Chaudhary Mihr Mitha Dhaliwal

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Chaudhary Mihr Mitha Dhaliwal (चौधरी मीरमत्ता धालीवाल) was a famous zamindar of Ferozepur district of Indian state of Punjab during the reign of Mughal Emperor, Akbar. He had a beautiful daughter Dharm Kaur whom Akbar wanted to marry. Akbar sent him the farmaan which read that he wanted to marry his daughter.

In his response, Ch. Mihr Mitha said that he would discuss this proposal with other chaudhris of Jat Khaps. He did the same and organised the meeting of 35 Jat Clan Khaps. In the Khap, the matter was discussed and it was decided that they wouldn't give their daughter to a non-Jat man. And in return they were ready to fight with Akbar till their last breath. Even Ch. Mihr Mitha 's daughter Dharm Kaur too spoke in the Khap that she would love to die but wouldn't marry to Akbar.

The Khap's decision was sent to Emperor Akbar. Akbar got impressed by the courage and valour shown by Dhaliwal Jats. He invited Ch. Mihr Mitha to his court and conferred him the title of mian. He also donated jagirs of 120 villages to Dhaliwal Jats.

Excerpts from Jat History

Dalip Singh Ahlawat writes -

फिरोजपुर जिले के एक दोलाकाँगड़ा नामक गांव में धारीवाल गोत्र का चौधरी मीरमत्ता रहता था। उसकी पुत्री धर्मकौर बड़ी बलवान् एवं सुन्दर थी। एक बार सम्राट् अकबर दौरे पर उस मीरमत्ता के गाँव के समीप से जा रहा था। उसने देखा कि मीरमत्ता की उस सुन्दर पुत्री ने पानी का घड़ा सिर पर रक्खे हुए, अपने भागते हुए शक्तिशाली बछड़े को उसके रस्से पर पैर रख कर उस समय तक रोके रक्खा जब तक कि उसके पिता मीरमत्ता ने आकर उस रस्से को न पकड़ लिया। अकबर यह दृश्य देखकर चकित रह गया और उस लड़की के बल एवं सुन्दरता को देखकर मोहित हो गया। अकबर ने मीरमत्ता को उसकी इस पुत्री का अपने साथ विवाह करने का आदेश दे दिया। मीरमत्ता ने जाट बिरादरी से सलाह लेने का समय माँगा। इस पर विचार करने के लिए 35 जाटवंशीय खापों की पंचायत एकत्रित की गई जिसके अध्यक्ष सिन्धु जाट गोत्र के चंगा चौधरी थे। पंचायत ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया कि “अकबर को लड़की नहीं दी जायेगी। यदि वह अपना सैनिक बल लगाकर लड़की को ले जाने का यत्न करेगा तो उसके साथ युद्ध करके अपने धर्म की रक्षा हेतु मर मिटेंगे।” यह प्रस्ताव लेकर चँगा और मीरमत्ता अकबर के दरबार में पहुंचे। सिन्धु जाट चँगा ने निडरता एवं साहस से पंचायत का निर्णय अकबर को सुनाया। अकबर ने चँगा जाट को चौधरी की उपाधि देकर आपसी मेलजोल स्थापित कर लिया। देखो जाटवीरों का इतिहास, तृतीय अध्याय, सिन्धु गोत्र प्रकरण)।

नोट
जाटों ने अपनी किसी भी लड़की का डोला मुगल बादशाहों, मुसलमानों तथा किसी अन्य जाति के पुरुष को नहीं दिया। यह जाटों की गौरवशाली विशेषता है जिससे संसार में इनका मस्तक सदा उँचा रहता आया है। इनके ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरे पड़े हैं। यदि किसी ईर्ष्यालु लेखक ने यह बात लिखी भी है कि जाटों ने अपनी लड़कियों के डोले किसी अन्य धर्मी या अन्य जाति के लोगों को दिये, तो यह बात बेबुनियाद, मनगढंत, प्रमाणशून्य और अमाननीय है। (लेखक)[1]

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References