Dhaka Hanumangarh
Dhaka (ढाका) is a Village in Bhadra tahsil in Hanumangarh district, Rajasthan.
Founder
Dhaka Jats
Location
Jat Gotras
History
ठाकुर देशराज लिखते हैं कि जोहिया यौधेय-वंशीय हैं। प्रजातंत्री समुदायों में यौधेय बहुत प्रसिद्ध रहे हैं | जैसलमेर, जांगल और मारवाड़ के बहुत से प्रदेश पर किसी समय इनका राज रहा है। राठौरों से पराजित होने से पहले उनका 600 गांवों पर अधिपत्य था। शेरसिंह इनका राजा था। जैसा नाम था, वैसा ही वह शूरवीर भी था। राठौरों को नाकों चने शेरसिंह ने ही चबाए थे। भूरूपाल में उसकी राजधानी थी।
गोदारों से सन्धि हो जाने के बाद बीका जी ने कुछ समय अपनी व्यवस्था ठीक करने और शक्ति संचय करने में लगाया। जब अवकाश मिला तो गोदारों की ओर अपनी सेनाएं लेकर जोहिया जाटों पर आक्रमण किया। शेरसिंह ने अपनी सेनाएं इकट्ठी करके दोनों शक्तियों का मुकाबला किया। शेरसिंह बड़ा बांका योद्धा था। भय उसके पास तनिक भी न फटकता था। वास्तव में यह निरन्तर लड़ने वाले शूरों मे से था। ‘देशी राज्यों के इतिहास’ में सुखसम्पत्ति राय भंडारी ने लिखा है-
- “शेरसिंह ने अपनी समस्त सेना के साथ बीका जी के खिलाफ युद्ध करने की तैयारी कर रखी थी। बीका जी जो कई युद्धों के विजेता थे इस युद्ध में सरलता से विजय प्राप्त न कर सके। शत्रुगण अद्भुत् पराक्रम दिखाकर आपके छक्के छुड़ाने लगे। अन्त में विजय की कोई सूरत न देख, आपने षड़्यन्त्र द्वारा शेरसिंह को मरवा डाला।”[1][2]
शेरसिंह के मारे जाने के बाद भी जोहिया जाट विद्राही बने रहे। उन्होंने सहज ही में अधीनता स्वीकार नहीं की। उनका प्रत्येक युवक प्राणों की बाजी लगाकर स्वाधीनता की रक्षा करना चाहता था। जब भी उनका कोई दल संगठित हो जाता, विद्रोह खड़ा कर देते। शेरसिंह के बाद उन्हें कोई उतना योग्य नेता नहीं मिला। जोहिया जाट राठौरों को जांगल-प्रदेश से अवश्य ही खदेड़ देते यदि गोदारे उनके साथ न होते। गोदारों की भी शक्ति जोहियों से कम नहीं थी। दो प्रबल शत्रुओं के मुकाबले में आखिर उन्हें विवश होना पड़ा। धीरे-धीरे उनका विद्रोही स्वभाव भी जाता रहा। जाटों से अब राठौर निष्कंटक हो गए। जाट और राठौरों की सबसे बड़ी लड़ाई सीधमुख के पास ढाका गांव में हुई थी।[3][4]
ढाका एवं सिद्धमुख को लूट कर नष्ट-भ्रस्त करके 30 पीढ़ी तक गुलामी भोगते रहे। ढाका गाँव जाट समाज का तीर्थस्थल है, जहाँ युद्ध में लड़ते हुए काम आये वीरों के स्मारक अभी भी मौजूद हैं। [5]
ढाका का युद्ध (1488) और जाट गणराज्यों का पतन
इधर गोदारों की और से पांडू का बेटा नकोदर राव बीका व कान्धल राठोड़ के पास पुकार लेकर गया जो उस समय सीधमुख को लूटने गए हुए थे. नकोदर ने उनके पास पहुँच कर कहा कि तंवर नरसिह जाट आपके गोदारा जाटों को मारकर निकला जा रहा है. उसने लाघड़िया राजधानी के बरबाद होने की बात कही और रक्षा की प्रार्थना की. इसपर बीका व कान्धल ने सेना सहित आधी रात तक नरसिंह का पीछा किया. नरसिंह उस समय सीधमुख से 6 मील दूर ढाका नमक गाँव में एक तालाब के किनारे अपने आदमियों सहित डेरा डाले सो रहा था. रास्ते में कुछ जाट जो पूला सारण से असंतुष्ट थे, ने कान्धल व बीका से कहा की पूला को हटाकर हमारी इच्छानुसार दूसरा मुखिया बना दे तो हम नरसिंह जाट का स्थान बता देंगे. राव बीका द्वारा उनकी शर्त स्वीकार करने पर उक्त जाट उन्हें सिधमुख से 6 मील दूरी पर उस तालाब के पास ले गए, जहाँ नरसिंह जाट अपने सैनिकों सहित सोया हुआ था.[6] [7]
राव कान्धल ने रात में ही नरसिंह जाट को युद्ध की चुनोती दी. नरसिंह चौंक कर नींद से उठा. उसने तुरंत कान्धल पर वार किया जो खाली गया. कान्धल ने नरसिंह को रोका और और बीका ने उसे मार गिराया. [8] घमासान युद्ध में नरसिंह जाट सहित अन्य जाट सरदारों कि बुरी तरह पराजय हुई. दोनों और के अनेक सैनिक मरे गए. कान्धल ने नरसिह जाट के सहायक किशोर जाट को भी मार गिराया. इस तरह अपने सरदारों के मारे जाने से नरसिह जाट के साथी अन्य जाट सरदार भाग निकले. भागती सेना को राठोड़ों ने खूब लूटा. इस लड़ाई में पराजय होने के बाद इस एरिया के सभी जाट गणराज्यों के मुखियाओं ने बिना आगे युद्ध किए राठोड़ों की अधीनता स्वीकार कर ली और इस तरह अपनी स्वतंत्रता समाप्त करली. फ़िर वहाँ से राव बीका ने सिधमुख में डेरा किया. वहां दासू बेनीवाल राठोड़ बीका के पास आया. सुहरानी खेड़े के सोहर जाट से उसकी शत्रुता थी. दासू ने बीका का आधिपत्य स्वीकार किया और अपने शत्रु को राठोड़ों से मरवा दिया. [9] इस तरह जाटों की आपसी फूट व वैर भाव उनके पतन का कारण बना.[10]
Notable persons
External links
References
- ↑ वाक-ए राजपूताना में भी यही बात लिखी है।
- ↑ जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-621
- ↑ रामरत्न चरण का इतिहास।
- ↑ जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-621
- ↑ Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, p.39
- ↑ नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
- ↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
- ↑ नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
- ↑ नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
- ↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 210
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