Humorous Jokes in Haryanavi/स्कूल, कालिज, क्लास, मास्टर जी इत्यादि
Contents
- 1 ताऊ देवीलाल और "कपल-केस"
- 2 छुट्टी
- 3 बाबू की पुरानी पैंट
- 4 मरियल मास्टरनी
- 5 सूधा बाळक
- 6 "सारयां का फूफा"
- 7 खानदानी बीमारी
- 8 दुर्घटना अर बदकिस्मती
- 9 ड्राइंग की क्लास
- 10 गाम के छोरे
- 11 काणा-गंजा
- 12 पीळा सफारी सूट
- 13 गुड़ की डळी
- 14 “लठ गाड आया”
- 15 “पढ़ाया करै अक सूंघया करै ?”
- 16 गंजा मास्टर
- 17 माराँ डंडे
- 18 टांग देख-कै बता !
ताऊ देवीलाल और "कपल-केस"
यह बात उस समय की है जब ताऊ देवीलाल हरयाणा के मुख्यमंत्री थे । एक बै किसै गाम में दौरे पै जा रहे थे । सब अपनी-अपनी समस्या एक-एक करके बतावण लाग रहे थे ।
एक मास्टरणी का नम्बर आया, ताऊ तैं बोल्ली - "जी, मेरा घरवाला भी मास्टर सै, अर हम दोनूआं के स्कूल घणी दूर-दूर सैं, मेरी बदली (transfer) करवाणी सै" ।
ताऊ बोल्या - "देखांगे बेटी आगै-सी, बदलियां पै तै आजकल रोक लाग रही सै" ।
व मास्टरणी किमैं घणी-ए तावळ में थी, बोल्ली - "जी, म्हारा तै कपल केस (couple case) सै" ।
ताऊ बोल्या - "बावळी, मैं चंडीगढ़ में रहूं सूँ, तेरी ताई तै तेजा-खेड़ा* में पड़ी सै - म्हारा के कपल-केस कोनी?"
तेजा-खेड़ा = चौधरी देवीलाल का पैतृक गांव (सिरसा जिले में)
छुट्टी
एक गाम का स्कूल शमशान घाट धोरै था । जब भी गाम में कोई मरता, स्कूल की छुट्टी हो जाती ।
एक दिन बाळक स्कूल जावैं थे, शमशान घाट की भीत धोरै दो बूढ़े घाम में बैठे होक्का पीवण लाग रहे थे । उन्हैं देख कै सत्ते बोल्या - देखिये रै बदलू, म्हारी दो छुट्टी तै हाड़ै (यहीं) बैठी होक्का पीवण लाग रही सैं !!
एक बै एक छोरा स्कूल नहीं आया । आगलै दिन मास्टर नै पूछा - रै, कल स्कूल क्यूं ना आया था?
बाळक बोल्या - मास्टर जी, म्हारी भैंस नै काटड़ा दिया था ।
मास्टर बोल्या - इसमैं के खास बात हो-गी ?
बाळक नै जवाब दिया - जी, खास बात ना सै, तै आप दे कै दिखा दो !!
बाबू की पुरानी पैंट
एक बै स्कूल में मास्टर जी नै एक छोरे तैं बूझा - "कपड़ा किसे कहते हैं ?"
छोरा बोल्या - जी बेरा कोनी ।
मास्टर गुस्से में हो-कै बोल्या - तेरी पैंट किस चीज की बनी है ?
छोरा बोल्या - जी, मेरे बाबू की पुरानी पैंट की !!
मरियल मास्टरनी
एक भूगोल की मास्टरनी घणी पतली, बोद्दी-सी थी, जमा आइसक्रीम के लीकड़े जिसी । क्लास नै पाछले दिन का पाठ दोहरावै थी । बोली - बोलो बच्चो, धरती क्यूं घूमती है ?
एक छोरा बोल्या - मैडम, किमैं खा-पी लिया कर, ना तै न्यूं-ऐं घूमती दीखैगी !!
सूधा बाळक
तै भाइयो, हुया न्यूं अक एक-बै रात के बखत एक स्कूल की छात (छत) पड़-गी । तड़कैहें-तड़कैहें जब बाळक स्कूल में गये तै घणे कसूते राजी हो रहे थे, अर मेरे-मटे कूदते हांडैं - अक भाई यो तै कसूत काम हो-ग्या, ईब कई दिनां ताहीं पढ़ाई ए ना हो । सारे मास्टर अर हैडमास्टर खड़े हो-कै देखण लाग रहे - अर बाळकां के तै चेहरे कत्ती सिरसम के फूल जिसे खिल-रे थे ।
इतने में हैडमास्टर नै बगल में देख्या अक एक छोरा घणा मुरझाया सा, घणा भूंडा दुखी-सा, अर फूट-फूट कै रोवण लाग रहा था । ईब हैडमास्टर जी नै सोची अक यो छोरा तै घणा बढ़िया, पढ़णियां सै, अर बेचारा घणा दुख मान रहया सै स्कूल के नुकसान होवण का ।
हैडमास्टर आगै गया, उस नै डाटण खातिर, अर जा-कै बोल्या - "बेटा, दुखी मतना हो, मैं समझूं सूं तन्नै कितना दुख सै अक यो सारे गाम का नुकसान सै, अर ईब पढ़ाई कई दिनां ताहीं रुक ज्यागी । पर बेटे, मैं नई छत जितणी जलदी हो सकैगी, बणवा दूंगा" ।
छोरा एकदम तैं रोणा छोड कै बोल्या - "अरै ना मास्टरजी, इसा जुलम मतना करियो । मैं तै न्यूं रोऊं था अक मुश्किलां-सी तै छात पड़ी, अर मास्टर एक भी ना मरया" !!
"सारयां का फूफा"
एक बै एक स्कूल में नाटक होया । उस नाटक में एक छोरी नै बूआ का रोल करना पड़-ग्या । फिर यो बूआ का रोल करे पाच्छै सारी क्लास के बाळक उसनै "बूआ-बूआ" कह कै छेड़ण लाग्गे ।
उस छोरी नै दुखी हो कै एक दिन मास्टर ताहीं बता दी अक - जी, ये सारे मन्नै बूआ-बूआ कह कै छेड़ैं सैं ।
मास्टर कै ऊठ्या छो, अर बोल्या - "अरै, खड़े हो ज्याओ जुणसे-जुणसे इसनै बूआ कहैं सैं" ।
सारी क्लास खड़ी हो गई, बस एक छोरा पाच्छै-सी बैठ्या रह-ग्या । मास्टर उस छोरे नैं बोल्या - क्यूं रै, तेरा के चक्कर सै ?
वो छोरा सहज-सी आवाज में बोल्या "जी, ये जुणसे खड़े सैं ना, मैं इन सारयां का फूफा सूँ !!
खानदानी बीमारी
एक छोरा क्लास में घणा बोल्या करता । उसका मास्टर बोल्या - रै छोरे, तेरै या बीमारी कित्तैं लाग्गी ?
छोरा बोल्या - जी या तै खानदानी सै । मेरा दादा वकील था अर मेरा बाबू मास्टर, उनकै भी या बीमारी थी ।
मास्टर बोल्या - अरै, तेरी मां तै ठीक-ठाक होगी ?
छोरे नै जवाब दिया - "जी, वा तै औरत सै" !!
दुर्घटना अर बदकिस्मती
ढोल्लू अर मौलड़ स्कूल में पढ़्या करते । एक दिन ढ़ोल्लू बोल्या - भाई मौलड़, दुर्घटना अर बदकिस्मती में के फरक सै ?
मौलड़ बोल्या - देख भाई, जै आपणे स्कूल में आग लाग ज्या, तै आपणी या दुर्घटना सै । अर जै आग बुझावण आळे आ-कै आपणे मास्टर नै बचा लें, तै आपणी बदकिस्मती सै !!
ड्राइंग की क्लास
मास्टर जी नै बाळकां तैं हुक्म दिया अक बैठी हुई गावड़ी (गाय) का चित्र बनाओ । एक छोरे नै खड़ी हुई गाय का चित्र बना कै दिखा दिया ।
मास्टर जी नै डंडा उठाया अर बोल्या - मन्नै तै बैठी गावड़ी की तसवीर बणावन की कही थी ।
छोरा बोल्या - "मास्टर जी, मन्नै तै बैठी ए बणाई थी, आपका डंडा देख कै खड़ी हो-गी" !!
गाम के छोरे
गाम के दो छोरे कालिज में पढ़्या करते । एक दिन घणी गरमी थी, वे दोनूं पसीने से तर-बतर हो गये अर एक चाय की दुकान के बाहर अपनी साइकिल खड़ी कर कै दुकान कै भीतर जाकर बैठ-गे । दुकान वाले को आर्डर दिया -
"भाई लाला जी, पंखा तेज कर दे । बॉबी फिल्म का गाणा चाल रहया सै, रेडियो की आवाज तेज कर दे । और सुण, एक कप चाय बना दे, अर एक-बटा-दो कर-कै दो कप्पां (cups) में डाल-कै ले आ । चाय में पानी कम, पत्ती भी कम - चीनी अर दूध ज्यादा डालिये । अर सुण, बाहर म्हारी साइकिल खड़ी सैं, उनका ध्यान राखिये ।"
काणा-गंजा
एक बै एक स्कूल में एक गंजे मास्टर आर एक काणी मास्टरणी की एक साथ ड्यूटी आ-गी - अर दोनुआं की आपस में लडाई हो-गी । तै दोनूं एक दुसरे का मजाक उडाण का मोका टोहवण लागे ।
एक दिन सबेरे सबेरे गंजे मास्टर ने पॉइंट मारया अक काणी खेडी में आग लागरी सै के?
काणी मैडम नै जवाब दिया - फेर तै हूड़ै निरे गंजे ऐ गंजे जळे होंगे !!
पीळा सफारी सूट
एक बै एक चमारां का छोरा, कसूत काळा, रिजर्वेशन कोटे में जे.बी.टी. मास्टर लाग-ग्या । स्कूल में तीसरी क्लास नै पढ़ाया करता ।
पहली तनख्वाह मिली । चमार रीफळ ग्या अर जा-कै एक पीळा सफारी सूट सिमा लिया ।
आगलै दिन वो उस पीळे सूट नै पहर कै स्कूल चल्या गया । बाळकां तैं बोल्या - बाळको, मैं किसा लागूं सूं ? बाळक बोले - जी बढ़िया । वो फेर बूझण लाग्या - बाळको, साची-साची बताओ, मैं किसा लागूं सूं ?
पाच्छे तैं एक ऊत सा बाळक बोल्या - जी इसे लागो सो जणूं सिरसम के खेत में काटड़ा बड़ रहया हो !!
गुड़ की डळी
हिसाब का मास्टर तीसरी क्लास नै पढ़ावै था । बाळकां तैं बूझण लाग्या - दो रुपये का एक किलो गुड़ आवै सै, तै पच्चीस पईसे का कितना आवैगा ?"
थोड़ी हाण पाच्छै एक छोरे नै हाठ ठाया । मास्टर बोल्या - शाबाश लीलू, बता बेटा ।
लीलू – मास्टर जी, बताऊं ? दो छोटी-छोटी डळी अर थोड़े से भोरे !!
“लठ गाड आया”
रमलू आठवीं क्लास में लगातार दो बै फेल हो ग्या । हरेक बै वो आपणे बाबू तैं कहता - "बाबू, ईब कै तै लठ गाड आया ।"
जब तीसरी बै वो पेपर दे कै आया तै उसके बाबू नै बूझ लिया - बेटे, किसा पेपर होया ?
रमलू बोल्या - बाबू, ईब कै तै कतई लठ सा गाड आया ।
उसका बाबू बोल्या - वाह बेटे, पाछले दो लठ तै तेरे तैं पाट्टे कोनी, तू एक और गाड आया !!"
“पढ़ाया करै अक सूंघया करै ?”
एक बै चार-पांच साल का सूंडू स्कूल म्हां तै रोता होया घरां आया । उसका बाबू बोल्या - रै सून्डू, के होया ?
सुन्डू बोल्या - बाबू, तू तड़कैहें मन्नै न्हुवा (नहला) कै ना भेजता । मेरी मैडम न्यूं कह सै अक तुम नहा कै नहीं आते स्कूल में ।
इतना सुण कै उसका बाबू बोल्या - रै या थारी मैडम तुमनै पढ़ाया करै अक सूंघया करै ? !!
गंजा मास्टर
एक बै एक गंजा मास्टर क्लास में आ-ग्या । ज्यूकर-ए वो ब्लैकबोर्ड कान्हीं मुंह कर-कै लिक्खण लागै, बाळक हांसण लाग-ज्यां ! दो-तीन बै न्यूं-ऐं होया ।
मास्टर नै एक छोरा बुलाया - क्यूं रै, तुम क्यूं हाँसो सो ?
छोरा - गुरू जी, बता दूंगा तै आप मारोगे ।
मास्टर - ना, नहीं मारूं, बता !
छोरा - जी, जब आप ब्लैकबोर्ड कान्हीं मुंह करो सो, तै आपकी टाँट पै पंखा चालता दीखै सै !!
माराँ डंडे
एक ब एक एस.पी , डी.सी. अर मास्टर धीरे रेल म जाँ थे ! बात बाता एस.पी अर डी.सी में अपनी पावर की बड़ाई करण की होड शुरू होगी ! कई वार होगी जब मास्टर धीरे त कचोद टाइप त बोल्ये , मास्टर आप भी बता दयो किमे आपने बारे में !
धीरे मास्टर बोल्या , रहण दयो जी , के कहू ईब !
एस.पी , डी.सी माने कोन्या अर् फेर स्वाद लेन के मारे बोल्ये , ना जी किम्मे त बताओ न !
धीरे मास्टर बोल्या , ना मानते त ल्यो सुन ल्यो ! हाम सारी दोफारी त घाम म मुर्गा बनाई राखां , फेर पाछे प माराँ डंडे अर् फेर वे बालक एस.पी , डी.सी बन ज्या स !
टांग देख-कै बता !
एक बै एक स्कूल में इंस्पेक्शन आळे आ-ग्ये । एक क्लास में जा-कै वे बाळकां तैं सवाल बूझण लाग्गे । कुछ सवाल बूझ कै उन्हैं एक जानवर का फोटू दिखाया (जिसमें सिर्फ उसके पांव दीखैं थे) अर ढीलू तैं बोल्ले - इसकी टांग देख कै बता इसका नाम के सै ?
ढीलू कई हाण देख कै बोल्या - जी, मन्नै तै ना बेरा ।
वे इंस्पैक्टर बोल्ले - अरै, तन्नै इतना बी ना बेरा ? बता तेरा नाम के सै ?
ढीलू बोल्या - ले, मेरी टांग देख-कै बता !!
Dndeswal 11:50, 19 May 2008 (EDT)
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