Dastane Pakistan Prem Prakash Shastri

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दास्ताने पाकिस्तान प्रेमप्रकाश शास्त्री
प्रेमप्रकाश शास्त्री के साथ दयाराम महरिया

लेखक: दयाराम महरिया, कूदन (सीकर )

पूज्य प्रेमप्रकाश जी शास्त्री जब 14 वर्ष के थे तब देश के बंटवारे के साथ हमें आजादी मिली ।आंख फूटी,दर्द मिटा। उनका गांव पाकिस्तान में आ गया । वहां का उनका पता था । गांव-हाजीपुर शरीफ़ तहसील-जामपुर जिला डेरागाजी खान, पाकिस्तान । उन्होंने बंटवारे की त्रासदी को भुगता है । पूज्य प्रेमप्रकाश जी 'शास्त्री' आजकल टोहाना जिला फतेहाबाद, हरियाणा में रहते हैं ।

हमारे गांव कूदन से लगभग 180 वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज रामूजी महरिया, कूदन से गांव डांगरा (टोहाना ) चले गए । उन्होंने वहां जाकर अच्छी प्रगति की। वहां के आदरणीय कर्मसिंह जी महरिया, पूर्व विधायक 101 वर्ष के हैं। प्रिय श्री सुरेंद्र जी महरिया ने वहां अपने खेड़े में बालाजी का मंदिर बना रखा है । उस मंदिर के प्रति स्थानीय समाज की गहरी आस्था है। मंदिर के बीसवें स्थापना दिवस पर वहां 16 फरवरी, 2022 महोत्सव था। वहां मैं गया था । वहीं पर प्रेमप्रकाश जी से मेरी भेंट हुई ।

प्रेमप्रकाश जी सेवानिवृत्त अध्यापक हैं । वर्तमान में नगर संघ चालक, टोहाना हैं। श्री सुरेंद्र जी महरिया उनके शिष्य रहे हैं। सुरेंद्र जी ने बताया कि जब वे शिक्षक थे तो बच्चों को आग्रह पूर्वक घर पर पढ़ाते थे परंतु उनसे किसी तरह का शुल्क नहीं लेते थे। उनका एकमात्र उद्देश्य बच्चों को शिक्षण करवाना होता था।शास्त्री जी की स्थानीय समाज में बड़ी प्रतिष्ठा है ।सभी उनका सम्मान करते हैं। उस कार्यक्रम में जब सुरेंद्र जी महरिया को शास्त्री जी ने अपने पास बैठने के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया- दुनिया में एकमात्र व्यक्ति आप हैं जिनके बराबर मैं नहीं बैठ सकता ।यह सुनकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई। उन्होंने अपना गुरुत्व समाज में स्थापित कर रखा है।ऐसे ही गुरु, गुरु को गोबिन्द के समकक्ष बनाते-मनाते हैं । उनकी महिमा-गरिमा के आगे मैं नतमस्तक हूं ।

उनकी पाकिस्तान से हिंदुस्तान आने की लोमहर्षक व्यथा- कथा का जाने-माने देशभक्त युवा फिल्मकार व वायस एक्टर प्रिय श्री वृजेन्द्र कुंबज ने 'दास्ताने पाकिस्तान - प्रेमप्रकाश शास्त्री' नाम से फिल्मांकन किया है । जिसे यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है। उसका सारांश व पूज्य प्रेमप्रकाश जी हुई मेरी वार्ता साझा कर रहा हूं -

हाजीपुर गांव पाकिस्तान के डेरा गाजी खान जिले में था । उसके दक्षिण में कोह सुलेमान (पहाड़) था । एक ओर पंच नदियां मिलती थी तो दूसरी ओर चिनाव नदी बहती थी ।अतः वहां रेल मार्ग नहीं था । अन्य आवागमन के साधन भी कम थे ।जिले की दुर्गम स्थिति के कारण ही बंटवारे के समय नेहरू ने कहा था कि डेरागाजी खान जिले के लोगों को भारत आने में काफी परेशानी होगी । देश आजाद हुआ तब वे कक्षा 5वीं में पढ़ते थे ।उन्होंने मुझे बताया कि वहां एक दरवाजे के भीतर अलग-अलग हिन्दू जातियों के मोहल्ले होते थे ।उनका मोहल्ला खट्टरों का था । बहुत अच्छा जीवन चल रहा था । वहां लड़कियों की कमी थी । अतः लड़कों के विवाह उन्हीं परिवारों में हो पाते थे जो बदले में लड़की देते थे जिसे राजस्थानी में 'आटा - साटा' कहा जाता है ।ऐसा ही उनके परिवार में हुआ था ।हिन्दू -मुसलमानों में भाईचारा था । देश आजाद हुआ उसके तुरंत बाद हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। उनके गांव की आबादी लगभग 10 हजार थी जिनमें 60 प्रतिशत मुसलमान थे । एक कुएं को छोड़कर अन्य कुओं का पानी मीठा नहीं था । शाम को प्रतिदिन की भांति वे खेलने गए हुए थे । उनके परिवार के श्यामसुंदर ने उन्हें आकर बताया कि शीघ्र मेरे साथ चलो । मुस्लिम लोग मारने के लिए आ रहे हैं।दरअसल यह झूठ था । वे अपने भाई के साथ शीघ्र घर आए तथा वहां से उनके ही गांव के प्रतिष्ठित मुखी परिवार में जाकर सब हिन्दुओं ने शरण ली । । वे अपनी माताजी कि अंगुली पकड़े हुए थे । रास्ते में अंगुली छूट गई और माताजी डर के मारे अकेली मुखी मोहल्ले में पहुंच गई ।वहां जाकर उन्हें पता चला कि उनका बेटा पीछे छूट गया है ।तब वो मेरा बेटा कहां है ? मेरा बेटा कहां है ? चिल्लाने लगी ।थोड़ी देर बाद वे वहाँ पहुंचे । मनुष्य को संतान प्रिय लगती है परंतु उससे प्रिय प्राण लगते हैं ।प्राण संकट में आए देख माता संतान को भूल गई । उनके गांव में दो मुसलमान प्रतिष्ठित एवं संपन्न थे ।एक सुन्नी व दूसरे शिया थे ।उनके मुनीम हिंदू थे ।लेन-देन का पूरा काम वे हिंदू मुनीम ही संभालते थे ।हिन्दुओं ने मुनिमों के माध्यम से उन दोनों परिवारों के मुखिया से शरण देने हेतु निवेदन किया । सुन्नी ने स्पष्ट मना कर दिया । शिया ने हिन्दुओं के लिए अपने दिल- दरवाजे खोल दिए । उनके नोहरे में उस गांव की लगभग 4000 हिंदू आबादी इकट्ठी हो गई। वहीं पर उनको भोजन मिलता और सुरक्षा भी शिया परिवार के आदमी करते ।दो-तीन व्यक्ति अपनी गायों को छोड़कर नहीं आए जिन्हें मार दिया गया । तीन दिन पश्चात उसने हिन्दुओं से कहा कि अब बाहरी मुसलमानों का मेरे पर अत्यधिक दबाव है। मुझे मुश्किल हो जायेगी इसलिए जान बचाने के लिए मुस्लिम बनना पड़ेगा । मौलवी व नाई को चोटी काटने के लिए बुलाया गया । वहीं पर गौ मांस पकाया जा रहा था । सबसे पहले ब्राह्मणों की चोटी एवं जनेऊ काटी गई । उसके बाद गांव के मुखिया थे उनकी चोटी काट कर कलमा पढ़ाया गया।चोटी काटते समय मुखी खिलुरामजी के फफक-फफक कर रोने का दृश्य याद कर आज भी प्रेमप्रकाश जी रोने लगते हैं ।धर्मान्तरण का कार्य चल रहा था इतने में दो गोरखा सैनिक वहां आ गए ।उस जमाने में लोग पुलिस से ही डरते थे वे तो मिलिट्री के सैनिक थे ।अतः उनके डर के कारण धर्मांतरण का कार्य रूक गया । जान बची, लाखों पाए ।तत्पश्चात उन्हें पड़ोसी गांव फाजलपुर मुस्लिम मिलिट्री के द्वारा ले जाया गया । मिलिट्री के लोग पहला ट्रक लेकर वहां गए ।उनको रोक कर कुछ लोगों को मार दिया गया ।शेष को वापिस मिलिट्री वाले ले आए।उसके बाद उन्हें हिन्दू मिलट्री के सैनिक फाजलपुर गांव लेकर गए । जहां संपन्न हिंदू परिवार थे। हिंदुओं की आबादी के चारों तरफ चार दरवाजे बने हुए थे। उनके ऊपर बन्दूकों से लैश हिन्दू पहरा देते। उसी के अंदर सब लोग रहते ।वहां से उन्हें जामपुर जो तहसील मुख्यालय था , ले जाया गया । तत्पश्चात डेरा गाजी खान जिला मुख्यालय के शेरशाह सूरी मैदान से होते हुए उन्हें रेलगाड़ी से अटारी बॉर्डर पर लाया गया।वहां पहली बार रेलगाड़ी देखी ।महिलाओं ने भाप के ईंजन को कालीमाता मानते हुए उसकी आरती उतारी । वे बताते हैं कि रास्ते का पानी पीने की मनाई थी क्योंकि उनको पुलिस वालों ने बताया कि पानी में जहर घोल दिया गया है ।दरअसल जहर पानी में ही नहीं उस बंटवारे ने हवाओं में भी घोल दिया था। भाई- भाई की तरह से रहने वाले हिंदू -मुस्लिम परिवार एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे ।प्रेमप्रकाश जी ने बताया कि जब दो रेलगाड़ियां पूरी की पूरी काट कर हिन्दुस्तान भिजवाई गई उस समय भी गांधीजी चिर- परिचित अहिंसा का राग अलापते रहे ।उन्होंने बताया कि उस समय सुना था कि उसके उत्तर में पटेल के इशारे पर एक रेलगाड़ी लाशों से भरी हुई पाकिस्तान भिजवाई गई। साथ ही यह चेतावनी भी दी गई कि आगे यदि ऐसा किया गया तो उधर से एक गाड़ी काट कर भिजवावोगे तो उसके जवाब में इधर से तीन गाड़ियां काटकर भेजी जाएंगी । तब कहीं जाकर वह सिलसिला रूका । अटारी बोर्डर से उन्हें हिसार भेज दिया गया । हिसार में मुसलमानों के जो घर खाली पड़े थे उसमें रहने लगे ।पांच साल तक उन्होंने कोई काम नहीं किया । इस आस में बैठे रहे कि राजा बदलते हैं प्रजा नहीं बदलती ।एक न एक दिन सुलह होगी और वापिस उनको अपने गांव जाने का अवसर मिलेगा परंतु वह दिन अभी नहीं आया ।शायद कभी नहीं आएगा ।हमारे राष्ट्रगान में अब भी ' सिंध ' है । उस समय के नेताओं को कुर्सी प्राप्ति की जल्दी थी इसलिए देश बंट गया । मौलाना आजाद ने लिखा है- सत्य रो रहा था और झुठ के राजतिलक हो रहा था

उधर पाकिस्तान में,इधर हिन्दुस्तान में । प्रेम प्रकाश जी बताते हैं की उन्होंने हिसार में जीवनयापन के लिए कौन सा काम नहीं किया ? लोगों के घरों पर बर्तन धोना, सफाई करना, गलियों में घूम- घूम कर बीड़ी- सिगरेट माचिस बेचना अर्थात सब काम किए ।विभाजन से पूर्व प्रेमप्रकाश जी का संपन्न परिवार था ।भारत- भंग से रंग में भंग पड़ गई । एक राजस्थानी भजन का मुखड़ा है -

कदै-कदै गादड़ा सूं सिंह हार जावे
समय को भरोसो कोनी कद पलटी मार जावे

उन विषम परिस्थितियों के बावजूद भी प्रेमप्रकाश जी पढ़े-बढ़े तथा शिक्षक बने । दिन के साथ रात ,फूल के साथ कांटे ,सुख के साथ दुःख, भलाई के साथ अच्छाई जुड़ी हुई है।उन्होंने कहा कि सभी स्थानों पर सभी तरह के व्यक्ति मिलते हैं। जब अन्य मुस्लिम, हिन्दुओं को मार रहे थे उस समय भी एक मुस्लिम परिवार ने अपने लोगों के आक्रोश की परवाह किए बिना उनकी जान बचाई ।आज भी वे उस मुस्लिम की पूजा करते हैं । उन्होंने वर्तमान समय में आए बदलाव की चर्चा करते हुए कहा कि-

पहले लोग एक दूसरे को सहायता करते थे। अब यह कम हो गया ।आजकल के माता-पिता अपनी संतानों को इंजीनियर- डॉक्टर बनाना चाहते हैं । आवश्यकता इस बात की है कि वे उन्हें डॉक्टर -इंजीनियर बनाने से अधिक बल उनके चरित्र निर्माण पर दें ।उन्हें देशभक्त बनाएं ताकि देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सके । Life is like an onion,you peel it off one layer at a time and sometimes you weep-- Carl sandburg अर्थात जिंदगी एक प्याज के समान है। यदि आप उसकी परतें उधेड़ेगे तो कुछ समय के लिए रोना पड़ेगा । पूज्य प्रेमप्रकाश जी को आज भी अतीत सुंदर लगता है।जिस तरह से ससुराल में महिलाएं अपने पीहर को अंत समय तक याद करती हैं उसी तरह से प्रेमप्रकाश जी अपने पीहर (अपने गांव) को याद करते रहेंगे । लगभग 88 वर्ष की आयु में भी उनका जोश-होश देखते ही बनता है । दूसरे दिन मैं उनके दर्शन करने टोहाना गया । वे घर पर नहीं थे । आज भी वे सेवा भारती के माध्यम से आर्य समाज मंदिर में चिकित्सा प्रकल्प चला रहे हैं । वे एकदम चुस्त-दुरुस्त हैं । मैं उन्हें शत-शत वंदन करता हुआ शतायु की मंगल कामना करता हूं । मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आगामी एक दशक तक प्रेमप्रकाश जी इसी तरह प्रेम- प्रकाश फैलाते रहेंगे । वंदेमातरम ।

स्रोत - दयाराम महरिया का लेख, फेसबुक, 26.2.2022

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