Jageshvara

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

District map of Almora

Jageshwar (जागेश्वर) is a religious and historical place in Almora district of Uttarakhand, India.

Variants

Location

Jageshwar is located 36 kms northeast of Almora, in the Kumaun region. The temples site is on the south of the road, across which is an eponymous village at an altitude of 1,870 m, in the Jataganga river valley near a Deodar forest (Cedrus deodara). The temple clusters begin starting from satellite road branching off east from the Artola village on the AlmoraPithoragarh highway, at the confluence (sangam) of two streams Nandini and Surabhi after they flow down the hills in the narrow valley.[1] The site is about 3.5 kms long along the Jataganga rivulet, is a narrow forested valley of oaks, deodara, rhododendrons and pines.[2] Around the valley is human habitation which provide services to the pilgrims and travelers visiting these temples or passing through to other sacred sites in the Uttarkhand region. The resident villages are Mokshadham, Dandeshwar, Jageswar and Koteshwar.[3]

Jageshwar is about 100 kms southeast of the historic Baijnath Temple and about 100 kms northeast from the resort town of Nainital.

The nearest rail head is Kathgodam 125 km. Jageshwar has direct road links with Almora (35 km), Haldwani (131 km.), Pithoragarh (88 km) and Kathgodam.

History

Jageshwar is a Hindu pilgrimage town and one of the Dhams (pilgrimage region) in the Shaivism tradition. The site is protected under Indian laws, and managed by the Archaeological Survey of India (ASI). It includes Dandeshwar Temple, Chandi-ka-Temple, Jageshwar Temple, Kuber Temple, Mritunjaya Temple, Nanda Devi or Nau Durga, Nava-grah temple, a Pyramidal shrine, and Surya Temple. The site celebrates the Jageshwar Monsoon Festival during the Hindu calendar month of Shravan (overlaps with July–August) and the annual Maha Shivratri Mela (Shivratri festival), which takes place in early spring.

जागेश्वर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...जागेश्वर (AS, p.362) अल्मोड़ा ज़िला, उत्तराखंड का ऐतिहासिक स्थान है। यह स्थान अल्मोड़ा से प्राय: 19 मील (लगभग 30.4 कि.मी.) की दूरी पर स्थित है। यहाँ इस प्रदेश के कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें महामृत्यंजय, कैलासपति, डिंडेश्वर, पुष्टिदेवी, भैरवनाथ आदि शिव के अनेक रूपों तथा विविध भावों की मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जागेश्वर तथा दीपेश्वर महादेव के मंदिर यहाँ के प्राचीन स्मारक हैं। कुछ लोगों के मतानुसार नागेश ज्योतिर्लिंग का स्थान यही है। (दे. नागेश)

जागेश्वर महादेव मंदिर

जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र को सदियों से आध्यात्मिक जीवंतता प्रदान कर रहे हैं। यहां लगभग 250 मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बड़े 224 मंदिर स्थित हैं।

जागेश्वर महादेव मंदिर, जागेश्वर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसे तरुण जागेश्वर अथवा बाल जागेश्वर भी कहा जाता है। नंदी और स्कंदी की सशस्त्र मूर्तियों और दो द्वारपाल या गार्ड मंदिर के प्रवेश द्वार पर देखे जा सकता है। परिसर में मुख्य मंदिर के पश्चिम की तरफ स्थित है और बाल जागेश्वर या हिंदू भगवान शिव के बच्चे के रूप को समर्पित है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव यहाँ ध्यान करने के लिए आये थे। ये जानने के बाद गांव की महिलाएं उनकी एक झलक पाने के लिए एकत्र हुई और जब गाँव के पुरुष सदस्यों को यह पता चला, वे उग्र हो गये और तपस्वी जिसने महिलाओं को मोहित किया था उसे खोजने के लिए आये। इस अराजक स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने एक बच्चे का रूप लिया और तब से, यहाँ भगवान शिव की पूजा बाल जागेश्वर के रूप में की जाती है। मंदिर में शिवलिंग दो भागों में है, जहां आधा बड़ा हिस्सा भगवान शिव का प्रतीक है वहीं एक छोटा हिसा उनकी पत्नी देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व करता है।

शिवलिंग पूजा की शुरुआत का गवाह: जागेश्वर महादेव का मंदिर दुनिया में शिवलिंग पूजा की शुरुआत होने का गवाह माना जाता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के मुख्यालय से क़रीब 40 किलोमीटर दूर देवदार के वृक्षों के घने जंगलों के बीच पहाड़ी पर स्थित जागेश्वर महादेव के मंदिर परिसर में पार्वती, हनुमान, मृत्युंजय महादेव, भैरव, केदारनाथ, दुर्गा सहित कुल 124 मंदिर स्थित हैं जिनमें आज भी विधिवत् पूजा होती है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक बताया है और बाकायदा इसकी घोषणा करता एक शिलापट्ट भी लगाया है। एक सचाई यह भी है कि इसी मंदिर से ही भगवान शिव की लिंग पूजा के रूप में शुरूआत हुई थी। यहां की पूजा के बाद ही पूरी दुनिया में शिवलिंग की पूजा की जाने लगी और कई स्वयं निर्मित शिवलिंगों को बाद में ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयं निर्मित यानी अपने आप उत्पन्न हुआ है और इसकी कब से पूजा की जा रही है इसकी ठीक ठीक से जानकारी नहीं है लेकिन यहां भव्य मंदिरों का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया है। घने जंगलों के बीच विशाल परिसर में पुष्टि देवी (पार्वती), नवदुर्गा, कालिका, नीलकंठेश्वर, सूर्य, नवग्रह सहित 124 मंदिर बने हैं।

कुमायूँ का काशी: पर्वत के ऊँचे शिखरों, देवदार की वादियों तथा कलकल करती नदी के तट परम पवित्र देवभूमि ‘जागेश्वर’ का अपना ही अलौकिक सौंदर्य है। अल्मोड़ा (उत्तरांचल प्रदेश) से 34 कि.मी. की दूरी पर बसी, फूलों, तितलियों और देवदार के साये में पली ये वादी अपनी अद्वितीय सुंदरता का साक्षात प्रमाण है।

अल्मोड़ा से जागेश्वर पहुँचते समय मार्ग में ‘तेंदुआ वन विहार’ में सुंदर वन्य प्राणियों के देखे बिना सफर अधूरा प्रतीत होता है। इसके बाद थोड़ा-सा आगे जाने पर कुमाऊँ का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर ‘चित्तई मंदिर’ आता है। गोल्ल देव के इस मंदिर में हज़ारों घंटियाँ लगी हुई हैं। कहा जाता है कि मनौती पूरी होने पर श्रद्धालुगण यहाँ घंटियाँ चढ़ाते हैं। पूजा के समय मंदिर में बजती हज़ारों घंटियों की मधुर ध्वनि वादियों में प्रतिध्वनित होती रहती है, जो कि कानों को अत्यंत ही प्रिय लगती है। रास्ते के दिलकश नजारों को देखकर तो मनुष्य बरबस ही आकर्षित हो जाता है। चारों ओर हरे-भरे देवदार के जंगल तथा पहाड़ों की उन्नत चोटियों को देखकर मन मंत्र-मुग्ध हो जाता है। समुद्रतल से 1870 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस घाटी के हरे-भरे जंगलों में जब तेज हवाएँ चलती हैं, तो ऐसा लगता है कि जैसे दूर कहीं झरने गिर रहे हों। नदी की कलकल की ध्वनि संपूर्ण वातावरण को संगीतमय बना देती है।

आठवाँ ज्योतिर्लिंग: जागेश्वर कुमाऊँ अंचल के परम पवित्र तीर्थों में से एक माना जाता है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। ये बारह लिंग इस प्रकार हैं- पहला- काठियावाड़ में सोमनाथ, दूसरा- मद्रास में कृष्णा नदी के तट पर मल्लिकार्जुन, तीसरा- उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट पर महाकालेश्वर, चौथा- मालवा प्रांत के नर्मदा नदी के तट पर ओंकारेश्वर, पाँचवाँ- हैदराबाद के निकट वैद्यनाथ, छठा- नासिक से 120 मील दूर भीमा नदी के तट पर भीमशंकर, सातवाँ- मद्रास में रामेश्वरम्, आठवाँ- अल्मोड़ा में स्थित जागेश्वर (34 कि.मी. की दूरी पर) जटा गंगा के तट पर (नागेश्वर), नौवाँ- काशी में विश्वनाथ, दसवाँ- नासिक में गोदावरी के तट पर त्र्यम्बकेश्वर, ग्यारहवाँ- बद्रीनाथ के समीप केदारनाथ, बारहवाँ- दौलताबाद के निकट घुश्मेश्वर, इन बारह ज्योतिर्लिंगों में से जागेश्वर का आठवाँ स्थान है। जागेश्वर को कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे- यागेश, जागेश, नागेश, बाल जगन्नाथ आदि। इस मंदिर की स्थापना के संबंध में बहुत से मत हैं पर मुख्य रूप से इसे 8वीं सदी से 14वीं सदी के बीच माना जाता है, जो कि पूर्व कत्यूरी काल, उत्तर कत्यूरी काल तथा चंद्रकाल का समय था।

छोटा केदारनाथ मंदिर: इस विशाल मंदिर के दक्षिण-पूर्व में केदारनाथ का मंदिर है जो कि 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ से छोटे केदारनाथ के नाम से जाने जाते हैं। इनका लिंग भी 11वें केदारनाथ के ज्योतिर्लिंग के समान ही दिखायी देता है। इसके दक्षिण-पश्चिम भाग में नवदुर्गा की एवं अन्य मूर्तियाँ भी हैं, जिनकी पूजा अन्य मूर्तियों की तरह ही की जाती है। जागेश्वर (जगन्नाथ मंदिर) के सामने पूर्व दिशा में जटा गंगा के शिखर पर कुबेरजी की एक मूर्ति लिंग रूप में विद्यमान है। कुबेर विश्रवा के पुत्र थे, जिन्होंने हज़ारों वर्षों की कठिन तपस्या कर भगवान शंकर के दर्शन प्राप्त किये। जागेश्वर से 3 कि.मी. की दूरी पर उत्तर की ओर वृद्ध जगन्नाथ का मंदिर है, जो कि अत्यंत प्राचीन है। जागेश्वर से अधिक पुराना होने के कारण इसे वृद्ध जगन्नाथ के नाम से जाना जाता है।

इस सुंदर नगरी में रहने के लिए उत्तरांचल प्रदेश कुमाऊँ विकास मंडल निगम का एक यात्री निवास उपलब्ध है। यहाँ पर सादा वैष्णवी भोजन मिलता है। आसपास कुछ छोटे-छोटे रेस्टोरेंट भी हैं। एकांत में बसा यह यात्री निवास शहरी लोगों के लिए अत्यंत मनोरम स्थान है। देवदार के जंगलों में बसा यह स्थान पर्यटकों के लिए शांतिदायक तथा स्फूर्तिदायक है। जहाँ एक ओर प्रकृति प्रेमी इसकी प्राकृतिक छटा का आनंद उठा सकते हैं, तो दूसरी ओर श्रद्धालुगण इस देवभूमि पर ईश्वर के दर्शन कर गदगद हो जाते हैं। यह स्थल सभी तरह के प्रकृति तथा ईश्वर प्रेमियों के लिए अनूठा मिलन स्थल है। प्रकृति के ईश्वरीय सौंदर्य से संपन्न इस देवभूमि को ‘कुमाऊँ की काशी’ के नाम से जाना जाता है।

पुरातत्वीय संग्रहालय: जागेश्वर में एक पुरातत्वीय संग्रहालय भी स्थित है। जागेश्वर में वर्ष 1995 में बनाए गए मूर्ति शेड को वर्ष 2000 में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया। जागेश्‍वर समूह, दंतेश्‍वरा समूह तथा कुबेर मंदिर समूह के मंदिरों के क्षेत्र से प्राप्‍त 174 मूर्तियों को इसमें रखा गया है और ये नौंवी से तेरहवीं शताब्‍दी ई. की हैं। संग्रहालय में दो दीर्घाएं हैं जिसमें प्रदर्शों को प्रदर्शित किया गया है। पहली दीर्घा में 36 मूर्तियों को दीवार में बनी दो प्रदर्शन मंजूषाओं तथा लकड़ी की वीथिका में रखा गया है। उमा-महेश्‍वर, सूर्य तथा नवग्रह दीर्घा में रखे उत्‍कृष्‍ठ नमूने हैं। उड़ते आसमान वाली उमा-महेश्‍वर की प्रतिमा, शिव के अंक में बैठी पूर्ण रूप से अलंकृत पार्वती। संग्रहालय के केन्‍द्रीय हाल का निर्माण इस क्षेत्र के मुख्‍य आकर्षण जिसे पोना राजा मूर्ति के रूप में जाना जाता है, को प्रदर्शित करने तथा जागेश्‍वर क्षेत्र की अन्‍य मूल्‍यवान मूर्तियों को प्रदर्शित करने के लिए किया गया है। पोना राजा की सुंदर मूर्ति स्‍थानीय राजा या पंथ से संबंधित है और अत्‍यधिक लोकप्रिय है तथा क्षेत्र में सम्‍मानित है। इस शानदार विश्वदाय स्‍थल का फोटो प्रलेखन 1856 में अलक्‍जेंडर ग्रीन लॉ (1818-1873) द्वारा किया गया वर्तमान फोटोग्राफों से तुलना करने पर ये विजयनगर स्‍मारकों के वैभव की पूरी जानकारी देते हैं।

संदर्भ: भारतकोश-जागेश्वर

External links

References

  1. Nachiket Chanchani (2013). "The Jageshwar Valley, Where Death Is Conquered". Archives of Asian Art. Duke University Press. 63 (2). doi:10.1353/aaa.2014.0004., pp. 133-135.
  2. Nachiket Chanchani 2013, pp. 134-135.
  3. Nachiket Chanchani 2013, pp. 136-137.
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.362