Ghangh

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Ghangh (घंघ) or Ghanghran/Ghangharan (घंघरान) or Ghanghran Chauhan was the Chauhan ruler of Ghanghu (Churu) in 902 AD.[1]

History

Ghanghu is associated with the history of Harshagiri. Harsh (हर्ष) or Harasnath is village in Sikar tehsil in Sikar district in Rajasthan. Ratan Lal Mishra[2] writes that there were branches of Chauhans ruling in various parts of Rajasthan. The ruler of Ghanghu was Ghangh or Ghangharan who probably ruled here in v.s. 959 (902 AD). [3]

There is a popular belief which has come down to people through the centuries that in a village Ghanghu of Churu, King Ghangh loved and married an Apsara (nymph) on the condition that he would not visit her palace without prior information. King Ghangh got a son called Harsha and a daughter Jeen. Afterward she again conceived but as chance would have it king Ghangh went to her palace without prior intimation and thus violated solemn vow he had made to the Apsara. Instantly she left the king and fled away with her son Harsha and daughter Jeen whom she abandoned at the place where presently the temple stands. The two children here practiced extreme asceticism. Later a Chauhan ruler built the temple at that place.[4]

घांघू का इतिहास

संदर्भ - ददरेवा के इतिहास का यह भाग सार्वजनिक पुस्तकालय तारनगर की स्मारिका 'अर्चना' में प्रकाशित मातुसिंह राठोड़ के लेख 'चमत्कारिक पर्यटन स्थल ददरेवा' (पृ. 21-25) से लिया गया है।

10 वीं शताब्दी के लगभग अंत में मरुप्रदेश के चौहानों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने प्रारम्भ कर दिये थे। इसी स्थापनाकाल मे घंघरान चौहान ने वर्तमान चुरू शहर से 10 किमी पूर्व मे घांघू गाँव बसा कर अपनी राजधानी स्थापित की। [5] ('अर्चना',पृ.21)

राणा घंघ की पहली रानी से दो पुत्र हर्षहरकरण तथा एक पुत्री जीण का जन्म हुआ। हर्ष व जीण लोक देवता के रूप में सुविख्यात हैं। ('अर्चना',पृ.21) ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते हालांकि हर्ष ही राज्य का उत्तराधिकारी था लेकिन नई रानी के रूप में आसक्त राजा ने उससे उत्पन्न पुत्र कन्हराज को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। संभवत: इन्हीं उपेक्षाओं ने हर्ष और जीण के मन में वैराग्य को जन्म दिया। दोनों ने घर से निकलकर सीकर के निकट तपस्या की और आज दोनों लोकदेव रूप में जन-जन में पूज्य हैं।

राणा घंघरान की दूसरी रानी से कन्हराज, चंदराजइंदराज हुये। कन्हराज के चार पुत्र अमराज, अजराज, सिधराज व बछराज हुये। कन्हराज का पुत्र अमराज (अमरा) उसका उत्तराधिकारी बना। अमराजका पुत्र जेवर (झेवर) उसका उत्तराधिकारी बाना। लेकिन महत्वाकांक्षी जेवर ने दादरेवा को अपनी राजधानी बनाई और घांघू अपने भाइयों के लिए छोड़ दिया। जेवर ने उत्तरी क्षेत्र मे अपने राज्य का विस्तार अधिक किया। असामयिक मृत्यु के कारण यह विजय अभियान रुक गया। जेवर के पश्चात उनका पुत्र गोगा (गोगदेव) चौहान युवावस्था से पूर्व ही माँ बाछलदे के संरक्षण में ददरेवा का राणा बना। [6]('अर्चना',पृ.21)

वर्तमान जोगी-आसन के स्थान पर नाथ संप्रदाय के एक सिद्ध संत तपस्वी योगी ने गोरखनाथ के आशीर्वाद से बाछल को यशस्वी पुत्र पैदा होने की भविष्यवाणी की थी। कहते हैं कि बाछलदे की बड़ी बहन आछलदे को पहले इन्हीं संत के अशिर्वाद से अर्जन-सर्जन नामक दो वीर पैदा हुये थे। ('अर्चना',पृ.22)

References

  1. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, १९९८, पृ.41
  2. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, १९९८, पृ.41
  3. ब्रूतेसम्प्रति चाहमानतिलको शाकंभरी भूपति: । श्रीमद्विग्रहरज एव विजयी संतानजान्नात्मजान ॥ अस्मामि: करदं व्यवधायि हिमवद्विन्ध्यान्तरांला भुव:। शेष स्वीकरणायमास्तु भवतामुद्द्योग शून्यो मन: ॥ Epigraphia Indica Vol.19 p. 218
  4. http://www.rajasthaninfoline.com/rinfo/jeenmata.htm
  5. गोविंद अग्रवाल: चूरू मण्डल का शोधपूर्ण इतिहास, पृ. 51
  6. गोरी शंकर हीराचंद ओझा: बीकानेर राज्य का इरिहास भाग प्रथम, पृ. 64

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