससैन्यमेनमृध्दां विदर्भाधिपराजधानीम्।'

विदर्भ उत्तरी और दक्षिणी भागों में विभक्त था। उत्तरी विदर्भ की राजधानी अमरावती और दक्षिणी विदर्भ की प्रतिष्ठानपुर थी। मालविकाग्निमित्र, अकं 5 के निम्न वर्णन से सूचित होता है कि शुंग काल में विदर्भ-विषय नामक एक स्वतन्त्र राज्य था-- 'विदर्भविषयाद् भ्रात्रा वीरसेनेन प्रेषितं लेखं लेखकरैः वाच्यमानं श्रृणोति'। मालविकाग्निमित्र में विदर्भराज और विदिशा के शासक अग्निमित्र (पुष्पमित्र शुंग का पुत्र) का परस्पर वैमनस्य और युद्ध का वर्णन है। विष्णु पुराण 4,4, में विदर्भ तनया केशिनी का उल्लेख है जो सगर की पत्नी थीं।

मुग़ल सम्राट अकबर के समकालीन अबुल फज़ल ने आइना-ए-अकबरी में विदर्भ का नाम वरदातट लिखा है। संभवतः वरदा नदी (वर्धा) के निकट स्थित होने के कारण ही मुग़ल काल में विदर्भ का यह नाम प्रचलित हो गया था। बरार तथा बीदर नामों की व्युत्पत्ति भी विदर्भ से ही मानी जाती है।

External links

References

  1. Directorate of Economics and Statistics, B'luru, 2013
  2. Karnataka Gazetteer (Second ed.). Govt. of Karnataka. 1 January 1983.
  3. "Travel Blog". 5 January 2008.
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.636-639
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.854