Dhapi Dadi

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Author:Laxman Burdak IFS (R)

Dhapi Dadi from village Kudan (Sikar, Rajasthan) was a brave widow, a leading Freedom Fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. She was of Fandan Gotra from village Raseedpura.

धापी दादी का जीवन परिचय

कूदन गाँव की धापी दादी ने किसान आन्दोलन के दौरान जो साहस का परिचय दिया, उसकी चर्चा पूरी शेखावाटी में आज भी चलती है. तत्समय ग्रामीण महिलाओं के काम की अधिकता होते हुए भी धापी दादी ने जो निडरता दिखाई वह वन्दनीय है. राजेन्द्र कसवा ने कूदन गाँव का दौरा कर जानकारी एकत्रित की. धापी दादी के दो पुत्र हैं जिन्होंने बताया कि धापी दादी रसीदपुरा गाँव की बेटी थी और गोत्र उसका फांडन था. जिए वक्त कूदन काण्ड हुआ, विधवा धापी अपने दो बेटों के साथ रहती थी. उनके नाम गुल्ला राम और मुकुंदा राम थे. विधवा होने से परिवार के भरण-पोषण का काम धापी पर ही था. [1]

पृथ्वीसिंह गोठड़ा को गवाह दिया

किसान आन्दोलन के प्रमुख नेता पृथ्वीसिंह गोठड़ा का कूदन गाँव में सुंडा गोत्र में ब्याह हुआ था. धापी दादी पृथ्वी सिंह का बहुत सम्मान करती थी. कूदन काण्ड के पश्चात् पृथ्वी सिंह को गिरफ्तार कर लिया था. उन्हें जयपुर जेल में बंद कर दिया था. रियासत ने पृथ्वी सिंह को मुख्य षड्यंत्रकारी माना था, जिसने सीकर वाटी के किसानों को रावराजा और रियासत के विरुद्ध भड़काया था. कूदन के दो गवाह यदि बयान दे देते कि पृथ्वी सिंह ने किसी को नहीं भड़काया है तो केस काफी कमजोर हो जाता. लेकिन आश्चर्य कि कूदन उनका ससुराल होने के बावजूद कोई गवाह नहीं मिल रहा था, उस शख्स के लिए जिसने अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था. किन्तु कुछ किसानों के लिए यह अपमानजनक स्थिति थी. उस दिन दिनारपुरा गाँव के काना राम एवं कोलिड़ा के महादा राम धापी दादी के पास आये. इन दोनों ने धापी दादी का उग्र रूप देखा. उन दोनों ने धापी दादी के समक्ष समस्या राखी, 'कूदन गाँव में पृथ्वी सिंह के पक्ष में कोई गवाह नहीं मिल रहा है. उस घर का भी कोई सदस्य तैयार नहीं है, जहाँ पृथ्वी सिंह ने सात फेरे लिए.' धापी दादी ने पूरे गाँव को धिक्कारा. गुस्सा इस बात का कि पृथ्वी सिंह शिखर नेता ही नहीं , गाँव के दामाद भी थे. उसने कहा, 'गवाह के रूप में मेरा एक बेटा ले जाओ.' वह बुदबुदाई 'ई गाम को राम निकळग्यो.'[2]

स्वभाव से ईमानदार और खरी

स्वभाव से धापी दादी ईमानदार और खरी-खरी कहने वाली लौह-महिला थी. एक अवसर पर दादी ने अपने भाई जस्सा राम से कुछ रुपये उधार लिए थे. काफी दिन निकल गए. वह वापस नहीं दे सकी. आखिर भाई ने बहन से जब रुपये मांगे तो धापी दादी के आत्म-सम्मान को चोट लगी. तत्काल धापी दादी ने अपने पैरों से कड़ी निकाल कर भाई को सौंप दी. कूदन गाँव में धापी दादी जैसी साहसी महिला अन्य कोई नहीं थी. उनके सामने पुरुष भी कमजोर पड़ जाते. गाँव की महिलायें ही नहीं पुरुष भी उनसे सलाह-मशविरा किया करते थे. धापी दादी कभी बीमार नहीं पड़ी. वह बात करते-करते इस संसार से विदा हुई थी. धापी दादी की कहानी के बिना सीकरवाटी का इतिहास अधूरा नजर आता है. वैसी दबंग महिला बाद में नहीं हुई.[3]

25 अप्रेल 1935 को कूदन में क्रूरता का तांडव

नोट - यह सेक्शन राजेन्द्र कसवा की पुस्तक मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 134-144 से साभार लिया गया है.

यह वास्तविकता है कि कूदन पूरी सीकर वाटी का चेतना केंद्र बन गया था. कूदन में ही कालूराम सुंडा तथा गणेशराम महरिया जैसे किसान नेता थे. पृथ्वी सिंह गोठड़ा का कूदन में ससुराल था. (राजेन्द्र कसवा, p.134)

कैप्टन वेब 25 अप्रेल 1935 को कूदन पहुंचा तो वहां आस-पास के गाँवों से बड़ी संख्या में जाट एकत्रित हो गए थे और राजस्व अधिकारियों को लगान वसूल नहीं करने दिया और विरोध को तैयार हो गए. (राजेन्द्र कसवा, p.136)

25 अप्रेल 1935 को कूदन में ग्रामीणों ने देखा कि सैंकड़ों घुड़सवारों ने गाँव को चारों और से घेर लिया है. अन्य गाँवों के बहुत से किसान उपस्थित थे. आन्दोलन का नेतृत्व कूदन ही कर रहा था. भीड़ ने आम सभा का रूप ले लिया. कुछ देर पश्चात रियासती पुलिस के दो सिपाही बखाल में पानी भरने के लिए गाँव के कुए पर आये. गाँव वालों ने उनको पानी भरने से रोक दिया. उसी समय तहसीलदार वगैरह भी आ गए. कुए के निकट ही धर्मशाला है. उसमें बैठकर तहसीलदार ने गाँव के प्रमुख व्यक्तियों को बुलाया. लगान के मुद्दे पर देर तक बात चली और यह सहमती बनी कि लगान चुका देंगे.(राजेन्द्र कसवा, p.137)

धापी दादी का विद्रोह - जिस वक्त धर्मशाला में गाँव के प्रमुख व्यक्तियों के साथ बातचीत चल रही थी, उसी समय गाँव की एक दबंग महिला धापी दादी अपनी भैंस को पानी पिलाने कुए पर आई थी. उसने सुना कि लगान सम्बन्धी चर्चा चल रही है, तो वह कुछ देर खड़ी रही. तभी बातचीत करके गाँव के चौधरी धर्मशाला से बहार निकले. किसी के पूछने पर चौधरियों ने जवाब दिया, 'हाँ हम लगान चुकाने की हामी भर आये हैं'. यह वाक्य धापी ने सुना तो उसके तन-मन में जैसे आग लग गयी. उसके हाथ में भैंस हांकने वाली कटीली छड़ी थी. धापी ने क्रोध में आकर एक छड़ी चौधरी पेमाराम के सर पर मारी और आवेश में आकर उसे अपशब्द कहे. पेमाराम का साफा कटीली छड़ी के साथ ही धापी के हाथ में आ गया. पेमा राम इस आकस्मिक वार से हक्का-बक्का रह गया और जान बचाने के लिए धर्मशाला की और दौड़ा. पेमा राम को भागकर धर्मशाला में घुसते लोगों ने देखा. धापी दादी छड़ी में उलझे पेमाराम के साफे को लहरा-लहरा कर पूछ रही थी, 'इन दो चार लोगों को किसने अधिकार दिया कि वे बढ़ा हुआ लगान चुकाने की हामी भरें?' सभी ने धापी दादी के प्रश्न को जायज ठहराया.(राजेन्द्र कसवा, p.138)

वास्तव में धापी दादी की बात सही थी. लगान चुकाने का फैसला किसान पंचायत ही कर सकती थी. चौधरियों को तो यों ही लगान में हिस्सा मिलता था. उपस्थित जन समुदाय क्रोधित हो गया. धापी दादी ने आदेश दिया, 'मेरा मूंह क्या देख रहे हो इन चौधरियों को पकड़कर धर्मशाला से बाहर ले जाओ.' बाहर शोर बढ़ रहा था. धर्मशाला में बैठे तहसीलदार, पटवारी, अन्य कर्मचारी और गाँव के चौधरी भय से थर-थर कांपने लगे. उन्हें लगा कि यह भीड़ अब उनकी पिटाई करेगी. चौधरियों ने तहसीलदार सहित कर्मचारियों को बगल के पंडित जीवनराम शर्मा के घर में छुपा दिया. इस भागदौड़ में ग्रामीणों ने एक सिपाही को पकड़कर पीट दिया जो ग्रामीणों को अपमानित कर रहा था.(राजेन्द्र कसवा, p.138)

किसान और रियासती पुलिस आमने सामने -कूदन गाँव के दक्षिण में सुखाणी नाम की जोहड़ी है. जोहड़ी क्या, विशाल सार्वजनिक मैदान जैसा भूखंड था, उसमें किसानों का विशाल जनसमूह खड़ा था. कुछ ही दूरी पर रियासत और रावराजा की पुलिस खड़ी थी. दृश्य कुछ वैसा ही था, जैसे युद्ध के मैदान में सेनाएं आमने-सामने खड़ी हों. अधिकांश किसान निहत्थे थे. सामने घुड़सवार पुलिस थी. जाहिर था यदि हिंसा हुई तो किसान मरे जायेंगे. यही सोच कर पृथ्वीसिंह गोठडा जनसमूह के बीच गए और समझाया, 'हम हिंसा से नहीं लड़ेंगे. हम शांतिपूर्ण विरोध करेंगे.'(राजेन्द्र कसवा, p.139)

कैप्टन वेब द्वारा फायरिंग का हुक्म - कैप्टन वेब ने जनसमूह को तितर-बितर होने का आदेश दिया और साथ ही बढ़े हुए लगान को चुकाने का हुक्म दिया. वेब की चेतावनी का किसानों पर कोई असर नहीं हुआ. वे अपनी जगह से हिले नहीं. मि. वेब ने निहत्थे किसानों पर गोली चलाने का हुक्म दे दिया. जनसमूह में कोहराम मच गया. लोग इधर-उधर भागने लगे. चीख-पुकार मच गयी. जब तूफ़ान रुका तो पता लगा कि पुलिस की गोली से निकटवर्ती गाँव गोठड़ा के चेतराम, टीकूराम, तुलछाराम एवं अजीतपुरा गाँव के आशाराम पिलानिया शहीद हो गए. सचमुच गाँव का चारागाह मैदान युद्ध स्थल बन गया. (राजेन्द्र कसवा, p.139)

इसी बीच जयपुर रियासत की सशत्र पलिस आ धमकी. दिन के 12 बजे कैप्टन वेब एवं एक अन्य अधिकारी बापना सहित 500 पुलिस के सिपाही कूदन गाँव के उस चौक में आये, जहाँ छाछ-राबड़ी की कड़ाही अब भी रखी थी और बड़ी परात में रोटियां थीं. लेकिन उपस्थित जनसमूह नहीं था. गोलीकांड के बाद काफी किसान एक चौधरी कालूराम सुंडा के घर पर एकत्रित हो गए थे. यह बात गाँव कूदन के ही राजपूत सिपाही मंगेजसिंह को पता थी. चौधरी कालूराम सुंडा के घर के दरवाजे पर कैप्टन वेब खड़ा हो गया. चौधरी कालूराम अपनी हवेली के प्रथम मंजिल के कमरे में थे, अंग्रेज अफसर ने कड़क आवाज में हुक्म दिया, 'कालू राम नीचे आओ.'(राजेन्द्र कसवा, p.139)

चौधरी कालूराम नीचे नहीं आये. जब पुलिस हवेली पर चढ़ने लगी तो छत से भोलाराम गोठड़ा ने राख की हांड़ी कैप्टन वेब की और फैंकी वेब ने गुस्से में आकर तुरंत गोली चला दी गोली का निशाना तो चूक गया लेकिन भोलाराम गोठड़ा के चेहरे पर गोली के कुछ छर्रे लगे. इसके पश्चात् वेब खुद छत पर गया. वेब ने ऊपर से किसी हमले की आशंका के परिपेक्ष्य में सर पर एक छोटी खात रखी और छत पर चढ़ गया. ऊपर चढ़े सभी किसानों को गिरफ्तार कर लिया. गाँव कूदन के ही राजपूत सिपाही मंगेजसिंह ने चौधरी कालू राम को गिरफ्तार कर बेब को सौंपा. वेब के हुक्म के अनुसार कालू राम को दोनों हाथ बांध कर पूरे कूदन में घुमाया. कालू राम के घर काम करने वाले चूड़ाराम बलाई को भी गिरफ्तार कर लिया. (राजेन्द्र कसवा, p.140)

राख फैंकने की घटना से अपमानित कैप्टन वेब ने चीख कर हुक्म दिया, 'घर-घर की तलासी लो !' 'कूदन गाँव को जलादो !!' (राजेन्द्र कसवा, p.140)

पुलिस के सिपाही घर-घर में घुसने लगे. घरों की तलासी ली जाने लगी. जो भी पुरुष दिखाई दिया, उसे गिरफ्तार कर लिया. कूदन का ठाकुर सिपाही मंगेजसिंह तलासी लेने और महिलाओं को धमकाने में सबसे आगे था. उनके अमूल्य सामान को नष्ट करने में मजा आ रहा था. किसानों के घरों में घी की भरी हुई हांड़ी रखी थी. मंगेज सिंह जिस भी घर में घुसता, सबसे पहले वह घी की मटकी उठाता और फर्श पर जोर से मारता. किसान के लिए अमृत बना घी फर्श पर बहने लगा. सामान घरों से निकला गया, बर्तन-भांडे तोड़े गए एवं लुटे गए. घरों में फैलाये गए दूध और घी की सड़ांध से पूरा गाँव महक गया. (राजेन्द्र कसवा, p.140)

एक किसान का घर बंध था. पुलिस ने भूराराम खाती को बुलाया और कहा, 'इस किवाड़ को तोड़ दो.' भूरा राम ने आदेश मानने से इनकार कर दिया. उसे गिरफ्तार कर लिया. (राजेन्द्र कसवा, p.140)

25 अप्रेल 1935 को कुल 106 किसानों को गिरफ्तार किया गया. अधिकांश को देवगढ़ जेल में 81 दिन तक बंद रखा गया. कुल 106 में से 57 किसान कूदन गाँव के थे. गिरफ्तार लोगों में 13 वर्ष से 70 वर्ष तक के लोग थे. सीकर उपकारागार के रिकोर्ड के अनुसार दो को छोड़ सभी जाट थे. कालूराम के घर काम करने वाला चूड़ाराम बलाई एक मात्र दलित था. दूसरा भूराराम खाती था. (राजेन्द्र कसवा, p.141-142)

इस संघर्ष में कूदन के जिन किसानों ने आगे बढ़कर भाग लिया और अंत तक गिरफ्तार नहीं हुए, उनमें प्रमुख थे - गोविन्द राम, मुकन्दा राम, गोरु राम, सुखदेवा राम एवं रामू राम.(राजेन्द्र कसवा, p.144)

पाठ्यपुस्तकों में स्थान

शेखावाटी किसान आंदोलन ने पाठ्यपुस्तकों में स्थान बनाया है। (भारत का इतिहास, कक्षा-12, रा.बोर्ड, 2017)। विवरण इस प्रकार है: .... सीकर किसान आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सीहोट के ठाकुर मानसिंह द्वारा सोतिया का बास नामक गांव में किसान महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर श्रीमती किशोरी देवी की अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। सीकर ठिकाने ने उक्त सम्मेलन को रोकने के लिए धारा-144 लगा दी। इसके बावजूद कानून तोड़कर महिलाओं का यह सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। जिनमें श्रीमती दुर्गादेवी शर्मा, श्रीमती फूलांदेवी, श्रीमती रमा देवी जोशी, श्रीमती उत्तमादेवी आदि प्रमुख थी। 25 अप्रैल 1935 को राजस्व अधिकारियों का दल लगान वसूल करने के लिए कूदन गांव पहुंचा तो एक वृद्ध महिला धापी दादी द्वारा उत्साहित किए जाने पर किसानों ने संगठित होकर लगान देने से इनकार कर दिया। पुलिस द्वारा किसानों के विरोध का दमन करने के लिए गोलियां चलाई गई जिसमें 4 किसान चेतराम, टीकूराम, तुलसाराम तथा आसाराम शहीद हुए और 175 को गिरफ्तार किया गया। हत्याकांड के बाद सीकर किसान आंदोलन की गूंज ब्रिटिश संसद में भी सुनाई दी। जून 1935 में हाउस ऑफ कॉमंस में प्रश्न पूछा गया तो जयपुर के महाराजा पर मध्यस्थता के लिए दवा बढ़ा और जागीरदार को समझौते के लिए विवश होना पड़ा। 1935 ई के अंत तक किसानों के अधिकांश मांगें स्वीकार कर ली गई। आंदोलन नेत्रत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में थे- सरदार हरलाल सिंह, नेतराम सिंह गौरीर, पृथ्वी सिंह गोठड़ा, पन्ने सिंह बाटड़ानाउ, हरु सिंह पलथाना, गौरू सिंह कटराथल, ईश्वर सिंह भैरूपुरा, लेख राम कसवाली आदि शामिल थे। [4]

Gallery

References

  1. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 146
  2. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 147
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 147
  4. भारत का इतिहास कक्षा 12, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, 2017, लेखक गण: शिवकुमार मिश्रा, बलवीर चौधरी, अनूप कुमार माथुर, संजय श्रीवास्तव, अरविंद भास्कर, p.155

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