Jat Itihas Ki Bhumika/Rakhigarhi Sabhyata Ke Kisan Jat

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जाट इतिहास की भूमिका

राखीगढी सभ्यता के किसान जाट

[p.5]:दिनांक 9 अगस्त 2016 को अंग्रेजी दैनिक Times of India के चण्डीगढ़ संस्करण के मुख्यपृष्ठ पर हरयाणा के हिसार जिले के राखीगंढी गांव में पुरातात्विक विभाग द्वारा चल रही खुदाई से संबधित खबर छपी। इस खबर का शीर्षक था Harappans descendants still living in Rakhigarhi सहशीर्षक में लिखा गया – Initial tests hints it’s the oldest continuous living habitat in world.

An excavated site at Rakhigarhi

इस खबर में लिखा गया कि:- Initial findings from Rakhigarhi excavation site in Haryana’s Hissar district the biggest Harappan site indicate that it may be the oldest continuous living habitat in the world. Explaining the importance of the discovery, a senior official of Haryana archeology department said,“this means that the Harappan civilization never totally died away. The direct decendants of the people who lived here 7500 years ago are still living at the same place” .

दिनांक 10 अगस्त 2016, जो इसी अखबार के पृष्ठ 5 पर Rakhigarhi gets scientists from Cambridge, Harvard शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें Research team head प्रोफेसर वसंत शिंदे ने कहा कि In the same region ,there are sites like Bhirana, which date back to between 5500 and 6000 BC. Farmana and Girawad are also older than 5000 BC.

इस खबर के अनुसार हमें पता चलता है कि राखीगंढ़ी की सभ्यता 7500 साल पुरानी सभ्यता थी, इसका विस्तार हडप्पा सभ्यता की मोहनजोदडो साईट, पाकिस्तान से कई गुणा अधिक था। इस सभ्यता में जो जातियां


[p.6]:7500 वर्ष पहले रहा करती थी इस सभ्यता के उज़ड जाने के बावजूद – उन जातियों की कुछ आबादी फिर भी इस क्षेत्र से चिपटी रही थी, जिसकी संतानें आज भी इस क्षेत्र में निवास करती है और आज भी तकरीबन उन्ही परंपराओ को मानती है, जिसे उनके पूर्वज मानते थे। इसलिए यह दूनिया की प्राचीनतम् निरंतर जिन्दा रहने वाली सभ्यता की निशानी है।

इसी अखबार में कुछ दिनों बाद एक और खबर छपी थी कि इस सभ्यता की साईट से जो मुहरें मिली है उन पर सिंह छपा हुआ है, इसका मतलब यह है कि यहां की जिन्दगी में उस जाति की अहम भूमिका थी जो जाति सिंह वृति रखती हो अर्थात Martial Race से संबधित हो। इस सिंह छपी मोहरों से यंहा के Tribal Culture की जानकारी मिलती है। मै इस सभ्यता (साईट) का अवलोकन करने सन् 2015 में गया था, मेरे साथ प्रोफेसर विलास खरात (महाराष्ट्र ) उनकी पत्नी और पूरी टीम थी और मुझे इस साईट का मुआईना इसी राखीगढ़ी गांव के एक होनहार विद्यार्थी खयालीराम ने करवाया था, जिनके पिताजी ने इस साईट की सेवा में अपनी पूरी जिन्दगी लगा दी है लेकिन भारत सरकार ने अभी तक उन्हे कोई आधिकारिक प्रशास्ति पञ भी नही दिया है, जबकि ऐसे मिशनरी लोगों को बहुत अधिक मान बड़ाई और अवार्ड मिलने चाहिए।

जाटों की अहम भूमिका: खयालीराम द्वारा दी गई जानकारी से मुझे स्पस्ट हो गया कि इस सभ्यता के निर्माण में जाटों की अहम भूमिका थी और जाट आज भी गाहे बगाहे उन्ही परंपराओं को मानते है, जिन्हे 7500 वर्ष पहले इनके पूर्वज मानते थे। उस समय भी औरतें यही गोटे अपनी चुनडी में लगाती थी, जो मेरी दादीजी की चुनडी में लगे होते थे। उस समय भी मिट्टी पर लकीरें खींच कर जो चोपड आदि खेल खेले जाते थे, वही खेल आज भी


[p.7]:इस गांव में बड़े बजुर्ग और बच्चे खेलते मिल जाते है। उस समय भी मिट्टी के मटकों पर जो लकीरें कुम्हार उकेरता था, वंही लकीरें आज भी कुम्हार उकेरते है। उस समय भी मुर्दों को जिस दिशा मे रखकर दफनाया जाता था, आज भी उसी दिशा में रखकर जलाया जाता है। उस समय भी औरतें जो कड़े चूड़िया अपने हाथों में पहनती थी, ठीक वैसे ही कड़े चूड़िया आज भी हमारी औरतें पहनती है। आज भी ज्यादातर जाटों के नाम के पिछे सिंह लगाया जाता है, जिसकी मुहरें इस साईट से मिली है।

निष्कर्ष:- जाटों ने 7500वर्ष पहले राखीगढ़ी की सभ्यता को बसाया था, जो आगे चलकर सिन्धु घाटी की सभ्यता (4500 वर्ष पूर्व) बनी।

मुझे खयालाराम ने बताया कि राखीगढ़ी में श्योराण गोत्री जाट है। राखीगढ़ी का मतलब है राख की गढ़ी मतलब इस महान सभ्यता को आग से जला कर नष्ट कर दिया गया था। मैनें पूछा कि वे बर्बर लोग कौन थे, जिन्होने हमारे पूर्वजों की सभ्यता को मिट्टी में मिला दिया था, इसपर गांव वाले क्या कहते है क्योकि जब आज भी गांव वाले 7500 वर्ष पुरानी परंपराओं को बरकरार रखे हुए है तो जरूर ही यंहा के बाशिंदे पीढ़ी दर पीढ़ी अपने बाप दादाओं से इस सभ्यता को जलाने वालों के नाम भी सुनते आए होगें अथवा उन्हे इस सभ्यता को खत्म करने वाली जाति की भी जानकारी होगी।

सभ्यता को परशुराम ने नष्ट किया:

इसपर खयालीराम और इनके पिताजी ने एक स्वर में कहा कि यहां की लोकोक्ति एवं लोक प्रचलित धारण के अनुसार इस सभ्यता को ‘परशुराम’ ने नष्ट किया था। इसकी पुष्टि के लिए उन्होने मुझे कुछ गीत भी सुनाए जिनमें इस सभ्यता को नष्ट करनें में परशुराम की भूमिका का उल्लेख था।


[p.8]: परशुराम चूंकि ब्राह्मणों का लीडर था तो इससे यह भी सिध्द हो गया कि राखीगढ़ी और सिन्धुघाटी की सभ्यता का विनाश ब्राह्मणों ने किया था। बर्बर ब्राह्मण हमारी सभ्यता को नष्ट करने पश्चिमी यूरेशिया (यूरोप और एशिया की सीमाएँ जहा मिलती है) से आया था। हमारी सभ्यता का व्यापार मध्य-ऐशिया के कई देशों के साथ था ,तो इसकी खयाति मध्य-ऐशिया से पश्चिमी यूरेशिया तक फैल चुकी थी। (इस ख्याती के किस्से सुन सुनकर ब्राह्मण यूरेशिया से चलकर यंहा पहुचा था।) यहां ऐसा भी नही है कि ब्राह्मणों ने एकदम से धावा बोलकर राखीगढ़ी और सिन्धु सभ्यता को खत्म किया होगा, क्योकि ऐसी ताकत ब्राह्मण में कभी नही रही कि वह 'जाट' पर सीधा आक्रमण करके इसकी पूरी सभ्यता को उजाड़ दे। ब्राह्मण ने यह कार्य पूरी रणनीति से किया था। जिसमें “फूट डालों और राज करों” की नीति प्रमुख थी।

'परशुराम के हाथ में जो फरसा ' ब्राहमणों ने पकड़ा रखा है वह इस असलियत पर से ध्यान बांटने का औजार है कि ब्राह्मणों ने कुटिलता से नही युध्द से राखीगढ़ी और सिन्धु घाटी की सभ्यता को नुकसान पंहुचाया था। राखीगढ़ी और सिन्धु घाटी की सभ्यता में जाटों का लीडर 'शम्बर' था। जिसे बाद में शंकर, शिव, ऋषभनाथ जी कहा गया।

हमारी महान सभ्यता का मूल दर्शन 'चार्वाक दर्शन' था, जोकि प्रकृति पूजकों की सभ्यता थी। जाट नागवंशीय थे और जाटों में नागवंश सबसे मजबूत वंश था। नागवंश में सम्राट तक्षक थे,जिनकी राजधानी तक्षशिला थी। (आज भी जाटों में तक्षक गोत्र है। ) नांगलोई (दिल्ली) और नागौर (राजस्थान) जाट बहुल क्षेत्र है, जिनके नाम नाग से है। जाटों में कई गोत भी नागवंशिय ( जैसे नागिल) है। नगरों का विकास भी नागों ने किया था, नागरी लिपी, जिसे ब्राह्मण देवनागरी कहता है, भी नागों


[p.9]: की देन है। टकसाल (सिक्के छापने का कारखाना) भी सबसे पहले तक्षक राजा ने ही शुरू किए थे। टकसाल में 'टक' शब्द ‘तक्षक’ का ही अपभ्रंश है।

निष्कर्ष:- चार्वाक दर्शन आधारित राजा शंबर और सम्राट तक्षक की नागवंशीय राखीगढ़ी और सिन्धुघाटी की जाट बहुल सभ्यता का पतन पश्चिमी यूरेशिया से आए ब्राह्मण 'परशुराम' के नेतृत्व में ‘फूट डालो राज करो' की नीति को अपनाकर किया था।


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