Darjeeling

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Darjeeling district map

Darjeeling (दार्जिलिंग) is a city and district in West Bengal. It is a hill station and a popular tourist destination in India. It is noted for its tea industry, its views of Kangchenjunga, the world's third-highest mountain, and the Darjeeling Himalayan Railway, a UNESCO World Heritage Site.

Location

It is located in the Lesser Himalayas at an elevation of 6,700 ft.

Origin

The etymological term of Darjeeling is denoted "Tajenglung", a Yakthung Limbu terminology that means the stones that "talk to each other", according to the historian Sankarhang Subba of Darjeeling.[1] The name Darjeeling acclaimed from the Tibetan words Dorje, which is the thunderbolt sceptre of the Hindu deity Indra, and ling, which means "a place" or "land".[2]

History

The history of Darjeeling is intertwined with that of Sikkim, Nepal, British India, and Bhutan. Until the early 19th century, the hilly area around Darjeeling was controlled by the Kingdom of Sikkim[3] with the settlement consisting of a few villages of the Lepcha, and Kirati people.[4] The Chogyal of Sikkim had been engaged in unsuccessful warfare against the Gurkhas of Nepal. The territory of Darjeeling and its history goes on back to the ancient Yakthung Laje Limbuwan kingdom. After the Treaty of Sugauli in 1816 CE between the Gurkha king and the East India Company, Darjeeling was ceded to Sikkim through British India.

The recorded history of the town starts from the early 19th century when the colonial administration under the British Raj set up a sanatorium and a military depot in the region. Subsequently, extensive tea plantations were established in the region and tea growers developed hybrids of black tea and created new fermentation techniques. The resultant distinctive Darjeeling tea is internationally recognised and ranks among the most popular black teas in the world.

The Darjeeling Himalayan Railway connects the town with the plains and has some of the few steam locomotives still in service in India.

Darjeeling, alongside its neighbouring town of Kalimpong, was the centre of the Gorkhaland social movement in the 1980s and summer 2017.

Darjeeling has several British-style private schools, which attract pupils from all over India and a few neighbouring countries.

People

The varied culture of the town reflects its diverse demographic milieu comprising Lepcha, Khampa, Gorkha, Kirati, Newar, Sherpa, Bhutia, Bengali and other mainland Indian ethno-linguistic groups.

Gorkhas, speaking Nepali as their native language, form the majority which includes indigenous ethnic groups such as the Bhutia, Chhetri, Gurung, Lepcha, Limbu, Magar, Newars, Rai, Sherpa, Tamang, Yolmo, along with several other denominations under the Indo-Aryan Khas and the Tibeto-Burman Kiratas. Other communities that inhabit Darjeeling include the Anglo-Indians, Bengalis, Biharis, Chinese, Marwaris, Rajbanshis and Tibetans. The prevailing languages are Nepali, Hindi, Bengali and English. Bengali is prevalent in the plains while Tibetan is used by the refugees and some tribal people. Dzongkha is spoken by the Bhutias and the Tibetans.

दार्जिलिंग परिचय

दार्जिलिंग भारत के राज्य पश्चिम बंगाल का एक नगर है. यह नगर दार्जिलिंग जिले का मुख्यालय है. यह नगर शिवालिक पर्वतमाला में लघु हिमालय में अवस्थित है. यहां की औसत ऊँचाई 6982 फुट है.

दार्जिलिंग शब्द की उत्त्पत्ति दो तिब्बती शब्दों, दोर्जे (बज्र) और लिंग (स्थान) से हुई है. इस का अर्थ "बज्र का स्थान" है.[5] भारत में ब्रिटिश राज के दौरान दार्जिलिंग की समशीतोष्ण जलवायु के कारण से इस जगह को पर्वतीय स्थल बनाया गया था. ब्रिटिश निवासी यहां गर्मी के मौसम में गर्मी से छुटकारा पाने के लिए आते थे.

दार्जिलिंग चाय: दार्जिलिंग अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर यहां की दार्जिलिंग चाय के लिए प्रसिद्ध है. यहां की चाय की खेती 1856 से शुरु हुई थी. यहां की चाय उत्पादकों ने काली चाय और फ़र्मेन्टिंग प्रविधि का एक सम्मिश्रण तैयार किया है जो कि विश्व में सर्वोत्कृष्ट है.

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे: एक युनेस्को विश्व धरोहर स्थल तथा प्रसिद्ध स्थल है. दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे जो कि दार्जिलिंग नगर को समथर स्थल से जोड़ता है, को 1999 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था. यह वाष्प से संचालित यन्त्र भारत में बहुत ही कम देखने को मिलता है.

गोरखालैंड राज्य की मांग: सन 1980 की गोरखालैंड राज्य की मांग इस शहर और इस के नजदीक का कालिम्पोंग के शहर से शुरु हुई थी. अभी राज्य की यह मांग एक स्वायत्त पर्वतीय परिषद के गठन के परिणामस्वरूप कुछ कम हुई है. गोरखालैंड राज्य की मांग से चले आंदोलन के कारण यह क्षेत्र उपेक्षित हो गया. यहां का वातावरण ज्यादा पर्यटकों और अव्यवस्थित शहरीकरण के कारण से कुछ बिगड़ रहा है. ऐतिहासिक स्मारकों और शहर का रख-रखाव अपेक्षित स्तर का नहीं रह गया है.

इतिहास: इस स्‍थान की खोज उस समय हुई जब आंग्‍ल-नेपाल युद्ध के दौरान एक ब्रिटिश सैनिक टुक‍ड़ी सिक्किम जाने के लिए छोटा रास्‍ता तलाश रही थी. इस रास्‍ते से सिक्‍किम तक आसान पहुंच के कारण यह स्‍थान ब्रिटिशों के लिए रणनीतिक रूप से काफी महत्‍वपूर्ण था. इसके अलावा यह स्‍थान प्राकृतिक रूप से भी काफी संपन्‍न था. यहां का ठण्‍डा वातावरण तथा बर्फबारी अंग्रेजों के मुफीद थी. इस कारण ब्रिटिश लोग यहां धीरे-धीरे बसने लगे.

प्रारंभ में दार्जिलिंग सिक्किम का एक भाग था. बाद में भूटान ने इस पर कब्‍जा कर लिया. लेकिन कुछ समय बाद सिक्किम ने इस पर पुन: कब्‍जा कर लिया. परंतु 18वीं शताब्‍दी में पुन: इसे नेपाल के हाथों गवां दिया. किन्‍तु नेपाल भी इस पर ज्‍यादा समय तक अधिकार नहीं रख पाया. 1817 ई. में हुए आंग्‍ल-नेपाल में हार के बाद नेपाल को इसे ईस्‍ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा.

अपने रणनीतिक महत्‍व तथा तत्‍कालीन राजनीतिक स्थिति के कारण 1840 तथा 50 के दशक में दार्जिलिंग एक युद्ध स्‍थल के रूप में परिणत हो गया था. उस समय यह जगह विभिन्‍न देशों के शक्‍ति प्रदर्शन का स्‍थल बन चुका था. पहले तिब्‍बत के लोग यहां आए. उसके बाद यूरोपियन लोग आए. इसके बाद रुसी लोग यहां बसे. इन सबको अफगानिस्‍तान के अमीर ने यहां से भगाया. यह राजनीतिक अस्थिरता तभी समाप्‍त हुई जब अफगानिस्‍तान का अमीर अंगेजों से हुए युद्ध में हार गया. इसके बाद से इस पर अंग्रेजों का कब्‍जा था. बाद में यह जापानियों, कुमितांग तथा सुभाषचंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की भी कर्मस्‍थली बना. स्‍वतंत्रता के बाद ल्‍हासा से भागे हुए बौद्ध भिक्षु यहां आकर बस गए.

वर्तमान में दार्जिलिंग पश्‍चिम बंगाल का एक भाग है. इसका उत्तरी भाग नेपाल और सिक्किम से सटा हुआ है. यहां शरद ऋतु जो अक्‍टूबर से मार्च तक होता है. इस मौसम यहां में अत्‍यधिक ठण्‍ड रहती है. यहां ग्रीष्‍म ऋतु अप्रैल से जून तक रहती है. इस समय का मौसम हल्‍का ठण्‍डापन लिए होता है. यहां बारिश जून से सितम्‍बर तक होती है. ग्रीष्‍म काल में ही यहां अधिकांश पर्यटक आते हैं.

दार्जिलिंग के मुख्य आकर्षण

दार्जिलिंग शहर का दृश्य

औपनिवेशिक काल का परिदृश्य: यह शहर पहाड़ की चोटी पर स्थित है. यहां सड़कों का जाल बिछा हुआ है. ये सड़के एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इन सड़कों पर घूमते हुए आपको औपनिवेशिक काल की बनी कई इमारतें दिख जाएंगी. ये इमारतें आज भी काफी आकर्षक प्रतीत होती हैं. इन इमारतों में लगी पुरानी खिड़कियां तथा धुएं निकालने के लिए बनी चिमनी पुराने समय की याद‍ दिलाती हैं. आप यहां कब्रिस्‍तान, पुराने स्‍कूल भवन तथा चर्चें भी देख सकते हैं. पुराने समय की इमारतों के साथ-साथ आपकों यहां वर्तमान काल के कंकरीट के बने भवन भी दिख जाएंगे. पुराने और नए भवनों का मेल इस शहर को एक खास सुंदरता प्रदान करता है.

ट्वॉय ट्रेन: इस अनोखे ट्रेन का निर्माण 19वीं शताब्‍दी के उतरार्द्ध में हुआ था. दार्जिलिंग हिमालयन रेलमार्ग, इंजीनियरिंग का एक आश्‍चर्यजनक नमूना है. यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है. यह पूरा रेलखण्‍ड समुद्र तल से 7546 फीट ऊंचाई पर स्थित है. इस रेलखण्‍ड के निर्माण में इंजीनियरों को काफी मेहनत करनी पड़ी थी. यह रेलखण्‍ड कई टेढ़े-मेढ़े रास्‍तों त‍था वृताकार मार्गो से होकर गुजरता है. लेकिन इस रेलखण्‍ड का सबसे सुंदर भाग बताशिया लूप है. इस जगह रेलखण्‍ड आठ अंक के आकार में हो जाती है. अगर आप ट्रेन से पूरे दार्जिलिंग को नहीं घूमना चाहते हैं तो आप इस ट्रेन से दार्जिलिंग स्‍टेशन से घूम-मठ तक जा सकते हैं. इस ट्रेन से सफर करते हुए आप इसके चारों ओर के प्राकृतिक नजारों का लुफ्त ले सकते हैं. इस ट्रेन पर यात्रा करने के लिए या तो बहुत सुबह जाएं या देर शाम को. अन्‍य समय यहां काफी भीड़-भाड़ रहती है.

चाय उद्यान: दार्जिलिंग एक समय मसालों के लिए प्रसिद्ध था. चाय के लिए ही दार्जिलिंग विश्‍व स्‍तर पर जाना जाता है. डॉ. कैम्‍पबेल, जो कि दार्जिलिंग में ईस्‍ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्‍त पहले निरीक्षक थे, पहली बार लगभग 1830 या 40 के दशक में अपने बाग में चाय के बीज को रोपा था. ईसाई धर्मप्रचारक बारेनस बंधुओं ने 1880 के दशक में औसत आकार के चाय के पौधों को रोपा था. बारेन बंधुओं ने इस दिशा में काफी काम किया था. बारेन बंधुओं द्वारा लगाया गया चाय उद्यान वर्तमान में बैनुकवर्ण चाय उद्यान के नाम से जाना जाता है.

चाय का पहला बीज जो कि चाइनिज झाड़ी का था कुमाऊं हिल से लाया गया था. लेकिन समय के साथ यह दार्जिलिंग चाय के नाम से प्रसिद्ध हुआ. स्‍थानीय मिट्टी तथा हिमालयी हवा के कारण दार्जिलिंग चाय की गणवता उत्तम कोटि की होती है. वर्तमान में दार्जिलिंग में तथा इसके आसपास लगभग 87 चाय उद्यान हैं. हैपी-वैली-चाय उद्यान जो कि शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है, आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां आप मजदूरों को चाय की पत्तियों को तोड़ते हुए देख सकते हैं. आप ताजी पत्तियों को चाय में परिवर्तित होते हुए भी देख सकते हैं. लेकिन चाय उद्यान घूमने के लिए इन उद्यान के प्रबंधकों को पहले से सूचना देना जरुरी होता है.

जापानी मंदिर (पीस पैगोडा): विश्‍व में शांति लाने के लिए इस स्‍तूप की स्‍थापना फूजी गुरु, जो कि महात्‍मा गांधी के मित्र थे, ने की थी. भारत में कुल छ: शांति स्‍तूप हैं. निप्‍पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर जो कि दार्जिलिंग में है भी इनमें से एक है. इस मंदिर का निर्माण कार्य 1972 ई. में शुरु हुआ था. यह मंदिर 1 नवम्बर 1992 ई. को आम लोगों के लिए खोला गया. इस मंदिर से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का अति सुंदर नजारा दिखता है.

टाइगर हिल: टाइगर हिल का मुख्‍य आनंद इस पर चढ़ाई करने में है. आपको हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे. इसी के पास कंचनजंघा चोटी है. 1838 से 1849 ई. तक इसे ही विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था. लेकिन 1856ई. में करवाए गए सर्वेक्षण से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि कंचनजंघा नहीं बल्कि नेपाल का सागरमाथा जिसे अंगेजों ने एवरेस्‍ट का नाम दिया था, विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी है. अगर आप भाग्‍यशाली हैं तो आपको टाइगर हिल से कंजनजंघा तथा एवरेस्‍ट दोनों चाटियों को देख सकते हैं. इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827 फीट का अंतर है. वर्तमान में कंचनजंघा विश्‍व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है. कंचनजंघा को सबसे रोमांटिक माउंटेन की उपाधि से नवाजा गया है. इसकी सुंदरता के कारण पर्यटकों ने इसे इस उपाधि से नवाजा है. इस चोटी की सुंदरता पर कई कविताएं लिखी जा चुकी हैं. इसके अलावा सत्‍यजीत राय की फिल्‍मों में इस चोटी को कई बार दिखाया जा चुका है.

सक्या मठ: यह मठ दार्जिलिंग से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सक्या मठ सक्या सम्‍प्रदाय का बहुत ही ऐतिहासिक और महत्‍वपूर्ण मठ है. इस मठ की स्‍थापना 1915 ई. में की गई थी. इसमें एक प्रार्थना कक्ष भी है. इस प्रार्थना कक्ष में एक साथ 60 बौद्ध भिक्षु प्रार्थना कर सकते हैं.

ड्रुग-थुब्तन-सांगग-छोस्लिंग-मठ: 11वें ग्यल्वाङ ड्रुगछेन तन्जीन ख्येन्-रब गेलेगस् वांगपो की मृत्‍यु 1960 ई. में हो गई थी. इन्‍हीं के याद में इस मठ की स्‍थापना 1971 ई. में की गई थी. इस मठ की बनावट तिब्‍बतियन शैली में की गई थी. बाद में इस मठ की पुनर्स्‍थापना 1993 ई. में की गई। इसका अनावरण दलाई लामा ने किया था.

माकडोग मठ: यह मठ चौरास्‍ता से तीन किलोमीटर की दूरी पर आलूबरी गांव में स्थित है. यह मठ बौद्ध धर्म के योलमोवा संप्रदाय से संबंधित है. इस मठ की स्‍थापना श्री संगे लामा ने की थी. संगे लामा योलमोवा संप्रदाय के प्रमुख थे. यह एक छोटा सा सम्‍प्रदाय है जो पहले नेपाल के पूवोत्तर भाग में रहता था. लेकिन बाद में इस सम्‍प्रदाय के लोग दार्जिलिंग में आकर बस गए. इस मठ का निर्माण कार्य 1914 ई. में पूरा हुआ था. इस मठ में योलमोवा सम्‍प्रदाय के लोगों के सामाजिक, सांस्‍‍कृतिक, धार्मिक पहचान को दर्शाने का पूरा प्रयास किया गया है।


घूम मठ (गेलुगस्): टाइगर हिल के निकट ईगा चोइलिंग तिब्‍बतियन मठ है. यह मठ गेलुगस् संप्रदाय से संबंधित है. इस मठ को ही घूम मठ के नाम से जाना जाता है. इतिहासकारों के अनुसार इस मठ की स्‍थापना धार्मिक कार्यो के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक बैठकों के लिए की गई थी।

इस मठ की स्‍थापना 1850 ई. में एक मंगोलियन भिक्षु लामा शेरपा याल्‍तसू द्वारा की गई थी. याल्‍तसू अपने धार्मिक इच्‍छाओं की पूर्त्ति के लिए 1820 ई. के करीब भारत में आए थे। इस मठ में 1918 ई. में बुद्ध की 15 फीट ऊंची मूर्त्ति स्‍थापित की गई थी. यह मूर्त्ति एक कीमती पत्‍थर का बना हुआ है और इसपर सोने की कलई की गई है. इस मठ में बहुमूल्‍य ग्रंथों का संग्रह भी है. ये ग्रंथ संस्‍कृत से तिब्‍बतीयन भाषा में अनुवादित हैं. इन ग्रंथों में कालीदास की मेघदूत भी शामिल है. हिल कार्ट रोड के निकट समतेन चोलिंग द्वारा स्‍थापित एक और जेलूग्‍पा मठ है. समय: सभी दिन खुला. मठ के बाहर फोटोग्राफी की अनुमति है।

भूटिया-‍‍बस्‍ती-मठ: यह दार्जिलिंग का सबसे पुराना मठ है. यह मूल रूप से ऑब्‍जरबेटरी हिल पर 1765 ई. में लामा दोरजे रिंगजे द्वारा बनाया गया था. इस मठ को नेपालियों ने 1815 ई. में लूट लिया था. इसके बाद इस मठ की पुर्नस्‍थापना संत एंड्रूज चर्च के पास 1861 ई. की गई. अंतत: यह अपने वर्तमान स्‍थान चौरासता के निकट, भूटिया बस्‍ती में 1879 ई. स्‍थापित हुआ. यह मठ तिब्‍बतियन-नेपाली शैली में बना हुआ है. इस मठ में भी बहुमूल्‍य प्राचीन बौद्ध सामग्री रखी हुई है.

यहां का मखाला मंदिर काफी आकर्षक है. यह मंदिर उसी जगह स्‍थापित है जहां भूटिया-बस्‍ती-मठ प्रारंभ में बना था. इस मंदिर को भी अवश्‍य घूमना चाहिए. समय: सभी दिन खुला. केवल मठ के बाहर फोटोग्राफी की अनुमति है।

तेंजिंगस लेगेसी: हिमालय माउंटेनिंग संस्‍थान की स्‍थापना 1954 ई. में की गई थी. ज्ञातव्‍य हो कि 1953 ई. में पहली बार हिमालय को फतह किया गया था. तेंजिंग कई वर्षों तक इस संस्‍थान के निदेशक रहे. यहां एक माउंटेनिंग संग्रहालय भी है. इस संग्रहालय में हिमालय पर चढाई के लिए किए गए कई एतिहासिक अभियानों से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है. इस संग्रहालय की एक गैलेरी को एवरेस्‍ट संग्रहालय के नाम से जाना जाता है. इस गैलेरी में एवरेस्‍टे से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है. इस संस्‍थान में पर्वतारोहण का प्रशिक्षण भी दिया जाता है.

जैविक उद्यान: पदमाजा-नायडू-हिमालयन जैविक उद्यान माउंटेंनिग संस्‍थान के दायीं ओर स्थित है. यह उद्यान बर्फीले तेंदुआ तथा लाल पांडे के प्रजनन कार्यक्रम के लिए प्रसिद्ध है. आप यहां साइबेरियन बाघ तथा तिब्‍‍बतियन भेडिया को भी देख सकते हैं. मुख्‍य बस पड़ाव के नीचे पुराने बाजार में लियोर्डस वानस्‍पतिक उद्यान है. इस उद्यान को यह नाम मिस्‍टर डब्‍ल्‍यू. लियोर्ड के नाम पर दिया गया है. लियोर्ड यहां के एक प्रसिद्ध बैंकर थे जिन्‍होंने 1878 ई. में इस उद्यान के लिए जमीन दान में दी थी. इस उद्यान में ऑर्किड की 50 जातियों का बहुमूल्‍य संग्रह है. समय: सुबह ६ बजे से शाम ५ बजे तक. इस वानस्‍पतिक उद्यान के निकट ही नेचुरल हिस्‍ट्री म्‍यूजियम है. इस म्‍यूजियम की स्‍थापना 1903 ई. में की गई थी. यहां चिडि़यों, सरीसृप, जंतुओं तथा कीट-पतंगो के विभिन्‍न किस्‍मों को संरक्षत‍ि अवस्‍था में रखा गया है.

तिब्‍बतियन रिफ्यूजी कैंप: तिब्‍बतियन रिफ्यूजी स्‍वयं सहयता केंद्र चौरास्‍ता से 45 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है. इस कैंप की स्‍थापना 1959 ई. में की गई थी. इससे एक वर्ष पहले 1958 ई. में दलाई लामा ने भारत से शरण मांगा था. इसी कैंप में 13वें दलाई लामा (वर्तमान में 14 वें दलाई लामा हैं) ने 1910 से 1912 तक अपना निर्वासन का समय व्‍यतीत किया था. 13वें दलाई लामा जिस भवन में रहते थे वह भवन आज भग्‍नावस्‍था में है. आज यह रिफ्यूजी कैंप 650 तिब्‍बतियन परिवारों का आश्रय स्‍थल है. ये तिब्‍बतियन लोग यहां विभिन्‍न प्रकार के सामान बेचते हैं. इन सामानों में कारपेट, ऊनी कपड़े, लकड़ी की कलाकृतियां, धातु के बने खिलौन शामिल हैं. लेकिन अगर आप इस रिफ्यूजी कैंप घूमने का पूरा आनन्‍द लेना चाहते हैं तो इन सामानों को बनाने के कार्यशाला को जरुर देखें. यह कार्यशाला पर्यटकों के लिए खुली रहती है.

Gallery

External links

References

  1. Subba U.,( 'Sabdatitma Tajenglung' (Title) by Sankarhang Subba,) (Editor) Yuma Manghim Udghatan Samaroha Smarika 2017, Nalichour, Sonada, published by Limbu/ Subba Tribal Society, Darjeeling.
  2. https://darjeeling.gov.in/darj-hist.html
  3. Dasgupta, Atis (1999). "Ethnic Problems and Movements for Autonomy in Darjeeling". Social Scientist. Social Scientist. 27 (11–12): 47–68.
  4. Dasgupta 1999, p. 51.
  5. "Eastern Himalayas DARJEELING : The Queen of Hills". Neptune Tours & Travels