Jatpura Puranpur

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Jatpura (जटपुरा) is a village in Puranpur tahsil of Pilibhit district in Uttar Pradesh.

Location

Jat Gotras

History

पीलीभीत से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तहसील पुरनपुर के ग्राम जटपुरा में दो शताब्दी से ज्यादा पूर्व के मन्दिरों सरोवरों व आलीशान किले के अवशेष पुरातत्व विभाग की लापरवाही के चलते लुप्त होने की स्थिति मे है। इतिहास गवाह है कि कभी यह दिल को लुभाने वाले एतिहासिक स्थल मौजूद हुआ करते थे।

पुरनपुर तहसील मुख्यालय से मात्र 8 किलो मीटर की दूरी पर स्थित ग्राम जटपुरा में कभी राजा मोहन सिंह जाट का निबास हुआ करता था जिसकी असमय ही मुत्यु हो जाने के कारण महारानी मोहनी कुंवर को सन् 1856 में राज्य की बागडोर संभालनी पड़ी । हरिद्गार की हर पैड़ी तक फैली विशाल राज्य मे जनता स्वयं को सुरक्षित महसूस करती थी।पति की मौत से व्यथित महारानी मोहनी कुंवर अपना दुख कम करने के उद्देश्य से तीर्थ यात्रा पर चली गयी।जहां से लोटने के पश्चात महारानी ने सात मन्दिरों की स्थापना एक विशालकाय शिवालय में करवायी। मन्दिरों की स्थापना के साथ साथ महारानी ने एक विशाल सरोवर का भी निर्माण कराया।बताया जाता है की मन्दिरों मे सोने की मुर्तियां तथा उनकी चोटियों पर सोने के कलश स्थापित किये गये थे जो कुछ वर्ष पूर्व ही चोरी कर लियें गये थे। यह यहां के निवासियों की बदकिस्मती से पुलिस आज तक भी चोरो को पकड़ने मे कामयाब नही हो सकी। चोरी किये गये कलश मूर्तियां की अनुमानित कीमत साठ लाख रुपये बताई जाती हैं। चोरों का कहर झेलने के पश्चात मन्दिरों को स्थानीय नागरिकों का भी कहर झेलना पड़ रहा है, जिन्होने ने अपने स्वार्थ के लिये की पूर्ति के लिये मंदिरों के बाहर अतिक्रमण करके उनकी शोभा को नष्ट करने की ठान रखी है।

दुर्भाग्यवश कोई पुत्र न होने के कारण महारानी को दो बच्चों को अपना दत्तक पुत्र घोषित करना पड़ा। महारानी के शासन के दौरान ही अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया । जिसके लिये उन्होने कानून बना दिया कि दत्तक घोषित पुत्र को पिता की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी नही माना जायेगा।

दूसरी तरफ अंग्रेजों के आक्रमण से घर से वेघर हुए दिल्ली के समीप बागपत जिला (यहाँ बाबा शाहमल तोमर ने क्रांति की थी 1857 की) के जाट तोमरों ने महारानी से उनके विशाल राज्य मे बसने की इजाजत मांगी। लेकिन जाट तोमरों के लड़ाकू प्रवृति का होने के कारण महारानी ने उन्हे अनुमति देने से इन्कार कर दिया तथा उनके कुओ मे जानबरों की हड्डियां गिराकर उन्हे राज्य से बाहर निकालने पर विवश कर दिया। इसी दौरान बागियों ने महारानी के किले पर तोप से आक्रमण कर दिया।तोप से दागा हुआ पहला गोला किले के सामने स्थित विशाल कुएं पर गिरा। जिसका निशान आज भी मौजूद है जबकि दूसरा गोला किले के मुख्य द्गार टकराते ही महारानी भयभीत हो गई और उन्होने जंगलों मे डेरा डाले जाट तोमरों को अपनी रक्षा हेतु बुला लिया। वीरता का परिचय देते हुये जाट तोमरों ने बागियों की तोप पर कब्जा करके उन्हे वहां से भागने पर मजबूर कर दिया। जिसके बदले में महारानी ने उन्हे उत्तरी सीमा पर स्थित जंगलों मे बसने की इजाजत दे दी।बताया जाता है कि बागियों से छीनी गयी तोप आज भी जटपुरा ग्राम में मौजुद है।

महारानी के राज्य पर गिद्द दृष्टि रखे अंग्रेजों को आखिरकार महारानी की मृत्यू के पश्चात मौका मिल ही गया अंग्रेजों ने महारानी के दोनों दत्तक पुत्रो सुरेन्द्र विक्रम शाह तथा लल्लू को मात्र आठ सौ सौलह ग्रामों का जमीदार घोषित करके पूरे राज्य पर कब्जा कर लिया। महारानी द्गारा बनबाया गया विशाल सरोवर आज भी अपने अस्तित्व कायम किये हुये है। जबकि कई मंदिरों के खंडहर इस बात के गवाह है कि कभी वे भी आलीशान थे।

सौ0 मीनू बरकाती

Notable persons

External links

Gallery

References


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