Jay Devi
Jay Devi was a brave woman from Baraut, Uttar Pradesh, who fought with Britishers for the freedom of country. She became martyr during 1857 freedom movement.
जय देवी
सन 1857 की क्रान्ति के समय जाट युवतियों ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था। अंग्रेजों ने अनेक जाट स्त्री बच्चे और पुरुषों की नृशंस हत्या की। शिवदेवी की 14 वर्षीय छोटी बहन जय देवी ने यह दृश्य अपने तिमंज़िले मकान से देखा। उसने बड़ौत वासियों को कहा कि मेरे बहन के प्रति सच्ची श्रद्धाजलि यह है कि हम आजादी के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देते रहें। जयदेवी ने प्रण किया कि जिस अंग्रेज़ ने उसकी बहन तथा वीरों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था उसका बदला अवश्य लूँगी। उसने गंगोल गाँव में अंग्रेजों द्वारा फांसी पर लटकाए, लिसाड़ी गाँव के 22 क्रांतिकारियों के छलनी किए शरीरों का तथा घोलाना के 14 वीरों के पेड़ों पर लटकाए हुये शवों को भी देखा, फिर भी वह डरी नहीं। वीर बालिका जयदेवी अंग्रेजों के रिसाले का पीछा करती रहती तथा गावों में घूम-घूम कर युवक-युवतियों में जोश पैदा करती। जयदेवी के साथ लगभग 200 क्रांतिकारियों का जत्था चलता था । इसने अग्रेज़ रिसाले का लखनऊ तक पीछा किया लेकिन अंग्रेजों को जयदेवी की खबर तक नहीं लगी। इस वीर बालिका ने मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी, इटावा आदि जिलों में भी क्रांति की अलख जगाई।
लखनऊ में जयदेवी ने अपने क्रांतिकारी दस्ते द्वारा [Baraut|बड़ौत]] में अत्याचार करने वाले अंग्रेज़ अधिकारी के बंगले की खोज करवाली। कई दिनों तक अंग्रेज़ अधिकारी को मारने का प्रयास होता रहा। लखनऊ में उन्हें छिपकर रहने और खाने की भारी परेशानी हुई, लेकिन एक दिन बंगले में
जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष: पृष्ठांत 241
टहलते हुये अंग्रेज़ अफसर का सिर जयदेवी ने तलवार से उड़ा दिया। उसके अनुयायियों ने अंग्रेज़ सैनिकों को मार गिराया और बंगले को आग लगा दी । क्रांतिकारी अंग्रेजों से झुंझकर जुझार हो गए। कपड़ों पर लगे खून से अंग्रेज़ जयदेवी को पहचान कर पाये और उसकी देह को लखनऊ में पेड़ से लटका दिया गया। अंग्रेजों के भयंकर आतंक के बावजूद क्रांतिकारियों ने उनकी लाश को दफनाकर उस पर चबूतरा बनवा दिया। यह चबूतरा विधानसभा की दूरदर्शन वाली सड़क पर है। यहाँ देशभक्त आज भी सिर झुका कर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। बूढ़े लोग आज भी जयदेवी की लोक-कथा सुनाकर बलिकाओं में वीरता का संचार करते हैं।
जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष: पृष्ठांत 242
संदर्भ
लेखक: महावीर सिंह जाखड़, पुस्तक: जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष, 2004, p.241-242, प्रकाशक: मरुधरा प्रकाशन, आर्य टाईप सेन्टर, पुरानी तह्सील के पास, सुजानगढ (चुरु)
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