Durjanpura Nawalgarh
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Durjanpura (दुर्जनपुरा) is a village in Nawalgarh tehsil of Jhunjhunu district in Rajasthan.
Location
Jat gotras
History
रुन्दला व झाझड़िया गोत्र के जाटों का मेघसर गमन
श्री जगदेवा राम रुन्दला सन् 1923 (वि. संवत 1980) में दुर्जनपुरा (अब नवलगढ़ में समाहित) गाँव से मेघसर में आकर बसे। इसके अगले साल सन 1924 में श्री लिखमाराम झाझड़िया, जिनका रुन्दला परिवार से मामा-भांजा का रिश्ता था, वे भी झाझड़िया की ढाणी (नवलगढ़) से मेघसर गाँव आकर यहाँ बस गए। दोनों परिवार बैलों की जोड़ी से कुओं से पानी निकालने का काम में माहिर थे। इसलिए कूएँ के काम हेतु उनकी यहाँ पूछ थी। श्री जगदेवा राम/ जग्गू जी रुन्दला के मेघसर गाँव में बसने के कुछ वर्षों बाद उनके छोटे भाई हणमान जी, जो कि अविवाहित थे, वे भी उनके पास आ गए।
कुएँ से पानी निकालने के काम में रुन्दला परिवार निपुण होने के कारण गाँव को इनकी ज़रूरत थी। इसलिए इन्हें अहमियत भी मिली। गाँव में लोग रुन्दला परिवार को अक्सर शेखावाटी के जाट कहते थे। श्री जग्गू जी के चार पुत्रों के नाम ये हैं: सर्व श्री चेतन राम, चिमना राम, पेमाराम व दीपाराम। श्री दीपाराम रुन्दला का जन्म मेघसर गाँव में ही हुआ। गाँव में जाटों में सबसे पहले प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई करने वालों में उनका नाम शुमार है।
श्री लिखमाराम झाझड़िया के साथ उनके छोटे भाई बल्लू जी झाझड़िया भी मेघसर आए थे और वे अविवाहित थे। श्री लिखमाराम के इकलौते बेटे श्री गीगाराम का जन्म मेघसर में हुआ, जिनकी असामयिक मृत्यु सन 1966 में रुन्दला परिवार की एक कच्ची खुड्डी की दीवार को गिराने के दौरान हुए हादसे में दीवार के नीचे दबने से हो गई। इस दुर्घटना से परिवार पर तो वज्रपात हुआ ही, साथ ही उस दिन सारा गांव शोक में डूब गया था। स्व. गीगाराम के चार पुत्रों के नाम सर्व श्री सुरजाराम, देबुराम, रामचन्द्र एवं शिशुपाल हैं।
रुन्दला परिवार ने गाँव में कर्मठता की नई मिसाल क़ायम की। जग्गू जी रुन्दला बैलों की जोड़ी से बैलगाड़ी चलाने एवं खेत की जुताई का काम बड़े सलीक़े से करते थे। बाड़ी का काम करने एवं खेड़े में पैदावार बढ़ाने के लिए गढ़े खोदकर उसमें गोबर डालते रहते थे। साल-भर अपने खेड़े एवं खेत की समुचित सार-संभाल करने से उनके खेड़े व खेत में अच्छी पैदावार होती रही। गाँववासियों के सामने खेती में उपज बढ़ाने के लिए नवाचार की उन्होंने एक मिसाल क़ायम की।
जग्गू जी हुनरमंद कारीगर भी थे। खेती व घर के दैनिक उपयोग के लिए ज़रूरी लकड़ी के औजार ख़ुद ही बना लेते थे। खाती, लुहार व नाई से संबंधित कई काम वो खुद कर लेते थे। गाँव में चर्चित नवाचारी थे वे। उनके परिवार में भाई लगने वाले श्री रेखाराम रुन्दला भी उस समय रामगढ़ सेठाण में रहते थे और वे भी वहाँ कुएँ से पानी निकालने का काम करते थे। एक बार उन्होंने जग्गू जी को अपने पास रामगढ़ बुलाया और कहा कि मेघसर गाँव में कमाई नहीं है, इसलिए सलाह दी कि वे उनके पास रामगढ़ आकर बस जाएं। पर जग्गू जी ने कहा कि उन्होंने तो अपना दमखम मेघसर गाँव में दिखाने की ठान रखी है।
जग्गू जी की जुगत का कमाल था कि बाहर से आकर इस गांव में बसने के बाद के वर्षों में उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर अपने बेटों के रहवास के लिए सन 1958 में चूने-पत्थर की पक्की चौकबंद हवेली बनवाई, बाहर आमरास्ते के पास बैठक के कमरे बनवाए। सेठों की हवेलियों के आगे लगे बड़े दरवाज़े की तर्ज़ पर अपने घर के बड़ा दरवाजा लगवाया और बाहर आम रास्ते की तरफ लोगों के बैठने के लिए पक्का लंबा चबूतरा भी बनवाया, जहाँ अभी भी गांववासी बैठकर गपशप करते रहते हैं। हवेली बनवाने के काम में गाँव के ठाकुर कुशल सिंह ने कई अड़ंगे लगाए। खदानों से चुने-पत्थर की निकासी पर रोक लगा दी। घर की सीमा का विवाद खड़ा करके हवेली के बाहर चबूतरा बनाने से रोका गया।
उल्लेखनीय है कि उस समय यह गांव रतननगर पंचायत में था। दूरदृष्टि के धनी जग्गू जी ने रतननगर पंचायत के तत्कालीन सरपंच श्री सांवरमल सोनी से अपने घर का पट्टा बनवाकर हवेली बनवाने का काम शुरू किया। इस कारण निर्माण कार्य को रोकने के लिए खड़ी की गई सारी अड़चनों का निवारण हो गया और आख़िर बड़ी जदोजहद के बाद हवेली-निर्माण का काम पूरा हो सका। श्री जग्गू जी का देहान्त सन 1962 में हो गया।
बता दें कि सन 1958 में ही श्री लिखमाराम झाझड़िया, श्री पेमाराम ईसराण व श्री भेभाराम रणवां ने भी अपने घरों में खुली हवेली का एक तरफ़ का हिस्सा बनवाने के लिए 'चेजे' (construction work निर्माण कार्य) का काम शुरू किया। (देखें: मेघसर- अतीत और वर्तमान)
Population
Notable persons
External Links
References
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