Phanigiri

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(Redirected from Dharmachakrapuram)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Suryapet district map

Phanigiri (फणीगिरि) is a village in Suryapet district, Telangana. The place consists of a Buddhist complex which is adorned with a massive stupa along with two apsidal halls with stupas in it.

Variants

Location

It is situated about 40 km from Suryapet city. It lies on the left bank of the rivulet Aleru, a tributary of Musi River.

Origin

The name is derived from two words which represent the shape of the hill (phani=snake, giri=hill). [1]

Jat Gotras Namesake

History

Phanigiri is a Buddhist site in Suryapet district, Telangana. It dates back to the 1st Century BCE. It is about 40 km from the district headqauarters Suryapet. Two large footprints in the complex are believed to belong to Gautama Buddha. The place also houses three viharas which were once served as the dwelling for the Buddhist monks. Previously the name of the village was Dharmachakrapuram but later it is changed to Phanigiri.

To support and sustain the monastic establishment at Phangiri for a longer duration a cluster of early historic sites cropped up in close proximity Le., Vardhamanukota, Gajulabanda, Tirumalagiri, Nagaram, Singaram, Arvapalli, Iyyavaripalli, Arlagaddagudem, Yeleswaram etc. Of them, the sites located on north-south of Phanigiri namely Vardhamanukota, Gajulabanda, Arlagaddagudem and Tirumalagiri on the banks of the river Aleru are worth mentioning. [2]

Recent excavations

Archaeologists in Telangana have unearthed a rare treasure in the form of a life-size stucco sculpture from a Buddhist site in Phanigiri in Suryapet. So far, it is the largest stucco sculpture found in the country. According to the heritage department officials, it is believed that the life-size figure found in the excavations represents one of Bhodhisattva in Jathaka Chakra. [3]

पानीगिरि

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...पानीगिरि (AS, p.546) , ज़िला नालगोंडा, तेलंगाना में जनगाँव स्टेशन से 30 मील दूर स्थित है। यह स्थान अपने बौद्ध भग्नावेशेषों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ 350 फुट ऊँची पहाड़ी पर प्रायः 2000 वर्ष प्राचीन सातवाहन कालीन बौद्ध उपनिवेश के भग्नावेशेष स्थित हैं, जिनमें स्तूप, चैत्य, विहारादि सम्मिलित हैं। इनकी दीवारें लगभग तीन फुट [p.547]: मोटी हैं और बड़ी ईटों की बनी हैं और दीवारों के बाहरी भाग को सुदृढ़ करने के लिए पृष्ठाधार बने हैं। कई सुन्दर मूर्तियाँ भी यहाँ के खण्डहरों से मिली हैं, जो अपने स्वाभाविक रचनाकौशल के कारण बहुत सुन्दर दिखाई देती हैं। मूर्तियों की मुख मुद्रा पर विशिष्ट भावों का मनोहर अंकन है। एक मूर्ति के कानों में भारी आभूषण हैं जिनके भार से कानों के निचले भाग फैलकर नीचे लटक गए हैं। इसके मस्तक पर जयपत्रों (laurels) का चित्रण है, जिसके कारण कुछ विद्वानों के मत में वह मूर्ति यूनानी शैली से प्रभ वित्त जान पड़ती है।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण कालावशेष पत्थर का खण्डित जंगला है। इस पर तीन ओर मनोरंजक विषयों का अंकन है। सामने की ओर सुविकसित कमलपुष्प है, जिसकी पंखुड़ियाँ आकर्षक ढंग से अंकित की गई हैं। (वृषभ की समानता मोहंजदारो की मुद्रा पर अंकित वृषभ से की जा सकती है) यह वृषभ भय के कारण भागता हुआ दिखाया गया है। भय का चित्रण उसकी डरी हुई आँखों और उठी हुई पूँछ से बहुत ही वास्तविक जान पड़ता है। भारी भरकम हाथी अपने लम्बे-लम्बे दाँतों को आगे बढ़ाकर वृषभ का पीछा कर रहा है। बीच में खड़ा पुरुष हाथी को आगे बढ़ने से बहुत ही आत्मविश्वास के साथ रोक रहा है। जंगले के बाँई ओर कमलपुष्प का एक भाग अंकित है और उसके नीचे भावमयी मानवाकृति है। दाहिनी ओर भी यही दृश्य उकेरा गया है, किन्तु इसमें मनुष्य के स्थान में सिंह दिखलाया गया है।

दूसरे शिलापट्ट पर सम्भवतः कुबेर की मूर्ति है, जो किसी धनी का आधुनिक व्यंग्य चित्र सा लगता है। कुबेर को स्थूलोदर और स्वर्णाभूषणों से अंलकृत करके दिखाया गया है। चेहरे-मोहरे से यह मूर्ति किसी दक्षिण भारतीय की आकृति के अनुरूप गढ़ी हुई प्रतीत हुई है। एक अन्य पट्ट पर जो शायद किसी स्तूप या बिहार के जंगल का खण्ड है, तैरने की मुद्रा में एक पुरुष, एक मेष और झपटते हुए दो सिंह प्रदर्शित हैं। एक दूसरे प्रस्तर खण्ड पर मन्द-मन्द टहलता हुआ एक सिंह का अंकन उत्कृष्ट शिल्पकला का द्योतक है। पानीगिरि की खोज 1939-40 में हुई थी। यहाँ की उत्कृष्ट कला दक्षिण भारत में, अमरावती की मूर्तिशिल्प की परम्परा में है। दक्षिण के शातवाहन कालीन सांस्कृतिक इतिहास पर पानीगिरि की खोज से नया प्रकाश पड़ा है।

External links

See also

References