Deva Singh Bochalya

From Jatland Wiki
(Redirected from Devi Singh Bochalya)
Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur
Deva Singh Bochalya Kanwarpura

Deva Singh Bochalya (born:1900) (देवा सिंह बोचल्या), from Kanwarpura Sikar village in Sikar tehsil of Sikar district in Rajasthan was the leading Jat leader of Shekhawati region, who played important role in the Shekhawati farmers movement for abolition of the Jagirdari system.

Early life

He was born in village Kanwarpura Sikar of Khandelawati on qvar sudi dvitiya vikram samvat 1957 (1900 AD) in the family of Ch. Anand Ram. [1]

Career

He joined Indian army in 1917. He travelled many countries during Second World War. He left Army in 1921 . [2]

Joined Kisan Andolan

He took part in Pushkar Jat Mahotsav in 1925 and after returning from here he joined Jati Sudhar Andolan. He became assistant of Mool Chand Agarwal, Manager, Khadi Ashram Ringas and started vastr swavlamban movement among the farmers of Khandelawati. He got consecrated in yagyovavit sanskar from Pundit Net Ram and started Khandelawati Jat Panchayat. He took part in Namak Satyagrah of 1931 when he was imprisoned for nine months.

The Jat Prajapati Mahayagya of Sikar

in 1934 AD he did hard work to see the success of Jat Prajapati Mahayagya of Sikar.

The Jat Prajapati Mahayagya of Sikar was attended by about a lakh farmers and was a grand success in awakening of the farmers of Shekhawati. This annoyed the Rao Raja of Sikar and his other thikanedars. Jats had still one grievance that they were not able to take the procession of sabhapati of yagya on elephant as planned because the Rao Raja of Sikar had helped in getting the elephant run away. Immediately after the yagya Jat leaders held a meeting under the chairmanship of Thakur Deshraj to settle the issues with Rao Raja Sikar and his thikanedars. They founded a body called "Sikarwati Jat Kisan Panchayat". Thakur Deva Singh Bochalya was elected General Secretary and Hari Singh Burdak as sarpanch of this body. [3]

He was the pillar of Sikar Kisan Andolan and was arrested twice. He was all in all of Khandelawati Jat Panchayat and Sikarwati Jat Kisan Panchayat for long period. He worked hard to strengthen the Jaipur Rajy Kisan Sabha in 1946. [4] [5]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है ....चौधरी देवासिंह जी बोचल्या - [पृ.455]: जिसे मैंने सीकर महायज्ञ के अवसर पर जनरल के नाम से पुकारा और जिसने वर्षों तक जनरल की भांति ही सीकर और खंडेलावाटी के भाइयों को आगे बढ़ाने के कदम बताएं हों, यह आवश्यक है उन देवासिंह जी के बारे में दो-चार शब्द लिखकर दुनिया को उनका परिचय कराऊं।

जिन दिनों शायद सन् 1932 में मैं अजमेर में राजस्थान संदेश का संपादन करता था। खादी के कपड़े पहने हुए दो आदमी पहुंचे। उनमें से एक ने बताया मैं देवासिंह हूं और खंडेलावाटी में कुंवरपुरा मेरा गांव है। इससे पहले ही मैं


[पृ.456]: उनके नाम से परिचित हो चुका था। अब साक्षात हो जाने से मैं बड़ा प्रसन्न हुआ। इससे बाद वे मेरे संपर्क में आए और उन्होंने खादी आश्रम रींगस से अपना संबंध तोड़ कर जाट हलचलों में शामिल हो गए। तब से अब तक बराबर वे जाट कौम के लिए काम करते हैं। आप का सिलसिलेवार संक्षिप्त जीवन परिचय इस प्रकार है:-

जन्म संवत 1957 क्वार सुदी 2 का है। पिता चौधरी आनंदराम जी गांव कंवरपुरा तहसील रींगस खंडेलावाटी

पढ़ाई साधारण अंग्रेजी और हिंदी में मिडिल तक।

आरंभ में चौधरी रामनारायण जी के संपर्क में रहने के कारण आपकी प्रवृत्ति विदेश यात्रा की ओर हुई और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप 2 जून 1917 को फौज में भर्ती होकर समुद्र पार के लिए रवाना हो गए।

लड़ाई के दौरान में आपने अदन बंदरगाह, स्वेज नहर, कैरो, कुस्तुनतुनिया, स्तम्पबोल और सलोनिका, सिली, डिरंजी, इस्मीड आदि शहरों को जो तुर्की, ग्रीस और रूस आदि देशों के थे देखा। इस प्रकार 4 साल में फौज में रहने के बाद आपने 24 मार्च 1921 को पद से त्याग पत्र दे दिया और अपने घर का कामकाज देखने-भालने लगे।

सन् 1925 में पुष्कर में जो ऐतिहासिक जाट महोत्सव हुआ उसमें शामिल हुए और वहां से लौट कर अपने इलाके में जाति सुधार की ओर ध्यान दिया।

लाला मूलचंद्र जी अग्रवाल व्यवस्थापक खादी आश्रम समाज सुधारक प्रवृत्ति के आदमी थे। उनके साथ आप इस आश्रम के सहायक व्यवस्थापक बनकर खंडेलावाटी के किसान


[पृ.457]: में वस्त्र स्थावलंबन करने लग पड़े।

तारीख 10 मार्च 1930 को आपने अपने कई जाट साथियों के साथ राजस्थान प्रतिनिधि आर्य सभा के उपदेशक पंडित नेतराम जी से यज्ञोपवीत संस्कार करा के इस इलाके के सनातनी ब्राह्मणों में एक हलचल मचा दी। इस संस्कार के समय पचासों गांवों के जाट सरदार इकट्ठे हुए। इसी अवसर पर खंडेलावाटी जाट पंचायत को जन्म दिया गया। कुछ ही दिनों में तमाम खंडेलावाटी में इस पंचायत के मेंबर बन गए। आरंभिक सभापति इस पंचायत के चौधरी बालूराम जी बोचल्या और मंत्री आप थे।

सन् 1929 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने के लिए आपको राजपूताना के डेलीगेटों में प्रांत की कांग्रेस की ओर से चुना गया था। हरिभाऊ उपाध्याय के साथ आप सायरभर्ती आश्रम भी एक सप्ताह तक रहे ओर वहां महात्मा गांधी से गौ सेवा के सिलसिले में बातें भी की।

सन् 1931 में नमक सत्याग्रह आरंभ हुआ तो आपने अजमेर जा कर सत्याग्रह किया और 9 महीने की सजा काटी। इसके बाद सीकर के किसान आंदोलन में आप दो बार गिरफ्तार किए गए और तीसरी बार खाटू ठिकाने में गिरफ्तार हुए। व्याख्यान देने पर आप पर दो-तीन दफा मुकदमें चलाए गए जिनमें आप बरी हुए। सीकर किसान पंचायत के आप मंत्री रहे और तमाम शेखावाटी प्रांत के भी प्रथम मंत्री आप ही बनाए गए।

खंडेलावाटी जाट पंचायत और किसान पंचायत सबके आप एक हफ्ते तक सर्वे सर्वा रहे हैं।


[पृ.458]: सन् 1944 में आपने जयपुर राज्य में बनने वाली किसान पंचायत को पुष्ट बनाने के भरपूर प्रयत्न किए। इस सब के साथ ही आपने जोधपुर, कोटा और मालवा में भी कौमी जागृति का बिगुल बजाया।

साधनों की कमी होते हुए भी आप जुटे रहते हैं और साथ नहीं मिलता है तो अकेले ही चलते हैं। यह आप की विशेषता है।

आपकी माता जी अत्यंत सरल और कौमी सेविका थी। धर्मपत्नी जी भी बहुत भोली हैं। किंतु सार्वजनिक कार्यकर्ताओं का स्वागत सत्कार हृदय से करती हैं। अपने पति के जेल जाने पर घर के काम को हिम्मत से संभालती हैं यह आपका सौभाग्य है।

सीकर में जागीरी दमन

ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।

उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।

उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन


[पृ 229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।

अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।

तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।

और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।

उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब


[पृ 230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।

इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। धिरकाबास में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।

ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।

लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।

ठिकाने ने जांच कमीशन नियुक्त कर दिया

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....जयपुर 29 मई 1934 : जाट पंचायत सीकर वाटी के महामंत्री देवा सिंह बोचल्या की प्रमुखता में लगभग 200 जाटों का एक डेपुटेशन सीकर के नए सीनियर अफसर एडबल्यू वेब से मिला और अपनी शिकायतें सुनाई। मिस्टर वेब ने उनकी बातों को सहानुभूति पूर्वक सुनकर बतलाया कि राव राजा सीकर ने आप लोगों की शिकायतों की जांच करने के लिए 8 व्यक्तियों का एक मिशन नियत करने की इजाजत दे दी है। उसका प्रधान मैं स्वयं और मेंबर मेजर मलिक मुहम्मद सेन खां पुलिस तथा


[पृ.254]: जेलों के अफसर-इंचार्ज कैप्टन लाल सिंह, मिलिट्री मेंबर ठाकुर शिवबक्स सिंह, होम मेंबर और चार जाट प्रतिनिधि होंगे। चार जाटों में से दो नामजद किए जाएंगे और दो चुने जाएंगे।

आप ने यह भी कहा कि मुझे जाटों की शिकायतें कुछ अत्युक्तिपूर्ण मालूम पड़ती हैं तथापि यदि जांच के समय आंदोलन बंद रहा और शांति रही तो मैं जांच जल्दी समाप्त कर दूंगा और जाटों को कोई शिकायत नहीं रहेगी।

जाट जांच कमीशन की रचना से संतुष्ट नहीं हैं। न वे चारों जाट मेंबरों को चुनना ही चाहते हैं। वे झुंझुनू में एक सभा बुलाने वाले हैं। बोसना में भी एक पंचायत होगी इन दोनों सभाओं में मिस्टर वेब के ऐलान पर विचार होगा। (यूनाइटेड प्रेस)

इसके बाद राव राजा साहब और सीनियर साहब दोनों ही क्रमश: 2 जून और 6 जून सन 1934 को आबू चले गए।

आबू जाने से 1 दिन पहले सीनियर ऑफिसर साहब मिस्टर वेब ने सीकर वाटी जाट पंचायत को एक पत्र दिया जो पुलिस की मारफ़त उसे मिला। उसमें लिखा था, “हम चाहते हैं कि कार्यवाही कमीशन मुतल्लिका तहकीकात जाटान सीकर फौरन शुरू कर दी जावे। हम 15 जून को आबू से वापस आएंगे और नुमायदगान से जरूर सोमवार 18 जून सन 1934 को मिलेंगे। लिहाजा मुक्तिला हो कि जाट लीडरान जगह मुकर्रर पर हमसे जरूर मिलें।

सीनियर ऑफिसर के आबू जाने के बाद सीकर के जाट हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे। बराबर गांवों में मीटिंगें करते रहे। उन्होंने इन मीटिंगों में इस बात के प्रस्ताव पास किया, “जयपुर दरबार के सामने पेश की हुई हमारी मांगे


[पृ.255]: सर्वसम्मत हैं और हमारे ऐसी कोई भी पार्टी नहीं जो इन मांगों के विरुद्ध हो, सीकर के कर्मचारियों ने मिस्टर वेब को यह समझाया कि यहां के जाटों में दो पार्टियां हैं कतई झूट है” (नवयुग 12 जून 1934)

मि. वेब आबू से एक दो दिन की देर से वापस हुए। इसके बाद में शायद किसी जरूरी काम से जयपुर गए। इसलिए जाट पंचायत के प्रतिनिधियों से बजाय 18 जून 1934 के 22 जून 1934 को मुलाकात हुई। उन्होने पहली जुलाई तक कमीशन के लिए जाटों के नाम की लिस्ट देने को जाट पंचान से कहा और यह भी बताया कि राव राजा साहब ने ठिकाने में से सभी बेगार को उठा दिया है।

29 जून 1934 को राव राजा साहब भी आबू से वापस आ गए। कुछ किसानों ने रींगस स्टेशन पर उनसे मुलाकात करनी चाहिए किंतु नौकरों ने उन्हें धक्के देकर हटा दिया।

इससे पहले ही तारीख 24 जून 1934 को कूदन में सीकर वाटी के प्रमुख जाटों की एक मीटिंग कमीशन के लिए मेंबर चुनने के लिए हो चुकी थी। भरतपुर से ठाकुर देशराज और कुंवर रतन सिंह जी भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे। तारीख 25 जून 1934 को एक खुली मीटिंग गोठड़ा में हुई जिसमें रायबहादुर चौधरी छोटूराम और कुंवर रतन सिंह बाहर से तथा कुंवर पृथ्वी सिंह और चौधरी ईश्वर सिंह सीकर से जांच कमीशन के लिए चुने गए।

वेब का ऐलान 15 जुलाई 1934 अधूरा और निराशा पूर्ण

ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है .... इस एलान से सीकर के किसानों के दुख दूर नहीं हो सकते। 15 जुलाई 1934 को मिस्टर ए.डबल्यू.टी. वेब साहब सीनियर ऑफिसर सीकर ने राव राजा साहब सीकर की मंजूरी से ऐलान अपने इजलास से निकाला है, वह निराशाजनक है। ऐसा निर्णय सीकरवाटी जाट पंचायत अपने विशेष मीटिंग द्वारा 16000 की उपस्थिति में 29 जुलाई 1934 को कर चुकी है। सीकर के समस्त किसान जिन कारणों और कमियों से एलान को अपूर्ण और निराशाजनक समझते हैं, वह इस एलान में जोकि पंचायत द्वारा प्रकाशित कराया जाता है..... इसलिए वह तब तक स्वीकार होना कठिन है जब तक सीकर वाटी जाट पंचायत द्वारा विस्तार से दी गई लिखित बातों का उसमें समावेश और संशोधन न हो जाए। ....देवासिंह बोचल्या, मंत्री सीकर वाटी जाट क्षत्रिय पंचायत

23 अगस्त 1934 का समझौता (तसफिया नामा)

ठाकुर देशराज[10] ने लिखा है .... यह तसफिया नामा आज 23 अगस्त 1934 को मुकाम सीकर इस गर्ज से तहरीर हुआ कि सीकर और जाटान सीकर के देरीना झगड़े का खात्मा किया जाए।

सीकर की जानिब से ए. डब्ल्यू. टी. वेब ऐस्क्वायर सीनियर ऑफिसर सीकर, दीवान बालाबक्स, रेवेन्यू अफसर और मेजर मलिक मोहम्मद हुसैन खान अफसर इंचार्ज पुलिस, किशोर सिंह, मंगलचंद मेहता और विश्वंभर प्रसाद सुपी: कस्टम।


[पृ.268]

जाटान की तरफ से

मंदरजे जेर बातें दोनों फरीको ने मंजूर की और जाट पंचायत ने यह समझ लिया है कि यह फैसला जब जरिए रोबकारे जारी किया जाएगा तमाम जाटान सीकर इसकी पूरी पाबंदी करेंगे। अलावा इसके उन्होंने उस अमल का इकरार किया है कि उस फैसले के बाद जो जरिए हाजा किया जाता है आइंदा कोई एजीटेशन नहीं होगा और वह एजीटेशन को बंद करते हैं।

1. लगान

() संवत 1990 का बकाया लगान 30 दिन के अंदर अदा किया जाएगा अगर कोई काश्तकार अपना कुछ भी बकाया लगान फौरन अदा करने में वाकई नाकाबिल है तो वह एक दरख्वास्त इस अमल की पेश करेगा कि इसके मुझे इस कदर मुतालबा दे और इसकी वसूली मुनासिब सरायल पर एक या ज्यादा साल में फरमापी जावे। राज ऐसी दरख्वास्तों को, जो वाकई सच्ची होंगी, वह उस पर गौर करेगा और उनसे बकाया रकम पर सूद नहीं लेगा अगर बकाया 20 दिन के अंदर तारीख इजराय नोटिस जेर फिकरा हजा से जमा करा दी जावेगी तो सूद माफ किया जाएगा।

(बी) बकाया लगान संवत 1990 का हिसाब लगाते वक्त जो कभी जेरे ऐलान मुवरखा 15 जुलाई 1934 को दी जानी मंजूर की गई है यह मुजरा दी जावेगी। जिन काश्तकारान ने जेर ऐलान जायद अदा कर दिया है जावेद


[पृ.269]: अदा सुदा रकम उनको उसी सूद के साथ वापस की जाएगी कि जिस शरह से कि उनसे सूद लिया जाता है।

(सी) आइंदा के लिए यह हरएक काश्तकार की मर्जी पर होगी कि वह बटाई देवे या लगान मौजूदा शरह से। बटाई का हिसाब हस्ब जेल होगा।

(i) हर साल कम अज कम 75 फ़ीसदी जमीन का रकबा कास्त हरएक काश्तकार को करना होगा।
(ii) रकबा काश्त की पैदावार में से आधा हिस्सा अनाज और तिहाई हिस्सा तरीका बतौर बटाई लेवेगा। रब्बा जो कास्ट नहीं किया जाएगा उस पर हर साल दो ने फी बीघा हिसाब से नकद लिया जाएगा।
2. जेल

जेल सीकर की तरतीब की जाकर बाकायदा बनाई जाएगी और आइंदा मेडिकल अफसर या जुडिशल अफसर के चार्ज में रहेगी। जेल पुलिस अफसर के चार्ज में नहीं रहेगी

3. बेगार

जैसा की ऐलान किया गया है तमाम बेगार बंद की जाती हैं। कसबात में किराए पर बैलगाड़ी और ऊंट चलाने के लिए लाइसेंस असली कीमत पर दिया जाएगा। देहात में अगर राज के मुलाजिम को वार वरदारी की जरूरत होगी वह इंडेंट मेहता को दे देगा जो वारवारदारी का इंतजाम करेगा और काश्तकार को एक याददाश्त पर्छ दिया जाएगा जिसमें दर्ज किया जावेगा कि काश्तकार इस कदर फासले पर ले जाना है। बारबरदारी को शरह किराया वही होगी जो अब


[पृ.270]: राज्य में है मगर खाली वापसी सफर की सूरत में किराएदार को निशंक किराया दिया जावेगा।

4. सीकर दफ्तर की तहरीरात किस जबान में हो

आइंदा से दफ्तर सीकर की जबान हिंदी मुकर्रर की जाती है।

5. अंदरुनी जकात

जो अस आय इलाके सीकर के अंदर एक देहात से दूसरे देहात में ले जाई जावे उन पर आइंदा से जकात नहीं ली जाएगी। घी और तंबाकू पर जकात आइंदा से खुर्दा फ़रोसों से ली जावेगी जिनको लाइसेंस हासिल करने होंगे। जिनके कवायद मुर्त्तिव किए जाएंगे।

मुंदरजा वाला से मौजूदा आइंदा कायम होने वाली म्युनिसिपल कमेटियों के हदूद दरबारे लगान चुंगी उन चीजों पर कि जो उनके म्युनिसिपल हदूद के अंदर आवे कोई असर नहीं होगा।

6. लाग बाग

सब लालबाग जो जमीन के कर की परिभाषा में नहीं आती है हटा दी जाएंगी।

7. जमीन पर हकूक

बंदोबस्त के समय जयपुर के टेनेंसी एक्ट के अनुसार जमीन पर किसानों के मौरूसी हक़ होंगे।

8. पंचायत स्वीकृत संस्था

लगान तय करते समय बंदोबस्त में जाट पंचायत से सलाह ली जाएगी।


[पृ.271]

9. मंत्री रिहा

पंचायत के मंत्री ठाकुर देवी सिंह जी बोचल्या को बिना शर्त छोड़ दिया जाएगा।

इस फैसले का प्रभाव: जाटों और ठिकाने के बीच यह जो फैसला हुआ समाचार पत्रों ने प्रसन्नता प्रकट की और दोनों पक्षों को इसे निभाने की सलाह दी। यहां तक हिंदी के कुछ समाचार पत्रों के अग्रलेख और टिप्पणियां देते हैं।

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह

शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह[11] लिखते हैं कि [पृष्ठ-113]: सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने हमारे गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जाने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।

चैत्र सुदी प्रथमा को संवत बदल गया और विक्रम संवत 1992 प्रारम्भ हो गया। सीकर ठिकाने के जाटों ने लगान बंदी की घोषणा करदी, जबरदस्ती लगान वसूली शुरू की। पहले भैरुपुरा गए। मर्द गाँव खाली कर गए और चौधरी ईश्वरसिंह भामू की धर्मपत्नी जो चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथना की बहिन थी, ने ग्राम की महिलाओं को इकट्ठा करके सामना किया तो कैप्टेन वेब ने लगान वसूली रोकदी। चौधरी बक्साराम महरिया ने ठिकाने को समाचार भिजवा दिया कि हम कूदन में लगान वसूली करवा लेंगे।

कूदन ग्राम के पुरुष तो गाँव खाली कर गए। लगान वसूली कर्मचारी ग्राम कूदन की धर्मशाला में आकर ठहर गए। महिलाओं की नेता धापू देवी बनी जिसका पीहर ग्राम रसीदपुरा में फांडन गोत्र था। उसके दाँत टूट गए थे, इसलिए उसे बोखली बड़िया (ताई) कहते थे। महिलाओं ने काँटेदार झाड़ियाँ लेकर लगान वसूली करने वाले सीकर ठिकाने के कर्मचारियों पर आक्रमण कर दिया, अत: वे धर्मशाला के पिछवाड़े से कूदकर गाँव के बाहर ग्राम अजीतपुरा खेड़ा में भाग गए। कर्मचारियों की रक्षा के लिए पुलिस फोर्स भी आ गई। ग्राम गोठड़ा भूकरान के भूकर एवं अजीतपुरा के पिलानिया जाटों ने पुलिस का सामना किया। गोठड़ा गोली कांड हुआ और चार जने वहीं शहीद हो गए। इस गोली कांड के बाद पुलिस ने गाँव में प्रवेश किया और चौधरी कालुराम सुंडा उर्फ कालु बाबा की हवेली , तमाम मिट्टी के बर्तन, चूल्हा-चक्की सब तोड़ दिये। पूरे गाँव में पुरुष नाम की चिड़िया भी नहीं रही सिवाय राजपूत, ब्राह्मण, नाई व महाजन परिवार के। नाथाराम महरिया के अलावा तमाम जाटों ने ग्राम छोड़ कर भागे और जान बचाई।


[पृष्ठ-114]: कूदन के बाद ग्राम गोठड़ा भूकरान में लगान वसूली के लिए सीकर ठिकाने के कर्मचारी पुलिस के साथ गए और श्री पृथ्वीसिंह भूकर गोठड़ा के पिताजी श्री रामबक्स भूकर को पकड़ कर ले आए। उनके दोनों पैरों में रस्से बांधकर उन्हें (जिस जोहड़ में आज माध्यमिक विद्यालय है) जोहड़े में घसीटा, पीठ लहूलुहान हो गई। चौधरी रामबक्स जी ने कहा कि मरना मंजूर है परंतु हाथ से लगान नहीं दूंगा। उनकी हवेली लूट ली गई , हवेली से पाँच सौ मन ग्वार लूटकर ठिकाने वाले ले गए।

कूदन के बाद जाट एजीटेशन के पंचों – चौधरी हरीसिंह बुरड़क, पलथना, चौधरी ईश्वरसिंह भामु, भैरूंपुरा; पृथ्वी सिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; चौधरी पन्ने सिंह बाटड़, बाटड़ानाऊ; एवं चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल (मंत्री) कटराथल – को गिरफ्तार करके देवगढ़ किले मैं कैद कर दिया। इस कांड के बाद कई गांवों के चुनिन्दा लोगों को देश निकाला (ठिकाना बदर) कर दिया। मेरे पिताजी चौधरी गनपत सिंह को ठिकाना बदर कर दिया गया। वे हटूँड़ी (अजमेर) में हरिभाऊ उपाध्याय के निवास पर रहे। मई 1935 में उन्हें ठिकाने से निकाला गया और 29 फरवरी, 1936 को रिहा किया गया।

जब सभी पाँच पंचों को नजरबंद कर दिया गया तो पाँच नए पंच और चुने गए – चौधरी गणेशराम महरिया, कूदन; चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथाना; चौधरी जवाहर सिंह मावलिया, चन्दपुरा; चौधरी पन्नेसिंह जाखड़; कोलिडा तथा चौधरी लेखराम डोटासरा, कसवाली। खजांची चौधरी हरदेवसिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; थे एवं कार्यकारी मंत्री चौधरी देवीसिंह बोचलिया, कंवरपुरा (फुलेरा तहसील) थे। उक्त पांचों को भी पकड़कर देवगढ़ किले में ही नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद पाँच पंच फिर चुने गए – चौधरी कालु राम सुंडा, कूदन; चौधरी मनसा राम थालोड़, नारसरा; चौधरी हरजीराम गढ़वाल, माधोपुरा (लक्ष्मणगढ़); मास्टर कन्हैयालाल महला, स्वरुपसर एवं चौधरी चूनाराम ढाका , फतेहपुरा

किसान सभा का सदस्य चुना 1946

किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन 30 जून 1946 को बुलाया गया. इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए. यह निर्णय किया गया कि पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें. आपको जयपुर स्टेट की किसान सभा का सदस्य चुना गया. (राजेन्द्र कसवा, p. 203)


सीकर वाटी में त्रिलोक सिंह, देवा सिंह बोचल्या, ईश्वर सिंह भामू, हरी सिंह बुरड़क आदि किसान सभा के जिम्मेवार नेताओं के रूप में पहचाने गए. (राजेन्द्र कसवा, p. 204)

महरामपुर में किसानों की बृहत सभा आयोजित 1947

जयपुर राज्य किसान सभा ने महरामपुर में 16 फ़रवरी 1947 को किसानों की एक बृहत सभा आयोजित की. झुंझुनू के डिप्टी कमिश्नर, पुलिस अधीक्षक, नाजिम और डिप्टी इंस्पेक्टर पुलिस बहुत से पुलिस दल के साथ पहुँच कर सारी शेखावाटी में दो महीने के लिए दफा 144 लगा दी. स्थल पर दफा 144 तोड़ने पर पंडित ताड़केश्वर शर्मा, राधावल्लभ अग्रवाल, दुर्गादत्त जयपुर, ख्याली राम मोहनपुरा, शिवकरण उपदेशक, माली राम अध्यापक, मान सिंह बनगोठडी और डूंगर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. जयपुर राज्य किसान सभा ने धरा 144 उठाने की मांग की और न उठाने पर शेखावाटी की जनता के मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए विद्याधर कुलहरी, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, देवासिंह बोचल्या, राधावल्लभ अग्रवाल और आशा राम ककड़ेऊ की एक सर्वाधिकार युक्त कमेटी बना दी जो जनता के सामने सविनय अवज्ञा भंगकरने का प्रोग्राम रखे और सत्याग्रह चलाये. साथ ही गाँवों में आये दिन होने वाले झगड़े-फसादों के समय रक्षार्थ 'किसान रक्षा दल' के संगठन का निर्णयलिया तथा 'किसान सन्देश' नामक बुलेटिन निकालने का निश्चय किया. (किसान सन्देश 13 मार्च 1947) (डॉ पेमा राम 216 )

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[12] ने लिखा है ....रियासती भारत के जाट जन सेवक पुस्तक में शामिल शेखावाटी के वृतांत मास्टर फूल सिंह सोलंकी ने लिखे हैं। सीकर के कार्यकर्ताओं के जीवन परिचय मास्टर कन्हैया लाल महला ने; खंडेलावाटी के बारे में ठाकुर देवासिंह बोचल्या और कुँवर चन्दन सिंह बीजारनिया ने, बीकानेर के जीवन चरित्र चौधरी हरीश चंद्र नैन और चौधरी कुंभाराम आर्य; जोधपुर के जीवन परिचय मूल चंद सिहाग और मास्टर रघुवीर सिंह ने, अजमेर मेरवाड़ा के परिचय सुआलाल सेल ने, अलवर के जीवन परिचय ठाकुर देशराज और नानकराम ठेकेदार; भरतपुर के परिचय हरीश चंद्र नैन ने लिखे हैं।

References

  1. Dr Pema Ram:Shekhawati Kisan Andolan Ka Itihas, 1990, Publisher - Sri Ganesh Sewa Samiti, Jasnagar, District Nagaur - 341518, p. 84
  2. Dr Pema Ram:Shekhawati Kisan Andolan Ka Itihas, 1990, Publisher - Sri Ganesh Sewa Samiti, Jasnagar, District Nagaur - 341518, p. 84
  3. Dr Pema Ram, Kisan Andolan Ka Itihas, 1990, Publisher - Sri Ganesh Sewa Samiti, Jasnagar, District Nagaur - 341518, p. 90
  4. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.455-458
  5. Dr Pema Ram:Shekhawati Kisan Andolan Ka Itihas, 1990, Publisher - Sri Ganesh Sewa Samiti, Jasnagar, District Nagaur - 341518, p. 85
  6. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.455-458
  7. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.228-230
  8. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.253-255
  9. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.262-267
  10. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.267-271
  11. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113-114
  12. ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.2-3

Back to The Leaders/The Freedom Fighters/ Jat Jan Sewak