Haryashva

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Mandhata Ancestry

Haryashva (हर्यश्व ) was a Suryavanshi King of Mandhata Dynasty.

As per Manusamhita Yuvanashwa king married to a girl Gauri of Matinara (मतिनार) Chandravanshi clan. Samrata Mandhata was born from them. After Gauri's name the title of Mandhata became Gaur.[1]

Ancestry of Haryashva

Kuvalayashva (or Dhundhumara) → Dridhashva (+ Kapilashva + Bhadrashva) → HaryashvaNikumbhaBahulashvaKrisashvaSenajitYuvanashva.

Yuvanashva - Yuvanasva had no son. Yuvanasva adopted his grand son Ambarisha. Ambarisha had one son Youvanasva. His son was Harit. These three, Ambarisha, Youvanasva and Harita were the founders of the chief clans of the Mandhata Dynasty.

History

Bhaleram Beniwal [2] tells us that One of sons of Mandhata was Ambarish. His son was Yuvanashva and his son was Harit who was a great Rishi.

गोवर्धन

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ... 2. गोवर्धन (AS, p.306): गोवर्धन मथुरा नगर, उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 14 मील की दूरी पर स्थित पर्वत है जिसे, पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्री कृष्ण ने उंगली पर उठाकर ब्रज की इंद्र के कोप से रक्षा की थी. गोवर्धन में अरावली पहाड़ की कुछ निचली श्रेणियां फैली हुई है. हरिवंश, विष्णु पर्व अध्याय 37 में उल्लेख है कि इक्ष्वाकु वंश के राजा हर्यश्व ने जिनका राज्य महाभारत काल से भी बहुत पहले मथुरा में था, अपनी राजधानी के समीप पहाड़ी पर एक नगर बसाया था जो संभवत: गोवर्धन ही था. श्रीमद्भागवत में गोवर्धनलीला दशम स्कंध के 25 वें अध्याय में सविस्तार वर्णित है-- ('इत्युक्त्वैकेन हस्तेन कृत्वा गोवर्धनाचलम् दधार लीलया कृष्णश्छत्राकमिव बालक:' आदि). श्रीमद् भागवत 5,19,16 में भी गोवर्धन पर्वत का उल्लेख है--'द्रोणश्चित्रकूटो गोवर्धनो रैवतक:, कुकुभोनीलो गोकामुख इंद्र कील:'. विष्णु पुराण 5,13, 1 तथा 5,10,38 ('तस्माद् गोवर्धनश्शैलो भवदिभर्विविधार्हणै, अर्च्यतां पूज्यतां मेध्यान् पशून हत्वा विधानत:') में कृष्ण की गोवर्धन पूजा का वर्णन है. महाकवि कालिदास ने गोवर्धन को शूरसेनप्रदेश में बताया है--'अध्यास्य चाम्भ: पृषतोक्षितानि शैलेयगंधीन-- शिलातलानि, कलापिनां प्रावृषि पश्य नृत्यं कांतासु गोवर्धनकंदरासु' रघु. 6,51: -- शूरसेन के राजा सुषेण का परिचय इंदुमती को उसके स्वयंवर के समय देती हुई सखी सुनंदा कहती है--'शूरसेननरेश से विवाह करने के पश्चात तू गोवर्धन पर्वत की सुंदर कंदराओं में शैलेयगंध से सुवासित और वर्षा के जल से धुली हुई शिलाओं पर आसीन होकर प्रावृट काल में मयूरों का नृत्य देखना'.

गोवर्धन को घटजातक में गोवद्ध-मान कहा गया है. गोवर्धन में श्री हरिदेव (कृष्ण) का एक प्राचीन मंदिर है जिसे अकबर के मित्र एवं संबंधी आमेर नरेश भगवान दास का बनवाया हुआ कहा जाता है. मानसी गंगा (पौराणिक किंवदंतियों के अनुसार) श्री कृष्ण के मानस से प्रसूत हुई थी. इसके घाट अर्वाचीन हैं (टीप: ऐसा जान पड़ता है कि गोवर्धन की श्रंखला वास्तव में पर्वत नहीं है वरन् एक लंबा चौड़ा बांध है जिसे संभवत श्री कृष्ण ने वर्षा की बाढ़ से ब्रज की रक्षा करने के लिए बनाया था. यह अधिक ऊंचा नहीं है और इसे पर्वत किसी प्रकार भी नहीं कहा जा सकता. इसके पत्थरों को देखने से भी यह प्रतीत होता है कि यह है कृत्रिम रूप से बनाई गई कोई संरचना है. आज भी गोवर्धन के पत्थरों को उठाना या हटाना पाप समझा जाता है. इस बात से भी इसका कृत्रिम रूप से जनसाधारण के हितार्थ बनाया जाना प्रमाणित होता है. इस विषय में अनुसंधान अपेक्षित है.)

References

  1. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998 p. 237
  2. Bhaleram Beniwal: Jāt Yodhaon ke Balidān, Jaypal Agencies, Agra 2005 (Page 39-40)
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.305-306

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