Humorous Jokes in Harayanavi/ड्राइवर, कंडक्टर तथा रेल, बस आदि का सफर

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दो बूढे

एक बै रोहतक बस स्टेंड पै दो बुड्डे खड़े , दोनों के दोनों कती बहरे ,

एक बोल्या दुसरे नै -- अरे महम जा गा के .

दुसरे नै जवाब दिया -- ना महम जाऊंगा भाई .

पहलम आला फेर बोल्या -- अच्छा मने सोची महम जाता होगा भाई तू

ताऊ की यात्रा

ताऊ बैठा हरियाणा रोड्वेस् की बस मै सफ़र करे था. रोहतक ते जावे था भिवानी. कलनौर आते ही टी.टी आ गया टिकट चेक करण. ताऊ धोरे जा के बोल्या , ला ताऊ टिकट दिखा. ताऊ ने अपणा झोला खोल्या , लत्ता के बीच मै ते एक प्लास्टिक् की थैली काढी, ऊस्के माह् ताऊ ने रोटी बान्ध रखी थी. रोटी के बीच ताऊ ने धर राख्या धडी पक्का चूर्मा. ताऊ ने धीरे धीरे चूर्मे मे हाथ घुमा के टिकट काढि अर टी.टी कान्नी बढा दी. टी.टी ने टिकट का हाल देख्या, कती ए चीकणी पडी थी. छो मे आ के बोल्या , अह रे ताऊ यो भी किम्मे धरण की जगह सै? सारी टिकट भुन्डी ढाल चिकणी कर दी, इस्मे के देखू मै? ताऊ लाहप्सी सा मुह बना के बोल्या , के करू बेटा बुड्डा आदमी सू , टिकट् कद्दे खू न जा, इसे खातिर घ्हणी सम्भाल् के धर रखी थी. टी.टी बोल्या, चूर्मे ते सेफ जगह् कौणी थी? न्यू कह् के टी. टी आगे चला गया. ऊसी ताऊ धोरे एक दूसरा ताऊ भी बैठ्या था, वा न्यू बोल्या अह रे बावली बूच, चूर्मा भी कोई टिकट धरण् कि जगह् से ? तू भी बुढापे मै कती बावला हो गया. ताऊ शैड् देनी सी बोल्या, ”’इसा बावला भी ना सू, 2 साल ते इसी टिकट पे सफ़र कर रहया सू”’.

Virender Narwal 23 Oct. 2008


हरयाणा रोडवेज के कंडक्टर

एक बै मुख्यमंत्री को शिकायत मिली कि हरयाणा रोडवेज के कंडक्टर बहुत बदतमीजी से बोलते हैं । उसने फौरन आदेश दिया कि हर एक कंडक्टर हरेक बात से पहले "कृपया" लगायेगा ।

एक बै एक बस में कई मौलड़ चढ़ लिये और खिड़की पर लटक लिये । थोड़ी हाण पाच्छै कंडक्टर आया अर बोल्या - कृपा करकै आगे-नै मर ल्यो !!


बटेऊ का टिकट ?

एक बै दो तेज से बूढ़े हरयाणा रोडवेज की बस में बैठ लिये । कंडक्टर आया एक धोरै, अर बोल्या - "हां ताऊ, टिकट?"

बूढ़ा पईसे बचावण के चक्कर में था, बोल्या - "ओ मेरे यार कंडक्टर, न्यूँ सोच लिये अक गाम की छोरी फेट-गी थी" । कंडक्टर भी शरीफ था, मान-ग्या बेचारा ।

फिर कंडक्टर नै दूसरा ताऊ टोक लिया - "ताऊ, टिकट" ।

दूसरा ताऊ पहले वाले का भी उस्ताद लिकड़ा, बोल्या - "ओ मेरे यार कंडक्टर, छोडै ना, न्यूँ सोच लिये अक छोरी गैल बटेऊ भी था" !!


बस का बोर्ड


चंडीगढ़ से दिल्ली जाने वाली बस का कंडक्टर आवाज मारण लाग रहया था - दिल्ली...दिल्ली...दिल्ली !

पर बस कै आगै प्लेट लगा राखी थी लुधियाना की ।

एक गाभरू, चश्मे आळा छोरा कंडक्टर तैं बोल्या - बस कहां जायेगी ? कंडक्टर बोल्या - दिल्ली...दिल्ली !

उस छोरे कै तसल्ली ना हुई, अर उसनै कंडक्टर तैं फेर बूझया अक बस कित जावैगी । कंडक्टर बोल्या - दिल्ली...दिल्ली !

छोरा बोल्या - इस पै बोर्ड (प्लेट) तै लुधियाना का लाग रहया सै !

कंडक्टर कै छो ऊठ-ग्या अर बोल्या - "अरै, तन्नै इस बोर्ड पै बैठ कै जाणा सै अक बस में"?


"एक सवारी और आवैगी"


एक बै एक रोडवेज बस कंडक्टर की शादी हुई । सुहाग रात को जब वो अपने कमरे में गया तो देखा कि उसकी बहू खाट के बीच में बैठी थी ।

कंडक्टर उसनै बिचाळे में बैठी देख कै बोल्या - थोड़ी सी परे नै हो ले, हाड़ै एक सवारी और बैठैगी !!


खूंटी

एक बै एक ताई घणा सारा सामान ले कै हरयाणा रोडवेज की बस में चढ़-गी । वा एक बाळक नै भी गोदी ले रही थी । बस में घणी भीड़ थी, अर उसनै सीट ना मिल्ली ।

बस में ताई धोरै एक सूधा सा कालिज का छोरा खड़ा था, ताई उस तैं बोली - बेटा, यो मेरा झोळा पकड़ ले । छोरे नै पकड़ लिया । थोड़ी हाण पाच्छै ताई नै दो-तीन और झोळे उस छोरे ताहीं पकड़ा दिये । अर फेर वो बाळक भी आपणी गोदी तैं उतार कै उस छोरे ताहीं पकड़ा दिया ।

ताई नै फेर सीट भी मिल-गी । ताई उस छोरे तैं बोली - "आं रे बेटा, तू तै बहुत आच्छया बेटा सै, तेरा के नाम सै ?"

छोरा बोल्या - "मेरा नाम सै खूंटी, कुछ और भी टांगणा हो तै टांग दे" !!


बस का होर्न

एक बै रोडवेज की बस सड़क पर कै जावै थी। ड्राइवर नै देख्या एक बुढ़िया एक बालक ने गोद लियाँ भाजी आवै सै । ड्राइवर ने सोची कि बुढ़िया कितै जाती होगी……? ड्राइवर ने बस रोक ली…..बुढ़िया आई……ड्राइवर ने पूछया ताई कित जावैगी…..?

ताई न्यू बोली…….रै ड्राइवर.... मैं कितै ना जाती………एक बै यो आपनी बस का होर्न बजा दे…..यो बालक रोवे सै…….यो रोवण तै थम जावैगा !!

Virender Narwal

तन्नै देखण आळे आ रहये सैं

एक काळा-भसंड गाड्डे लुहार (भूभळिया) अर उसकी लुहारी बस में सफर करैं थे । बस में भीड़ थी, वे दोनूं न्यारे-न्यारे बैठ-गे । रास्ते में कई टिकट-चैकर बस में चढ़-गे । एक चैकर ताहीं लुहारी नै दोनूं टिकट दिखा दी । टिकट चैकर बोल्या - दूसरी सवारी कुण-सी सै, उसकी शकल दिखा


लुहारी रूका मार-कै बोली - ओ लुहार, एक बै खड़ा होइये, तन्नै देखण आळे आ रहे सैं !!


"तेरे ताहीं एक छोरा ए देख आऊं"

एक जाट का छोरा बस में जावै था । छोरा शरारती था, अर बस में खड़ी एक छोरी नै छेड़ण लाग रहया था ।

उस बस में एक बुढ़िया भी बैठी थी अर सारा नजारा देखण लाग रही थी । बुढ़िया नै छोरे की हरकतां पै घणा छो आया, अर छोरे नै सबक सिखावण ताहीं बोली - रै ताऊ, कित जावैगा ?

छोरे नै देख्या अर सोचण लाग्या अक या साठ साल की बुढिया मन्नैं "ताऊ" क्यूं कहै सै ? पर बुढ़िया की उम्र देख कै वो चुप रहया ।

थोड़ी हाण रुक कै बुढ़िया फिर बोली - "ताऊ, कित जावैगा"? छोरा फिर चुप रहया । ईब तै सारी बस आळे भी मजे लेण लाग्गे । बुढ़िया फिर बोली - "रै ताऊ, न्यूं तै बता अक तू कित जावैगा"?

ईब छोरे पै रहया ना गया, अर वो फट बोल्या - "जाऊं तै था मैं कितै और, पर ईब न्यूं सोचूं सूं अक तेरे ताहीं एक छोरा ए देख आऊं" !!


पाछे नै लटक ले !!

फत्तू सवारी ढोवण खातिर नया-नया टैंपू ल्याया था । उसनै दिन-रात टैंपू ए टैंपू दीखण लाग-गे । एक रात वो सोता-सोता बोलण लाग-ग्या : आ ज्याओ भाई आ ज्याओ, टैंपू चाल्लै सै, तावळे आ-ज्याओ ।

फेर या-ए बात वो जोर-जोर तैं बोलण लाग-ग्या, तै या बात सुण कै उसकी बहू बोली: "के बात हो-गी जी, आज न्यूं क्यूकर बोलो सो?"

फत्तू नींद मैं बोल्या : कित जावैगी बेबे ?

या सारी बात फत्तू का बाबू भी सुणन लाग रहया था, वो बोल्या : अरै मेरा सुसरा, के बोलै सै बहू नै ?

फत्तू नींद में-ऐं बोल्या: "ताऊ, तू तै पाछे नै लटक ले" !!


दिन छिप्पे पाच्छै

हरयाणा रोडवेज अर डी. टी. सी. में हरयाणा के मौलड़ ड्राइवर-कंडक्टर घणे भरे सैं ।


एक बै टूरिस्ट महकमे की बैठक हुई जिसमें परिवहन मंत्री भी शामिल थे । बात शुरू हुई अक दिल्ली आने वाळे टूरिस्टां नै बस में घणी दिक्कत होवै सै, क्योंकि इनके ड्राइवर-कंडक्टर सारे मौलड़ भर राखे सैं, इन्हैं इंग्लिश आती कोनी - इनका कुछ इलाज करो ।


परिवहन मंत्री नै कुछ रोडवेज आळां तै बात करी - अक हां भाई, बताओ ईब के करां ?


उन्हैं बोल-बतळा कै मंत्री ताहीं जवाब दिया - मंत्री जी, इन्हैं कह दो अक दिन की तै गारंटी सै कोनी, पर दिन छिप्पे पाच्छै (दो घूंट पी कै) सारे अंग्रेजी बोल्लैंगे!!


"आगै के लीप राखी सै ?"

ताऊ हरयाणा रोडवेज की बस में आगे कै चड्ढ़ण लाग्या । कंडक्टर बोल्या - ताऊ, पाच्छे कै !


ताऊ - क्यूं, आगै के लीप राक्खी सै ?

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"प्लाट कट्टैंगे"

एक बै एक बस में बहोत भीड़ थी । एक ताऊ का पांव एक छोरी के पांव पै पड़-ग्या ।

छोरी छो में आ कै बोल्ली "पां काट दिया"

ताऊ बोल्या - इसी भीड़ में पां नहीं, तै के प्लाट कट्टैंगे ?"


बहू का भाई

भूंडू बचपन तैं ए घणा अळबादी था, किसै नै कुछ भी कह दिया करता ।

बड्डा हो-कै भूंडू हरयाणा रोडवेज में कंडक्टर लाग-ग्या पर उसकी पुराणी आदत ना छूटी । वो बूढे-ठेरां नै "मौसा" अर बूढ़ी लुगाइयां नै "मौसी" कहया करता ।

एक दिन भूंडू टिकट काटण लाग रहया था - "मौसा टिकट ले ले - मौसी टिकट ले ले" । एक बुढिया तैं न्यूं बोल्या - "मौसी, टिकट ले ले" । बुढिया किम्मैं ना बोली । थोड़ी हाण पाच्छै फेर न्यूं बोल्या - "एरी मौसी, टिकट ले ले" ।

बुढ़िया फट बोल्ली - "बेटा, पिछाणा कोनी, कुण-सी बहू का भाई सै ? छोटी का अक बड्डी का ?"

भूंडू बुढ़िया नै तीतर की तरियां लखा कै आगे-नै लिकड़ ग्या ।


छतरी की ताड़ी

एक बै एक ताऊ खड़ा था बस स्टैंड पै । घणी वार हो-गी, कोए बस ना आई । इतणे में एक छोरी बी बस स्टैंड पै आ-कै खड़ी होगी । गर्मी भोत थी, छोरी नै छतरी खोल ली । पाच्छै-पाच्छै एक छोरा बी आ-ग्या अर छोरी नै छेड़ण लाग-ग्या ।


छोरी बोल्ली - "ए छोरे, या छतरी देखी सै, लाग-गी ना तै बम्बई जा-कै पड़ैगा, के हीरो बण रहया सै !"


इतणे में ताऊ बोल पड़्या - "ए छोरी, मैं घणी वार तैं बस की बाट देखूं सूं, एक छतरी की ताडी मेरै मार दे, रोहतक जाणा सै !!"

सारे मेरे कोनी

एक बै एक लुगाई छः-सात बाळकां नै ले कै बस में चढ़-ग्यी । सारी सवारी उस कान्नी लखावण लाग्गी ।

लुगाई सकपका कै बोल्ली - सारे मेरे कोनी, चार पड़ौसियां के भी सैं !!!


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Dndeswal 06:22, 11 January 2012 (EST)



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