Hardeva Singh Burdak

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Author:Laxman Burdak IFS (R)

Hardeva Singh Burdak (born:1905) from village Palthana (Sikar), was a leading Freedom fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan.

Family of freedom fighters

Teja Ram Burdak had a title of '23 Rai' awarded by Sikar Jat Panchayat. He was imprisoned many times. This title was given to indicate him superior to the British Viceroy ('bais ray' in local dialect).

Teja Singh Burdak had three sons: 1. Hardeva Singh Burdak, 2. Narayan Singh Burdak Palthana, and 3. Nop Ram Burdak

Teja Singh Burdak's eldest son Hardeva Singh Burdak was also freedom fighter.

Teja Singh Burdak's second son Narayan Singh Burdak Palthana father of Keshardev Burdak was also freedom fighter.

Teja Singh Burdak's youngest son Nop Ram Burdak was also freedom fighter. He was sarpanch of Palthana for about 28 years. Vidyadhar son of Nop Ram is AAO in Housing Board Jaipur.

Narayan Singh's son is Keshardev Burdak - Yoga Guru, Teacher Govt Sec. School Bandiawas Sikar, State Auditor Patanjali Yoga Samiti Rajasthan, Secretary Scout Guide Sikar, DOB: 1.8.1959. Mob: 9460168530

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....चौधरी हरदेव जी - [पृ.490]: चौधरी तेजसिंह पलथाना के मरदाने पुत्र हरदेव सिंह जी का जन्म संवत 1962 (1905 ई.) में हुआ था। आपके छोटे भाइयों में नारायण सिंह जी का जन्म संवत 1965 (1908 ई.), नोपसिंह जी का संवत 1972 (1915 ई.), भूर सिंह जी का संवत 1976 (1919 ई.) और रामकुमारी भाई का जन्म 1980 (1923 ई.) का है।

हरदेवसिंह जी ने जो किया उसका वृतांत सुंदर है।

1. झुंझुनू संवत 1987 में महाराज जयपुर को दरख्वास्त लगान को कम करने की दी। महाराजा उस समय दौरे पर पधारे थे। सरकारी कर्मचारी किसानों को नजदीक नहीं आने देते थे। हरदेव सिंह ने किसानों को एक स्थान पर बिठा दिया और खुद महाराज के पास पहुंचकर दरखास्त दे दी। तब महाराजा ने किसानों को बुलवाया।
2. झुञ्झुणु में जाकर सीकर में जलसा करने का निमंत्रण दिया।
3. पलथाना में स्कूल खुलवाया।

सन् 1905 में आपके दादा आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तार करके आगरे के किले में भेज दिए गए। तात्पर्य यह है कि आप का खानदान हमेशा से बहादुर रहा है।

सीकर के सोये हुये किसानों को जगाने का श्रेय

महावीर सिंह जाखड़[2] ने लिखा है कि सीकर के सोये हुये किसान शेरों को जगाने का श्रेय ठाकुर देशराज, जघीना (भरतपुर) को जाता है। पुष्कर के जाट अधिवेशन के बाद यह जागृति ज्यादा आई। इस आंदोलन में सबसे ज्यादा जुझारूपन पलथाना के बुरड़कों ने दिखाया। सूबेदार - चन्द्र सिंह (मदू), हरी सिंह, हरदेव सिंह, जेसा राम, भाना राम, गणपत राम, व पेमा राम आदि यहाँ के प्रमुख सेनानी थे। यहाँ के बुरड़क रतनगढ़ तहसिल के सुलखनिया गांव में बसे हैं। उन्होने भी मेघसिंह के नेतृत्व में ( 6 भाई - मेघ सिंह, धाला राम, अमरा राम, मुखा राम, माना राम व लिखमा राम) सामंती उत्पीड़न के विरुद्ध हर संघर्ष मे ताल ठोक कर भाग लिया तथा फतेह हासिल की। अमरा राम आजाद हिन्द फौज के सेनानी रहे। श्री मेघ सिंह एवं धाला राम ने मरू-भूमि में शिक्षा प्रसार हेतु स्वामी नित्यानंद से खिचिवाला जोहड़े में विद्यालय शुरू करवाया।

हरदेवा सिंह बुरडक: जीवन परिचय

सन 1925 में पुष्कर सम्मलेन के पश्चात् शेखावाटी में दूसरी पंक्ति के जो नेता उभर कर आये, उनमें आपका प्रमुख नाम हैं [3]

चौधरी तेजसिंह जी पलथाना

ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है ....चौधरी तेजसिंह जी पलथाना - पलथाना में जीवित शहीदों का एक घर है। उसमें


[पृ.302]: जितने भी आदमी हैं कौमी सेवा के रंग में रंगे हुए हैं। लड़कियों के दिल में भी जाति अभिमान की लहरें उठती है। उस घर के ग्रहपति हैं चौधरी तेजसिंह जी बुरड़क।

आप चौधरी उदय सिंह जी के सुपुत्र हैं। आपका जन्म संवत 1940 (1884 ई.) विक्रमी के माघ महीने में कृष्ण पक्ष की रात्रि को हुआ था।

आप के पुत्रों में नारायण सिंह और हरदेव सिंह जी से सीकर वाटी ही नहीं उसे बाहर के सभी पढ़े-लिखे जाट परिचित हैं।

हरदेव सिंह एक खिलौना आदमी है। उन्होंने कई वर्ष तक जूते नहीं पहने कि जब तक ठिकानेदार इसी प्रकार निरंकुश रहेंगे हम चैन से बैठना नहीं चाहते। उनकी नाक में नकेल डाल कर ही हम आराम की जिंदगी बिताएंगे। हुआ भी यही। हरदेव सिंह 5 वर्ष तक सीकर वाटी के जाट आंदोलन को अपने दौड़ धूप से पानी देते रहें और ठिकानेदारों के कान ढीले हो गए तब उन्होंने अपनी माली हालत सुधारने की ओर ध्यान दिया।

अपनी जिंदगी में ही और अपने ही हिम्मत से कोई आदमी कितना कमा सकता है इसका सबसे ऊंचा नमूना हरदेव सिंह जी ने रखा है। उन्होंने पहले तो लक्ष्मणगढ़ आदि में दुकानें की। इसके बाद मारवाड़ी सेठों के सट्टे के व्यापार में पैर रखा। दो-ढाई साल में ही इतना पैसा कमाया जिससे एक कोठी उन्होंने अपने गांव में खड़ी कर दी।

आपके छोटे भाई ने कुंवर हरि सिंह जी गोठड़ा के साथ जेरठी-दादिया स्टेशन पर एक दुकान आरंभ की।


[पृ.303]: इस प्रकार तीनों भाइयों ने व्यापार में बसने वाली लक्ष्मी को ढूंढ निकाला।

चौधरी तेज सिंह सीधे सच्चे और इमानदार आदमी है। वे एक रास्ते चलने वाले हैं। जाट वैदिक हाउस सीकर के लिए उन्होंने 1100 रुपये देकर एक कमरा बनवाया है।

आप आर्य रहन सहन के आदमी हैं और आपके बच्चे बच्चियाँ सभी कुरीतियों से ऊंचे उठ कर अपना जीवन बिताते हैं। यह आप की विशेषता है।

हरदेव सिंह जी और नारायण सिंह जी के अलावा आपके जो दो छोटे पुत्र हैं उनके नाम नोप सिंह और भूरा सिंह हैं। लड़की का नाम रामकुंवारी है।

चौधरी तेज सिंह जी आंदोलन के सिलसिले में इंचार्ज सरपंच की हैसियत से जब गिरफ्तार हुए तो आपको देवगढ़ के किले में बंद रखा गया था।

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.490
  2. Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush Part 1/Chapter 10, p.93
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 100
  4. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.301-303

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