Bilhan Dev Tomar

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Raja Bilhan Dev was a Tomar King of Delhi.

जाट राजा कौन्तेय बिल्हण देव तोमर /तँवर

राजा बिल्हण देव का विवाह यदुवंशी सिनसिनवार जाटों में हुआ इतिहासकार पंडित राधेश्याम भी इसी बात पर मोहर लगते है की दिल्ली की स्थापना निकट जाट भूमि हरियाणा के कुंतल तोमर वंश ने की थी जिनका शासन बारहवीं सदी के उत्तर्राद्ध तक रहा जो सातवीं शताब्दी से पहले अर्जुनायन और कौन्तेय (कुंतल) ही कहलाते थे कर्नल टॉड ने इनका राजतिलक का समय सन 791 ईस्वी दिया राजतरंगनी में इसका सन 791 ईस्वी दिया गया है जबकि प्रामाणिक समय 736 ईस्वी माना गया है हेमचन्द्र राय और कनिघम ने भी दिल्ली की स्थापना और राजतिलक का समय 736 ईस्वी माना है अल्लाउदीन खिलजी के दरबारी कवि आमिर खुसरो ने लिखा है दिल्ली पर 800 ईस्वी के लगभग तंवर वंश के शक्ति शाली राजा अनंगपाल का शासन था जब इन्होने यहां शासन स्थापित किया था यह क्षेत्र इनके जाट वंशधरो दुवारा गणतंत्र प्रणाली से शासित था यह किसी राज्य का अंग नहीं था इसलिए इन्होने अन +अंग क्षेत्र के पालन करता की उपाधि धारण की इस कुंतल तोमर वंश के जाट राजाओ में तीन मुख्य राजाओ को अनंगपाल बोला जाता है इस पदवी को धारण करने वाले प्रथम शासक बिल्हण देव हुए बिल्हण देव को अनंगपाल तोमर प्रथम के नाम से जाना जाता है इनके बाद 21 कुंतल तोमर जाट दिल्ली की गद्दी पर बैठे उन्होंने 754 ईस्वी तक शासन किया इनके कई पुत्र हुए जिन में से तेजा ,इंद्रादेव ,रणराज ,अचलराज ,द्रुपद शिशुपाल ,भूमिपाल, वासुदेव हुए इनके राज्य की सीमा लौर / लोहार वंशी कश्मीरी नरेश ललितादित्य मुक्तापिण्ड से ,कन्नौज के जाट राजा यशोवर्मन से बयाना के सिनसिनवार जाट राजाओ से लगती थी इनके राज्य में वर्तमान का दिल्ली ,सम्पूर्ण हरियणा प्रदेश और बागपत, मेरठ ,मुज़फ्फरनगर ,मथुरा ,अलीगढ ,आगरा से लेकर कन्नौज तक राजस्थान का अलवर और भरतपुर जिलों का उत्तरी भाग सम्मलित था ।

बिल्हण देव की मुद्रा प्राप्त हुई है उसपर श्री जा +जाउल लिखा हुआ है इनके बाद इनके पुत्र वासुदेव गद्दी पर बैठे इनके पुत्र द्रुपद ने असीगढ़ वर्तमान के हांसी की स्थापना की यहाँ पर इन्होने शस्त्रागार स्थापित किया और एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया इनके पुत्र अचलराज को अछनेरा की जागीरी मिली सिकंदर लोधी के समय अचलराज के वंशज छत्तीसगढ़ के जंगलो में चले गए उनको वर्तमान में अगरिया चौधरी बोला जाता है राजा बिल्हण देव ने अनंगपुर धाम की स्थापना की जो तोमर वंश की राजधानी भी रही इनके समय पर रणथम्भौर पर नागिल /नाग जाटों का था जो दिल्ली के राजा बिल्हण देव के निकट रिश्तेदार थे भाटो के अनुसार इनका राजा रणमल सिंह वीर था उसके साथ बिल्हण देव ने अपनी पुत्री का विवाह किया इन्होने मौर जाट को कचौरा की जागीरी प्रदान की।


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