Gokarneshvara

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Gokarneshvara (गोकर्णेश्वर) is an ancient historical and religious place located 5 kms north of Mathura where there was located a devakula of Kushans. Statues of many Kushan rulers have been obtained from here. A statue of Huvishka is unearthed from this place.

Origin

Variants

History

गोकर्णेश्वर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...गोकर्णेश्वर (AS, p.296) मथुरा से 2 मील उत्तर में यमुना किनारे एक प्राचीन स्थान है जहाँ कुषाण काल में एक देवकुल था. यहां के कई कुषाण सम्राटों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिनका अभियान अभी तक संदिग्ध है.

गोकर्णेश्वर महादेव मन्दिर

गोकर्णेश्वर महादेव मन्दिर मथुरा में एक टीले पर बना है, जिसे गोकर्णेश्वर अथवा कैलाश मन्दिर कहते हैं । यह मथुरा का अत्यन्त प्राचीन स्थान है । गोकर्णेश्वर महादेव को उत्तरी सीमा का रक्षक क्षेत्रपाल माना जाता है । मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है । मथुरा के चारों ओर चार शिव मंदिर हैं- पश्चिम में भूतेश्वर का, पूर्व में पिघलेश्वर का, दक्षिण में रंगेश्वर महादेव का और उत्तर में गोकर्णेश्वर का। चारों दिशाओं में स्थित होने के कारण शिवजी को मथुरा का कोतवाल कहते हैं। यह मन्दिर भगवान गोकर्णनाथ को समर्पित किया गया है.

यह मन्दिर मथुरा नगरोपान्त में स्थित है । इसके कमरों से घिरे हुए आंगन के ऊपर अष्टकोण गुम्बदीय छत है । इस आंगन में एक तुलसी का पौधा भी है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने का इस्तेमाल किया गया है । उत्कीर्णित जंगले, मुख्य द्वार पर की गई पच्चीकारी, पत्थर से बनीं कमल-पत्तियाँ व गुम्बद पर समर्पित पलस्तर इसके मुख्य आकर्षण हैं ।


1936 में अंग्रेजों द्वारा मथुरा में खुदाई करायी जा रही थी। गोकर्णेश्वर टीले पर खुदाई के दौरान कुषाणकालीन दो हजार वर्ष पुराना शिलापट मिला। जिस के बीच में शिवलिंग और अगल-बगल शक को दिखाया गया है। उन के एक हाथ में पुष्प है और एक हाथ में माला। उसमें वह शिवलिंग का पूजन कर रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि कुषाण काल द्वितीय सदी में शक जाति के लोग शिव का पूजन करते थे।

संदर्भ: भारतकोश-गोकर्णेश्वर मथुरा

राजकीय संग्रहालय मथुरा में कुषाण प्रतिमाएं

राजकीय संग्रहालय मथुरा[2] भारतीय कला को मथुरा की एक विशेष देन है। भारतीय कला के इतिहास में यहीं पर सर्वप्रथम हमें शासकों की लेखों से अंकित मानवीय आकारों में बनी प्रतिमाएं दिखलाई पड़ती हैं।[3] कुषाण सम्राट वेमकटफिश, कनिष्क एवं पूर्ववर्ती शासक चष्टन की मूर्तियां माँट नामक स्थान से पहले ही मिल चुकी हैं। एक और मूर्ति जो संभवत: हुविष्क की हो सकती है, इस समय गोकर्णेश्वर के नाम से मथुरा मे पूजी जाती है। ऐसा लगता है कि कुषाण राजाओं को अपने और पूर्वजों के प्रतिमा-मन्दिर या देवकुल बनवाने की विशेष रूचि थी। इस प्रकार का एक देवकुल तो माँट में था और दूसरा संभवत: गोकर्णेश्वर में। इन स्थानों से उपरोक्त लेखांकित मूर्तियों के अतिरिक्त अन्य राजपुरुषों की मूर्तियां भी मिली हैं, पर उन पर लेख नहीं है[4]। इस संदर्भ में यह बतलाना आवश्यक है कि कुषाणों का एक और देवकुल, जिसे वहां बागोलांगो (bagolango) कहा गया है, अफ़ग़ानिस्तान के सुर्ख कोतल नामक स्थान पर था। हाल में ही यहाँ की खुदाई से इस देवकुल की सारी रूपरेखा स्पष्ट हुयी है।

External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.296
  2. राजकीय संग्रहालय मथुरा
  3. व्यक्ति प्रतिमाओं के विशेष अध्ययन के लिए देखिये: T.G.Aravamuthan, Portrait Sculpture in South India ,London, 1931
  4. C.M.Keiffer, Kushana Art and the Historical Effigies of Mat and Surkh Kotal, Marg, Vol 15, Number 2, March 1962, p.43-48