Gulab Bai Jat

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Gulab Bai Jat

Gulab Bai Jat is a Brave Woman from village Aali in Dhar district in Madhya Pradesh. Her Story of struggle and bravery was published in Peoples Samachar Bhopal Dated 8 March 2011 which is reproduced below in Hindi for the general reader.

Story of brave woman Gulab Bai Jat
Story of brave woman Gulab Bai Jat

महिला शक्ति - धार जिले के गाँव आली की गुलाब बाई जाट महिलाओं के लिए बनी मिसाल

भूमिका कलम - भोपाल: मध्य प्रदेश भोपाल से प्रकाशित पीपुल्स समाचार पत्र में महिला दिवस 8 मार्च 2011 को धार जिले के आली गाँव की महिला गुलाब बाई जाट की कहानी प्रकाशित हुयी जो ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा का काम करेगी. अत: पीपुल्स समाचार पत्र से साभार यहाँ दी जा रही है।

नाम फुल सा कोमल गुलाब (बाई) और मेहनत इतनी कठोर की पुरूष भी शरमा जाए। अपने कर ( हाथ) और काम पर गजब का भरोसा। इतना भरोसा और मेहनत कि तसवीर और तकदीर दोनों बदल डाली। पहले से दोगुना ज्यादा लहलहाती फसलों के बीच अपनी सफलता पर खिलखिलाती गुलाब बाई।

मप्र के आदिवासी अंचल में बसे धार जिले के नालछा ब्लाक के छोटे से गांव आली में पली-बढ़ी गुलाब बाई जाट उन महिलाओं के लिए आर्दश हैं, जो जिद करो दुनिया बदलो की मेढ़ पर बिना थके बिना झुके चलने में विश्वास रखती हैं। गुलाब बाई ने कुछ करने की लगन और मेहनत के बलबूते खेती को न सिर्फ फायदे का सौदा बनाया बल्कि ग्रामीण इलाके में मिसाल बना दी।

अपने माता-पिता की इकलौती संतान गुलाब बाई गांव में “ट्रैक्टर वाली बाई” के नाम से जानी जाती है। गुलाब के इस काम को लोगों ने पहली बार शौकिया माना लेकिन जब वे ट्रैक्टर से अपने 65 बीघा खेत सहित अन्य किसानों के खेत जोतने पहुंची तो पुरूषों ने भी उनकी मेहनत के सामने हार मान लीं।

58 गांवों का प्रतिनिधित्व

कृषी को प्रयोगों के बलबूते नया आयाम देने वाली गुलाब खेती-किसानी के प्रति अपनी समझ और विशेष पहचान के कारण जिला कृषि उपज मंडी में संचालक के पद पर हैं। वे 58 गांवों का प्रतिनिधित्व भी कर रही हैं और एक कृषि उद्यमी के रूप में उन्होंने यह साबित किया है कि इस क्षेत्र में भी महिलाएं सफल हो सकती हैं। 48 साल की गुलाब किशोर उम्र से ही गांवों में साइकिल से दूध बेचने जाती थी। शादी के बाद काम छूट गया लेकिन 1985 में पिता के गंभीर बीमार रहने के कारण वे मायके आ गईं और खेती का काम संभाला।

संर्घष जीवन है

संर्घष जीवन है लड़ना तो पड़ेगा… जो लड़ नहीं सकेगा आगे नहीं बढ़ेगा… की तर्ज पर अपने जीवन की कहानी सुनाते हुए गुलाब बताती हैं कि “आसान नहीं था पुरूषों के प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्र में अपने को साबित करना। मेरे मोटर साइकल और ट्रैक्टर चलाने पर कई तरह की बांते हुईं। मैंने तय कर लिया था, कि किसी भी कीमत पर खेती में न सिर्फ सफल होना है बल्कि दूसरों से अलग काम करना है।”

एक साल जुताई में आई दिक्कतों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा जिनके पास ट्रैक्टर था उन्होंने जुताई समय पर नहीं की और हमारे खेतों के उत्पादन में कमी आई। इसके बाद ही मैंने टैÑक्टर सीखा और अगले वर्ष से अपने खेतों की जुताई खुद की। माता पिता जब खेती करते थे तो एक बीघा में पांच से सात क्वींटल अनाज पैदा होता था लेकिन अब नई तकनीकी के साथ यह उत्पादन 15 से 20 क्वींटल प्रति बीघा है।

गुलाब लागत हटाकर खेती से 3 से 4 लाख वार्षिक आय अर्जित कर लेती हैं। उनके यहां 6 दूधारू भैंसे भी हैं। उन्होंने उत्पादन बढ़ाने के लिए खेतों ट्यूबवेल लगवाया, बिजली के लिए ट्रांसफार्मर लगवाया। दूसरों का उर्जा स्त्रोत

गुलाब ने बताया कि पहले तो लोग मुझे उपहास भरी नजरों से देखते थे, लेकिन मेरी सफलताओं के कारण अब तीन किलोमीटर दूर के गांव की एक और महिला ट्रैक्टर चलाना सीखकर खेतों में जुताई का काम कर रही है। मेरी बेटी भी ट्रैक्टर चलाकर खेती में मेरा साथ देती है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें महिलाएं अच्छा काम कर सकती है. सरकार को भी इस तरह के चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं को आगे बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।


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