Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Saptam Parichhed

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जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खंड), 1937, लेखक: ठाकुर देशराज

सातवाँ परिच्छेद

वर्तमान काल के राजवंश

वर्तमान काल के राजवंश

[पृ.128]: जाटों में इस समय भी कई खानदान राज्य कर रहे हैं। चार तो इन में काफी प्रसिद्ध हैं। (1) सिनसिनवार (2) भाटी (3) राणा और (4) सिंधु। इनके सिवाय और भी कई खानदान है। इनका विस्तृत वर्णन तो पाठकों को जाट इतिहास में पढ़ना चाहिए। यहां तो हम केवल उनके वंश की समालोचना मात्र करेंगे।

समालोचना करने का एक कारण है क्योंकि उनके संबंध में कुछ भ्रांतियां फैली हुई हैं। यह भ्रांति उन्हीं के संबंध में हो सो बात नहीं है। बल्कि हम आश्चर्य में पड़ जाते हैं जब जगा लोगों से सुनते हैं कि अमुक गोत्र के अमुक आदमी ने जाटनी का डोला ले लिया था। इस तरह से राजपूत से जाट हो गया। हमने सैंकड़ों गोतों के संबंध में जब छानबीन की तो प्रत्येक गोत के भाट ने हमें यही बात बताई। महाराजा भरतपुर और पटियाला के गोतों के संबंध में भी जागा (भाट) लोग ऐसी ही बातें कहते हैं।

1. सिनसिनवार

भरतपुर के संबंध में जागा लोगों का कहना है कि बालचंद्र ने एक डागुर गोती जाट की स्त्री का डोला ले लिया था, अतः बालचंद राजपूत से जाट हो गया। बृजेंद्रवंश भास्कर के लेखक ने भी इसी गलती को दोहराया है। हालांकि महाराजा श्री कृष्णसिंह जी इस बेहूदा


[पृ.129]: बात पर बड़े हंसे थे। वे तो कहते थे हम राजपूतों से बहुत पुराने हैं। उनका गोत सिनसिनवार क्यों हुआ? इसके लिए जगा कहते हैं क्योंकि ये सिनसिनी में जाकर आबाद हुए थे किंतु उन बेचारों को यह तो पता ही नहीं कि गांवों के नाम सदा किसी महान पुरुष के नाम पर होते हैं। और उसी के नाम पर गोत्र का नाम होता है। जैसे मथुरा नाम मधु के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उसके साथी मधुरिया अथवा मथुरिया कहलाए। पुरानों के अनुसार भी देश और नगरों के नाम किन्हीं महान पुरुषों के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। हाँ 2-4 घटनाएं अपवाद भी होती हैं।

वास्तव में बात यह है कि इन लोगों ने वहां पर शिन देवता की स्थापना की थी। उसी शिन के नाम पर जिसे कि ये लोग सिनसिना कहते थे सिनसिनी प्रसिद्ध हुआ। ये शिन अथवा सिनसिना कौन है यह भी बता देना चाहते हैं। शिन वैदिक ऋचा का दृष्ट्वा एक ऋषि हुआ है जिसका वैदिक ऋचा में नाम है और चंद्रवंशी क्षत्रियों में ही हुआ है। चंद्रवंश की वंशावली में भगवान श्रीकृष्ण से 6 पीढ़ी पहले शिनि हुये हैं। एक शिनी कृष्ण से 10 पीढ़ी पहले वृषणी के जेठे भाई थे। संभव है इन दोनों शिनियों को वे सिनसिना के नाम से उसी भांति याद करते हैं जैसे लोग नलनील अथवा रामकृष्ण को याद करते हैं। सिंध में तो इन लोगों की कुछ मोहरें भी मिलीं जिनपर शिनशिन और शिन ईसर लिखे शब्द मिले हैं। यह याद रखने की बात है कि ब्रज की


[पृ.130]: संतान के कुछ लोग पंजाब के जदू का डांग और सिंध के मोहनजोदारो में जाकर आबाद हुए थे। वहां से लौट कर इनके एक पुरुष ने बयाना पर कब्जा किया। यहां पर बहुत प्राचीन समय में बाना लोग राज करते थे। उनकी पुत्री उषा का वहां अब तक भी मंदिर है। आगे चलकर इनकी दो शाखाएँ हो गई। एक दल नए क्षत्रियों में दीक्षित हो गया जो कि राजपूत कहलाते थे। उसने उन सब रस्मों रिवाजों को छोड़ दिया जो कि उसके बाप दादा हजारों वर्ष से मानते चले आ रहे थे। इस तरह जाट संघ से निकलकर वे लोग अपने लिए यादव राजपूत कहलाने लगे। करौली में उन्होंने अपना राज्य कायम किया।

2. भाटी

2. भाटी - भाटी लोगों के पास पंजाब में पटियाला और नाभा जैसी सिख जाट रियासते हैं। जैसलमेर की रियासत राजपूत भाटियों के पास है। जगाभाट लोगों ने जाट भाटियों के संबंध में यह भ्रांति फैला रखी है कि राव खेवा ने नादू जाट की लड़की से शादी कर ली। इससे राव खेवा की संतान के लोग जाट कहलाने लगे। हम नहीं समझते कि राव खेवा यह समझते हुए भी कि जाटनी से शादी करने से उन्हें राजपूत निकाल देंगे, ऐसी गलती क्यों करते हैं। संभव है वह पटियाला के वर्तमान महाराजा की बराबर बुद्धिमान न रहे हों जिन्होंने फिर से राजपूत होने के लिए संस्कार कराया था। झूठी बात भी दो-चार पीढ़ी तक सुनते रहने से किस प्रकार सही हो जाती है यह गढ़ंत इस बात का उदाहरण है। पहले तो भाटियों के संबंध में भाटों की



[पृ.131]: गढ़ी हुई हम इसी बात का खंडन करना चाहते हैं। भाट कहते हैं कि एक यादव राजकुमार ने देवी को प्रसन्न करने के लिए भट्टी में अपना सिर होम दिया था तभी से यह भाटी कहलाने लगे। खूब ! बेसिर-पैर की उड़ाई है। क्या आज के प्रकाश के युग में कोई इस बात पर विश्वास कर सकता है कि जलती हुई भट्टी में से सिर बिना खाक हुए बचा रह गया और फिर वही सिर धड़ पर रख देने से पहले जैसा ही हो गया।

असल बात यह है कि गजनी से लौटा हुआ यह समूह जब भटिंडा भटनेर के आसपास के इलाके में आबाद हो गया तो भाटी कहलाने लगा। संस्कृत साहित्य में इस देश को बातिभय लिखा है ईसा से कई सदी पहले वत्स गोत्री राजा उदयान यहां पर राज्य करता था। यह बातिभय बातभय का रूपांतर है जिसके माने 'हवा का डर' होता है। वास्तव में गर्मी के महीनों में यहाँ इतनी लू चलती है जितनी भारत के किसी कोने में शायद ही चलती होगी। प्रातः 8 बजे से शाम के 5 बजे तक आसमान धूल से ढक जाता है। एक फर्लांग दूर का मनुष्य भी दिखाई नहीं देता। बालू में से अग्नि किरणें उठती दिखाई देती हैं। एक तरह से उस समय पर यह सारा प्रदेश एक जलती भट्टी होता है। यदि भाटों ने इसी को अलंकार मय भाषा में देवी की भट्टी कहा हो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। पानी का जहां प्राय: सदैव अकाल रहता है। ऐसे प्रांत का बातभय नाम होना ही चाहिए। इसी बात-भय शब्द से


[पृ.132]: बातियाना भतियाना और भटियाना नाम पड़ गया और जो लोग इसमें आबाद हो गए वे भाटी कहलाए और जितना समूह अपने परंपरागत रस्मों रिवाजों को छोड़कर नवीन ब्राह्मण धर्म में दीक्षित हो गया वह राजपूत कहलाया। हमें तो यह भी कहना पड़ता है कि भाटियों का खानदान मल्लों में से है जो कि यादवों की ही एक शाखा थे। क्योंकि पटियाला का खानदान फुलकिया मलोई कहलाता है अर्थात वे मलोई जो फूल के वंशज हैं। हम यूनानी लेखकों की पुस्तकों में सिकंदर के आक्रमण के समय मलोई नाम की एक प्रसिद्ध प्रजासत्तात्मक शासक जाति को पाते हैं जो सतलज के किनारे पर आबाद थी। सिकंदर अथवा अन्य विदेशी ताकत के संघर्ष है जब इसे बराबर नीचे के खुश्क मैदान में बसना पड़ा जोकि भटियाना के नाम से प्रसिद्ध है तो यह भाटी कहलाने लगे- बठिंडा, हिसार, भटनेर और हांसी पर एक लंबे अरसे तक जाट भाटियों की हुकूमत रही है। इस समय 3 तरह के भाटी हैं- मुसलमान भाटी, जाट भाटी, राजपूत भाटी। जाट भाटियों के पास पटियाला, नाभा, जींद, फरीदकोट जैसी प्रसिद्ध रियासतें हैं।

3. राना

3. राना - यह वंश अपने को गहलोतों की एक शाखा मानता है जो कि एक समय बलभी के राजा थे। एक शाखा ने हारीत द्वारा नए धर्म में दीक्षित होगा राजा मान से चित्तौड़ को ले लिया। दूसरे लोग गोहद में आ गए। हमारे ख्याल से यह चित्तौड़ के


[पृ.133]: के अधीश्वर तो अवश्य हैं किंतु बाप्पा की संतान में से है और फिर इनके किसी जाटनी से शादी कर लेने के कारण जाट हो गए इन 2 बातों से हम सहमत नहीं। इस वंश के संबंध में अभी हम काफी छानबीन नहीं कर पाये हैं। इस वंश के वर्तमान नरेश महाराज राणा श्री उदयभानसिंह जी एक धर्मनिष्ठ और चरित्रवान भूपाल हैं।

4. सिंधु

4. सिंधु - इस खानदान में के अधिकार में कलसिया का राज्य है। यह वंश भी प्राचीन है। सिंधूराज कहे जाने वाले नरेशों के ये उत्तराधिकारी हैं।

5. ठेनुआं

5. ठेनुआं - अंग्रेजी राज्य के आने से पहले खानदान स्वतंत्र शासक के रूप में मथुरा अलीगढ़ के जिलों पर राज्य करता था। इस समय हाथरस बल्देवगढ़ और मुरसान में इस खानदान की तीन राजधानियां हैं। रूलिंग चीफ जाट राजाओं के बाद इनका ही नाम जाटों में विशेष मान के साथ याद किया जाता है।

6-21. अन्य

इनके अलावा, 6. कुचेसर, 7. साहनपुर, 8. जारखी, 9. मुरादाबाद, 10. भटौना, 11. मुहीउद्दीनपुर, 12. पिसावा आदि कई जाट घराने यूपी में 13. पिछोर, 14. चितौरा, 15. मगरोरा के ग्वालियर में, 16. कलास बाजवा, 17. रांगर नागल, 18. भागा, 19. खंदा, 20. सिरानवाली, 21. बड़ाला पंजाब में जागीरदारों के रूप में अपनी उस शक्ति का परिचय देते हैं जो उनके पूर्वजों ने राज स्थापन करने के लिए खर्च की थी।


सातवाँ परिच्छेद समाप्त

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