Girgaon

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Location of Bandholi in Gwalior District

Girgaon (गिरगांव) (Girgawan, Girgaw) is a village in Gwalior tahsil and district. It is the village at which Rana Bhim Singh camped when he defeated the Maratha army and occupied Gwalior Fort in 1754.

Location

It is situated in north from Murar on Gwalior-Bahadurpur road.

History

सिंघनदेव बमरौलिया द्वारा पिण्डारी दस्यु सरदार भामापौर का दमन

ग्वालियर के तोमर राजा मान सिंह (1486-1516) के शासन काल में दक्षिण के पिण्डारियों का एक डाकू दल ग्वालियर तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्र टोंक, सिरोंज, कोटा छाबड़ा आदि राज्यों में लूट-पाट किया करता था, उनके सरदार का नाम भामापौर था,जो बहुत बलशाली था. ग्वालियर राजा मानसिंह ने सभी सरदारों को बुलाकर भामापौर के दमन हेतु मंत्रणा की. तब बगथरा के जाट सरदार सिंघनदेव ने भामापौर के दमन का संकल्प लिया. सिंघनदेव अपने नाना झाँझन पूरिया (झाँकरी गाँव), मैथादास गिरवां गाँव के तथा जाजिलजी बिसोटिया (तुरार खेड़ा) को साथ लेकर उस पिण्डारी दस्यु भामापौर की खोज में निकल पड़े. भामापौर को नदी किनारे बीहड़ में शिव मन्दिर में घेर लिया. उस समय वह आँखे खोज में पूजा कर रहा रहा था. सिंघन देव ने युद्ध के लिए ललकारा तो उसने ताम्रपत्र से पूरे जोर से सिंघनदेव के माथे पर वार कर दिया. जिससे सिंघन देव का माथा फुट गया. सिंघनदेव वहीँ गिर पड़े, तब मैथादास तथा जाजील जी बिसौटिया तथा झांझन दास पुरिया एक साथ भामापौर पर टूट पड़े. सिंघन देव ने फूर्ति से उठकर अपनी तलवार से भामापौर का सर धड़ से अलग कर दिया. भामापौर के मारे जाने पर पिण्डारी लुटेरों का दल दक्षिण की ओर भाग गया. ग्वालियर राज्य अराजकता से मुक्त हो गया. सिंघनदेव की बहादुरी से प्रसन्न होकर राजा मान सिंह ने उसे एक रत्न-जड़ित तलवार भेंट कर, गोहद का राजा बनाकर राणा की उपाधि से विभूषित किया.[1] (Ojha, p.37)

भीमसिंह का ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य (1754)

मराठो का ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण - जब मराठा सेनाये 1754 में कुम्हेर दुर्ग का घेरा उठाकर दक्षिण की ओर लौट रही थी, तब उनके एक सेनानायक विठ्ठल शिवदेव विंचुरकर ने ग्वालियर में अपना सैन्य पड़ाव डाला. विंचुरकर ने ग्वालियर दुर्ग पर घेरा डाल दिया और आक्रमण कर दिया.(Ojha, p.64) किलेदार किश्वर अली खां के नेतृत्व में मुग़ल बादशाह की और से नियुक्त राजपूत सैनिक एक माह तक मराठों का सामना करते रहे.[2] मुग़ल साम्राज्य में उस समय षड्यंत्रों का दौर चल रहा था. जिसकी वजह से दिल्ली दरबार ग्वालियर दुर्ग पर मराठों का सामना करने के लिए सेना नहीं भेज सका. किलेदार किश्वर अली ने दुर्ग पर नियुक्त उच्च अधिकारियों से विमर्श किया. किश्वर अली खां के वकील किशनदास ने सलाह दी कि 'दक्षिण के लुटेरों के सामने आत्म समर्पण करने के बजाय गोपाचलगढ़ गोहद के राणा भीम सिंह को सौंपना उचित होगा.[3] (Ojha, p.65)

किलेदार किश्वर अली खां ने वकील की सलाह के अनुसार पत्र भेजकर दुर्ग राणा भीमसिंह को सौंपने के निर्णय से अवगत कराया. [4] (Ojha, p.65)

जाट सेना का ग्वालियर दुर्ग में प्रवेश - किलेदार किश्वर अली खां की अधिकृत सूचना पर राणा भीम सिंह ने मराठों को ग्वालियर से खदेड़ने तथा ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य करने के लिए जाट सेना फ़तेहसिंह के नेतृत्व में 1000 बन्दूक सैनिक ग्वालियर दुर्ग पर भेज दिए. जिन्हें कबूतरखाने के रास्ते से दुर्ग में प्रवेश करा दिया गया. [5] जाट सेनापति फ़तेह सिंह ने मराठा सेना का सामना करने के लिए मोर्चा लगाया. [6] (Ojha, p.65)

जाट मराठा युद्ध 1754 - मराठा सरदार विट्ठल शिवदेव विचुंरकर बहादुरपुर गांव के निकट मोर्चा लगाये थे. राणा भीमसिंह अपने साथ 5000 पैदल, 1000 घुडसवार, 1000 बंदूकों वाले सैनिक की विशाल सेना लेकर युद्ध के मैदान में पहुंचे. ग्वालियर, नरवर आदि राज्यों के अमीर, सामंत, जमींदार तथा सरदार इकट्ठे होकर मरठों का सामना करने के लिये राणा भीमसिंह के पक् षमें पहुंचे.[7](Ojha, p.66)

राणा भीमसिंह ने गिरगांव के निकट अपना मोर्चा लगाया. जाट सेना तथा मराठा सेना मे घमासान युद्ध हुआ. जाट सेना के सामने मराठा सेना ठहर न सकी. मराठों के बहुत से सैनिक मारे गये तथा घायल हो गये. मराठा सेना बुरी तरह परास्त हुई. राणा भीमसिंह ने विट्ठल शिवदेव विचुंरकर के मोर्चे को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया. [8] विट्ठल शिवदेव विचुंरकर अपनी सेना लेकर ग्वालियर से 20 मील आंतरी भाग गया.[9] कुछ मराठा सैनिकों को भीम सिंह की सेना ने कैद कर लिया. [10](Ojha, p.66)

राणा भीमसिंह का ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य (1754) - राणा भीमसिंह ने मराठों को बुरी तरह पराजित कर ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य कर लिया. उसने दुर्ग की सुरक्षा की नये सिरे से व्यवस्था की. किले पर रह रहे उन लोगों को हटा दिया, जिन्हें युद्ध कला का कोई ग्यान नहीं था. बादशह की ओर से नियुक्त राजपूत दुर्ग रक्षकों को भी हटा दिया, जब्कि किलेदार किश्वर अली खां को उसके पद पर बना रहने दिया. [11](Ojha, p.66)

Notable persons

External links

References

  1. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.11
  2. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.101,132
  3. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.132
  4. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.38
  5. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.132
  6. Nathan Kavi, Sujas Prabandh, p.40
  7. Anand Rao Bhau Falke, Shindeshahi Itihas-sanchi sadhanen Part-3,p.213
  8. Anand Rao Bhau Falke, Shindeshahi Itihas-sanchi sadhanen Part-3,p.213
  9. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.132
  10. V.G. Khobrekar, Maratha Kalkhand, p.237
  11. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.132

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