Duriya

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Location of Duriya in Jhunjhunu district

Duriya (दुड़िया) (Duria, Durian) is a village in Udaipurwati tahsil of Jhunjhunu district in Rajasthan.

Jat Gotras

Population

As per Census-2011 statistics, Duriya village has the total population of 3342 (of which 1672 are males while 1670 are females).[1]

History

प्रजामण्डल का असहयोग आन्दोलन

नरोत्तमलाल जोशी[2] ने लिखा है ....तत्कालीन जयपुर राज्य में सन 1938 में सेठ जमनालाल जी बजाज के नेतृत्व में प्रजामण्डल ने भाषण करने एवं लिखने की नागरिक अधिकारों के लिए एक असहयोग आन्दोलन किया था। उस आन्दोलन में शेखावाटी कृषकों ने विशेषत : जाट किसानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और जेल गए। उसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार ने जयपुर में सीमित मताधिकार के आधार पर रिप्रेजेंटेटिव एसेम्बली और लेजिस्लेटिव कोन्सिल के निर्माण की घोषणा को और उनके चुनाव 15 मई, 1945 को निश्चित हुए। जागीरदारों और मुसलमानों की सीटें सयुंक्त चुनाव में सुरक्षित कर दी गई। उक्त चुनाव के प्रचार के सिलसिले में अपनी उम्मीदवारी के लिए मतदाताओं से वोट की अपील करने के लिए 14 मई, 1945 को मैं गुढा और उदयपुर गया था।

गुढा की सभा में मेरे को तथा मेरे साथी श्री सूरजमल जी गोठड़ा तथा मेरे परम स्नेहभाजन व रिश्तेदार (अब बड़े सर्जन जो उस समय मेडिकल के विद्यार्थी थे) श्री केदारनाथ जी शर्मा को गुढा के बाजार में दिन 3 बजे मीटिंग करते हुए बुरी तरह पीटा और हारमोनियम बाजा, दरी, टेबल व अन्य सामान तोड़कर उठा ले गए। बाद में उदयपुर जाने पर तो वहां इन भौमियों के 15-20 आदमियों ने ऐसा आक्रमण किया कि मैं देव योग से ही बच पाया वरना मुझे जान से मार


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-40

दिया जाता। इस सारी घटना का विस्तृत विवरण उस समय के जयपुर के साप्ताहिक लोकवाणी के 30 मई के अंक में प्रकाशित हुआ है।

तत्कालीन जयपुर राज्य का शासन तंत्र भी इन अत्याचारों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाया। इन ही दिनों सन 1945 के वर्षो की फसल के समय कार्यकर्ताओं की मण्डली देहातों में प्रचार करने जाती और काश्तकारों को प्रजामण्डल के उद्देश्यों को बतलाती और सदस्य बनाती फिरती थी। नरहड़ के श्री खेतराम जी, तोगड़ा के श्री भैरोसिंह, महेंद्रसिंह, रामदेव जी गीला, श्री ख्यालीरामजी, श्री बूंटी रामजी किशोरपुरा---डूंगरसिंह और कूमास डूमरा के कार्यकर्ता आदि थे। ये लोग उदयपुरवाटी क्षेत्र को छोड़कर सभी जगह जाते।

श्यायी (सेही) से ही एक फौज के रिटायर्ड व्यक्ति थे जिन्होंने अपना नाम स्वामी मिश्रानन्द रख लिया था बड़े उत्साह से गाँवों में घूम घूम कर काश्तकारों में राजनैतिक चेतना का संदेश दिया करते थे। श्री रामदेव जी उन्हें अपने साथ उदयपुरवाटी में प्रचार के लिए ले गए थे। उदयपुरवाटी के क्षेत्र के काश्तकारों ने उनका बड़ा आतिथ्य सत्कार किया। कार्यकर्ताओं को काश्तकार उन दिनों भौमियों के अत्याचारों से रक्षा करने वाला मुक्ति दूत समझते थे।

उक्त स्वामी जी दूध, दही, खीर आदि खाते पीते और स्वागत सत्कार स्वीकार करते हुए एक दिन दुड़िया ग्राम में विश्राम कर रहे थे कि 10-15 लठैत एवं शस्त्रधारी भौमिये वहां आ पहुंचे और स्वामीजी और उनके साथियों को खूब मारा पीटा और स्वामी जी को तुरन्त वह क्षेत्र छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया और कभी न आने का वचन लेकर जाने दिया। बाद में स्वामी जी ने बतलाया कि उन्हें लाठियों की चोटों,घूसों और बंदूक के कुंदे से इस तरह पीटा कि सारा असिथपंजर हिल उठा और भयंकर पीड़ा होती रही। कहीं भी शरीर पर खून का या अन्य कोई चोट फूट नहीं निकली। इसकी पीड़ा कई मास तक रही और बराबर याद रही।

इस घटना से प्रायः कार्यकर्ता उदयपुरवाटी क्षेत्र में जाने से कतराते। भूस्वामियों का प्रभाव या आतंक इतना था कि उसके भयानक परिणामों की आशंका


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-41

से कोई भी आहत व्यक्ति प्रथम तो पुलिस में रिपोर्ट ही नहीं करता और यदि साहस करके पुलिस थाने में आता तो हतोत्साहित करते --- यदि फिर भी रिपोर्ट होती तो कोई साक्षी उक्त घटना का प्रमाण देने के लिए प्रस्तुत नहीं होता।

यह आतंक का वातावरण काल्पनिक नहीं था वास्तविक था, क्योंकि भौमियां लोग अपने उदयपुरवाटी क्षेत्र में किसी भी ऐसे व्यक्ति या समूह का प्रवेश नहीं करने देते जो काश्तकारों में किसी प्रकार की चेतना या जागृति पैदा करके उनके शोषण को समाप्त कर दे। इस प्रकार की मारपीट करते समय वे साफ तौर से आहत व्यक्ति या समूह को स्पष्ट रूप से बतला देते कि उदयपुरवाटी उनका एकाधिकार का क्षेत्र है, हमारे काश्तकारों को बहकाने या प्रचार करने को जो भी आएगा उसे हम निकाल देंगे या समाप्त कर देंगे।

इस ही प्रकार की एक घटना सन 1946-47 के आस पास हुई। गुढ़ा के पास हुकमपुरा के एक काश्तकार "हरलाल जाट" पर उन्हें यह सन्देह हो गया कि उसकी गतिविधियां विरोधी है और वह प्रजामण्डल या किसान कार्यकर्ताओं से सम्पर्क रखता है। बस एक दिन भौमियों के एक गिरोह ने उक्त हरलाल को जबरदस्ती उड़ा लिया और उसे गायब कर दिया।

हम लोगों ने स्थानीय पुलिस व तत्कालीन जयपुर राज्य के गृहमन्त्री तक इसकी शिकायत की और उसे खोज कराने की मांग की परन्तु पुलिस ने बराबर यही कहा कि ऐसी न तो हमारे थाने में रिपोर्ट की न ऐसी कोई घटना हुई। यहां तक कि पत्नी को तथा उसके सन्तान को पुलिस के सामने प्रस्तुत किया तो भी कोई सफलता नहीं मिली---इस घटना के लगभग 15-20 वर्ष बाद जब परिस्थितयों ने पलटा खाया तो उन भौमियों ने मेरे को उक्त हरलाल के अपहरण व हत्या का सारा विवरण बतलाया और कहा कि वे लोग पुलिस द्धारा पकड़े जाने और कार्यवाही के भय से उसकी लाश के टुकड़े टुकड़े करके उदयपुरवाटी के पहाड़ों की तली में तांबा व अन्य धातु खनिज के लिए खोदे गए कुँओं में डाल दिए थे।

सबसे बड़ी घटना फरवरी 1946 में हमारे चनाणा में किए गए किसान सम्मेलन में हुई। उक्त सम्मेलन का सभापति मैं मनोनीत किया गया था।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-42

उद्धघाटन करने के लिए जयपुर राज्य प्रजामण्डल के तत्कालीन सभापति श्री टीकाराम जी पालीवाल जयपुर से आए थे जो मुख्य अतिथि होकर उक्त सम्मेलन का उद्धघाटन करने वाले थे। लगभग इस क्षेत्र के सारे कार्यकर्ता उस सम्मेलन में उपस्थित थे।

जाट किसान पंचायत शेखावाटी को प्रजामण्डल में विलीन कर दिए जाने के कारण एक पक्ष हम लोगों का विरोधी था जो इस समारोह का विरोधी प्रचारक के रूप में गाँवों में प्रचार कार्य कर रहा था। सभा की कार्यवाही पुरानावास चनाणा पर हुई जो लगभग 2-3 फलांग के फासले पर गाँव से पड़ता था। ज्योहीं सभा शुरू कि चनाण के ठाकुर व उनके आश्रित लोग 20-25 ऊँटो पर तथा 3- 4 घोड़ों पर सवार व 30-40 पैदल चलने वाले बाजा बजाते हुए आए। सब लोग तलवार, बंदूक व लाठियों से सुसज्जित थे। नि:शस्त्र और शान्त जनता पर लाठी, फरसी का बार करना शुरू कर दिया और सभा के मण्डप को तथा हारमोनियम व साजबाज को तोड़ डाला और बंदूक के फायर किए जिससे सीथल गाँव का किसान घटना स्थल पर ही मारा गया और 15-20 किसान बंदूक के छर्रो से घायल हो गए।

सभा में भगदड़ मच गई और भौमियां दरी शामियाना व सारा सामान ऊँटों पर लादकर ले गए। इस सारे दृश्य को पुलिस का थानेदार अपने 5-7 सिपाहियों के साथ मौके पर खड़ा-खड़ा देखता रहा और कोई भी कार्यवाही नहीं की। इस सारी घटना का भी जागीरदारों पर कत्ल का मुकदमा तो पुलिस को बनता ही पड़ा परन्तु पुलिस बंदूक के छर्रों से घायल व आहत किसानों और हम कार्यकर्ताओं पर भी साथ ही में मुकदमा करने में नहीं चुकी।

इन सारी घटनाओं से भौमियों का हौसला बढ़ता जाता था, परन्तु जनता का उत्साह कम नहीं हुआ। भारतवर्ष को अंग्रेजी शासन से 1947 में मुक्ति मिली और देशी राज्यों के विलीनीकरण के बाद में 1949 में वर्तमान राजस्थान का निर्माण हुआ और 1950 में कल्याणकारी राज्य का संविधान लागू होकर 1952 में प्रथम आम चुनावों का समय आने तक राजस्थान में सन 1951 के अप्रैल में श्री जयनारायण व्यास के नेतृत्व में प्रथम लोकप्रिय मन्त्री मण्डल स्थापित हो चुका


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-43

था और उसने जागीरदारी अबोलिशन एक्ट सन 51 में ही पास कर दिया था।

Notable persons

Jai Singh Bangarwa.jpg

Gallery

External links

References


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