Ghiroliya

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Ghiroliya (घिरोलिया) Ghirolia (घिरोलिया) is a Jat Gotra found in Madhya Pradesh.

Origin

History

घिरोलिया वंश का इतिहास

घिरोलिया वंश का इतिहास काफी पुराना है । इस वंश की उत्पत्ति पूर्व पंजाब प्रदेश (अब हरियाणा प्रदेश) में हुई । कब हुई उत्पत्ति यह सही जानकारी नहीं मिल पा रही है ?

संवत 105 (48 ई.) में घिरोलिया खेड़ा गांव चिनाव नदी के किनारे पंजाब में बसाया । उसके बाद शरामपुर नगर बसाया । यहां से चलकर संवत 316 (259 ई.) में अलापुर नगर बसाया. इसके बाद हरितपुर बसाया । इसके बाद हरियाणा में कलासर बसाया । यहां से चलकर उत्तर प्रदेश के आगरा के पास खनुज गांव बसाया. उसके बाद आगरा के पास घिरोलिया खेड़ा नाम से दूसरा गांव बसाया । इसके बाद ही इन परिवारों के व्यक्तियों ने मध्य प्रदेश के जिले ग्वालियर के पास रतवाई नामक गांव बसाया ।

इसके बाद इन्हीं परिवार के सदस्यों ने गांव चिरुली से गुर्जरों को भगाकर इस गांव पर अपना अधिकार जमाया । ग्वालियर जिले में घिरोलिया वंश के रतवाई और चिरुली में दो ही प्रमुख गांव हैं । अब तो कुछ परिवार सदस्य अन्य गांवो जैसे सिमिरिया ताल, कुम्हर्रा, झांकरी , ग्वालियर के मुरार में भी गांव चिरूली से जाकर बस गए हैं।

चिरुली गांव के बारे में कहावत सुनी है कि पूर्व में यह गांव जैन संप्रदाय के लोगों का प्राचीन बहुत बड़ा गांव था। कहते हैं कि इतना बड़ा गांव था कि इसमें व्यापारियों द्वारा एक ऊंट की हींग एक दिन में बिक जाती थी । बाद में प्रकृति प्रकोप ने इस गांव को नष्ट कर दिया । आज उस जगह से जैन मूर्तियां मिलती हैं । महावीर स्वामी की चौमुखी मूर्ति 10 - 12 फीट की आज भी टेकनपुर के बी एस एफ ( सीमा सुरक्षा बल ) के गेट में शोभा बढ़ा रही है । सीमा सुरक्षा बल अकादमी टेकनपुर उसके बाद चिरुली गांव एक किमी की दूरी पर पुन: बसाया गया जो वर्तमान में है ।

घिरोलिया वंश में एक प्रतापी जमींदार व्यक्ति का जन्म हुआ जिनका नाम था श्री लालू सिंह । जिन्होंने घिरोलिया वंश का काफी नाम रोशन किया. वे अपनी कद काठी से काफी मजबूत, पहलवानी शरीर, बहुत ही खूबसूरत व्यक्तित्व के धनी थे। अपने अन्तिम समय में 75-75 किलो के दो मुदगल दोनों हाथों से घुमाते रहे । कई मन्दिरों का निर्माण कराया और वर्ष में गांव में क्षेत्र का सबसे विशाल मेला शिवरात्रि पर लगवाते थे । जिसमें दूर - दूर से पहलवान मल्ल युद्ध द्वारा अपनी ताकत का प्रदर्शन करते थे । अपनी तरफ़ से भी सभी पहलवानों को नगद राशि से सम्मानित करते थे ।

ठाकुर श्री लालू सिंह जी के बारे मे एक कहावत और है कि उन्होंने ग्वालियर महाराज जीवाजीराव सिंधिया की मुसीबत के समय में आर्थिक मदद की थी । कहानी इस प्रकार है कि चिरुली गांव एक बहुत ही खूबसूरत क्षेत्र का गांव है । इसके एक तरफ दक्षिण पश्चिम में दो-दो नहर निकली हुई हैं । एक नहर हरसी बांध से निकली है, एक टेकनपुर बांध से । इससे यहां पर खेती बहुत अच्छी होती है । यहां के सभी किसान सम्पन्न हैं । दूसरे उत्तर-पूर्व की तरफ छंछूद नदी (Chhachhund River) कलकल करती हुई बारह माह बहती रहती है ।

चिरुली गांव के अन्दर-बाहर कई मन्दिर हैं यथा, हनुमान जी, खेड़ापति, माता का मन्दिर , शिवजी मन्दिर , राजा महाराम का मन्दिर प्रमुख हैं। गांव के उत्तर में छंछूद नदी को रोककर महाराजा सिंधिया माधोराव प्रथम ने सन 1910 में टेकनपुर बांध का निर्माण कराया। उसके बाद उनके पुत्र महाराजा जीवाजीराव ने बांध के किनारे पर एक भव्य सुन्दर सात मंजिला महल का निर्माण सन 1930 से 1936 तक पानी के जहाज की तरह कराया गया। जिसके निर्माण में 300 मजदूर रोजाना काम करते थे और उस समय उसकी लागत 9 लाख रूपये आईं थीं। आधा महल पानी के अन्दर आधा महल पानी के बाहर है। दूर से देखने पर लगता है कि समुद्र में कोई पानी का जहाज़ खड़ा है। महल के पास शिवजी का खूबसूरत एक मन्दिर का भी निर्माण करवाया है।

कहते हैं कि जीवाजीराव सिंधिया ने उस महल को अपने अंग्रेज़ मित्रों एवं अपने ऐशो आराम के लिए बनवाया गया था । महाराज एवं उनके अंग्रेज़ मित्र आखेट एवं मनोरंजन के लिए डमकोली (जहाज महल) में आकर रहते थे। यह स्थान ग्वालियर से 30 किमी की दूरी पर चिरुली गांव के ऊपर नजदीक ही है। एक बार जीवाजी राव सिंधिया अपने अंग्रेज़ मित्रों के साथ जुआ खेल रहे थे। उस दिन जीवाजीराव महाराज ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था लेकिन फिर भी वह जुआ के खेल में सबकुछ हार चुके थे। महाराज काफी दुखी थे। महाराज को दुखी देखकर उनके एक सरदार संभाजी राव लाड़ ने दुखी होने का कारण पूछा। तो उन्होंने अपने जुआ के खेल के बारे में बताया, हार का कारण बताया। तब उनके सरदार मंत्री लाड़ ने कहा कि महाराज आप चिन्ता न करें, मैं अभी आपकी चिन्ता दूर करता हूं। महाराज ने कहा कि वह कैसे ? तब सरदार लाड़ ने बताया कि गांव चिरुली में एक बहुत बड़े जमींदार रहते हैं उनका नाम है ठाकुर श्री लालू सिंह जी, वह मेरे मित्र भी हैं। मैं अभी रुपयों की व्यवस्था करता हूं। तभी सरदार लाड़ ने अर्द्ध रात्रि को ही गांव में आकर श्री लालू सिंह को आवाज दी। श्री लालू सिंह घर से बाहर आए। सरदार लाड़ से अर्द्ध रात्रि में आने का हाल जाना। उन्होने उस समय की मुद्रा विक्टोरिया से भरकर एक बोरी (थैला/बैग) में भरकर सरदार लाड़ साहब को दी । तब महाराज बहुत खुश हुए और पुन: जुआ का खेल आरम्भ किया गया। फिर क्या था ? महाराज ने हारी हुई सारी सम्पत्ति पुन: अंग्रेज मित्रों से जीत ली। बहुत खुशी का माहौल था। सुबह ही लालू सिंह जी को बुलावा भेजा गया। लालू सिंह जी वहां गए तो महारा ने उनकी पीठ ठोककर काफी प्रशंसा की। उनकी दी हुई राशि वापस कर दी और कहा कि जब भी आप ग्वालियर दरबार में आयेंगे तो आपकी कुर्सी अलग से सुरक्षित रहेगी। इस घटना के बाद लालू सिंह जी का नाम पूरे क्षेत्र में फ़ैल गया तथा सम्मान और बढ़ गया। ग्वालियर, भिंड, दतिया क्षेत्र में जाटों में अग्रणी हो पूरे संभाग में नाम हो गया ।

घिरोलिया वंश की वंशावली

घिरोलिया वंश की पटियों से प्राप्त पूर्वजों की जानकारी - जगाओं से प्राप्त वंशावली इस प्रकार है - सबसे पहले प्रथम राजा माधोसिंह जी थे , जिन्होंने घिरोलिया खेड़ा बसाया था । माधोसिंह के पुत्र पंचम सिंह हुए , पंचम सिंह के पुत्र महिमा सिंह हुए। महिमा सिंह के 3 पुत्र हुए सूरजमल , राजभान , मानसिंह । मानसिंह के पुत्र पर्वत सिंह हुए , पर्वत सिंह के पुत्र हरसुखराम हुए । हरसुखराम के पुत्र पहाड़ सिंह हुए । पहाड़ सिंह के पुत्र उम्मेद सिंह हुए । उम्मेद सिंह के पुत्र मानसिंह हुए । मानसिंह के पुत्र निहाल सिंह हुए । निहाल सिंह के पुत्र गंगाराम हुए । गंगाराम के पुत्र नृपत सिंह हुए । नृपत सिंह के पुत्र अर्जुनसिंह हुए । अर्जुन सिंह के 2 पुत्र मोतीराम सिंह , जिनकी असमय मृत्यु हो गई , और लालू सिंह हुए ।

श्री लालू सिंह जी की पहली शादी श्रीमती कोंसा देवी पुत्री श्री लाखा सिंह बिसांटिया गोत्र निवासी घरसौंदी से हुई , जिनसे उन्हें 1 पुत्र बाल सिंह हुए , कुछ समय में ही उनका देहान्त हो गया । उसके बाद श्री लालू सिंह की दूसरी शादी श्रीमती सावित्री देवी पुत्री श्री कल्याण सिंह निवासी घरसौंदी से हुआ , श्री बाल सिंह का लालन पालन इनके हाथों से हुआ । इनके कोई सन्तान नहीं हुई । श्रीमती सावित्री देवी जी का निधन दिनांक 6 जनवरी 1984 को हो गया था । श्री लालू सिंह जी ने तीसरी शादी श्रीमती राधा देवी पुत्री श्री हरनाम सिंह हंसेलिया गोत्र गांव सिसगांव से हुई , जिनसे 7 पुत्र हुए । श्रीमती राधादेवी जी का निधन दिनांक 8 अप्रैल 2019 को हो गया था ।

लालू सिंह के 8 पुत्र 1. बाल सिंह , 2. सुग्रीव सिंह , 3. सोबरन सिंह , 4. किशन सिंह , 5. प्रवेंद्र सिंह (प्रयाग सिंह), 6. जगदीश सिंह , 7. राजेन्द्र सिंह और 8. सुरेन्द्र सिंह हुए । लालू सिंह जी का देहांत 24 जनवरी 1972 को हुआ था ।

1. बाल सिंह राणा जी का जन्म सन् 1939 का है , शादी श्रीमती नयनी देवी पुत्री श्री कुन्दन सिंह (गिरदाबल - आर आईं) गोत्र बगोरिया निवासी जसवंतपुर (दोनारी) जिला धौलपुर राजस्थान से हुई । इनसे 1 पुत्री और 5 पुत्र हुए , अशोका देवी , मलूक सिंह राणा (जन्म 15.02.1964 ), अरविन्द सिंह राणा (लाला) , सत्येन्द्र सिंह राणा (पप्पू) , अतेंद्र सिंह राणा (बबलू) , जितेन्द्र सिंह राणा (जीतू) हुए ।

2. सुग्रीव सिंह राणा जी की शादी श्रीमती गायत्री देवी पुत्री श्री गजेन्द्र सिंह पटेल गोत्र माहिले गांव बेहटा जिला शिवपुरी से हुई , जिनसे 3 पुत्र सरजीत सिंह राणा , ज्ञानेन्द्र सिंह राणा , विपिन सिंह राणा हुए तथा 2 पुत्री श्रीमती सुनीता देवी ( शादी धौलपुर ) , श्रीमती प्रतिमा देवी ( शादी घरसौंदी - डबरा ) हुईं ।

3. सोबरन सिंह राणा जी शादी श्रीमती गीता देवी पुत्री श्री गजेन्द्र सिंह पटेल गोत्र माहिले गांव बेहटा जिला शिवपुरी से हुई , जिनसे 2 पुत्र अनिरुद्ध सिंह राणा , ओमेंद्र सिंह राणा हुए तथा 4 पुत्रियां श्रीमती अनीता , श्रीमती मिथलेश , श्रीमती सपना , श्रीमती रंजना हुईं ।

4. किशन सिंह राणा जी की शादी श्रीमती लक्ष्मी देवी पुत्री श्री मंगल सिंह जी (चश्मे वाले) गोत्र पहलवार गांव कागरौल जिला आगरा (वर्तमान निवास डबरा, घरसौंदी) से हुई , जिनसे 3 पुत्र दलजीत सिंह राणा , रंजीत सिंह राणा , कुलजीत सिंह राणा ( सूरज ) हुए तथा 1 पुत्री श्रीमती ऋतु हुईं जिनकी शादी वीरमपुरा जिला ग्वालियर में हुई ।

5. प्रवेंद्र सिंह राणा (प्रयाग सिंह) जी की शादी श्रीमती गीता देवी पुत्री श्री गिरवर सिंह गांव अंतुआ जिला भिंड , बमरौलिया गोत्र से हुईं , जिनसे 1पुत्र पवन सिंह राणा हुए ।

6. जगदीश सिंह राणा जी की शादी श्रीमती पुष्पा देवी पुत्री श्री सिद्धनाथ सिंह दरोगा जी नरसिंहपुर से हुई , जिनसे 1पुत्र दीपक सिंह राणा हुए तथा 5 पुत्रियां श्रीमती रेनू , श्रीमती सोनू , श्रीमती रूबी , श्रीमती प्रीति , श्रीमती मीनू हुईं

7. राजेन्द्र सिंह राणा जी की शादी नहीं हुई ।

8. सुरेन्द्र सिंह राणा जी की शादी श्रीमती शीला देवी पुत्री श्री रतन सिंह कुत्री गोत्र निवासी दिल्ली से हुई , जिनसे 2 पुत्र विक्रम सिंह राणा (विक्की), राहुल सिंह राणा (अप्पू) हुए तथा 1 पुत्री स्वीटी हुईं ।


बाल सिंह राणा जी के 1 पुत्री और 5 पुत्र हुए । पुत्री श्रीमती अशोका देवी की शादी श्री कोक सिंह पुत्र श्री अलबेल सिंह राणा निवासी इकाहरा, हंसेलिया गोत्र से हुई ।

मलूक सिंह राणा जी की शादी श्रीमती रविंद्रा देवी पुत्री विक्रम सिंह निवासी कराहरा जिला आगरा कासिनवार गोत्र से हुई । जिनसे 1 पुत्री प्रियंका राणा (पूजा) (जन्म 24.11.1989) हुईं तथा 2 पुत्र मनदीप सिंह राणा ( जन्म: 26.04.1988) , संजय सिंह राणा (जन्म 29.03.1992) हुए ।

अरविन्द सिंह राणा (लाला) जी की शादी श्रीमती मीरा देवी पुत्री श्री मेघ सिंह राणा बमरौलिया गोत्र , निवासी कठवा हाजी जिला भिंड से हुई , जिनसे 1 पुत्र निशांत सिंह राणा हुए तथा 2 पुत्रियां ज्योति, नीतू हुईं ।

सत्येन्द्र सिंह राणा (पप्पू) जी की शादी श्रीमती मीना देवी पुत्री श्री गोविन्द सिंह गोत्र बूढ़े गांव बनवार जिला ग्वालियर से हुई , जिनसे 1पुत्र अभिषेक सिंह राणा हुए तथा 4 पुत्रियां आरती , कृष्णा , खुशबू , नेहा हुईं ।

अतेंद्र सिंह राणा (बबलू) जी की शादी श्रीमती रानी देवी पुत्री राजेन्द्र सिंह जाट गोत्र धनेटिया निवासी गांव सूखा पठा से हुई , जिनसे 1 पुत्र राहुल सिंह राणा तथा 1 पुत्री दीक्षा हुईं ।

जितेन्द्र सिंह राणा (जीतू) जी की शादी श्रीमती राधा पुत्री श्री जंडेल सिंह गोत्र सेजवार निवासी गांव देहगांव जिला भिंड से हुई , जिनसे 1 पुत्र ओम सिंह राणा तथा 2 पुत्रियां दीपा , छोटी हुईं ।

Distribution in Madhya Pradesh

Villages in Gwalior district

Aroli, Churuli, Kumharra, Ratwai, Tekanpur,

Villages in Sehore district

Itwar

Notable Persons

Source

  • मलूक सिंह राणा गांव चिरुली (9301106507 and 9039689127 )
  • संकलन - रनवीर सिंह ( 9425137463)

Gallery

External Links

References


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